चंद्रशेखर राव की गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वाली सरकार की पहल में है कितना दम?
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पांच चरण समाप्त हो चुके हैं और अब सिर्फ दो चरण बाकी हैं। इन पांच चरणों के आधार पर राजनीतिक पार्टियां अनुमान लगाने लगी हैं कि किसकी क्या स्थिति बनने वाली है और किसकी-कैसे सरकार बन सकती है। चुनाव समाप्त होने और परिणाम आने का इंतजार किए बिना हर पार्टी अपने-अपने स्तर पर भावी रणनीति बनाने में लग गई लगती है। इसमें भाजपा और कांग्रेस से लेकर क्षेत्रीय दल और गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वादी सरकार की पैरोकार पार्टियां भी हैं। केंद्र में सत्ता में होने के कारण भाजपा और उसका गठबंधन खुद को फिलहाल सरकार बनाने का सबसे प्रबल दावेदार बता रहा है जो स्वाभाविक भी कहा जा सकता है। इसके विपरीत विपक्ष के भी अपने दावे रहे हैं। इनमें एक संयुक्त विपक्ष वाला रहा है और दूसरा गैर भाजपा- गैर कांग्रेस वाला। दूसरे की पहल तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने एक बार फिर शुरू की है।
हर पार्टी अपने-अपने स्तर पर भावी रणनीति बनाने में जुटी
संयुक्त विपक्ष की पैरोकारी करने वालों में कांग्रेस भी शामिल रही है जबकि दूसरे में कांग्रेस के लिए कोई स्थान नहीं बताया गया है। पहले की कोशिश आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम नेता चंद्रबाबू नायडू कर रहे हैं, तो दूसरे की तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव। यह दोनों ही नेता एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। इसके अलावा, नायडू अब से कुछ समय पहले तक एनडीए का हिस्सा थे। राव के बारे में यह माना जाता है कि वह एनडीए के ज्यादा करीब हैं। यह दोनों ही नेता करीब एक साल पहले से ही अपने-अपने स्तर पर विरोधी मोर्चा बनाने में लगे हुए थे, लेकिन दोनों को ही अपेक्षित सफलता अभी तक नहीं मिल सकी है। अब चुनावों के मध्य से ही नए सिरे से दोनों नेता अपने-अपने अभियान में लग गए हैं और दोनों की कोशिश विपक्षी मोर्चा बनाने की ही है। बताया जाता है कि चंद्रशेखर राव गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वाली विपक्षी सरकार बनाने के लिए नेताओं के साथ मुलाकात और विचार-विमर्श शुरू किया है। इससे पहले चंद्रबाबू नायडू ने यह पहल की है कि 21 मई को विपक्ष की बैठक बुलाई जाए जिसे कांग्रेस बुलाए।
चंद्रबाबू नायडू ने की पहल, 21 मई को विपक्ष की बैठक बुलाई जाए
इस बैठक में सरकार बनाने के बारे में रणनीति तय करने की भी बात की गई है। ऐसा इसलिए कि विपक्ष यह मानकर चल रहा है कि उसके पास ऐसा आंकड़ा आ जाएगा जिसके आधार पर सरकार बनाई जा सके। विपक्षी नेता चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान भी यह कहते रहे हैं कि चुनावों के लिए भले ही गठबंधन नहीं हो सका, लेकिन चुनाव के बाद यह जरूर बनेगा और प्रधानमंत्री का चयन भी कर लिया जाएगा। इसमें चंद्रबाबू नायडू से लेकर ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक यहां तक कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, डीएमके नेता स्टालिन और जेडीएस के एचडी देवेगौड़ा व कुमारस्वामी तक शामिल हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की ओर से भी यही कहा जाता रहा है। लेकिन इसमें भी प्रधानमंत्री पद के लिए नाम पर कोई अंतिम सहमति अभी तक नहीं बना सकी थी। हर कोई केवल यह कहता रहा है कि यह काम चुनाव बाद आसानी से कर लिया जाएगा। इसमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी। अब लगता है कि जिस 21 की बैठक की बात की जा रही है शायद उसमें किसी मोर्चे की शक्ल सामने आ सके और प्रधानमंत्री के संभावित नाम को लेकर भी शायद सहमति बन सके। लेकिन यह सब इसी आधार पर होगा कि भाजपा और एनडीए को बहुमत न मिले और विपक्ष का आंकड़ा सरकार बनाने के लायक हो सके।
चंद्रशेखर राव ने वाम नेता पिनाराई विजयन से मुलाकात की
दूसरी तरफ गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वाला प्रस्तावित मोर्चा है जिसका भी अभी तक कोई स्वरूप सामने नहीं आ सका है। यद्यपि इसके पैरोकार चंद्रशेखर राव पहले भी नवीन पटनायक ने जैसे कुछ नेताओं से मुलाकात-बात की थी। अब एक बार फिर नए सिरे से इस पर काम शुरू किया है। खबरों के मुताबिक राव ने वाम नेता पिनाराई विजयन से मुलाकात की और उनसे इस मुद्दे पर चर्चा भी की है। यह भी बताया जा रहा है कि वह जल्द ही डीएमके नेता स्टालिन और ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी नेता नवीन पटनायक से भी मिलने वाले हैं। राव जगन मोहन रेड्डी से भी बात करने वाले हैं जो आंध्र प्रदेश में नायडू के प्रबल विरोधी माने जाते हैं और जिन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी। ध्यान देने की बात है कि इन नेताओं में से कई ऐसे हैं जिनके बारे में यह माना जाता है कि वे भाजपा और एनडीए के विरोध में उस तरह नहीं हैं जिस तरह अन्य विपक्षी नेता हैं। इसी आधार पर इस तरह के भी कयास लगाए जाते रहते हैं कि चुनाव बाद अगर भाजपा और एनडीए को कोई जरूरत पड़ेगी, तो उसकी भरपाई इन्हीं से की जाएगी और भाजपा केंद्र में एक बार फिर सरकार बनाने में सफल हो सकती है। इसीलिए कुछ लोगों का दबी जबान यह भी कहना होता है कि दरअसल राव की गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वाली मुहिम गैर कांग्रेस वादी कुछ ज्यादा ही है। प्रकारांतर से यह विपक्षी एकता के बारे में भ्रम फैलाने और किसी भी तरह से भाजपा को लाभ पहुंचाने की कोशिश ज्यादा लगती है।
भाजपा के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी दावेदार हो सकती है
यह बात इस लिहाज से भी ज्यादा अहम लगती है कि अगर वाकई भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुंचती, तो क्या विपक्ष की कोई भी सरकार बिना कांग्रेस के किसी भी तरह के सहयोग के संभव हो सकेगी। इसका जवाब खोजना शुरू किया जाएगा, तो पता चलेगा कि कांग्रेस का विपक्षी खेमे में चाहे जितना विरोध हो, हालात ऐसे बन सकते हैं कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे भले ही उसके पास सरकार बनाने का आंकड़ा न हो पाए। इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि एक तो वह लंबे समय तक सत्ताधारी पार्टी रही है और दूसरे विपक्ष में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी भी है। विपक्ष का सबसे बड़ा गठबंधन सपा-बसपा-रालोद अगर उत्तर प्रदेश में अपनी सभी सीटें जीत ले तब भी ज्यादा संभव हो सकता है कि कांग्रेस की सीटें उससे अधिक हो जाएं। ऐसे में माना यही जा रहा है कि भाजपा के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी दावेदार हो सकती है। यह अलग बात है कि कांग्रेस अपने पुराने इतिहास दोहराए और भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के मुद्दे पर किसी छोटे समूह अथवा किसी अन्य नेता को प्रधानमंत्री बनाने पर अपना समर्थन दे दे। इसका सबसे ताजा उदाहरण कर्नाटक का रहा है जहां बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर कुमारस्वामी की सरकार बनवा दी। चंद्रशेखर की अत्यंत छोटी पार्टी को भी कभी कांग्रेस ने समर्थन देकर सरकार बनवाई थी। ऐसे में लगता नहीं कि अभी गैर भाजपा-गैर कांग्रेस वाद की रणनीति कामयाब होने वाली है। ज्यादा संभावना इसी बात की लगती है कि अगर भाजपा और एनडीए की सरकार नहीं बनती तो संयुक्त विपक्ष की सरकार की ही संभावना ज्यादा रहेगी।
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