कंप्यूटर बाबा पर मेहरबान हुई मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार
कंप्यूटर बाबा को पद देने के पीछे माना जा रहा है कि यह कांग्रेस की साफ्ट हिंदुत्व की नीति का हिस्सा है. लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की कोशिश अपने आप को साधु संतों के क़रीब दिखाने की भी है.
माना जा रहा है कि नई सरकार में नदी न्यास के अध्यक्ष बन कर कंप्यूटर बाबा ने अपनी मंजिल पा ली है.
रविवार को लोकसभा चुनाव आचार संहिता लगने से कुछ घंटों पहले मध्यप्रदेश सरकार ने स्वामी नामदेव त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा को मां नर्मदा, मां क्षिप्रा और मंदाकनी नदी न्यास का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है.
कंप्यूटर बाबा मध्यप्रदेश से ताअल्लुक़ रखने वाले वह व्यक्ति है जो हमेशा न सिर्फ़ चर्चा में रहते है बल्कि उन्हें सत्ता के साथ रहना भी बाख़ूबी आता है.
पिछली शिवराज सरकार में उन्होंने नर्मदा नदी में हो रहे अवैध खनन का मामला उठाया था और फिर उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिल गया था.
कंप्यूटर बाबा, शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ मुहिम चलाने वाले थे लेकिन जैसे ही उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया, उनके सुर पूरी तरह से बदल गये. उनके साथ चार अन्य धार्मिक नेताओं को भी राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था.
लेकिन चुनाव के क़रीब आते ही वह एक बार फिर से शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ हो गए और अपने पद से इस्तीफा देकर विपक्षी कांग्रेस के क़रीब नज़र आने लगे.
प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई ऐसे मौक़े आए जब कंप्यूटर बाबा को न सिर्फ़ कांग्रेस नेताओं के क़रीब देखा गया बल्कि उनके बयान भी ऐसे थे जिससे समझा जा सकता था कि वह कांग्रेस के रंग में रंग चुके हैं.
आचार संहिता से पहले विशेष आदेश
चुनाव आचार संहिता लगने से पहले उन्हें 'फल' मिल भी गया जब सरकार ने रविवार के दिन उनके लिए आदेश निकाल दिए.
कंप्यूटर बाबा की कई ख़ासियत है. वह आधुनिक चीज़ों के उपयोग के लिए भी जाने जाते है. इनका इंदौर के अहिल्या नगर में एक भव्य आश्रम है.
पाकिस्तान में चरमपंथियों के कथित ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के मामलें पर भी कंप्यूटर बाबा कांग्रेस के साथ खड़े नज़र आए.
उन्होंने एयर स्ट्राइक पर सवाल किए और प्रधानमंत्री पर हमला करते हुए पूछा कि उनके मंत्री और अध्यक्ष सेना की कार्रवाई में मारे गए चरमपंथियों की संख्या अलग-अलग बता रहे हैं ,कोई ढाई सौ कह रहा है तो कोई 400.
उन्होंने कहा कि मंत्री और अध्यक्ष एकमत होकर यह तय कर लें कि एयर स्ट्राइक में कितने लोग मारे गए हैं.
नाम ऐसा क्यों है
बताया जाता है कि कंप्यूटर बाबा को उनका नाम उनकी तेज़ सोच और काम करने की शैली की वजह से मिला हुआ है. बाबा किसी भी विषय पर अपनी राय देने के लिये जाने जाते हैं.
बाबा लैपटॉप के इस्तेमाल के साथ ही सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहते है. वहीं हेलिकॉप्टर से घूमना भी इनके शौक़ में शामिल है. इन्होंने अपने कई आयोजनों के कार्ड पूर्व में हेलिकॉप्टर से ही बांटे हैं. हाल ही में संपन्न हुये कुंभ के दौरान की अपनी तस्वीरों को बाबा लगातार वॉट्सऐप और फ़ेसबुक पर शेयर करते रहे.
कंप्यूटर बाबा को पद देने के पीछे माना जा रहा है कि यह कांग्रेस की साफ्ट हिंदुत्व की नीति का हिस्सा है. लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की कोशिश अपने आप को साधु संतों के क़रीब दिखाने की भी है.
माना जा रहा है कि नई सरकार में नदी न्यास के अध्यक्ष बन कर कंप्यूटर बाबा ने अपनी मंजिल पा ली है.
पिछले साल अप्रैल माह में शिवराज सरकार ने प्रदेश के पांच हिंदू संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देकर विवाद पैदा कर दिया है.
इन में से दो संतों ने शिवराज सिंह सरकार के ख़िलाफ "नर्मदा घोटाला रथ यात्रा" निकालने का ऐलान किया था.
इस यात्रा के दौरान कंप्यूटर बाबा सरकार द्वारा निकाली गई नर्मदा यात्रा पर सवाल करना चाहते थे और इस यात्रा के दौरान हुए कथित घोटालों को भी सामने लाने वाले थे.
लेकिन उससे पहले ही सरकार ने आदेश निकाल कर इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था. उसके बाद इन्होंने अपनी यात्रा को निरस्त कर दिया था.
राज्य मंत्री के तौर पर जब पहली बार कंप्यूटर बाबा भोपाल के सरकारी गेस्ट हाउस में आए तो उसकी छत पर ही उन्होंने धूनी रमा दी. उनकी यह हरक़त भी काफी चर्चा में रही थी.
उसके वक़्त विपक्ष में मौजूद, कांग्रेस ने इसे राजनीतिक क़दम करार दिया था. उनका आरोप था कि चुनाव से पहले इन संतों को चुप कराने और इनका फ़ायदा लेने के लिये यह कदम उठाया गया है.
उस वक़्त इनके साथ राज्य मंत्री का दर्जा जिसे दिया गया था वह है भय्यू महाराज, नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज और योगेंद्र महंत.
सरकार के उस वक़्त के आदेश के मुताबिक प्रदेश के विभिन्न चिन्हित क्षेत्रों में विशेषतः नर्मदा किनारे के क्षेत्रों में वृक्षारोपण, जल संरक्षण तथा स्वच्छता के विषयों पर जन जागरूकता का अभियान निरंतर चलाने के लिये विशेष समिति गठित की गई है.
इस समिति के पांच विशेष सदस्यों को राज्यमंत्री स्तर का दर्जा प्रदान किया गया था.
समिति में शामिल कंप्यूटर बाबा प्रदेश के प्रत्येक जिले में "नर्मदा घोटाला रथ यात्रा" निकालकर नर्मदा नदी की बदहाल स्थिती को लोगों के सामने लाने वाले थे.
इसमें वो प्रमुख रूप से सरकार के उस दावे को सामने लाने वाले थे जिसमें उन्होंने दावा किया गया था कि नर्मदा किनारे 6 करोड़ पेड़ लगाए गए हैं.
इसके साथ ही वह नर्मदा में जारी अवैध खनन के मुद्दे को भी उठाने वाले थे.
पद मिलते ही कंप्यूटर बाबा ने कहा था कि सरकारी सुविधाओं के ज़रिये वो नर्मदा के संरक्षण का काम बेहतर तरीके से कर सकेंगे.
जबकि एक अन्य संत महंत योगेंद्र भी "नर्मदा घोटाला रथ यात्रा" में संयोजक के तौर पर काम कर रहे थे.
वह भी उस वक़्त राज्यमंत्री बन कर खुश हो गए थे. एक अन्य सदस्य भय्यू महाराज थे जिन्होंने बाद में पारिवारिक कारणों की वजह से आत्महत्या कर ली थी.