पृथ्वी पर छा गई सुस्ती, स्पीड कम क्यों हुई? रहस्यमयी लग रहे हैं कारण
नई दिल्ली, 16 अगस्त: पृथ्वी ने अपनी रफ्तार की वजह से पिछले कुछ समय से भूगर्भशास्त्रियों, भूगोल के जानकारों और खगोलविदों की नींदें उड़ा रखी हैं। कभी इसकी स्पीड अचानक तेज हो जा रही है तो कभी दिन की लंबाई बढ़ने लग जाती है। दिक्कत की बात ये है कि वैज्ञानिक इसके कारणों को लेकर किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। पिछले दिनों जब धरती की रफ्तार बढ़ने वाली खबर आई थी तो उसके पीछे कुछ ऐसी वजहें बताई गई थीं, जिसमें दम लगता था। लेकिन अब वैज्ञानिक इसकी सुस्त पड़ी रफ्तार के रहस्य को लेकर बहस करने में लग गए हैं।
पृथ्वी पर छा गई सुस्ती, स्पीड कम क्यों हुई?
भले ही हम खुली आंखों से महसूस ना कर सकें, लेकिन दिनों की लंबाई आश्चर्य ढंग से बढ़ने लगी है। खगोलीय घड़ियों के मुताबिक दिनों की लंबाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। यह घड़ी उन परमाणु घड़ियों से पूरी तरह अलग हैं, जो हमारे मोबाइल फोन या बाकी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इस्तेमाल होते हैं। मनी डॉट इट की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते जून-जुलाई में पिछली आधी सदी में धरती ने विस्मयकारी रफ्तार जरूर पकड़ी थी, लेकिन, सामान्य ट्रेंड यही है कि पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन की गति कम हुई है, जिसके कारण दिन की लंबाई बढ़ रही है।
कहां से आई दिन की लंबाई बढ़ने वाली बात ?
पृथ्वी की चाल में सुस्ती क्यों आई है, इसके कारण अभी तक रहस्यमयी लग रहे हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि दिनों की लंबी कभी भी सटीक 24 घंटों यानी 86,400 सेकंड की नहीं होती। इसमें रोज अंतर होते रहते हैं और भूकंप आदि की वजह से इसपर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, जिसके चलते इसकी लंबाई में परिवर्तन हो सकती है। इस ट्रेंड की पुष्टि दो ऑथर की ओर से 'दि कंवर्सेशनहू' में प्रकाशित आर्टिकल में की गई है। पृथ्वी की रफ्तार सुस्त पड़ने की बात जिन लेखकों ने अपने लेख में किए हैं, वे हैं- एआरसी ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर ऐक्सिलेंस में अंटार्टिक साइंस के डायरेक्टर मैट्ट किंग और यूनिवर्सिटी ऑफ तसमानिया के स्कूल ऑफ जीयोग्राफी, प्लानिंग एंड स्पेस साइंसेज में लेक्चरर क्रिस्टोफर वॉट्सन।
'क्या कल सूर्योदय होगा?'
डेविड ह्यूम अठारहवीं शताब्दी के अनुभववादी विचारधारा के महानतम प्रतिपादकों में से एक थे। उन्हेंनो एक खगोलविद से पूछा था कि 'क्या कल सूर्योदय होगा?' तो उन्होंने जवाब दिया 'शायद'। रिपोर्ट में इस लाइन के हवाले से यह बताने की कोशिश की गई है कि तथ्य यह है कि यदि आजतक हम समझते रहे हैं कि दिन 24 घंटों का होता है, जिसमें 86,400 सेकंड होते हैं; तो यह जान लेना अच्छा रहेगा कि हमेशा ऐसा ही नहीं रहने वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महासागरों में ज्वार की वजह से लाखों वर्षों में पृथ्वी का घूर्णन धीमा हुआ है। लाखों वर्षों की इस प्रक्रिया की वजह से अरबों साल में इसकी वजह से कुल 19 घंटे और जुड़ जाता है।
पिछले 20,000 साल तक रहा गति बढ़ने का ट्रेंड- रिपोर्ट
एक तरफ धरती की रफ्तार घट रही है तो दूसरी ओर इसमें बीच-बीच में तेजी भी देखी जाती है। मैट्ट किंग और क्रिस्टोफर वॉट्सन ने लिखा है कि तथ्य यह कि पिछले 20,000 साल में पृथ्वी की गति बढ़ रही थी। पिछले हिमयुग के बाद, बर्फ की चोटियों के पिघलने से सतह का दबाव कम हुआ और पृथ्वी का मैंटल ध्रुवों की ओर तेजी से बढ़ने लगा। इसके उदाहरण के तौर पर इन्होंने उस डांसर का हवाला दिया है, जो तेजी से घूमने लगती है, जब उसकी बांहें शरीर के करीब आ जाती हैं। इस प्रक्रिया के चलते एक शताब्दी में एक दिन की अवधि 0.6 मिली सेकंड कम हो जाती है। यानी धरती की गति में वृद्धि या कमी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन भूकंप जैसी घटनाओं की वजह से यह प्रक्रिया बहुत ही तेज हो सकती है, जिसके चलते दिन की अवधि प्रभावित होती है।
पृथ्वी की सुस्ती का रहस्य गहराया
फिलहाल पृथ्वी की गति का कम होना बहस का नया मुद्दा बन गया है और इसे विज्ञान का रहस्य माना जा रहा है। वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि यह परिस्थिति लंबे समय से बन रही होगी, लेकिन तकनीकी खोजों की वजह से यह ज्यादा स्पष्ट महसूस होने लगी है। इसे मौसम के परिवर्तनों से भी जोड़ा जा रहा है और यही वजह है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से दिनों की लंबाई में भिन्नता सामने आने की ओर इशारा किया जा रहा है। या इसका संबंध बर्फ पिघलने या फिर टोंगा में होने वाली ज्वालामुखी विस्फोटों से भी हो सकता है, या फिर इसका कोई ऐसा कारण है, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं रहा है!
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चांडलर वॉबल की ओर भी इशारा
क्योंकि, वैज्ञानिक फिलहाल किसी पुख्ता निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं तो वह पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन को 'चांडलर वॉबल' नाम की प्राकृतिक घटना से जोड़ देते हैं, जो धरती के घूमने वाली धूरी से संबंधित एक छोटा सा विचलन है। वैज्ञानिक इसे समझाने के लिए उस लट्टू को देखने के लिए कहते हैं, जिसमें घूमने के दौरान रफ्तार में बदलाव देखा जा सकता है। (तस्वीरें-सांकेतिक)