क्या है भारत के लिए पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से की अहमियत, 62 की जंग में यहीं पर चीन ने अचानक बोला था हमला
नई दिल्ली। 29 और 30 अगस्त को चीन ने एक बार फिर लद्दाख में घुसपैठ करने की कोशिशें कीं। पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के 500 जवानों ने चुशुल के करीब एक गांव में घुसपैठ कर पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से पर कब्जे की कोशिशें की। लेकिन पहले से चौकस भारतीय सुरक्षा बलों ने चीन के इस प्रयास को विफल कर दिया। सेना की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि चीन पैगोंग झील के दक्षिणी हिस्से पर घुसपैठ कर यथास्थिति को बदलना चाहता है। सेना की तरफ से यह भी कहा गया कि चीन ने बॉर्डर पर शांति और स्थिरता के लिए हुए सभी समझौतों का उल्लंघन किया है। सेना की तरफ से पैगोंग के दक्षिणी किनारे पर सैन्य गतिविधियों की बात कही गई।
यह भी पढ़ें-जानिए 62 की जंग में चुशुल में क्या हुआ था
Recommended Video
पैंगोंग के आसपास अक्सर होता है विवाद
पांच मई को भारत और चीन के बीच पैंगोंग त्सो से ही टकराव शुरू हुआ था। अभी तक चीन की तरफ से पैंगोंग के उत्तरी किनारे पर ही गतिविधियां जारी थीं। यह पहली बार है जब पीएलए ने दक्षिणी किनारे पर कब्जे की कोशिश की थी। पैंगोंग त्सो 4, 270 मीटर की ऊंचाई पर है। पैंगोंग झील, पूर्वी लद्दाख में 826 किलोमीटर के बॉर्डर के केंद्र के एकदम करीब है। 19 अगस्त 2017 को भी पैंगोंग झील पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी। झील का पानी एकदम साफ है लेकिन खारा होने की वजह ये यह पीने योग्य नहीं है। झील सर्दियों में पूरी तरह से जम जाती है और जमी हुई झील से कभी-कभी गाड़ियां तक गुजर जाती हैं।
झील का 45 किमी हिस्सा भारत में
पैंगोंग का मतलब लद्दाख की भाषा में होता है गहरा संपर्क और त्सो एक तिब्बती शब्द है जिसका अर्थ है झील। झील, लेह से दक्षिण पूर्व में करीब 54 किलोमीटर की दूरी पर है। 135 किलोमीटर लंबी झील करीब 600 स्क्वायर किमी एरिया में फैली है। झील के करीब दो-तिहाई हिस्से पर चीन का कब्जा है, जबकि करीब 45 किमी का हिस्सा भारत के हिस्से आती है। सर्दियों में पूरी तरह से जम जाने वाली झील के बारे में कहते हैं कि 19वीं सदी में डोगरा साम्राज्य के जनरल जोरावर सिंह ने अपने सैनिकों और घोड़ों को जमी हुई झील पर ट्रेनिंग दी थी। इसके बाद वह तिब्बत में दाखिल हुए थे। भारत और चीन के बीच सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है। एलएसी में अलग-अलग नजरिए की वजह से पैंगोंग के कई सेक्टर्स पर भी विवाद है।
उत्तरी किनारे पर फिंगर एरिया
झील के उत्तरी किनारे पर अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर है जो खुरनाक किले के करीब है। भारत का कहना है कि एलएसी झील के 15 किलोमीटर पश्चिम तक है। झील के उत्तरी किनारे पर बंजर पहाड़ियां हैं जिन्हें छांग छेनमो कहते हैं। इन पहाड़ियों के उभरे हुए हिस्से को ही सेना 'फिंगर्स' के तौर पर बुलाती है। भारत का दावा है कि एलएसी की सीमा फिंगर आठ तक है लेकिन वह फिंगर 4 तक के इलाके को ही नियंत्रित करती है।फिंगर 8 पर चीन की बॉर्डर पोस्ट्स हैं। जबकि वह मानती है कि एलएसी फिंगर 2 से गुजरती है। करीब छह साल पहले चीन की सेना ने फिंगर 4 पर स्थायी निर्माण की कोशिश की थी। इसे बाद में भारत की तरफ से हुए कड़े विरोध के बाद गिरा दिया गया था।
झील के दक्षिणी में है चुशुल
झील, चुशुल के रास्ते में पड़ती है और यह रास्ता चीन की तरफ जाता है। किसी भी आक्रमण के समय चीन इसी रास्ते की मदद से भारत की सीमा में दाखिल हो सकता है। सन् 1962 की जंग में जब दोनों देश पहली बार आमने-सामने थे तो चीन ने इसी रास्ते का प्रयोग कर हमले शुरू किए थे। भारत की सेना ने उस समय रेजांग ला पास पर बहादुरी से चीन का जवाब दिया था। चुशुल में तब 13 कुमायूं जिसकी अगुवाई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे, युद्ध के अंत तक डटी रही थी। अभी तक झील के दक्षिणी किनारे पर शांति थी मगर अब यहां भी चीन ने कब्जे की कोशिशें की है। सेना सूत्रों का कहना है कि भारत की मौजूदगी, चुशुल और रेजांग ला पास की वजह से झील के दक्षिणी हिस्से पर काफी मौजूद रही है। दक्षिणी हिस्से में भारत की मौजूदगी से चीन हमेशा से परेशान रहता है। यह जगह रणनीतिक तौर पर किसी भी देश के लिए फायदेमंद है।