Indian Navy: परमाणु पनडुब्बी के मामले में चीन की तर्ज पर क्यों चलेगा भारत ? जानिए
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर: सैन्य डील कैंसिल करने की वजह से हाल ही में ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। ऑस्ट्रेलिया ने पनडुब्बी बनाने की डील कैंसिल करके फ्रांस को 90 अरब डॉलर का चपत लगाया है और फायदा अमेरिका और ब्रिटेन उठाने वाला है। क्योंकि, ऑस्ट्रेलिया ने तय किया है कि उसे डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी नहीं चाहिए और चीन के खतरे का सामना करने के लिए वह सिर्फ परमाणु पनडुब्बियां ही अपने बेड़े में शामिल करना चाहता है। लेकिन, भारत ने सोमवार को साफ कर दिया है कि देश पर खतरे को देखते हुए वह परमाणु और परंपरागत दोनों तरह की पनडुब्बियों का इस्तेमाल करेगा।
भारतीय नौसेना के बेड़े में दोनों तरह की पनडुब्बियां क्यों होंगी?
भारतीय नौसेना परमाणु और परंपरागत दोनों तरह की पनडुब्बियों का निर्माण करेगी और दोनों का ही इस्तेमाल करेगी। इसके बारे में केंद्र सरकार के एक बड़े अधिकारी ने न्यूज एजेंसी एएनआई को सोमवार को बताया है कि 'ऑस्ट्रलिया को ज्यादा खतरा खुले समुद्र और उसके आसपास के इलाके में है। उनके लिए परंपरागत पनडुब्बी की डील को रद्द करना समझ में आता है। जबकि, हमें हमारे तटवर्ती इलाकों के साथ-साथ खुले समुद्र दोनों के खतरों से निपटना है। यही वजह है कि भारतीय नौसना परमाणु के साथ-साथ परंपरागत पनडुब्बियों का भी बेड़ा तैयार करेगी।' दरअसल, ऑस्ट्रेलिया ने जो कदम उठाया है, उस पर यह बहस छिड़ी हुई है क्या भारत या दूसरी नौसेनाओं को भी परंपरागत पनडुब्बियों के मुकाबले ज्यादा मारक क्षमता और शक्ति वाली परमाणु पनडुब्बियां ही बनानी चाहिए।
परंपरागत और परमाणु पनडुब्बियों की लागत में भारी अंतर
गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया ने अब पनडुब्बी निर्माण के लिए अमेरिका से हाथ मिलाया है, जो उसे पीएलए की नेवी से मुकाबला करने लायक परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण में मदद करेगा। लेकिन, अधिकारी के मुताबिक भारत जैसे देश के लिए दोनों तरह की पनडुब्बियों का इस्तेमाल आर्थिक तौर पर भी उचित है, क्योंकि परमाणु पनडुब्बियों का संचालन भी खर्चीला है और इसका निर्माण की लागत तो परंपरागत पनडुब्बियों के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कलवरी क्लास (स्कॉर्पीन) की 6 पनडुब्बियों के निर्माण में 25,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। वहीं डीआरडीओ जो अपने सबमरीन बिल्डिंग सेंटर में पहली तीन न्यूक्लियर अटैक सबमरीन बनाएगा उसपर 50,000 करोड़ रुपये ज्यादा का खर्च आएगा।
भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होंगी कितनी पनडुब्बियां ?
लेकिन, लागत को अलग रख दें तो परमाणु पनडुब्बियां नौसेना के लिए बहुत बड़ी ताकत हैं, जो महीनो तक पानी के अंदर बिना एक बार भी ऊपर आए रह सकती हैं। जबकि, परंपरागत पनडुब्बियों को बैटरी चार्ज करने के लिए निश्चित अंतराल पर सतह पर आना होता है। भारतीय नौसेना की 24 नई पनडुब्बियां संचालित करने की योजना है, जिनमें से 6 कलवरी क्लास, 6 पनडुब्बियां 75 प्रोजेक्ट के तहत बननी हैं, जिसका टेंडर भी जारी हो चुका है और 6 परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण का प्रस्ताव कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति के पास लंबित है। सूत्रों के मुताबिक अंतिम 6 पनडुब्बियों की योजना पर फैसला बाद में होना है।
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चीन की तर्ज पर चलेगा भारत
इस समय इंडियन नेवी के बेड़े में रूसी मूल के किलो क्लास, जर्मन मूल के एचडीडब्ल्यू और एक स्वदेशी ब्लास्टिक न्यूक्लियर सबमरीन है, जिसे कि आईएनएस अरिहंत के नाम से जानते हैं। 5 परमाणु पनडुब्बियों की योजना फिर से तैयार की गई है, जो अरिहंत क्लास प्रोजेक्ट के तहत बनाए जाने हैं और यह 24 पनडुब्बियों वाले कार्यक्रम से अलग है। इस समय अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटिश और अब ऑस्ट्रेलिया की नौसेना पूरी तरह से परमाणु पनडुब्बियों की ओर ही शिफ्ट हो चुकी हैं। लेकिन, अधिकारी के मुताबिक चीन और रूसी नौसेना भी मिश्रित पनडुब्बियां संचालित कर रही हैं और भारत भी उसी रणनीति पर काम कर रहा है। भारत पिछले तीन दशकों से रूस से परमाणु पनडुब्बियां लीज पर ले रहा है और एक और परमाणु पनडुब्बी लीज पर वहीं से लेने की प्रक्रिया चल रही है।