कारगिल शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा जिसे पाकिस्तान सेना ने दिया कोडनेम 'शेरशाह'
कारगिल शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा। कैप्टन बत्रा आज ही दिन यानी सात जुलाई 1999 को कारगिल की जंग में शहीद हो गए थे। कारगिल वॉर को 19 वर्ष पूरे होने वाले हैं और इतने वर्षों के बाद भी हर कोई शहादत को सलाम कर रहा है।
नई दिल्ली। 70 एमएम के पर्दे पर विलेन के साथ मारपीट करना और हीरोईन को छुड़ा लेना बहुत आसान है लेकिन जब बॉर्डर पर दूसरी तरफ पाकिस्तान जैसा ' विलेन' हो और 'हिरोईन' अपनी मातृभूमि हो तो असली हीरो की जरूरत होती है। भारत ऐसे कई हीरो की धरती है और इन्हीं हीरो में से एक हैं कारगिल शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा। कैप्टन बत्रा आज ही दिन यानी सात जुलाई 1999 को कारगिल की जंग में शहीद हो गए थे। कारगिल वॉर को 19 वर्ष पूरे होने वाले हैं और इतने वर्षों के बाद भी हर कोई शहादत को सलाम कर रहा है। कैप्टन बत्रा जिन्हें शेरशाह के नाम से भी जानते हैं, उन्होंने आज ही के दिन कारगिल में प्वॉइन्ट 4875 को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद कराया था। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले इस लाल को आज भी देश का हर युवा अपनी प्रेरणा मानता है।
पाक ने दिया कोडनेम शेरशाह
जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्टन बत्रा दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्दील हो गए थे। ऐसे में पाकिस्तान की ओर से उनके लिए एक कोडनेम रखा गया और यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था। इस बात की जानकार खुद कैप्टन बत्रा ने युद्ध के दौरान ही दिए गए एक इंटरव्यू में दी थी। कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म नौ सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्गर में हुआ था। उनके पिता का नाम जीएम बत्रा और माता का नाम कमल बत्रा है। शुरुआती शिक्षा पालमपुर में हासिल करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ चले गए थे।
हमें माधुरी दीक्षित चाहिए
जिस समय पाकिस्तान की तरफ से लगातार गोलीबारी हो रही थी, उसी समय पाकिस्तानी सैनिकों ने कैप्टन बत्रा पर ताना कसा और कहा, 'हमें माधुरी दीक्षित दे दो तो हम यह प्वॉइन्ट छोड़ देंगे।' इसके बाद कैप्टन बत्रा ने उन पर यह कहते हुए फायर किया 'विद लव फ्रॉम माधुरी।' कैप्टन बत्रा आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी बहादुरी ने उन्हें अभी तक लोगों के दिलों में जिंदा रखा है।
ये दिल मांगे मोर की कहानी
20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 से दुश्मनों को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद आखिरकार वह अपने मिशन में कामयाब हो गए। इस जीत के बाद जब उनकी प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने जवाब दिया, 'ये दिल मांगे मोर,' बस यहीं से इन लाइनों को पहचान मिल गई। एक कोल्ड ड्रिंक कंपनी की लाइनों 'ये दिल मांगे मोर' को कारगिल में एक अलग पहचान देने वाले थे जम्मू कश्मीर राइफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा। रिटायर्ड कैप्टन नवीन नगाप्पा को आज तक याद है कि कैसे अपनी जान की परवाह न करते हुए कैप्टन बत्रा ने उन्हें घायल हालत में बंकर से बाहर निकाला था। जिस समय वह नगाप्पा को बाहर ला रहे थे, दुश्मन की गोली उन्हें लग गई और इसी पल वह शहीद हो गए। उनकी शहादत के बाद कारगिल की जंग में 'ये दिल मांगे मोर,' दुश्मनों के लिए आफत बन गईं और हर तरफ बस इसका ही शोर सुनाई देने लगा।
पालमपुर के गांव में जन्मा एक योद्धा
शहीद बत्रा की मां जय कमल बत्रा एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थीं और ऐसे में कैप्टन बत्रा की प्राइमरी शिक्षा घर पर ही हुई थी।परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बत्रा चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले कैप्टन बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया। यहां से एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने और फिर कारगिल युद्ध में 13 जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का नेतृत्व किया। कारगिल वॉर में उनके कभी न भूलने वाले योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अगस्त 1999 को सम्मानित किया गया।
रणनीति का योद्धा
कारगिल वॉर में 13 जेएके राइफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा के साथियों की मानें तो वह युद्ध के मैदान में रणनीति का एक ऐसा योद्धा था जो अपने दुश्मनों को अपनी चाल से मात दे सकता था। कैप्टन बत्रा की अगुवाई में उनकी डेल्टा कंपनी ने कारगिल वॉर के समय प्वाइंट 5140, प्वाइंट 4750 और प्वाइंट 4875 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने में अहम भूमिका अदा की थी। सात जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मनों को कैप्टन बत्रा ने मार गिराया लेकिन इसके साथ ही तड़के भारतीय सेना का यह जाबांज सिपाही को शहादत हासिल हो गई। 'जय माता दी' कैप्टन बत्रा के आखिरी शब्द थे। (फोटो फेसबुक)