सतीश धवन जिन्होंने इंदिरा गांधी को भी कह दिया था 'नो'
श्रीहरिकोटा। गुरुवार को एक बार फिर इसरो अपने एडवांस्ड वेदर सैटेलाइट इनसैट 3डीआर की लांचिंग के साथ ही एक और कामयाबी हासिल करने की ओर है।
इस सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच किया गया। आपने अक्सर इस स्पेस सेंटर का नाम किसी न किसी एडवांस्ड सैटेलाइट की लांचिंग के साथ सुना होगा।
क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की, सतीश धवन कौन थे और क्यों उनके नाम पर देश का इतना अहम स्पेस सेंटर मौजूद है?
आज जानिए कि कैसे एक इंग्लिश लिट्रेचर के मास्टर सतीश धवन, स्पेस साइंस के भी मास्टर बने और भारत के विज्ञान क्षेत्र को को कई बहुमूल्य पलों से नवाजा।
लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से आए सतीश धवन
देश के महान वैज्ञानिकों में से एक सतीश धवन का जन्म श्रीनगर की खूबसूरत वादियों में 25 सितंबर 1920 को हुआ था। उन्होंने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने गणित और फीजिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने इंग्लिश लिट्रेचर में पोस्ट ग्रेजुएशन और फिर बीई की पढ़ाई की।
अमेरिका से हुई बाकी पढ़ाई
इसके बाद सतीश धवन अमेरिका गए जहां पर उन्होंने मिन्नेसोटा यूनिवर्सिटी से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एमएस किया। इसके बाद उन्होंने कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से आए सतीश धवन
देश के महान वैज्ञानिकों में से एक सतीश धवन का जन्म श्रीनगर की खूबसूरत वादियों में 25 सितंबर 1920 को हुआ था। उन्होंने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने गणित और फीजिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने इंग्लिश
धवन का योगदान
वैज्ञानिक धवन के कई अहम प्रोजेक्ट्स में से एक है शॉक वेव्स का अध्ययन करना और यह सुपरसोनिक फ्लाइट के लिए काफी अहम बिंदु होता है।
सतीश धवन को मिला सम्मान
सतीश धवन को 'फादर ऑफ एक्सपेरीमेंटल फ्लूइड डायनैमिक्स' कहा जाता है। इसके तहत वातावरण में मौजूद गैसों के फ्लो के बारे में पता लगाया जाता है।
स्पेस प्रोग्राम से जुड़ने का इंकार
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार धवन के सामने देश के स्पेस प्रोग्राम से जुड़ने के लिए जोरशोर से कहा। लेकिन धवन ने उन्हें विनम्रता के साथ मना कर दिया। धवन चाहते थे कि उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) का निदेशक ही बने रहने दिया जाए।
खुद को हमेशा एक टीचर माना
भले ही सतीश धवन देश के एक महान वैज्ञानिक हों लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को एक सफल और महान वैज्ञानिक मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने हमेशा ही खुद को एक टीचर करार दिया। अपने इंटरव्यू में वह हमेशा इस बात पर जोर देते कि उनका मकसद देश के युवाओं को बेहतर वैज्ञानिक बनाना है।
42 वर्ष की आयु में आईआईएससी का जिम्मा
प्रोफेसर धवन आईआईएससी में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग विभाग में शामिल होकर इसका हिस्सा बने थे। इसके बाद चार वर्षों तक उन्होंने इस विभाग को बतौर प्रमुख अपनी सेवाएं दीं। सात वर्ष के अंतराल में यानी सिर्फ 42 वर्ष की आयु में वह इस इंस्टीट्यूट के निदेशक बन गए।
धवन की देखरेख में देश को मिला मुकाम
सतीश धवन ही वह पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने देश की पहली सुपरसोनिक टनल बिल्डिंग के प्रमुख के तौर पर जिम्मा संभाला था। सुपरसोनिक विंड टनल वह जगह होती है जहां पर सुपरसोनिक स्पीड में किसी विमान की क्षमता को टेस्ट किया जाता है।
पैसेंजर एयरक्राफ्ट से जुड़ी चिंताओं को किया दूर
प्रोफेसर धवन ही वह वैज्ञानिक थे जिन्होंने 60 के दशक में यात्री विमान एवरो यानी एचएस-748 की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर किया था। उन्होंने उस समय तकनीक के लिहाज से सबसे उन्नत इस एयरक्राफ्ट से जुड़े एक इंक्वॉयरी कमीशन का नेतृत्व किया था।
देश के अतंरिक्ष मिशन को दी नई दिशा
वर्ष 2002 में प्रोफेसर सतीश धवन का निधन हो गया। सतीश धवन को इंडियन स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले एक और महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बाद ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है जिसने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सही मायनों में दिशा दी।
कलाम के साथ नाता
डॉक्टर धवन ने वर्ष 1972 में इसरो के चेयरमैन के तौर पर इसका जिम्मा संभाला था। वर्ष 1975 में एपीजे अब्दुल कलाम एसएलवी मिशन के निदेशक थे। यह मिशन फेल हो गया। कलाम उस समय मीडिया का सामना करने में डर रहे थे। जब डॉक्टर धवन ने कलाम को बुलाया। उन्होंने कहा कि हम फेल हो गए लेकिन मुझे मेरी टीम पर पूरा भरोसा है। अगली बार हमें सफलता जरूर मिलेगी।