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लेह में चुनावों का बहिष्कार क्या बीजेपी के लिए नया संकट है?

लेह में सभी राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समूहों ने सर्वसम्मित से चुनावों का बहिष्कार कर दिया है.

By आमिर पीरज़ादा
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लेह में चुनावों का बहिष्कार क्या बीजेपी के लिए नया संकट है?

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में अक्तूबर में लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (एलएएचडीसी यानी लद्दाख स्वायत्त पर्वत विकास परिषद) के चुनाव होंगे. 05 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. उसके बाद से ये पहले चुनाव हैं.

हालांकि लद्दाख के सभी राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक संगठन और पार्टी एक साथ आ गए हैं और चुनावों का बहिष्कार कर दिया है. ये संगठन लद्दाख के लिए संविधान में अधिक सुरक्षा चाहते हैं.

संगठनों के इस फ़ैसले की घोषणा मँगलवार को लेह में हुई एक प्रेसवार्ता में की गई है.

क्षेत्र के पूर्व राजनेताओं के समूह, आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के प्रतिनिधियों, सभी क्षेत्रीय पार्टियों के प्रतिनिधियों और धार्मिक समूहों ने एक साझा बयान जारी कर सर्वसम्मति से चुनावों का बहिष्कार करने की घोषणा की है.

बयान में कहा गया है 'लद्दाख के लिए छठवीं अनुसूची के लिए जन अभियान के नेतृत्व ने तब तक लेएडीएचसी के चुनावों का बहिष्कार करने का फ़ैसला किया है जब तक लद्दाख को संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल न कर लिया जाए. लद्दाख और उसके लोगों को भी बोडो क्षेत्रीय परिषद की तरह दर्जा दिया जाना चाहिए.'

संविधान की छठवीं अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के आदिवासी इलाक़ों के प्रशासन से जुड़े प्रावधान किए गए हैं. स्वायत्त ज़िला परिषदों (एडीसी) के ज़रिए आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देने के प्रावधान हैं.

एडीसी ज़िलों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उन्हें संविधान के तहत विशेषाधिकार दिए गए हैं. वे ज़मीन और उसके मालिकाना हक़ से जुड़े क़ानून बना सकती हैं.

लद्दाख में चुनावों का बहिष्कार करने के लिए जो साझा बयान जारी किया गया है उस पर 12 लोगों के हस्ताक्षर हैं जिनमें बीजेपी के ज़िलाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी के संयोजक, कांग्रेस के नवान रिगज़िन जोरा और दूसरे धार्मिक समूहों के नेताओं के नाम भी शामिल हैं.

इस साझा बयान ने लेह के लोगों की एकजुटता तो दिखाई है लेकिन इसमें करगिल का कोई ज़िक्र नहीं है.

लेह में चुनावों का बहिष्कार क्या बीजेपी के लिए नया संकट है?

चुनावों का बहिष्कार

बीते साल अगस्त में केंद्र शासित प्रदेश के बनने के बाद लद्दाख के लेह में जश्न मनाया गया था लेकिन रोज़गार छिनने और क्षेत्र की आबादी में बदलाव को लेकर आशंकाएं भी ज़ाहिर की गई थीं.

चेरिंग डोरजे कहते हैं, "हमारे यहां आबादी सिर्फ़ तीन लाख है और मीलों दूर तक ख़ाली ज़मीनें हैं, ऐसे में बाहरी लोग यहां आकर बस सकते हैं. इसीलिए हम चिंतित हैं. समय के साथ लोग लद्दाख की ओर पलायन शुरू कर देंगे और हम यहां अल्पसंख्यक बनकर रह जाएंगे."

डोरजे लद्दाख में बीजेपी के पूर्व प्रमुख हैं और यहां के लिए संविधान की छठवीं अनुसूची की माँग करने वाले संगठन के संस्थापक सदस्य हैं.

बीते महीने लेह के सभी प्रमुख नेता एक साथ आए थे और तब से ही लद्दाख के लिए संविधान में विशेष दर्जे की माँग ज़ोर पकड़ रही है. इस समूह में लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन, शिया और सुन्नी एसोसिएशन और कुछ पूर्व नेता भी शामिल हैं.

जब लद्दाख में संवैधानिक सुरक्षा की माँग ज़ोर पकड़ने लगी तो मैजूदा पर्वत परिषद, जिसमें अभी बीजेपी बहुमत में है, ने भी इसी माँग के समर्थन में प्रस्ताव पारित कर दिया.

भारतीय जनता पार्टी के नेता और एलएएचडीसी के डिप्टी चेयरमैन सेरिंग सामदूप कहते हैं, "लद्दाख के लोगों की जनइच्छाओं को देखते हुए मैं ये प्रस्ताव पेश करता हूं कि लद्दाख के लोगों को अपनी ज़मीन, जंगल, रोज़गार, व्यापार, सांस्कृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए संविधान में विशेषाधिकार दिए जाएं. लद्दाख के मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ये संविधान की छठी अनुसूची या अनुच्छेद 371 या फिर संविधान के डोमिसाइल एक्ट के ज़रिए दिया जा सकता है."

इस प्रस्ताव की लद्दाख के कई राजनीतिक हल्क़ों में आलोचना हुई है.

लेह में चुनावों का बहिष्कार क्या बीजेपी के लिए नया संकट है?

चेरिंग डोरजे कहते हैं, "हमने पर्वत परिषद में लाए गए प्रस्ताव के बारे में लेह के चीफ़ एक्ज़ीयक्यूटिव काउंसलर को एक पत्र लिखा है. आप एक साथ तीन चीज़ें नहीं माँग सकते. आपको ठोस तरीक़े से एक ही माँग रखनी होगी. आपको ये स्पष्ट करना होगा कि बीजेपी क्या चाहती है."

अब बीजेपी भी छठवीं अनुसूची की माँग में बाक़ी सभी पार्टियों के साथ आ गई है. लेकिन ऐसा लगता है कि लेह में बीजेपी की स्थानीय इकाई और दिल्ली मुख्यालय में इसे लेकर कुछ मतभेद है.

जम्मू-कश्मीर के बीजेपी प्रमुख अशोक कौल ने बीबीसी हिंदी से कहा है कि सभी को चुनावों में हिस्सा लेना चाहिए और बहिष्कार इसका हल नहीं है. उन्होंने कहा, "हम सभी से वार्ता करेंगे, चुनावों का बहिष्कार करना समाधान नहीं है."

05 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर का विशेषाधिकार समाप्त किया गया था तब लद्दाख को उससे अलग कर दिया गया था. उस समय बीजेपी ने कहा था कि अब लद्दाख भी बाक़ी भारत से मिल जाएगा.

लेकिन अब चुनावों का बहिष्कार और विशेष दर्जे की माँग बीजेपी के उसी नज़रिए को चुनौती देती प्रतीत होती है.

बीजेपी के कार्यकर्ता भी बहिष्कार का पक्ष ले रहे हैं. बीजेपी हाईकमांड और कार्यकर्ताओं के बीच दरार अब सामने आ रही है. बुधवार को बीजेपी के राम माधव और अशोक कौल लेह पहुंचे और कार्यकर्ताओं के साथ कई मीटिंग की. हालांकि समस्या का फ़िलहाल समाधान होता नहीं दिख रहा.

गुरुवार को लेह में बीजेपी के काउंसलर सेरिंग वांगडस ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया. अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा, "ये बहुत पीड़ा के साथ कर रहा हूं क्योंकि लेह की बीजेपी इकाई में बाहरी ताक़तों का हस्तक्षेप बहुत बढ़ गया है"

"पार्टी में एक पल के लिए किसी भी पद पर बने रहना लद्दाख और लोगों की आवाज़ के ख़िलाफ़ होगा." उच्चस्तरीय कमेटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर इस ओर ध्यान देने की बात कही है.

लेह में चुनावों का बहिष्कार क्या बीजेपी के लिए नया संकट है?

अनुच्छेद 370 और 35 ए जम्मू-कश्मीर में संपत्ति और नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए सुरक्षित करते थे. नौकरियों में सुरक्षा को और बढ़ाने के लिए जम्मू-कश्मीर की सरकार डोमीसाइल नीति भी लेकर आई थी.

चेरिंग डोरजे कहते हैं कि बीजेपी को अपने कार्यकर्ताओं को लेह के लए छठवीं अनुसूची का समर्थन करने से नहीं रोकना चाहिए. वो कहते हैं, "अगर आपको इतना बड़ा देश चलाना है तो लोगों की स्थानीय भावनाओं का ध्यान रखना होगा और बीजेपी वो नहीं कर पा रही है और इसकी क़ीमत उसे चुकानी पड़ेगी."

वो कहते हैं, "अगर हमें संवैधानिक सुरक्षा नहीं दी गई तो हम हर तरीक़े से प्रदर्शन करेंगे. इसमें सड़कों पर उतरना भी शामिल है."

बुधवार को लेह में माधव और कौल ने स्थानीय नेताओं से जिस होटल में मुलाक़ात की उसके बाहर छात्रों ने प्रदर्शन भी किया है.

गुरुवार को लेह शहर में भी प्रदर्शन हुए और शटडाउन किया गया.

स्थानीय लोग इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं?

लेह की संस्कृति
Getty Images
लेह की संस्कृति

लेह शहर के केंद्र में स्थित कॉफ़ी शॉप 'कॉफ़ी कल्चर' में आमतौर पर भीड़ रहती है. अधिकतर लोग स्थानीय होते हैं.

नामग्याल वांगचुक दिल्ली में एक ट्रैवल कंपनी में काम करते थे लेकिन कोविड महामारी की वजह से इन दिनों लेह में ही रह रहे हैं.

वो कहते हैं, "केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद मैंने सबसे बड़ा बदलाव ये देखा है कि अब लद्दाख के विकास के लिए अधिक फ़ंड मिल रहा है और यहां ढांचागत सुविधाओं में सुधार हो रहा है."

वो कहते हैं, "लेकिन हमारे लिए नौकरियां ख़त्म हो रही हैं. अब हमारे लिए कोई आरक्षण नहीं है, जो हमें अनुच्छेद 370 के समय मिलता था. लद्दाखी लोगों के मन में अब केंद्र शासित प्रदेश को लेकर आशंकाएं पैदा हो रही हैं. क्योंकि ना ही हमें छठवीं अनुसूची मिली है और ना ही विधानसभा मिली है. लद्दाख के लोगों की यही मुख्य माँग है. ये मिलेगा तो स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार सुरक्षित होगा, पर्यावरण और संपत्तियां सुरक्षित होंगी."

पेशे से लेखक और फ़िल्मकार उमैर लासू लेह में ही रहते हैं. वो कहते हैं कि जब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना तो यहां के बुज़ुर्ग बहुत ख़ुश हुए, भले ही ये भारत सरकार के कश्मीर में उठाए गए क़दम का प्रतिफल ही क्यों न था.

वो कहते हैं, "सिर्फ़ लेह ही नहीं बल्कि कारगिल के युवाओं के मन में भी सवाल थे. वो अपने क्षेत्र, धर्म और मान्यताओं की सुरक्षा को लेकर आशंकित थे. मुझे लगता है कि बिना संवैधानिक सुरक्षा के ये खोखला साबित होगा."

जब संवैधानिक सुरक्षा की माँग कर रहे नए फ्रंट के बारे में सवाल किया गया तो नामग्याल ने कहा, "इससे यही पता चलता है कि समाज के हर तबक़े की यही मुख्य माँग है. हमारे रोज़गार, संपत्ति और पर्यावरण की सुरक्षा की गारंटी के बिना केंद्र शासित प्रदेश किसी काम का नहीं है."

लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से पैदा हुआ संकट

एलएएचडीसी एक निर्वाचित संस्था है जिसमें तीस सदस्य होते हैं. इनमें से 26 चुने जाते हैं जबकि चार को नामित किया जाता है. मौजूदा एलएएचडीसी में बीजेपी के बीस और कांग्रेस के छह सदस्य हैं.

ये काउंसिल साल 1995 में बनी थी. तब से ही लेह और कारगिल में विकास कार्य यही करा रही है. दोनों ही ज़िलों की अपनी अलग-अलग काउंसिल हैं.

जब से लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना है, प्रशासन और एलएएचडीसी के बीच कई मौक़ों पर विवाद हुआ है.

बीजेपी के पूर्व नेता चेरिंग डोरजे का कहना है कि उन्होंने बीजेपी से इसलिए इस्तीफ़ा दिया क्योंकि लद्दाख में लेफ़्टिनेंट गवर्नर के आने के बाद से ही एएएचडीसी भंग है.

वो कहते हैं, "जम्मू-कश्मीर राज्य में जब हम हिल काउंसिल में थे तब श्रीनगर और जम्मू के मंत्रियों या अधिकारियों का हमारे काम में कोई दख़ल नहीं था. ये इलाक़े लेह से बहुत दूर भी हैं. लेकिन जब से केंद्र शासित प्रदेश बना है, पूरा प्रशासन लेह आ गया है, एलजी से लेकर कमिश्नर सेक्रेट्री और डिविज़नल कमिश्नर तक. अब वो उन चीज़ों का भी ध्यान रख रहे हैं जो एलएएचडीसी के अंतरगत आती थीं. ऐसे में काउंसिल की भूमिका दूसरे दर्जे की हो गई है."

लेह
BBC
लेह

बीबीसी ने इन आरोपों पर लद्दाख के लेफ़्टिनेंट गवर्नर की प्रतिक्रिया जानने के लिए उनके दफ़्तर में संपर्क किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.

एलएएचडीसी के मौजूदा चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव काउंसलर ग्याल पी वांग्याल, जो बीजेपी से जुड़े हैं, कहते हैं, "हमारे पास वित्तीय अधिकार थे, प्रशासनिक अधिकार थे, ट्रांसफ़र और तैनाती के अधिकार थे. नियुक्ती समेत और कई अधिकार एलएएचडीसी के पास थे. लेकिन जब से केंद्र शासित प्रदेश बना है, इन्हें लेकर केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन और काउंसिल के बीच असमंजस की स्थिति है कि किसके पास क्या शक्तियां और अधिकार हैं और किसकी क्या भूमिका है."

वो कहते हैं, "हम इसे सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं."

स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि यदि बीजेपी ने मूलनिवासियों की भावनाओं को नहीं समझा तो हालात और ख़राब हो सकते हैं. लेह के पत्रकार रिंचेन आंग्मो चुमिकचान कहते हैं, "लेह में ये ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है. सभी धार्मिक और राजनीतिक संगठन एक साथ आ गए हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. अगर माँगे नहीं मानी गईं तो इसके नतीजे नुक़सानदेह हो सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि अब ये अभियान रुकेगा."

एक ओर जहां लद्दाख की संवैधानिक सुरक्षा राजनीति से कारगिल ग़ायब है, लेह में भी ऊहापोह और अनिश्चितता की ही स्थिति है.

BBC Hindi
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English summary
Is the boycott of elections in Leh a new crisis for the BJP
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