नेशनल हेराल्ड का लखनऊ दफ्तर: इंदिरा- फिरोज के रिश्ते में यहीं पड़ी थी दरार
नई दिल्ली, 18 जून। नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना जवाहर लाल नेहरू ने की थी। पंडित नेहरू ने 1938 में इस अखबार को इस लिए शुरू किया था ताकि आजादी की लड़ाई को और धार दी जा सके। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड इस अखबार का मुद्रक है। आजादी के पहले जवाहर लाल नेहरू ने इस अखबार में विदेश संवाददाता के रूप में कुछ समय तक काम भी किया था। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने इस अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका प्रकाशन लखनऊ और दिल्ली से होता था।
1945 में नेशनल हेराल्ड दोबारा शुरू हुआ। यह इत्तेफाक की बात है कि यह अखबार शुरू से नेहरू परिवार के लिए परेशानियों का कारण बना रहा। इसी अखबार की वजह से इंदिरा गांधी के निजी जीवन में उथल पुथल की परिस्थितियां तैयार हुई थीं। फिरोज गांधी 1946 में नेशनल हेराल्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर बन कर लखनऊ आये थे। कहा जाता है कि इस अखबार में आने के बाद फिरोज गांधी की कई महिलाओं से मित्रता हो गयी थी। इंदिरा गांधी को ये बात नागवार गुजरी। इसी नाराजगी में वे कुछ समय बाद लखनऊ से दिल्ली लौट गयीं थीं। इंदिरा-फिरोज के बीच दूरियों की शुरुआत लखनऊ में ही हुई थी।
पंडित नेहरू ने दामाद को रोजगार दे कर व्यवस्थित करना चाहा
इंदिरा-फिरोज की शादी 1942 में हुई थी। जवाहर लाल नेहरू इस शादी के खिलाफ थे। लेकिन मजबूरी में उन्होंने ये रिश्ता स्वीकार कर लिया था। वे फिरोज गांधी को पसंद नहीं करते थे। 1946 में अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए तैयार हो गये थे। वे धीरे-धीरे कांग्रेस को सत्ता हस्तांतरित करने लगे थे। सितम्बर 1946 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की अंतरिम सरकार बनी थी। इससे यह साफ हो गया था कि आजादी के बाद पंडित नेहरू ही भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे। पंडित नेहरू को अपने दामाद से अधिक बेटी के भविष्य की चिंता थी। उस समय भारत आजाद नहीं हुआ था। तब इंदिरा गांधी के व्यवस्थित जीवन के लिए नेहरू ने फिरोज गांधी को नेशनल हेराल्ड का मैनेजिंग डायरेक्टर बना कर लखनऊ भेज दिया। चूंकि फिरोज गांधी के पास उस समय कोई काम नहीं था। इसलिए नेहरू ने उन्हें नया जॉब ऑफर कर दिया। इंदिरा गांधी अपने पति फिरोज और दोनों बच्चों के साथ लखनऊ आ गयीं।
जब नेशनल हेराल्ड के लखनऊ दफ्तर आये थे फिरोज गांधी
नेशनल हेराल्ड का दफ्तर लखनऊ के कैसरबाग में था। (अब यहां इंदिरा गांधी आंख अस्पताल है)। तब हजरतगंज के लाप्लास कालोनी में बड़े अफसरों का बंगला था। यहीं इंदिरा और फिरोज के लिए एक बंगला आवंटित कर दिया गया। जब इंदिरा गांधी अपने परिवार के साथ लखनऊ शिफ्ट हुईं तब उन्हें इस बात की खुशी हुई कि अब उनकी व्यवस्थित जिंदगी शुरू हो गयी। वह शुरू में राजनीति से दूर एक सहज जिंदगी जीना चाहती थीं। कामकाजी पति हो, बच्चे हों और एक खुशहाल परिवार हो। लेकिन इंदिरा गांधी की यह हसरत पूरी नहीं हुई। कैथरिन फ्रैंक ने अपनी किताब, 'इंदिरा : द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी' लिखा है, फिरोज बिंदास तरीके जीवन गुजारने में यकीन रखते थे। शादी के बाद भी वे दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करते थे। इस किताब में उनकी महिला मित्रों के नाम भी दिये गये हैं। जब फिरोज नेशनल हेराल्ड के दफ्तर में बैठने लगे तब उनकी दोस्ती एक महिला पत्रकार से हो गयी थी। यह महिला पत्रकार इंदिरा गांधी की रिश्तेदार थीं। इसके अलावा फिरोज की कुछ अन्य महिलाओं से भी नजदीकी की चर्चा होने लगी। इंदिरा गांधी को इन बातों से बहुत धक्का लगा। यहीं से रिश्ते में दरार पड़नी शुरू हो गयी। नाराज इंदिरा गांधी अपने बच्चों को लेकर लखनऊ से दिल्ली चली आयीं। तब तक नेहरू भारत के प्रधानमंत्री बन चुके थे। इंदिरा गांधी अपने पिता की देखभाल के लिए प्रधानमंत्री आवास में रहने लगीं। फिरोज गांधी लखनऊ में ही रहे। इसके बाद दोनों के बीच दूरी बढ़ती चली गयी।
विवाद तब और अब
रेमिनेन्सेज ऑफ द नेहरू एज के लेखक एम ओ मथाई ने भी फिरोज गांधी के बारे में लिखा है। मथाई 1946 से 1959 तक प्रधानमंत्री नेहरू के निजी सचिव थे। उन्होंने लिखा है, फिरोज गांधी एक महिला से दोस्ती में इतना आगे बढ़ गये थे कि वे इंदिरा गांधी से तलाक लेना चाहते थे। लेकिन कई कारणों से यह संभव नहीं हुआ। फिरोज गांधी 1946 से 1950 नेशनल हेराल्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर रहे। प्रधानमंत्री बनने से पहले तक जवाहर लाल नेहरू ही इस अखबार के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन थे। पीएम बनने के बाद नेहरू ने चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था। 1950 में फिरोज गांधी भी सक्रिय राजनीति में आ गये। 1950 से 1952 तक वे प्रोविंसियल असेम्बली के सदस्य रहे। फिर 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में रायबरेली से कांग्रेस के सांसद चुने गये। नेशनल हेराल्ड अखबार को शुरू करने का मकसद मुनाफा कमाना नहीं था। इस लिए यह अखबार कई साल तक घाटा में चलता रहा। इसे चलाने के लिए कई बार कांग्रेस ने एसोसेटेड जर्नल्स लिमिटेड को बिना ब्याज के कर्ज दिये थे। बाद में यह कर्ज, पैसा और अखबार की सम्पत्ति ही विवाद का कारण बन गया। अब यही विवाद राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है।
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