चीन को 'खिलौने के खेल' में कैसे हरा पाएगा भारत?
विश्व में खिलौना उद्योग लगभग सात लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का है. इसमें भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है.
एक तरफ़ भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव जारी है. पूर्वी लद्दाख सीमा के पास पंन्गोंग त्सो झील के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच 29-30 अगस्त को दोबारा झड़प की रिपोर्टें हैं.
भारत सरकार ने इस पर बयान जारी कर कहा है कि चीनी सैनिकों ने उकसाने वाला क़दम उठाते हुए सरहद पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उन्हें रोक दिया. हालाँकि चीन के विदेश मंत्री ने कहा है कि चीन की सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा का सख़्ती से पालन करती है.
दूसरी तरफ़ भारत सरकार हर महीने आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में नए-नए फ़ैसले लेकर चीन पर निर्भरता कम करने की बात कर रही है.
भारत सरकार ने हाल ही में चीन के ऐप्स पर पाबंदी लगाने का फ़ैसला किया और उसके ठीक बाद व्यापार नियमों में बदलाव किए ताकि सरकारी सौदों में विदेशी कंपनियाँ कम से कम भाग ले सके. बावजूद इसके चीन के साथ व्यापार पर इन सभी फ़ैसलों का बहुत ज़्यादा असर होता नहीं दिख रहा.
चीनी ऐप्स और सरकारी ठेकों से चीनी कंपनियों को निकाल बाहर करने की तमाम तैयारियों के बाद अब भारत की नज़रें टिकी है चीन के खिलौना बाज़ार पर.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त को अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में कहा, "विश्व में खिलौना उद्योग लगभग सात लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत ही कम है. लेकिन जिस देश में इतनी बड़ी विरासत हो, परंपरा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, उस देश की इतनी कम हिस्सेदारी क्या अच्छी बात है? जी नहीं, ये सुनने में अच्छा नहीं लगता. हमें मिल कर इसे आगे बढ़ाना होगा."
खिलौने का विश्व बाज़ार
हालाँकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन ये सब जानते हैं कि भारत ही नहीं विश्व भर में चीन के खिलौनों की कितनी माँग है.
जो देश खिलौना बनाने में विश्व के टॉप पाँच देशों में कहीं नहीं आता, वो अचानक दुनिया के टॉप के चीनी खिलौनों का मुक़ाबला कैसे कर लेगा?
स्पष्ट है कि जो टारगेट भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेट करना चाहते हैं, वो इन परिस्थितियों में आसान नहीं लगता. इसलिए एक नज़र डालते हैं आँकड़ों पर :
- विश्व खिलौना उद्योग की बात करें, तो चीन दुनिया में सबसे ज़्यादा खिलौने एक्सपोर्ट करता है. तकरीबन 86 फ़ीसदी खिलौने विश्व में चीन से जाते हैं. दूसरे नंबर पर यूरोपीय यूनियन के देश हैं.
- 2019 में विश्व खिलौना बाज़ार 105 बिलियन अमरीकी डॉलर की इंडस्ट्री था, जिसके 2025 तक 131 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाने की संभावना है.
- भारत की बात करें, तो विश्व के खिलौना बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 0.5 फ़ीसदी से भी कम है.
- भारत में खिलौना बाज़ार तकरीबन 16 हज़ार करोड़ का है, जिसमें से 25 फ़ीसदी ही स्वदेशी है. बाक़ी 75 फ़ीसदी में से तकरीबन 70 प्रतिशत माल चीन से आता है. 5 प्रतिशत ही दूसरे देशों से निर्यात होता है.
दुनिया में खिलौना बनाने में जो कंपनियाँ सबसे आगे है, उनमें लेगो, मेटल और बान्दाई नामको एंटरटेनमेंट जैसे नाम शामिल है. इनमें से कई के प्लांट चीन में हैं.
ऐसे में भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी कि पहले भारतीयों के लिए ही खिलौने तैयार किए जाए, जो चीनी खिलौने के मुक़ाबले भारतीयों की पहली पसंद हो.
भारतीय खिलौना बाज़ार
दिल्ली के सदर मार्केट में चीनी खिलौनों का बड़ा बाज़ार है. वहाँ के दुकानों पर कस्टमर को आप अक्सर कहते सुनेंगे, 'भैया, सस्ता और सुंदर दिखाओ.'
दरअसल सस्ते चीनी खिलौनों की भारतीयों को आदत हो गई है, जिसमें वैराइटी भी खूब मिलती है और जो ट्रेंड के साथ चलते हैं. चाहे मार्केट में जो भी नया कार्टून शो आया हो, उसके कैरेक्टर आप को कुछ ही महीनों में बाज़ार में मिल जाते हैं. नए गेम्स में तो चीन के खिलौनों का कोई जोड़ नहीं. दाम में भी किफ़ायती होते हैं.
व्यापारियों की मानें, तो भारत में ऐसे खिलौनों की मार्केट में इनोवेशन की बड़ी कमी है.
भारत में खिलौना बनाने में दक्षिण भारत के शहर सबसे आगे है. कर्नाटक के रामनगर में चन्नापटना, आंध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी और उत्तर प्रदेश का वाराणसी ऐसे कुछ शहर हैं, जहाँ खिलौने बनाने का काम चलता है. इनका ज़िक्र प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में भी किया था.
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बदहाल हैं लकड़ी खिलौना व्यापारी
लेकिन वो किस हाल में है, ये जानने के लिए वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी ने बात की चन्नापटना के खिलौना व्यापरी से.
समीउल्लाह चार-पाँच कारीगरों के साथ चन्नापटना में खिलौने बनाने का काम करते हैं. चन्नापटना एक टॉय क्लस्टर है जो बेंगलुरू-मैसूर हाईवे पर स्थित है, जहाँ लड़की के खिलौने बनाने का काम होता है. प्लास्टिक और दूसरे चीज़ों से पर्यावरण को जो नुक़सान हो रहा है, उसके मद्देनज़र लड़की के खिलौना का चलन एक बार फिर से शुरू हुआ है.
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए समीउल्लाह कहते हैं, "कोरोना के दौर में उनकी हालात बहुत ख़राब हो गई है. पिछले पाँच महीने में ज़्यादातर कारीगर वेल्डिंग या फिर राजमिस्त्री का काम करने को मजबूर हो गए हैं. पहले भी एक दिन में हज़ार रुपए से कम ही कमाते थे. लगभग 500-600 रुपए के आस पास. लेकिन कोरोना के बाद से पाँच महीने कैसे बीते, पूछिए मत."
चन्नापटना का क्राफ़्ट पार्क, कर्नाटक सरकार की ओर से बनाया गया था. पूरे भारत में ये अपनी तरह का अकेला पार्क था. यहाँ ना सिर्फ़ कर्नाटक के, बल्कि तमिलनाडु और केरल के भी खिलौना कारीगर आ कर मशीनों से फ़िनिशिंग का काम करते थे. इसके बाद इन खिलौनों को भारत के दूसरे बाज़ार और विश्व बाज़ार में बेचने का काम शुरू होता था.
ये क्राफ़्ट पार्क नोटबंदी से पहले ही शुरू हो गया था.
क्राफ़्ट पार्क की सीईओ श्रीकला कादिदल ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा, "नोटबंदी के पहले यहाँ अगल-बगल के राज्यों से बहुत खिलौना बनाने वाले आते थे. लेकिन नोटबंदी के बाद हमें पहला झटका लगा. मानो हमारा एक हाथ कट गया. दूसरा झटका जीएसटी की वजह से लगा, जब इन खिलौनों पर सरकार ने 12 फ़ीसदी का जीएसटी लगा दिया. इसके बाद तो मानों इस उद्योग के दोनों हाथ काट दिए गए. रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी. अब तो इस उद्योग का सिर ही नहीं बचा."
वो आगे कहती हैं, "पहले 5.5 फ़ीसदी का वैट लगता था, और अब 12 फ़ीसदी का जीएसटी. ऐसे में चीन के खिलौनों से कैसे मुक़ाबला कर सकते हैं. आंगनबाड़ी भी हमारा सामान नहीं ख़रीदते. वो भी चीन के खिलौने ख़रीदते हैं. सरकार को कम से कम स्थानीय आंगनबाड़ियों के लिए चन्नापटना के खिलौने ख़रीदने का फ़रमान जारी करना चाहिए."
चीन के मुक़ाबले भारत की चुनौती
बहादुरगढ़ के टॉय फ़ैक्टरी 'प्लेग्रो' के मालिक मनु गुप्ता भी कुछ इसी तरह की कहानी सुनाते हैं. जीएसटी की परेशानी उन्हें समीउल्लाह से अधिक है. उनके यहाँ ज़्यादातर खिलौने बैटरी या फिर एलईडी लाइट्स वाले बनते हैं. उन पर सरकार ने 18 फ़ीसदी जीएसटी लगा रखा है.
उनकी भी माँग है कि सरकार जीएसटी को कम करे और सभी खिलौनों पर एक जीएसटी कर दे.
मनु गुप्ता टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयोजक भी हैं. उनके मुताबिक़ प्रधानमंत्री की कोशिश अच्छी है. टॉय इंडस्ट्री का इससे मनोबल बढ़ा है, लेकिन कुछ बुनियादी सहूलियते हैं, जो मिलेगी, तभी इस उद्योग में लोग आना चाहेंगे.
भारत के खिलौना उद्योग के पिछड़ने के पीछे वो तीन वजहें गिनाते हैं. पहला ये कि डिज़ाइन और मार्केट में तालमेल की कमी. भारत में कुछ अच्छे डिज़ाइन इंस्ट्टीयूट हैं, जहाँ खिलौने के डिज़ाइन की पढ़ाई होती है. जैसे एनआईडी अहमदाबाद में, लेकिन वहाँ इंडस्ट्री में क्या चाहिए इस पर जोर नहीं दिया जाता. इस वजह से छात्र ऑन-लाइन गेम बनाने के बारे ज़्यादा सोचते हैं और एजुकेशनल टॉय, प्लास्टिक टॉय, बैटरी ऑपरेटेड टॉय पर उनका ध्यान नहीं होता, जो इस मार्केट का बड़ा हिस्सा है.
दूसरी समस्या जगह की है. मनु गुप्ता कहते हैं कि चीन की सरकार ने अपने देश में 14 ऐसे प्लग इन टॉय सिटी सेंटर बनाए हैं, जहाँ कंपनियाँ जा कर तुरंत ही अपना काम शुरू कर सकती है. चीन में लेबर कॉस्ट भी भारत के मुक़ाबले कम पड़ता है.
तीसरी बात है कि अब भारत में 1 सितंबर से खिलौनों में बीएसआई मार्क आनिवार्य कर दिया जाएगा. बीएसआई मार्क क्वालिटी कंट्रोल के लिए लगाया जाता है.
लेकिन अभी भी सभी व्यापारी इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है. उन्हें तीन महीने का और वक़्त चाहिए. खिलौना व्यापार से कई छोटे और मीडियम व्यापारी भी जुड़े हैं, जिनके लिए कोरोना के दौर में क्वालिटी कंट्रोल के सभी मानदंड अपनाने में वक़्त लगेगा.
भारत सरकार को भी शुरुआत में खिलौना बनाने वाली कंपनियों के लिए ऐसी तमाम सुविधाएँ देने की ज़रूरत होगी, तभी चीन के भारत खिलौने के बाज़ार में लोहा ले पाएगा.