'कश्मीर को पिंजरे में बंद करके रखा है'
उन्होंने आगे कहा, "हमें ख़ुशी है कि हमने अपना एजेंडा चलाया. हम पीछे नहीं हटे."
दोनों पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ता गया. बीजेपी का कहना था कि मेहबूबा मुफ़्ती केंद्रीय सरकार और बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ काम कर रही थीं. पार्टी के अनुसार उन्होंने पत्थरबाज़ों को बंद करने के बजाये उनमें से सैकड़ों को रिहा कर दिया और उनके ख़िलाफ़ केस वापस ले लिए.
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती का कहना है कि कश्मीर को लेकर जैसी सोच अटल बिहारी वाजपेयी की थी, वैसी सोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नहीं है.
महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि उनके पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने साल 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार दूरदर्शिता के साथ बनाई थी ताकि कश्मीर के मुद्दे में गति आए. लेकिन महबूबा मुफ़्ती के अनुसार, "बीजेपी इसे समझ नहीं पाई".
दो अलग-अलग विचारधारा की पार्टियों पीडीपी और बीजेपी ने साथ में सरकार बनाने के लिए एक एजेंडा ऑफ़ एलायंस बनाया था.
लगभग चार साल साझी सरकार चलाने के बाद मेहबूबा मुफ़्ती ने मुख्यमंत्री पद से लगभग छह महीने पहले उस समय इस्तीफ़ा दे दिया था, जब बीजेपी ने सरकार से अलग होने का फैसला किया. पिछले दिनों पीडीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर और नेशनल कांफ्रेंस के सहयोग से सरकार बनाने की कोशिश की. लेकिन राज्यपाल ने विधानसभा को भंग कर दिया.
बीबीसी से एक ख़ास मुलाक़ात में मेहबूबा मुफ़्ती ने साल 2014 में बीजेपी से हाथ मिलाने के फैसले पर रोशनी डालते हुए कहा कि ये एक कड़वा फैसला था.
उन्होंने कहा, "बीजेपी ने एजेंडा ऑफ़ एलायंस में हमारे कई एजेंडे पर हामी भरी थी जिसमें पाकिस्तान से बात करना शामिल था".
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'बीजेपी से हाथ मिलाने से छवि ख़राब हुई'
मेहबूबा मुफ़्ती के अनुसार अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस से दोबारा बातचीत शुरू करना भी इसमें शामिल था. उन्होंने आगे कहा, "जब हम पाकिस्तान से बात करने के लिए कहते थे तो इससे आपस में तज़ाद (मतभेद) पैदा हुआ."
उन्होंने आगे कहा, "हमें ख़ुशी है कि हमने अपना एजेंडा चलाया. हम पीछे नहीं हटे."
दोनों पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ता गया. बीजेपी का कहना था कि मेहबूबा मुफ़्ती केंद्रीय सरकार और बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ काम कर रही थीं. पार्टी के अनुसार उन्होंने पत्थरबाज़ों को बंद करने के बजाये उनमें से सैकड़ों को रिहा कर दिया और उनके ख़िलाफ़ केस वापस ले लिए. पत्थरबाज़ों को हवाला पैसे से फंडिंग के केंद्रीय सरकार के दावे पर उन्होंने तंज़ के अंदाज़ में कहा कि हवाला के पैसे फंडिंग का सबूत "दिल्ली के पास होगा इसका मेरे पास कोई सबूत नहीं है."
मेहबूबा मुफ़्ती ने ये स्वीकार किया कि बीजेपी से हाथ मिलाने के कारण घाटी में जनता उनसे नाराज़ हो गयी है और उनकी पार्टी की छवि इससे खराब हुई है.
उन्होंने कहा, "लोगों की नाराज़गी की सबसे बड़ी वजह थी कि बीजेपी के साथ हाथ मिलाने को लोग समझ नहीं सके. हमने सब कुछ दांव पर लगा दिया था. मुफ़्ती साहेब (उनके पिता) की दूरंदेशी थी. लोग भी नहीं समझ सके और बीजेपी भी नहीं समझ सकी".
मेहबूबा मुफ़्ती के अनुसार उनके पिता ये समझ बैठे कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नरेंद्र मोदी भी दूरंदेश होंगे". मेहबूबा मुफ़्ती कहती हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अपनी सभी मुलाक़ातों में पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने में पहल करने की सलाह दी."
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'विश्वासघात का अहसास'
मेहबूबा मुफ़्ती ने कहा, "लोगों में नाराज़गी है. बिलकुल सही है. इस भागीदारी से लोगों में बिट्रेयल (विश्वासघात) का एहसास है."
मेहबूबा मुफ़्ती ने ये माना कि जनता को अपना पक्ष समझाना मुश्किल होगा, वे कहती हैं, "हम जनता की अदालत में जाएंगे और उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे."
उन्होंने भारत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के बीच रास्ते खोलने की पुरज़ोर वकालत की और इस बात पर अफ़सोस जताया कि केंद्रीय सरकार ने इस तरफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठाया है.
केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए मेहबूबा मुफ़्ती ने कहा, "आपने जम्मू-कश्मीर को एक पिंजरे में बंद करके रखा है. दोनों कश्मीर के बीच बॉर्डर नहीं बदल सकते लेकिन बॉर्डर खोल तो सकते हैं."
मेहबूबा मुफ़्ती ने भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने का स्वागत करते हुए कहा कि ये एक अच्छी शुरुआत हो सकती है. मोदी जी को इसे दोनों हाथों से पकडे रहना चाहिए.
वे कहती हैं, "ये दोनों कश्मीर के बीच भी हो सकता है. भरोसा बढ़ाने का कोई भी उपाय दोनों देशों के बीच कश्मीर से होकर गुज़रता है, इस लिए प्रधानमंत्री को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिए."