फर्जी चेक साइन करके निकाला पैसा, 21 साल बाद इंसाफ लेने के लिए जिंदा नहीं पीड़ित
मुंबई। बैंकों में मौजूदा समय में लेन-देन काफी बढ़ा है, ऐसे में उपभोक्ताओं को यह उम्मीद रहती है कि उनके साथ बैंक में किसी भीतर की धोखाधड़ी से बचाने के लिए बैंक हमेशा उनका साथ देंगे। लेकिन मुंबई में एक व्यक्ति को फर्जी हस्ताक्षर मामले में इंसाफ पाने के लिए 21 साल का समय लग गया। 21 साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया है कि फर्जी चेक से उपभोक्ता के खाते से जितने पैसे उड़ाए गए उसे 6 फीसदी ब्याज समेत लौटा जाए। लेकिन अपने पैसों के लिए इतने साल तक लड़ने वाला व्यक्ति अब इस पैसे को लेने के लिए जिंदा नहीं है, इतने साल कोर्ट में चले मामले के दौरान पीड़ित व्यक्ति की मौत हो गई।
1996
में
निकाला
गया
पैसा
मुंबई
के
वर्ली
में
भिरगू
जोगार्धन
उर्फ
भिर्गूनाथ
मिस्री
के
खाते
से
83000
रुपए
फर्जी
हस्ताक्षर
के
जरिए
उड़ा
लिए
गए
थे।
जिसके
बाद
मिस्री
ने
इस
बाबत
12
फरवरी
1997
में
बैंक
से
शिकायत
की।
मिश्त्री
जब
उत्तर
प्रदेश
स्थित
अपने
घर
से
लौटा
तो
उसे
पता
चला
कि
उसके
बैंक
खाते
में
सिर्फ
8176.85
रुपए
हैं।
खाते
की
जानकारी
लेने
के
बाद
मिस्त्री
को
पता
चला
कि
किसी
ने
छह
अलग-अलग
चेक
के
जरिए
उसके
खाते
से
अलग-अलग
नाम
से
नवंबर
1996
व
फरवरी
1997
में
पैसे
निकाले
हैं।
उसे
यह
भी
जानकारी
मिली
की
उसकी
चेकबुक,
पासबुक
और
कुछ
कैश
पैसे
उसकी
आलमारी
से
गायब
हैं।
मिस्त्री
ने
आरोप
लगाया
कि
उसके
पड़ोसी
ने
उसकी
आलमारी
से
चोरी
की
और
उसके
चेक
पर
फर्जी
हस्ताक्षर
करकरे
खाते
से
पैसे
निकाल
लिए।
सिविल
कोर्ट
पहुंचे
मिस्त्री
ने
बैंक
पर
भी
लापरवाही
का
आरोप
लगाते
हुए
शिकायत
की
कि
बैंक
के
अधिकारियों
ने
चेक
को
क्लीयर
करते
हुए
हस्ताक्षर
का
अच्छे
से
मिलान
नहीं
किया।
उसने
शिकायत
की
कि
वह
बैंक
से
पैसे
निकालने
व
साधारण
तौर
के
काम
के
लिए
अलग-अलग
हस्ताक्षर
करता
था,
बावजूद
इसके
दूसरे
हस्ताक्षर
से
पैसे
बैंक
खाते
से
निकाल
गए,
जिसे
उसने
बैंक
से
रजिस्टर
नहीं
कराया
था।
जब
बैंक
में
मामले
की
सुनवाई
नहीं
हुई
तो
मिस्त्री
ने
इसके
खिलाफ
बॉबे
हाई
कोर्ट
में
मामला
दर्ज
कराया,
जोकि
बॉबे
सिटी
सिविल
कोर्ट
पहुंचा।
हैंडराइटिंग
एक्सपर्ट
ने
मदद
की
वहीं
इस
आरोप
के
बचाव
में
बैंक
ने
कहा
कि
हमारी
ओर
से
किसी
भी
तरह
की
लापरवाही
नहीं
की
गई
है।
बैंक
का
तर्क
था
कि
सभी
छह
चेक
सेल्फ
के
तौर
इस्तेमाल
किए
गए
और
पैसे
निकाले
गए।
सभी
चेक
पर
हस्ताक्षर
का
मिलान
किया
गया
और
बैंक
के
रिकॉर्ड
से
मिलान
के
बाद
ही
भुगतान
किया
गया।
लिहाजा
बैंक
किसी
भीतर
ह
से
इसके
लिए
जिम्मेदार
नहीं
है।
जिसके
बाद
मिस्त्री
ने
हैंडराइटिंग
एक्सपर्ट
की
मदद
ली
और
यह
साबित
किया
कि
बैंक
के
स्पेसीमेन
और
चेक
पर
किए
गए
हस्ताक्षर
में
फर्क
है।
एक्सपर्ट
ने
अपने
बयान
में
कहा
कि
चेक
जाली
हैं
और
यह
स्पेसीमेन
से
अलग
हैं।
मां-बेटी
को
मिलेगा
पैसा
मिस्त्री
के
पक्ष
में
आदेश
देते
हुए
कोर्ट
ने
कहा
कि
बैंक
अपने
किसी
भी
अधिकारी
को
इस
मामले
में
जिम्मेदार
ठहराने
में
विफल
रहा
है
जिसने
चेक
का
गलत
मिलान
किया।
बैंक
मिस्त्री
के
हस्ताक्षर
का
नमूना
भी
पेश
करने
में
विफल
रहा
है
जिसे
बैंक
यह
कहता
आया
है
कि
उससे
मिलान
के
बाद
ही
भुगतान
किया
गया।
लिहाजा
कोर्ट
आदेश
देता
है
कि
मिस्त्री
के
पड़ोसी
और
बैंक
मिलकर
83,000
रुपए
6
फीसदी
ब्याज
के
साथ
वापस
करे।
मिस्त्री
की
मृत्यु
हो
जाने
की
वजह
से
कोर्ट
ने
उनकी
पत्नी
व
बेटी
को
यह
पैसा
देने
के
लिए
कहा
है,
यह
पैसा
दोनों
के
बीच
बराबर
बांटा
जाएगा।
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