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मोदी मैजिक बिहार के जातीय समीकरण तोड़ने में हो रहा है कामयाब?

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नई दिल्ली- बिहार में चुनाव हमेशा से जातीय समीकरणों के आधार पर ही लड़े और जीते जाते रहे हैं। इसबार भी दोनों गठबंधनों ने जातीय गुणा-भाग को दिमाग में रखकर ही सीटों का तालमेल किया है और उम्मीदवारों को भी उसी हिसाब से टिकट बांटे हैं। इस समीकरण में कागजी तौर पर आरजेडी की अगुवाई वाला गठबंधन ज्यादा मजबूत नजर आ रहा है। उसने 'माय' (Muslim-Yadav) समीकरण के अलावा कांग्रेस एवं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP),विकासशील इंसान पार्टी (VIP) और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) के साथ भी तालमेल किया है। इन सभी पार्टियों के नेता अपनी-अपनी जातियों के नेता माने जाते हैं। एनडीए (NDA) में भाजपा के अलावा जेडीयू (JDU) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) है। इनमें जेडीयू के अगुवा नीतीश कुमार हैं और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की कमान पासवानों के नेता माने जाने वाले रामविलास पासवान के पास है। लेकिन, 2014 के चुनाव के बाद के 5 साल में बिहार में इस जातीय गणित में एक बहुत बड़ा बदलाव महसूस किया जा रहा है। जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनी है, मोदी के नाम पर वहां एक खास वोट बेस (Vote Base) तैयार हुआ है, जिसके कारण वहां के कुछ इलाकों में एक खास वोटिंग पैटर्न (Voting Pattern) का ट्रेंड अनुभव किया जा रहा है।

मोदी के नाम का वोट बैंक!

मोदी के नाम का वोट बैंक!

इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार बिहार के कुछ इलाकों में लोग जातीय समीकरणों को भूलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर वोटिंग की बात कहते सुने जा रहे हैं। खासकर सीमांचल, मिथिलांचल और कोसी के इलाकों में यह ट्रेंड ज्यादा साफ नजर आ रहा है। इन इलाकों में बिहार की 40 में से 19 लोकसभा सीटें हैं। यहां मोदी नाम ने कई अति-पिछड़ी और अनुसूचित जातियों में अपनी एक ठोस पकड़ बना ली है। मसलन, रविदास और निषाद जैसी जातियों के कई लोग जाति के नेताओं के नाम पर नहीं, नरेंद्र मोदी के नाम पर वोटिंग का मन बना चुके हैं। बिहार जैसे राज्य में इसे एक बहुत बड़ा राजनीतिक बदलाव (Political Change) माना जा सकता है। बिहार के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में जो मिथिलांचल का हिस्सा है, एनएच-57 (NH-57) पर मौजूद गाराटोला गांव के 66 साल के मजदूर लक्ष्मण राम तो मोदी के अलावा किसी के बारे में बात तक करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं, "हम लोग टीवी देखते हैं और अखबार पढ़ते हैं। हमें पता है कि देश के लिए अच्छा कौन है।" वे फिर कहते हैं, "मोदी को एकबार फिर प्रधानमंत्री बनना चाहिए।" कोसी इलाके में सुपौल-मधेपुरा रोड पर करिहो गांव में एक छोटी सी दुकान पर तीन युवक आपस में चर्चा कर रहे होते हैं। रविदास समाज के 19 साल के फर्स्ट टाइम वोटर (First Time Voter) विनय कुमार राम अपनी पसंद को लेकर एकदम से स्पष्ट हैं। वे कहते हैं, "मुझे मोदी पसंद हैं। हमें आजतक जितने भी प्रधानमंत्री मिले हैं, उनमें मोदी सबसे बेहतर हैं।" सिर्फ वोट देने के लिए पंजाब से अपने गांव आए 22 साल के दीपक कुमार राम का नजरिया भी बिल्कुल साफ है। वे कहते हैं, "मैं वोट देने के बाद वापस चला जाऊंगा। जाति या नेता जैसा कुछ भी नहीं है। मुझे मोदी पसंद है।"

मोदी की योजनाओं का असर

मोदी की योजनाओं का असर

बिहार के गरीबों और दलितों में मोदी की इतनी लोकप्रियता की वजह उनकी सरकार की कुछ लोकप्रिय योजनाएं भी माना जा सकती हैं। गाराटोला गांव के ही सुकन राम कहते हैं, "हम सब के घरों में शौचालय और गैस सिलेंडर है। एक सिलेंडर 22 दिनों तक चलता है और फिर हम दूसरा ले लेते हैं। ये सब मोदी के कारण ही संभव हुआ है।" कटिहार शहर में रविदास समाज से ही आने वाली महिला पिंकी देवी कहती हैं,"मोदी ने हमारे परिवार के लिए कुछ भी नहीं किया है। लेकिन, उन्होंने दूसरों के लिए बहुत कुछ किया है। हम लोग मोदी को वोट दे रहे हैं।" इलाके में महिला स्वयं सहायता समूहों (WSHG) से जुड़ी कई महिलाओं का भी ऐसा ही नजरिया महसूस किया जा सकता है। वे डिजिटली मजबूत हुई हैं, घर में शौचालय बनने से उनका आत्मविश्वास जगा है,सड़क किनारे की गंदगी से छुटकारा मिला है, घर-घर बिजली पहुंचने से उनके जीवन-स्तर में सुधार आया है।

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महागठबंधन का जुगाड़ बेअसर?

महागठबंधन का जुगाड़ बेअसर?

परंपरागत तौर पर अनुसूचित जाति का रविदास समाज इलाके में लालू समर्थक माना जाता था। लेकिन, जब नीतीश कुमार ने दलितों में भी महादलित बनाया तो यह समाज उनके साथ चला गया। हालांकि, अभी नीतीश की जेडीयू (JDU) बीजेपी के साथ है, लेकिन रविदास समाज के लोगों का कहना है कि वे मोदी के चलते ही इस गठबंधन को वोट दे रहे हैं। रविदास ही नहीं मुशहर जैसी राजनीतिक रूप से शांत जातियों के भी इसी लाइन पर जाने की संभावना नजर आ रही है। यही ट्रेंड निषाद समाज में भी नजर आ रहा है। इस समाज के नेता मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को विपक्षी गठबंधन ने अपने साथ लिया है, लेकिन वे निषादों का वोट कितना ट्रांसफर करवा पाएंगे, यह बड़ा सवाल बन चुका है। करिहो गांव के ही 25 वर्षीय बीए के स्टूडेंट पंकज कुमार मुखिया कहते हैं, "जब तक सहनी आरजेडी और कांग्रेस से नहीं जुड़े थे, हमने उनका समर्थन किया।" वैसे भी निषाद या मल्लाह बिरादरी के लोग मिथिलांचल इलाके में भाजपा के परंपरागत समर्थक माने जाते रहे हैं।

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English summary
lok sabha elections 2019: new vote base in the name of modi defies caste equations in bihar
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