लोकसभा चुनाव 2019: राष्ट्रीय लहर से प्रभावित होता है मध्यप्रदेश का वोटर
भोपाल। मध्यप्रदेश की लोकसभा सीटों पर 30 साल से एक जैसा ट्रेंड चल रहा है। मध्यप्रदेश की सभी सीटें देशव्यापी राजनीतिक हवा से प्रभावित होती है। 29 में से 14 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने अपना कब्जा बनाए रखा है। लगता है कि ये 14 सीटें भाजपा की गढ़ है। इंदौर की लोकसभा सीट 30 साल से भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में हैं। मालवा की इंदौर, उज्जैन, खरगोन, खंडवा, मंदसौर, रतलाम-झाबुआ और धार सीटें भाजपा प्रभावित क्षेत्र कही जाती हैं। महाकौशल की छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस का स्थायी गढ़ है, लेकिन महाकौशल में ही जबलपुर, बैतूल लगातार 1996 से भारतीय जनता पार्टी के पास है। सिंधिया घराने के प्रभाव वाले ग्वालियर और गुना में कांग्रेस का प्रभाव स्थायी है।
आमतौर पर मध्यप्रदेश के मतदाता राष्ट्रीय मुख्यधारा से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। राष्ट्रीय मुद्दे यहां के वोटर को भी उसी दिशा में ले जाते हैं, लेकिन 2009 में ऐसा पहली बार हुआ, जब केन्द्र में यूपीए-2 की सरकार बनी, लेकिन मध्यप्रदेश में 29 में से 12 सीटें ही कांग्रेस जीत पाई थी। मध्यप्रदेश की ही रतलाम-झाबुआ अजजा सुरक्षित सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है, जहां अधिकांश बार कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते रहे हैं। दिलीपसिंह भूरिया भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जरूर जीते थे। पर वे भी पहले कांग्रेस में थे। दुर्भाग्यवश में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, क्योंकि बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था।
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30 साल से एक जैसा ट्रेंड चल रहा
मध्यप्रदेश की राजनीति को राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे भी प्रभावित करते हैं, लेकिन खेती-किसानी, बेरोजगारी आदि के अलावा हिन्दुत्व का मुद्दा भी मध्यप्रदेश के मतदाताओं को प्रभावित करता है। मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी का भी थोड़ा असर होता है, जो उत्तरप्रदेश से लगा हुआ इलाका है, लेकिन यहां भी दलितों के अलावा ठाकुर और ब्राह्मण वोट प्रभाव डालते है। यही हाल ग्वालियर, चंबल संभाग का भी है, जहां जाति प्रमुखता से परिणामों पर असर डालती है। बुंदेलखंड की 4 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी 15 साल से कब्जा जमाए हुए है। खजुराहो, टीकमगढ़, सागर और दमोह की सीटों पर जातिगत वोट बैंक बहुत बड़ी भूमिका निभाते है, इसलिए कोई भी पार्टी हो, वह उम्मीदवारों का चयन करने में जाति का विशेष ध्यान रखती है। भारतीय जनता पार्टी का एक गढ़ मध्यभारत भी माना जाता है, जिसमें भोपाल, होशंगाबाद, देवास, राजगढ़ और विदिशा आते है। वर्तमान में भोपाल और विदिशा में भाजपा का एक छत्र साम्राज्य है। दिग्विजय सिंह के क्षेत्र राजगढ़, होशंगाबाद और देवास में दो दशकों में 1-1 बार ही कांग्रेस भी जीती है।
मध्यप्रदेश की राजनीति को राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे भी प्रभावित करते हैं
छत्तीसगढ़ बनने के पहले मध्यप्रदेश में लोकसभा की 40 सीटें थी। 1998 में इनमें से 30 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा था। प्रदेश विभाजन के बाद पहला लोकसभा चुनाव 2004 में हुआ था। विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ बना रहा। विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने का लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में भी मिलता रहा। इस बार वहां कांग्रेस की सरकार है, इसलिए लोकसभा के चुनाव के नतीजे 100 प्रतिशत भाजपा के पक्ष में जाएंगे यह नहीं माना जा सकता। 2014 में छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों पर भाजपा जीती थी। *
2014 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की केवल 2 सीटें थी और भाजपा ने 27 सीटों पर कब्जा किया था। इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपनी सीटों में अच्छी बढ़ोत्तरी कर पाएगी, लेकिन आंकड़ा क्या होगा, इस बारे में कांग्रेस के नेता कोई दावा नहीं कर रहे। मध्यप्रदेश के कई इलाकों में सातवें चरण में मतदान है और अभी वहां के उम्मीदवार ही तय नहीं किए जा सके हैं। ऐसे में चुनाव का पूर्व अनुमान लगाना भी मुश्किल ही है।
2014 में बीजेपी को 29 में से 27 सीटें आई थीं
2014 के चुनाव में मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को 29 में से 27 सीटें तो मिली ही थी, उसका वोटों का प्रतिशत भी शानदार था। पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में 54.8 प्रतिशत वोट पाए थे। उसके मुकाबले कांग्रेस को 35.4 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई और भाजपा को 29 में से 27 सीटें मिली थी। ऐसा माना जा सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व और मोदी लहर ने यहां बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2009 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने 12 सीटें पाई थी और उसे 40.1 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 16 सीटों पर कब्जा किया था और उसके वोट 43.4 प्रतिशत थे। जाहिर है कि वोटों का 1-2 प्रतिशत कम-ज्यादा होना भी सीटों की संख्या को प्रभावित करता है।
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