वाराणसी से प्रधानमंत्री को चुनौती देने की होड़, जानिए कौन-कौन हैं ख्वाहिशमंद
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र होने के नाते वाराणसी 2014 से ही लगातार सुर्खियों में रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी वाराणसी से प्रत्याशी थे और काफी मतों से बड़ी जीत हासिल की थी। गुजरात के चार बार मुख्यमंत्री रहे मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात की वडोदरा के साथ ही वाराणसी से भी चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में भी वह वाराणसी से उम्मीदवार होंगे। इस कारण एक बार फिर उत्तर प्रदेश की यह सीट काफी प्रतिष्ठा की बन चुकी है। वाराणसी में मतदान आखिरी चरण में 19 मई को होना है। अभी विपक्ष की ओर से प्रत्याशियों के नामों का ऐलान भी नहीं हुआ है। इसकी भी कोई संभावना नहीं है कि इस सीट पर विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार होगा क्योंकि इस बाबत अतीत में किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई है। एक तरह से साफ लग रहा है कि वहां से सपा-बसपा गठबंधन का प्रत्याशी भी होगा और कांग्रेस का भी होगा। संभव है पिछली बार की तरह इस बार भी आम आदमी पार्टी से कोई प्रत्याशी हो। लेकिन अभी से ही पार्टियों से इतर कई ऐसे नाम और दावे सामने आने लगे हैं, जिनको देखकर ऐसा लगने लगा है कि इस सीट पर और कुछ हो चाहे न हो, मुकाबला जरूर रोचक होगा।
अभी तक जो नाम सामने आ रहे हैं वह भी कम दिलचस्प नहीं हैं। इस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम सामने आया था भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद का। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीते कुछ सालों में उभरा यह नाम दलितों के बीच अच्छी पकड़ रखने वाला माना जाने लगा है। कभी एनएसए में गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने वाले चंद्रशेखर ने दलितों के मुद्दे पर कई आंदोलन किए हैं और दलित युवकों में उनकी पकड़ भी मानी जाती है। हालांकि वह बसपा और मायावती की कभी आलोचना नहीं करते बल्कि उनका समर्थन करने की बातें करते रहते हैं, लेकिन मायावती लगातार चंद्रशेखर की आलोचक रही हैं। अभी उनका ताजा बयान आया है कि चंद्रशेखर भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं। बहरहाल चंद्रशेखर घोषणा कर चुके हैं कि वह दलित उत्पीड़न के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे। वह कहते हैं कि कोई उनका समर्थन करे अथवा नहीं, उनका चुनाव लड़ना तय है।
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बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव ने की दावेदारी
इस सूची में दूसरा नाम आया तमिलनाडु के किसानों का जिन्होंने ऐलान किया कि वह वाराणसी से उम्मीदवार होंगे। तमिलनाडु के किसानों ने करीब एक साल पहले किसानों की आत्महत्या और अपने वाजिब हकों के लिए दिल्ली में आंदोलन किया था। वे आत्महत्या करने वाले किसानों की खोपड़ियां लेकर दिल्ली आए थे। इसके अलावा, आंदोलन के दौरान कई तरह के तरीकों को अपनाया था जिससे मीडिया में भी उनकी काफी चर्चा थी। किसानों के नेता अय्याकन्नू के मुताबिक वाराणसी से 111 किसानों के चुनाव लड़ने के निर्णय में किसानों और किसानों की राष्ट्रीय समन्वय समिति का भी समर्थन हासिल है। इन किसानों का कहना है कि भाजपा को अपने चुनावी घोषणापत्र में फसल उत्पादों के लिए मुनाफे वाली कीमत और उनसे संबंधित मांगों के बारे में वादा करना चाहिए।
इस फेहरिस्त में एक तीसरा नाम भी जुड़ गया है। यह है बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव का। तेज बहादुर का नाम तब सुर्खियों में आया था जब उन्होंने एक विडियो सोशल मीडिया में जारी कर दिया था जिसमें खराब गुणवत्ता वाले भोजन की शिकायत की गई थी। यह विडियो काफी चर्चित हुआ था। बाद में अनुशासनहीनता के आरोप में तेज बहादुर को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अब वह एक बार फिर मीडिया में सुर्खियों में हैं क्योंकि उन्होंने हाल ही में घोषणा की है कि वह वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। तेज बहादुर का कहना है कि उन्होंने वाजिब सवाल उठाया था। उस सवाल को हल करने के बजाय उनको नौकरी से निकाल दिया गया। तेजबहादुर का यह भी कहना है कि वह हार-जीत के लिए चुनाव में नहीं उतर रहे हैं बल्कि इसके बहाने देश को अपनी पीड़ा बताना चाहते हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का भी नाम चर्चा में
इन सबके बीच ही कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी का नाम भी चर्चा में रहा है। इसको हवा खुद प्रियंका की ओर से दी गई जब उन्होंने लोगों के साथ एक बातचीत में हलके-फुलके अंदाज में कहा कि क्या आप चाहते हैं कि मैं वाराणसी से चुनाव लड़ूं। बाद में अन्य अवसरों पर सवालों के जवाब में उन्होंने यह भी कह दिया कि अगर पार्टी चाहेगी और वह जहां से कहेगी, वह चुनाव लड़ेंगी। यद्यपि इसमें उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि खुद अभी चुनाव लड़ने के बारे में फैसला नहीं लिया है। जब वह औपचारिक रूप से कांग्रेस की पदाधिकारी बनी थीं, तभी से राजनीतिक हलकों में यह चर्चाएं शुरू हो चुकी थीं कि प्रियंका चुनाव भी लड़ सकती हैं। पहले यह कहा जाने लगा था कि वह रायबरेली में अपनी मां सोनिया गांधी की सीट से प्रत्याशी हो सकती हैं। बाद में यह अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि वह वाराणसी से उम्मीदवार हो सकती हैं। स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ओर से भी इस आशय की मांग की जाती रही है कि वह उम्मीदवार बनें। हालांकि कांग्रेस की ओर से इस बारे में अभी तक कुछ नहीं कहा गया है।
2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ केजरीवाल चुनाव मैदान में उतरे थे
बहरहाल, ये वे नाम हैं जिनके बारे में एक तरह से यह साफ है कि प्रियंका को छोड़कर तीनों ही नाम बिना पार्टी वाले हैं। अभी पार्टियों की ओर से प्रत्याशियों का ऐलान किया जाना बाकी है। मतलब यह है कि उससे पहले ही वाराणसी को लेकर सुर्खियां बनने लगी हैं जबकि मतदान में अभी एक महीने से ज्यादा वक्त है। यह सब तब है जब आम लोगों के बीच यह माना जा रहा है कि तमाम किंतु-परंतु के बावजूद अभी भी वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने वाला कोई नहीं लग रहा है। यह भी देखने की बात है कि बीते 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मैदान में थे जिन्हें मोदी के खिलाफ तीन लाख 77 हजार वोटों से करारी हार मिली थी। उस चुनाव में मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे। उस चुनाव में राज्य की तीनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस, सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। 75,614 वोटों के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी।
बसपा को करीब 60 हजार और सपा को लगभग 45 हजार वोट ही मिल पाए थे। ऐसे में एक तरह से लग रहा है कि अगर सभी विपक्षी दलों के वोट मिला भी दिए जाएं, तब भी करीब छह लाख के आंकड़े को छू पाना आसान नहीं कहा जा सकता। जहां तक अभी तक के सामने आने वाले नामों का सवाल है, यही कहा जा सकता है कि ये चुनावी चर्चा में भले ही खुद को बनाए रख सकें, चुनाव में शायद ही कोई गंभीर हस्तक्षेप कर सकें।
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