हर साल भारत में लोगों के 70 अरब 'कार्य घंटे' हो जाते हैं बर्बाद!
बेंगलुरु। दिल्ली की सड़कों पर धुंध की खबरों से आप जरूर मुखातिब होंगे। साथ ही उत्तर भारत के कई शहरों में सुबह-शाम धुंध भी दिखाई देने लगी है। और तो और जब ठंड बहुत अधिक होगी है, तो आपके हाथ-पैर जकड़ने लगते हैं, और आप काम-धाम छोड़ कर हाथ सेकने बैठ जाते हैं। जरा सोचिये, जब मौसम अपना कहर बरपाता है, तो कितना समय बर्बाद होता है। जी हां, इस ठंड के मौसम में अगर गर्मी की बात करें, तो भारत को हर साल करीब 70 अरब कार्य घंटों का नुकसान होता है।
आप सोच रहे होंगे, जब पूरे साल में केवल 8760 घंटे होते हैं, तो 70 अरब घंटों की बात हम कैसे कर सकते हैं। जो आपको बताना चाहेंगे कि यहां पर प्रति व्यक्ति बर्बाद हुए घंटों की संख्या को देश की जनसंख्या से गुणा किया गया है।
यह बात मेडिकल जर्नल 'द लांसेट' की एक रिपोर्ट में सामने आयी है। इस रिपोर्ट में बात भले ही गर्मी की गई है, लेकिन मौसम चाहे सर्दी का ही क्यों न हो, इस रिपोर्ट के सभी तथ्य चौंकाने वाले हैं। वर्ष 2017 में जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ी प्रचंड गर्मी के कारण 153 अरब कार्यघंटों का नुकसान हुआ। इस दौरान भारत को 75 अरब कार्यघंटों का नुकसान हुआ है जो उसकी कुल कामगार आबादी के 7 प्रतिशत हिस्से के बराबर किये जाने वाले काम के समान है।
अकेले चीन को ही 21 अरब घंटों की हानि सहन करनी पड़ी। यह उसके यहां काम करने वाली आबादी के 1.4 प्रतिशत द्वारा एक साल में किये जाने वाले काम के बराबर है। गणना के नये तरीकों के जरिये ऐसे आंकड़े पहली बार दुनिया के सामने आये हैं।
खुले में काम करने वाले लोगों को ज्यादा खतरा
यह रिपोर्ट 27 वैश्विक संस्थानों की संयुक्त अध्ययन है। इस रिपोर्ट के अनुसार गर्मी के कारण होने वाले नुकसान का पैमाना अस्वीकार्य रूप से काफी ज्यादा है, तथा दुनिया के सभी क्षेत्रों में यह और भी बढ़ रहा है। खासकर खुले में काम करने वाले लोग, स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियों से जूझ रहे लोग और शहरी क्षेत्रों के बुजुर्ग खासतौर से जोखिम का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट यह दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही वृद्धि की वजह से हम पहले ही स्वास्थ्य सम्बन्धी अस्वीकार्य जोखिम के मुहाने पर खड़े हो गये हैं। साथ ही यह रिपोर्ट पहली बार चेतावनी भी देती है कि यूरोप तथा पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में रहने वाले बुजुर्ग खासतौर से गर्मी की भयंकरता के शिकार होने की कगार पर हैं। यहां हालात अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया से भी ज्यादा खराब हैं।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुछ नये प्रभाव, जिन्हें इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है, वो इस प्रकार हैं-
भयंकर गर्मी
वर्ष 2000 के मुकाबले पिछले साल 15.70 करोड़ अतिरिक्त लोग भयंकर गर्मी के कारण पैदा होने वाली बीमारियों के दायरे में आ गये। वर्ष 2016 के मुकाबले यह आंकड़ा 1.8 करोड़ ज्यादा है।
किन पर ज्यादा खतरा
बढ़ता परिवेशीय तापमान दुनिया के सभी क्षेत्रों में पहले से ही जोखिम के साये में रह रही आबादियों पर मंडराते खतरे को और भी गम्भीर बना रहा है। यूरोप और पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाके खासतौर से जोखिम के मुहाने पर हैं। इन दोनों ही स्थानों पर 65 वर्ष से अधिक के क्रमशः 42 और 43 प्रतिशत लोग गर्मी के कारण होने वाले नुकसान के खतरे का सामना कर रहे हैं।
शहरी इलाकों में प्रदूषण ज्यादा
गर्मी हो या सर्दी शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण की तीव्रता और बढ़ जाती है। खासकर तब, जब निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के 97 प्रतिशत शहरों में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वायु की गुणवत्ता सम्बन्धी दिशानिर्देश का पालन नहीं किया जा रहा है।
डेंगू के केस
जलवायु परिवर्तन के जल्द पड़ने वाले तीव्र प्रभाव अब एक नियमित त्रासदी हो गये हैं और हमारे साथ-साथ वह स्वास्थ्य तंत्र, इस मुसीबत से निपटने में सक्षम नहीं हैं, जिस पर हम निर्भर हैं। हैजा और डेंगू जैसे रोगों का संक्रमण फैलने के लिये बढ़ता हुआ तापमान और बेमौसम पड़ने वाली गर्मी जिम्मेदार है। संक्रमण वाले अनेक क्षेत्रों में इन बीमारियों की संचरण क्षमता बढ़ रही है।
औसत तापमान बढ़ा
इंसान जिस वैश्विक तापमान का सामना कर रहे हैं उसके माध्य का आकार औसत तापमान के दोगुने से भी ज्यादा है। यह 0.8 डिग्री सेल्सियस बनाम 0.3 डिग्री सेल्सियस है।
कई देशों पर बाढ़, सूखे का खतरा
रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार वायु प्रदूषण के कारण मौतों को उनके स्रोत के हिसाब से देखा गया है। इसके मुताबिक दुनिया भर में करीब 16 प्रतिशत लोग कोयले के कारण होने वाले प्रदूषण से मरते हैं। इसके अलावा अतिवृष्टि के मापने के लिये एक नया संकेतक प्रयोग किया गया है, जिसके जरिये यह पता लगाया गया है कि दक्षिण अमेरिका और दक्षिण-पूर्वी एशिया ऐसे क्षेत्रों में शामिल हैं, जिन पर बाढ़ और सूखे का खतरा सबसे ज्यादा है।
फसल के उत्पादन में गिरावट
साथ ही खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर यह रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया के 30 देशों में फसल के उत्पादन में गिरावट हो रही है। यह एक दशक पहले दुनिया में उत्पादन में वृद्धि के रुख के ठीक विपरीत है। मौसम की चरम स्थितियां बार-बार होने के साथ-साथ अधिक तीव्र होने के कारण दुनिया के हर क्षेत्र में कृषि उत्पादन में गिरावट आने का अनुमान है।