केरल में एक मां के खोए हुए बच्चे के मामले ने कैसे पकड़ा राजनीतिक तूल
22 साल की उम्र में अनुपमा मां बन गईं. उनके परिजनों ने उनके पहले से शादीशुदा बॉयफ्रेंड के साथ रहने से उन्हें मना कर दिया. इस मामले ने आगे इतना तूल पकड़ा कि यह केरल विधानसभा में पहुंच गया.
भारत में एक मां की अपने गुमशुदा बच्चे की तलाश का मामला काफ़ी विवादित हुआ और यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बना. आख़िरकार मंगलवार को एक शादीशुदा जोड़े को अपने 13 महीने का बच्चा वापस मिल गया.
सौतिक बिस्वास और अशरफ़ पडन्ना अपनी इस रिपोर्ट में बता रहे हैं कि आख़िरकार यह मामला कैसे शुरू हुआ.
दो सप्ताह से अधिक समय से केरल में एक जोड़ा बच्चा गोद देने वाली एजेंसी के बाहर प्रदर्शन कर रहा था और वो अपने ग़ायब बच्चे की वापसी की मांग कर रहा था.
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राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम में यह जोड़ा दिन में एक टेंट के नीचे रहता था और फिर रात में सड़क के किनारे खड़ी सुज़ुकी मिनीवैन में सो जाता था. इस दौरान इन्होंने भारी बारिश से लेकर कैमरे की भीड़ को भी झेला.
महिला ने एक पोस्टर लिया हुआ था जिस पर लिखा था 'मेरा बच्चा मुझे दो.' उनका कहना है कि उनके परिवार ने उनकी सहमति के बिना बच्चा गोद दे दिया था. उनके आरोपों को उनके पिता ख़ारिज करते हैं.
22 वर्षीय मां अनुपमा एस. चंद्रन कहती हैं, "हम अपनी लड़ाई ख़त्म करने नहीं जा रहे हैं. हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा हमें वापस मिले."
कहां हुई शुरुआत
बीते साल 19 अक्तूबर को एक स्थानीय अस्पताल में अनुपमा ने एक बेटे को जन्म दिया था जिसका वज़न 2 किलो था.
22 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता अनुपमा के लिए बच्चे को जन्म देना एक बहुत बड़ी चुनौती भी थी क्योंकि वो शादीशुदा नहीं थीं. यह बच्चा पहले से विवाहित 34 वर्षीय उनके बॉयफ्रेंड अजीत कुमार का बच्चा का था. अजीत एक अस्पताल में पब्लिक रिलेशंस ऑफ़िसर के तौर पर काम करते थे.
उनका प्रेम संबंध और गर्भवती होने की ख़बर ने महिला के घर में तूफ़ान खड़ा कर दिया क्योंकि अनुपमा ऊंची जाति से थीं और अजीत दलित थे.
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अनुपमा और अजीत दोनों भारत के मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं और दोनों का परिवार काफ़ी प्रगतिशील रहा है.
दोनों के परिवार राज्य में सत्तारूढ़ सीपीएम पार्टी के समर्थक हैं. अनुपमा के पिता एक बैंक मैनेजर हैं और साथ ही पार्टी के स्थानीय नेता हैं. वहीं उनके दादा-दादी ट्रेड यूनियन के नेता और म्यूनिसिपल काउंसलर रहे हैं.
अनुपमा फ़िज़िक्स में ग्रैजुएट हैं और अपने कॉलेज में कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई की पहली महिला प्रमुख रह चुकी हैं. वहीं अजीत पार्टी की युवा इकाई के नेता थे.
दोनों एक ही इलाक़े में पले-बढ़े हैं. कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम करते हुए आपस में उनकी मुलाक़ात हुई. तीन साल पहले दोनों साथ रहने लगे.
अजीत कहते हैं कि उसके बाद से वो अपनी पत्नी से अलग हो गए थे और उनका कोई बच्चा भी नहीं था.
अनुपमा कहती हैं, "यह पहली नज़र के प्यार जैसा नहीं था. हम दोनों दोस्त थे. फिर हमने आख़िरकार साथ रहने का फ़ैसला ले लिया."
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घर वापस ले आए परिजन
बीते साल अनुपमा गर्भवती हुईं और दोनों ने बच्चा पैदा करने का फ़ैसला लिया.
वे कहती हैं, "बच्चा पैदा करने को लेकर हमें कभी कोई शंका नहीं थी. हम मां-बाप बनने के लिए तैयार थे."
जब अनुपमा ने डिलीवरी से डेढ़ महीने पहले यह ख़बर अपने घर में बताई तो उनके परिवारवाले चौंक उठे. तब उनके परिजनों ने डिलीवरी की तैयारी के लिए उन्हें घर लौटने पर राज़ी कर लिया और उन्हें अजीत के संपर्क में रहने से मना किया.
बच्चे के जन्म के बाद अनुपमा जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुईं तो परिजन उन्हें और बच्चे को अपने साथ ले गए. उन्होंने अनुपमा से कहा कि वे एक दोस्त के घर पर रहें क्योंकि उनकी बहन की तीन महीने बाद शादी है और घर आने वाले मेहमान इस नवजात के बारे में पूछ सकते हैं.
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अनुपमा ने पिता पर लगाए आरोप
अनुपमा दावा करती हैं कि अस्पताल से लौटने के बाद उनके पिता ने उनके बच्चे को ले लिया था.
अनुपमा ने कहा, "उन्होंने मुझसे कहा कि बच्चे को सुरक्षित जगह पर लेकर जा रहे हैं जहां पर वे उससे बाद में मिल सकती हैं. इसके बाद मेरी ख़ुशियां जैसे ग़ायब हो गईं."
अगले कुछ महीनों के दौरान वे एक घर से दूसरे घर गईं और फिर उन्हें 200 किलोमीटर दूर अपनी दादी के घर छोड़ दिया गया.
इस साल फ़रवरी में जब वे अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए आईं तो उन्होंने अजीत को बताया कि उनका बेटा ग़ायब है. अनुपमा ने बताया कि उनके परिजनों ने बच्चे को गोद देने के लिए दे दिया है.
मार्च में उन्होंने आख़िरकार अपने परिजनों का घर छोड़ दिया और अजीत और उनके परिजनों के साथ रहने लगीं. इसके बाद उन्होंने अपने बच्चे की खोजबीन शुरू की. यहीं से उनकी एक अग्निपरीक्षा की शुरुआत हुई.
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अस्पताल में उन्होंने पाया कि उनके बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र पर पिता के नाम के तौर पर अजीत का नहीं बल्कि किसी और का नाम दर्ज है. पुलिस ने शुरुआत में ग़ायब बच्चे की शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया.
साथ ही पुलिस ने उन्हें बताया कि इसकी जगह वे अनुपमा के पिता की शिकायत पर उनके (अनुपमा के) ही 'घर से ग़ायब' होने की शिकायत की जांच कर रहे थे.
अगस्त में पुलिस ने इस जोड़े को ऐसी ख़बर दी जिससे वो चौंक उठे. पुलिस ने बताया कि अनुपमा के पिता ने उन्हें जानकारी दी है कि अनुपमा ने ख़ुद से अपना बच्चा गोद देने के लिए दे दिया था.
परेशान दंपति ने आख़िरकार गोद देने वाली एजेंसी, सत्तारूढ़ पार्टी, मुख्यमंत्री और राज्य के पुलिस प्रमुख तक अपनी शिकायत पहुंचाई. इसके साथ ही उन्होंने राज्य के संस्कृति मंत्री साजी चेरियन के ख़िलाफ़ भी शिकायत दर्ज कराई. साजी ने कथित तौर पर एक न्यूज़ चैनल पर अनुपमा को 'बदनाम' किया, उन्होंने कहा था कि 'उनके परिजनों ने वही किया जो हर कोई करेगा.'
जब पुलिस हरकत में आई
बीते महीने अनुपमा और अजीत भी न्यूज़ चैनलों पर गए थे और उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया था. राजनेताओं और अधिकारियों ने आख़िरकार इस मामले का संज्ञान लिया. विपक्षी नेताओं ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया और इसको 'ऑनर क्राइम' का एक उदाहरण बताया.
विपक्षी दल की एक महिला विधायक केके रीमा ने कहा, "यह सम्मान के लिए किया गया एक अपराध है जिसमें पूरी राज्य मशीनरी शामिल रही है."
अनुपमा के पिता एस जयचंद्रन ने अपना बचाव करते हुए एक न्यूज़ चैनल से कहा था, "हमारे घर में जब ऐसा कुछ होता है तो हम उससे किस तरह से निपटते हैं? मैंने बच्चे को वहां पर छोड़ दिया जहां पर अनुपमा उसे चाहती थीं. उसके पास बच्चे को सुरक्षित रखने का कोई उपाय नहीं था और हम भी कुछ नहीं कर सकते थे."
अनुपमा के पिता ने कहा, "अनुपमा ने कहा कि बच्चे के पिता के पास पहले से पत्नी है. मैं अपनी बेटी और उसके बच्चे को कैसे ऐसे पुरुष के पास छोड़ सकता था? बच्चे के जन्म के बाद अनुपमा ठीक नहीं थी इसलिए मैंने बच्चे की देखभाल करने के लिए उसे एक गोद लेने वाली एजेंसी को सौंप दिया."
जयचंद्रन हैरानी जताते हुए कहते हैं कि कोई परिवार कैसे 'अवैध बच्चे' को रख सकता है. उन्होंने दावा किया कि कम्युनिस्ट पार्टी और वकील की सलाह के बाद उन्होंने नवजात को गोद लेने वाली एजेंसी को सौंपा था. एंकर ने जब उनसे पूछा कि क्या उन्होंने इसके लिए अपनी बेटी से पूछा था तो उन्होंने कहा, "मैं उससे कुछ भी नहीं सुनना चाहता."
इस मामले में विवाद काफ़ी बढ़ने के बाद पुलिस ने छह लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया. इनमें अनुपमा के परिजन, उनकी बहन और उनके बहनोई शामिल हैं. उन पर अपहरण, जालसाज़ी और ग़लत तरीक़े से बंधक बनाने का मामला चलेगा. तीनों ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.
इस साल अगस्त में एक कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के जिस जोड़े को यह बच्चा दिया गया था, उसके डीएनए टेस्ट का आदेश दिया. टेस्ट के नतीजे आने के बाद गोद दिए गए बच्चे को वापस तिरुवनंतपुरम लाया गया. मंगलवार की शाम अनुपमा और अजीत को ख़बर दी गई कि बच्चे से उनका डीएनए मिल गया है. आख़िरकार उन्होंने बच्चों के लिए चल रहे एक अनाथालय में अपने बच्चे से मुलाक़ात की.
इस दंपती का कहना है कि उन्होंने एक साल लंबा और कठिन समय देखा है. एक साल से अधिक आयु के हो चुके अपने बच्चे को लेकर अनुपमा काफ़ी चिंतित रही हैं.
वे सवाल पूछती हैं, "क्या यह मेरा अधिकार नहीं है कि मैं किसके साथ रहूं या न रहूं, या बच्चा पैदा करूं या न करूं?"
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