दिल्ली बुक फ़ेयर में जापानी बाबा और साध्वियां
तीन सितम्बर तक लगे दिल्ली पुस्तक मेले में किताबों से ज़्यादा बाबाओं के स्टाल पर जुट रही है भीड़.
पुस्तक मेले का ज़िक्र आते ही शेल्फ़ों में सजी ताज़ा छपी किताबों का ख्याल आता है, लेकिन दिल्ली पुस्तक मेले में आपका स्वागत अगरबत्ती की खुशबू और मंत्रोच्चार की रिकॉर्डेड ध्वनि से होता है।
दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे 23वें दिल्ली पुस्तक मेले में आने वालों को, बाबाओं और धर्मगुरुओं के स्टाल देख ताज्जुब और जिज्ञासा दोनों पैदा होती है, पर यहां लोगों की भीड़ भी लग रही है।
यहां गुरु महाराज घसीटा राम 'कंत', अखिल भारतीय संतमत सत्संग, राधा स्वामी सत्संग, परम पूज्य माताजी निर्मला देवी, गौड़ीय वेदांत प्रकाशन, शिरडी साई ग्लोबल फ़ाउंडेशन से लेकर रामकृष्ण मिशन, पतंजलि का दिव्य प्रकाशन और गीताप्रेस गोरखपुर तक के स्टाल लगे हैं। हॉल में प्रवेश के कुछ देर बाद ही ऐसा लगता है, जैसे आप अचानक किसी मंदिर में आ गए हों।
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मेले में ध्यान और योग
निर्मला देवी के स्टाल पर बक़ायदा ध्यान कराने की व्यवस्था है और ध्यान में लीन लोगों से ये स्टाल भरा हुआ है। कंत दर्शन के स्टाल पर नौजवान साध्वियां अपने गुरुजी के बारे में प्रचार करती हुई मिल जाएंगी। इन्हीं धार्मिक स्टालों के बीच एक जापानी बाबा का भी स्टाल है और यहां भी काफ़ी भीड़ हो रही है। इनका नाम है रयुहो ओकावा।
इन स्टालों पर आने वाले आम तौर पर जीवन के गूढ़ रहस्य की तलाश में रहते हैं। वैसे तो यहां आने वालों में सभी उम्र के लोग हैं लेकिन छात्र-छात्राओं की संख्या ज़्यादा है। गीता प्रेस, गोरखपुर के स्टाल पर आने वाले देवेंद्र दर्शनशास्त्र से दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फ़िल कर चुके हैं और अब योग और सांख्य दर्शन के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध कर रहे हैं।
चार्ल्स डिकेंस और रामायाण
देवेंद्र ने अंग्रेज़ी के मशहूर उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस की किताब अ टेल ऑफ़ टू सिटीज़ भी किसी दूसरी जगह से ख़रीदी है। सिर के बाल साफ़ करवाए और चुटिया रखे देवेंद्र भारतीय साधू के वेष में हैं, लेकिन उनकी ख़रीद सूची में डिकेंस की किताब देख किसी को भी ताज्जुब हो सकता है।
वो बेझिझक कहते हैं, "डिकेंस मैंने पहले भी पढ़ा है, मुझे वो बेहद पसंद हैं।" उन्होंने बताया, "मेरी रुचि दर्शन में है और मैं इसीलिए भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा हूं।" लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनकी रुचि धार्मिक किताबों में है। रुचिका स्टूडेंट हैं और रामायण पढ़ने में उनकी दिलचस्पी है। वो ऐसे ही एक स्टाल पर रामायण उलट पुलट रहीं थीं।
शांति का प्रचार
वो कहती हैं, "मैंने तुलसी की रामायण पढ़ी है, अब वाल्मीकि की रामायण पढ़ना चाहती हूं, ये जानने के लिए कि उसमें क्या अलग है?" किताबों से अलग लोग यहां से धूप अगरबत्ती, धर्मगुरुओं, देवी देवताओं की तस्वीरें, सीडी, स्टिकर, लकड़ी की मालाएं ख़रीद रहे हैं।
हॉल के एक कोने में दलित और बौद्ध साहित्य का एक स्टाल लगा है. यहां बुद्ध की तस्वीरें, पंचशील का झंडा, बुद्ध और अम्बेडकर की किताबें सजी हुई हैं। यहां अपेक्षाकृत लोगों की भीड़ भी दिख जाएगी। मुस्लिम धर्म की अहमदिया शाखा का भी एक स्टाल यहां लगा हुआ है। अहमदिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष फ़िरोज़ अहमद नईम का कहना है कि 'उनकी संस्था यहां शांति का प्राचार कर रहे हैं।'
26 अगस्त से तीन सितम्बर तक चलने वाला ये मेला इंडिया ट्रेड प्रमोशन आर्गेनाइजेशन (आईटीपीओ) की ओर से हर साल इसी सीज़न में आयोजित होता है। नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) की ओर से लगने वाले विश्व पुस्तक मेले की अपेक्षा इसमें भीड़ कम होती है और प्रकाशक भी बहुत चुनिंदा ही आते हैं।
आईटीपीओ की वेबसाइट पर दी गई सूचना के अनुसार, इसका मुख्य उद्देश्य है 'सभी उम्र के लोगों में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना.' इसीलिए ये आयोजन भारतीय पुस्तक प्रकाशकों के संघ के सहयोग से होता भी है। उद्देश्य को पढ़कर और धार्मिक स्टाल देखकर कोई भी पुस्तक प्रेमी हैरान हुए बिना नहीं रह सकता।
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