नामीबिया के बाद दक्षिण अफ़्रीका से भारत आएंगे 12 चीते, क्या है सबसे बड़ी चिंता
नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़े जाने के बाद और ज़्यादा चीतों को भारत लाकर बसाने की योजना पर काम किया जा रहा है.
17 सितंबर, 2022 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को जंगल में छोड़ा था.
तभी से इरादा और ज़्यादा चीतों को लाकर बसाने का है लेकिन तब तक केवल आठ ही लाए जा सके थे.
अब 12 चीतों को भारत भेजने के लिए दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफ़ोसा के दस्तख़त का इंतज़ार है.
इससे पहले दक्षिण अफ़्रीका एक एक्सपर्ट ग्रुप भेज कर कूनो नेशनल पार्क का जायज़ा ले चुका है क्योंकि चीतों की दूसरी खेप को वहीं आना है.
लेकिन जिन एक दर्जन चीतों को आना है उनकी फ़िटनेस को लेकर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि वे 15 जुलाई, 2022 से क्वारंटाइन में ही रह रहे हैं. इनमें से तीन चीते क्वाज़ुलू नेटल प्रॉविन्स में रखे गए हैं जबकि दूसरे नौ चीते लिंपोपो प्रॉविन्स में अपना क्वारंटाइन काट रहे हैं.
यही एक बड़ी चिंता का विषय है.
चीतों की पहली खेप नामीबिया से आई थी और देश की राजधानी विंडहोक में लुप्त होते जानवरों के संरक्षण के लिए काम करने वाले एक्सपर्ट डॉ बेंजमिन क्लो के मुताबिक़, "चीता एक ऐसा जानवर है जिसकी ज़िंदगी रफ़्तार पर निर्भर रहती है. अगर उसे खुली हवा और जंगल में दौड़ने का मौक़ा नहीं मिलता तो वो सुस्त पड़ने लगता है और अपना पैनापन हमेशा के लिए खो भी सकता है."
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क्या है सबसे बड़ी चिंता?
अब ये 12 चीते जो भारत लाए जाने के लिए दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति के हस्ताक्षर का इंतेज़ार का रहे हैं, वे पांच महीने से न सिर्फ़ क्वारंटाइन में हैं, बल्कि उन्होंने शिकार भी नहीं किया है.
जानकरों को इस बात का भी डर है कि चीतों का वज़न बढ़ गया होगा क्योंकि ये सभी अपने 'बोमास' यानी घेराबंदी किए हुए एक निश्चित स्थान में रह रहे हैं जहां इन्हें खाना दिया जाता है.
आमतौर पर एक वयस्क चीते का वज़न 40-55 किलोग्राम तक का होता है और इसी के भीतर रहने पर वो शिकार आसानी से कर पाता है.
इतने महीनों से 'बोमास' में रहने वाले इन 12 चीतों को 1.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले कूनो नेशनल पार्क में छोड़े जाने से पहले एक महीने तक उसी तरह क्वॉरंटीन ज़ोन में रखा जाएगा जिस तरह नामीबिया से लाए गए चीतों को रखा गया. मक़सद होगा उन्हें कूनो पार्क की आबो-हवा का आदी करवाना.
इस एक महीने के दौरान चीते अपने-अपने ज़ोन में ही रहेंगे और शिकार नहीं कर सकेंगे. इसलिए उन्हें हर दूसरे-तीसरे दिन मीट परोसा जाएगा.
एक महीने के बाद इन चीतों को 500 हेक्टेयर वाले के ज़ोन में भेजा जाएगा जिससे वे एक दूसरे के क़रीब भी रह सकें और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें अलग भी किया जा सके.
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मध्य प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक (वाइल्डलाइफ़) जेएस चौहान ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा है कि, "कूनो नेशनल पार्क चीतों के आगमन के लिए तैयार है और उन्हें भेजने के लिए दोनों देशों में जल्द एक एमओयू पर हस्ताक्षर होने वाला है."
बात इस एमओयू की हो तो अगर ये प्लान सफल रहा तो अगले साल भी दक्षिण अफ़्रीका से 10 और चीतों को भारत लाने का इरादा है.
वाइल्डलाइफ़ फ़िल्ममेकर अजय सूरी को लगता है कि, "इस परियोजना के सफल या असफल होने पर फ़ैसला सुनाने में जल्दी नहीं करनी चाहिए."
उन्होंने कहा, "कुछ दिन पहले ख़बर आई थी कि कूनो नेशनल पार्क में दो चीतों ने अपने क्वारंटाइन से निकलने के बाद शिकार भी किया. ये अच्छी बात है. लेकिन जैसे जैसे वे जंगल में घूमेंगे उनका सामना दूसरे जंगली जानवरों से भी होगा, जिसमें तेंदुए शामिल हैं."
चाहे भारत हो या नामीबिया या दक्षिण अफ़्रीका, चीतों के लिए तेंदुआ एक बड़ी चुनौती है.
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चीते कब प्रजनन नहीं करते?
तेंदुए, जिन्हें अंग्रेजी में लेपर्ड और कुछ जगहों पर गुलदार भी कहा जाता है, विशेषकर कूनो नेशनल पार्क में चीतों के बच्चों को मारकर उनकी आबादी सीमित कर सकते हैं. वाइल्डलाइफ़ एक्सपर्ट अजय दुबे के अनुसार, "दक्षिण अफ़्रीका में होने वाली चीतों की मौत में से 9% की वजह तेंदुए के हमले होते हैं."
क्योंकि अगली खेप में आने वाले चीते कुल आठ या नौ महीने बाद शिकार पर निकलेंगे तो जानकरों का मत है कि उनकी जान को तेंदुए के हमलों से ख़तरा हो सकता है क्योंकि कूनो पार्क में अंदाज़न 80-90 वयस्क तेंदुए मौजूद हैं.
इनके अलावा लकड़बग्घों और जंगली कुत्तों का भी सामना करना पड़ेगा और कूनो पार्क में स्लोथ भालू, धारीदार लकड़बग्घे और भेड़िए भी मौजूद हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'चीता कंज़र्वेशन फंड' की निदेशक लॉरी मार्कर ने बीबीसी हिन्दी को बताया कि, "जो चीते भारत लाए जा चुके हैं या आगे लाए जाएंगे, वे शेरों और तेंदुओं के अलावा दूसरे जानवरों के आस पास रहते हुए पले-बढ़े हैं. भारत में भी ये अपना घर बसा लेंगे."
ग़ौरतलब है कि भारत ने 1950 के दशक में चीते को विलुप्त घोषित कर दिया था और देश में एक भी चीता नहीं बचा था दशकों तक चली कोशिशों के बाद इसी साल सितंबर में आठ चीते कूनो लाए गए थे.
अब जिन 12 चीतों का दक्षिण अफ़्रीका से इंतज़ार हैं, उन्हें लेकर एक और चिंता है, उनके प्रजनन की.
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अक्तूबर में कूनो पार्क से कुछ अपुष्ट खबरें आईं थीं की 'आशा' नाम की मादा चीता गर्भवती है. हालांकि इस ख़बर की पुष्टि नहीं हो सकी थी. 'चीता कंज़र्वेशन फंड' की निदेशक लॉरी मार्कर ने बीबीसी से कहा, "पूरे संकेत थे कि नामीबिया में क्वारंटाइन के समय वो गर्भवती थी. लेकिन बहुत सम्भव है कि स्ट्रेस के चलते वो इसे रख न सकी."
भारत की बात हो तो चीतों की विलुप्ति की दो प्रमुख वजह बताई जाती है. खुद शिकार होने के अलावा दूसरे जानवरों के शिकार के लिये चीते को पालतू बनाना बहुत आम था.
दूसरी वजह ये थी कि कैद में रहने पर चीते प्रजनन नहीं करते. ज़ाहिर है, ये चुनौती अफ़्रीका से लाए जाने वाले चीतों को लेकर भी रहेगी.
प्रीटोरिया यूनिवर्सिटी में वन्यजीव चिकित्सा विशेषज्ञ एड्रियन टॉर्डिफे कहते हैं, "हम जानवरों को उनके परिचित माहौल से निकाल रहे हैं और उन्हें नए माहौल में ढलने में वक़्त लगता है. ये भी सही है कि इस तरह दूसरी जगह ले जाए जाने के बाद चीतों के दूसरे मांसाहारी जानवरों की अपेक्षा ज़िंदा बचने की संभावनाएं कम होती हैं."
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चीते के बारे में जानिए ये दिलचस्प जानकारियाँ
- बाघ, शेर या तेंदुए की तरह चीते दहाड़ते नहीं हैं, उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे ऐसी आवाज़ निकल सके. वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज़ निकालते हैं और कई बार चिड़ियों की तरह बोलते हैं.
- चीता दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जीव है लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज़ गति से नहीं दौड़ सकता, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती.
- चीते दौड़ने में सबसे भले तेज़ हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह वे काफ़ी समय सुस्ताते हुए बिताते हैं.
- गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज़ होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में उन्हें तीन सेकेंड लगते हैं.
- चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं.
- चीता कैट प्रजाति के अन्य जीवों से इस मामले में अलग है कि वह रात में शिकार नहीं करता है.
- चीते की आँखों के नीचे जो काली धारियाँ आँसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज़ रोशनी को रिफ़लेक्ट करती है जिससे वे तेज़ धूप में भी साफ़ देख सकते हैं.
- मुग़लों को चीते पालने का शौक़ था, वे अपने साथ चीतों को शिकार पर ले जाते थे, जो आगे-आगे चलते थे और हिरणों का शिकार करते थे.
- भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था, अब एक बार फिर उन्हें दोबारा भारत में बसाने की कोशिश हो रही है.
- भारत में जो चीते लाए गए हैं वे खुले मैदानों में शिकार करने के आदी हैं, उनके मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकार करना कितना आसान होगा, यह अभी देखना बाक़ी है.
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