मेरठ लोकसभा सीट: हस्तिनापुर बदला, नहीं बदली तासीर!
मेरठ। महाभारत काल का हस्तिनापुर यानी आज का मेरठ। गरम मिजाज का शहर है ये फासले से मिला करो। जी हाँ, बात मेरठ की हो रही है । समय बदला, सत्ता बदली, राजा बदले लेकिन तासीर नहीं बदली। राजनीति, कूटनीति, षड्यंत्र और संग्राम तब भी होते थे अब भी होते हैं। राजशाही हो या लोकशाही, सत्ता के लिए संग्राम तब भी होता था और अब भी होता है। 2019 के महासंग्राम के लिए मेरठ लोकसभा सीट की बिसात पर गोटियाँ बिछ गई हैं। मेरठ की राजनीति ऐसी है जो आसपास की सीटों के समीकरण को भी प्रभावित करती है।
जीत-हार में जातीय ध्रुवीकरण की रोचक भूमिका
मेरठ लोकसभा क्षेत्र में खासबात है कि यहाँ मुस्लिम, दलित-ओबीसी और सवर्ण, तीनो वर्ग लगभग बराबर-बराबर की संख्या में हैं। 2011 के आंकड़ों के अनुसार मेरठ की आबादी करीब 35 लाख से अधिक है। यहाँ की 64 फीसदी हिंदू आबादी में दलित और सवर्ण लगभग बराबर-बराबर हैं और बाकी करीब 36 फीसदी मुस्लिम आबादी है। चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं में "स्विंग" बहुत अधिक नहीं होता। सारा खेल दलित-पिछड़ा वर्ग और सवर्ण के रुझान से बनता-बिगड़ता है। मेरठ लोकसभा क्षेत्र में हापुड़ का कुछ क्षेत्र भी जुड़ता है। इसमें 5 विधानसभा क्षेत्र किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़ हैं। मेरठ की पहचान कभी क्रांतिकारियों की भूमि के रूप में रही है। अब एजुकेशन हब के साथ इसकी एक पहचान क्राइम सिटी के रूप में भी है।
क्या
बीजेपी
इस
बार
जीत
की
दूसरी
हैट्रिक
लगा
सकेगी?
मेरठ
लोकसभा
सीट
पर
जीत
की
पहली
हैट्रिक
कांग्रेस
ने
लगाईं
थी
।
1952
से
62
तक
लगातार
कांग्रेस
ने
यहाँ
जीत
हासिल
की।
इसके
बाद
1991
से
98
तक
लगातार
तीन
बार
बीजेपी
ने
मेरठ
लोकसभा
सीट
जीती।
फ़िर
2009
और
2014
में
भी
लगातार
बीजेपी
के
राजेंद्र
अग्रवाल
ने
जीत
हासिल
की।
इस
बार
फिर
राजेंद्र
अग्रवाल
बीजेपी
की
ओर
से
चुनाव
मैदान
में
हैं।
अगर
वह
चुनाव
जीत
जाते
हैं
तो
यह
बीजेपी
की
दूसरी
हैट्रिक
होगी
।
अब
तक
के
इतिहास
पर
नजर
डालें
तो
इस
सीट
पर
कांग्रेस
का
सात
बार
और
बीजेपी
का
पांच
बार
कब्जा
रहा
है।
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मेरठ लोकसभा सीट से अब तक के सांसद
1952:
शाह
नवाज
खान,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
1957:
शाह
नवाज
खान,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
1962:
शाह
नवाज
खान,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
1967:
महाराज
सिंह
भारती,
संयुक्ता
सोशलिस्ट
पार्टी
1971:
शाह
नवाज़
खान,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
1977:
कैलाश
प्रकाश,
जनता
पार्टी
1980:
मोहसिना
किदवई,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
(आई)
1984:
मोहसिना
किदवई,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
1989:
हरीश
पाल,
जनता
दल
1991:
अमर
पाल
सिंह,
भारतीय
जनता
पार्टी
1996:
अमर
पाल
सिंह,
भारतीय
जनता
पार्टी
1998:
अमर
पाल
सिंह,
भारतीय
जनता
पार्टी
1999:
अवतार
सिंह
भड़ाना,
भारतीय
राष्ट्रीय
कांग्रेस
2004:
मोहम्मद
शाहिद
अखलाक,
बहुजन
समाज
पार्टी
2009:
राजेंद्र
अग्रवाल,
भारतीय
जनता
पार्टी
2014:
राजेंद्र
अग्रवाल,
भारतीय
जनता
पार्टी
वर्तमान गुणा-गणित
लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की हैट्रिक न लगे, इसकी पूरी कोशिश में है कांग्रेस और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन। यही कारण है कि मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर आखिरी वक्त पर कांग्रेस ने प्रत्याशी बदल दिया। भाजपा के लिए अब बड़ी चुनौती यह है कि क्या इस सीट पर जीत की हैट्रिक बना पाएगी। कांग्रेस ने पहले इस सीट पर ब्राह्मण कार्ड खेला, इसके अगले ही दिन पार्टी आलाकमान ने अपना फैसला बदलते हुए वैश्य कार्ड खेल दिया। अब इस सीट पर हरेंद्र अग्रवाल कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने इस बार भी राजेंद्र अग्रवाल को मैदान में उतारा है, वह भी वैश्य समाज से आते हैं। वहीं सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की ओर से हाजी याकूब कुरैशी मैदान में हैं। ऐसे में इस सीट पर भाजपा के सामने हैट्रिक बनाने की कड़ी चुनौती होगी। मेरठ-हापुड़ सीट पर मतदान 11 अप्रैल को है।
मेरठ लोकसभा क्षेत्र के नाम सबसे अधिक प्रत्याशियों का रिकार्ड चुनाव इतिहास में दर्ज हुआ 1996 का मेरठ लोकसभा चुनाव जब कुल 56 प्रत्याशी मैदान में थे। यह आजादी के बाद किसी लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रत्याशियों का रिकार्ड था। चुनाव परिणाम और भी रोचक था. चुनाव में 52 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी, जबकि जीत भाजपा के ठाकुर अमर पाल सिंह को मिली थी।
कैलाश प्रकाश का रिकार्ड अभी भी बरकरार
मेरठ लोकसभा सीट से 1977 में जनता पार्टी के कैलाश प्रकाश ने यहां सर्वाधिक 63.35 फीसदी वोट हासिल किए। प्रकाश के इस रिकार्ड को आज तक कोई भी सांसद तोड़ नहीं पाए। 2017 में भी यहां 63.11 प्रतिशत मतदान हुआ। साल 2009 में इस सीट का भूगोल बदल गया। इसके पहले यह सीट मेरठ-मवाना के नाम से थी तो 2009 के बाद मेरठ-हापुड़ हो गई। भूगोल बदला तो समीकरण और नतीजे दोनों ही बदले।
मेरठ के दो चेहरे
मेरठ का एक चेहरा खेल उद्योग, कैंची उद्योग और एजुकेशन हब के साथ विकसित होते शहर का है तो मेरठ का एक चेहरा क्राइम सिटी और दंगों के लिए जाना जाता हैं। हालांकि हाल के वर्षों में दंगे तो नहीं हुए लेकिन अपराध बढे हैं ।
1987
का
हाशिमपुरा-
मलियाना
दंगा
14
अप्रैल
1987
को
मेरठ
में
धार्मिक
उन्माद
की
चिंगारी
भड़की
थी।
शहर
के
गुलमर्ग
सिनेमा
से
शुरू
हुआ
तनाव
बढ़ता
चला
गया।
मई
1987
में
मेरठ
शहर
में
एक
दिन
के
अंतराल
में
दो
ऐसे
दंगे
हुए
जिन्होंने
पूरे
शहर
को
हिलाकर
रख
दिया।
22
मई
को
हाशिमपुरा
में
हुए
दंगे
की
चिंगारी
से
शहर
झुलस
उठा
था।
लेकिन
24
घंटे
भी
नहीं
बीत
पाए
थे
कि
हाशिमपुरा
से
सात
किमी
की
दूरी
पर
मलियाना
में
भी
दंगा
फैल
गया
था।
23
मई
को
मलियाना
दंगे
की
चपेट
में
आ
गया।
तब
दो
दिन
में
दो
बड़े
दंगों
ने
लखनऊ
और
दिल्ली
को
भी
हिलाकर
रख
दिया
था।
युवा
मतदाता
बदलेंगे
मेरठ
की
तस्वीर
मेरठ
समेत
आसपास
की
आठ
सीटों
पर
पांच
लाख
से
ज्यादा
ऐसे
नए
युवा
मतदाता
इस
बार
बढे
हैं,
जो
पहली
बार
अपने
मताधिकार
का
प्रयोग
करेंगे।
बदलाव
और
नई
उम्मीद
का
आधार
ये
युवा
बनने
जा
रहे
हैं।
इस
बार
युवाओं
में
खासा
जोश
है।
प्रदेश
में
18
से
19
साल
आयु
वर्ग
के
युवा
वोटरों
की
संख्या
कुल
21
लाख
10
हजार
634
है।
अकेले
मेरठ
में
ही
एक
लाख
से
ज्यादा
नए
वोटर
जुड़े
हैं।
इनमें
लगभग
आधे
ऐसे
युवा
हैं,
जो
पहली
बार
अपने
मत
का
प्रयोग
करेंगे।
मेरठ
में
38
हजार
पुराने
मतदाताओं
का
नाम
सूची
से
कटा
है।
पूरे
जनपद
में
वोटरों
की
संख्या
25
लाख
के
पार
गई
है।