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क्या भाजपा भी मानने लगी है रहेगी बहुमत से दूर?

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के बाद जब करीब आधी से ज्यादा सीटों पर मतदान हो चुका हो, भाजपा महासचिव राम माधव की एक साक्षात्कार में यह स्वीकारोक्ति अपने आप में काफी अहम मानी जा सकती है कि उनकी पार्टी बहुमत के आंकड़ों से दूर रह सकती है। हालांकि इसके बावजूद उनका यह दावा भी है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा और केंद्र में फिर से एनडीए की सरकार बनेगी। साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा है कि उत्तर भारत में पार्टी की कुछ सीटें कम हो सकती हैं जिनकी भरपाई पूर्वी भारत से की जा सकती है। वह पश्चिम बंगाल और ओडिशा का जिक्र भी करते हैं जहां से भाजपा को काफी उम्मीदें हैं। वह यह भी कहते हैं कि यदि भाजपा को 271 सीटें मिल जाएंगी, तो बहुत अच्छा होगा अन्यथा एनडीए सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। उनके यह स्वीकार करने से सियासी हलकों में क्या यह संदेश नहीं चला गया कि खुद भाजपा भी यह समझ रही है कि उसका आंकड़ा कम हो सकता है।

भाजपा कर रही जीत का दावा

भाजपा कर रही जीत का दावा

यह स्थिति तब है जब खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार यह दावा कर रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पहले से ज्यादा सीटें मिलेंगी और एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनेगी। इस आशय के दावे अरुण जेटली और नितिन गडकरी समेत अनेक भाजपा नेता चुनावी सभाओं से लेकर सभी जगहों पर दोहराते रहे हैं। जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर तमाम नेता लगे हुए हैं। पूरे चुनाव को राष्ट्रवाद से लेकर देशभक्ति, राम, मंदिर और बालाकोट-पुलवामा जैसे मुद्दों पर केंद्रित किए हुए हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष और विपक्षी गठबंधनों पर करारे हमले किए जा रहे हैं। मतदाताओं को बताया जा रहा है कि किस तरह देश को मजबूर नहीं बल्कि मजबूत सरकार की जरूरत है।

यह नारा भी बहुत मजबूती से उछाला गया है कि मोदी है तो मुमकिन है। आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब और नक्सलवाद के खात्मे पर खासा जोर दिया जा रहा है। एक तरह से कहा जा सकता है कि भाजपा की ओर से चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किसी तरह की कोरकसर नहीं छोड़ी जा रही है। इन्हीं सब के आधार पर ही भाजपा को यह लगता होगा कि उसके सामने कोई टिकने वाला नहीं है और जीत सुनिश्चित है।

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 पार्टियों को चौंकाते रहे हैं चुनाव परिणाम

पार्टियों को चौंकाते रहे हैं चुनाव परिणाम

बहुत कम चुनाव ऐसे होते हैं जो किसी पार्टी की मंशा के अनुरूप हो जाएं और परिणाम भी उसके पक्ष में आ जाएं। 2014 के लोकसभा चुनाव को इस रूप में लिया जा सकता है जब सब कुछ उसी तरह हुआ जिस तरह भाजपा ने चाहा था और तैयारी की थी। उस चुनाव में भाजपा को आशातीत बहुमत मिला था और एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी।लेकिन अगर उससे पहले के 2009 के लोकसभा चुनाव को देखा जाए, तो पता चलता है कि उस चुनाव में किसी को पता नहीं था कि कौन जीतेगा। हालांकि उस चुनाव में भाजपा मानकर चल रही थी कि उसे जीत मिलेगी और यूपीए को हार का सामना करना पड़ेगा। लेकिन जब परिणाम आए, तो भाजपा को निराशा ही हाथ लगी।

इसी तरह 2004 के लोकसभा चुनाव के बारे में भी किसी को यह साफ विश्वास नहीं था कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। इसके पहले पांच साल तक केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी। 2004 के चुनाव में भाजपा का इंडिया शाइनिंग का नारा बहुत जोरों पर था। तब पार्टी की ओर से दावा किया जा रहा था कि लोग अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी सरकार के कामों से काफी कुछ हैं। इसलिए मतदाता भाजपा को ही वोट करेगा और उसी की जीत होगी। ध्यान देने की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी की ही सरकार में कारगिल भी हुआ था। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो पता चला कि भाजपा और एनडीए को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को जीत मिली।

राम माधव के बयान का मतलब

राम माधव के बयान का मतलब

कमोबेश उसी तरह की स्थितियां 2019 के चुनाव में भी लोगों को नजर आ रही हैं। इस चुनाव में भी बालाकोट और पुलवामा है। इस चुनाव में भाजपा के लिहाज से सब कुछ इंडिया शाइनिंग जैसा ही है। माना जा रहा है कि जनता में खुशी की लहर है और हर कोई सरकार के फैसलों से काफी प्रसन्न है। इसके अलावा इन पांच सालों में देशभक्ति और हिंदुत्व का जज्बा भी बढ़ा है। मतलब 2014 से ज्यादा बड़ी जीत की उम्मीद है। इस सब के बीच शायद दूसरी तरफ की स्थितियों की अनदेखी की जाती रही है। उत्तर प्रदेश जहां से भाजपा को अप्रत्याशित रूप से 2014 के चुनाव में बड़ी सफलता मिली थी, सपा-बसपा-रालोद में गठबंधन होने की वजह से इस चुनाव में माना जा रहा है कि वहां से उसी अनुपात में उसे भारी नुकसान हो सकता है। ऐसा राजनीतिक हलकों से लेकर चुनावी सर्वेक्षणों में भी कहा जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि यहां का नुकसान इतना बड़ा हो सकता है जिसकी भरपाई आसान नहीं रह जाएगी। इसके अलावा दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि इस चुनाव में भाजपा और एनडीए का विरोध भी है जो 2014 में समर्थन में नहीं था। इतना ही नहीं, कई एनडीए सहयोगी गठबंधन छोड़कर जा चुके हैं। इस सबसे कुछ नुकसान तो भाजपा को पहले ही हो चुका है। हालांकि कई सहयोगियों को भाजपा साथ बनाए रखने में भी सफल हुई है और कुछ नए भी जोड़े हैं। पार्टी यह भी मानकर चल ही सकती है कि परिणाम आने के बाद भी कुछ नए सहयोगी जुड़ सकते हैं।

इस सबके बावजूद अभी तक भाजपा के किसी बड़े नेता अथवा पदाधिकारी ने सार्वजनिक रूप से यह बात नहीं कही थी कि भाजपा बहुमत से दूर रह सकती है और उसे सरकार बनाने के लिए कुछ नए सहयोगियों की जरूरत पड़ सकती है। अब जब आधे से ज्यादा सीटों पर मतदान हो चुका है, तब किसी के लिए भी चीजें स्पष्ट हो जाना स्वाभाविक है। ऐसे में इसका आकलन करना मुश्किल है कि यह नुकसान कितना हो सकता है और एनडीए सहयोगियों की संख्या कितनी ज्यादा होगी कि सरकार बनाने की राह आसान हो जाएगी। यह सब कुछ परिणामों पर निर्भर करेगा। यह देखना होगा कि मतदाता कितना भाजपा और विपक्ष के समर्थन और विरोध में है। वैसे यह सब अभी भविष्य के गर्भ में है क्योंकि जब तक चुनावों के परिणाम नहीं आ जाते, तब तक केवल अटकलें ही लगाई जा सकती हैं जो कभी-कभी ही सत्य साबित होती हैं।

पढ़ें लोकसभा चुनाव 2019 की विस्तृत कवरेज

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English summary
lok sabha elections 2019 Ram Madhav says BJP may need allies for majority
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