महाराष्ट्र: क्या है विधान परिषद सदस्यों के नामांकन पर गवर्नर-उद्धव सरकार में मतभेद का विकल्प
नई दिल्ली- महाराष्ट्र में गवर्नर कोटे से विधान परिषद में नामित होने वाले 12 नेताओं की सदस्यता अधर में लटक गई है। उद्धव सरकार की कैबिनेट ने 12 नामों की लिस्ट पर पिछले महीने की 29 तारीख को ही मुहर लगा दी थी, लेकिन लगता है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी इतनी आसानी से राज्य सरकार के मंसूबे को कामयाब होने देने के लिए तैयार नहीं है। सवाल है कि इस मामले में संविधान क्या कहता है और अगर कोश्यारी ने सरकार के फैसले पर मुहर नहीं लगाई तो फिर आगे का विकल्प क्या हो सकता है।
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महाराष्ट्र में गवर्नर कोटे से विधान परिषद में नामित होने वाले 12 लोगों की सदस्यता को लेकर राजभवन और उद्धव सरकार एक बार फिर आमने-सामने है। उद्धव सरकार में मंत्री और शिवसनेना नेता अनिल परब, कांग्रेस के अमित देशमुख और एनसीपी के नवाब मलिक गवर्नर कोश्यारी से मिलकर गवर्नर कोटे से विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामंकित होने वाले 12 लोगों की सूची सौंप चुके हैं। उन्होंने गवर्नर से कहा था कि वह इन 12 लोगों को 15 दिनों के अंदर में विधान परिषद सदस्य के रूप में नामांकित करें, क्योंकि इसमें पहले ही काफी देर हो चुकी है। 15 दिन की वह मियाद पिछले शनिवार को ही पूरी हो चुकी है। जहां तक 15 दिन की डेडलाइन वाली बात है तो संविधान में गवर्नर के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है और यह पूरी तरह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि उसे कब मंजूरी दें।
दरअसल, संविधान के आर्टिकल 171 में यह प्रावधान है कि राज्यपाल साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा में विशेष योगदान देने वालों या इन क्षेत्रों में विशेष विद्वता प्राप्त 12 लोगों को विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामांकित कर सकते हैं। राज्यपाल यह तर्क दे सकते हैं कि संविधान के तहत वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर फौरन कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं है।
बिमान चंद्र बोस बनाम डॉक्टर एचसी मुखर्जी के मामले में 1952 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था कि परिषद के लिए नामांकित 9 सदस्य इसके लिए निर्धारित मानदंड नहीं पूरा करते और कहा था कि राज्यपाल परिषद के सदस्यों के नामांकन में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सकते। वह मंत्री परिषद की सलाह मानने को बाध्य हैं।
लेकिन, आर्टिकल 162 के तहत यह भी तर्क दिया जा सकता है कि राज्यपाल सिर्फ कार्यपालिका से जुड़े विषयों (जिसके तहत राज्य विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है) में मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य हैं और क्योंकि विधान पार्षदों को नामित करना उस दायरे में नहीं आता इसलिए वह अपने विवेक का उपयोग कर सकते हैं।
संविधान में उन स्थितियों का विशेष तौर पर जिक्र भी किया गया है, जिसमें राज्यों के राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कार्यवाही कर सकते हैं। मसलन, आर्टिकल 239 (संघ शासित प्रदेशों का प्रशासन), आर्टिकल 371 (महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधान), आर्टिकल 371ए (नगालैंड), आर्टिकल 371एच (अरुणाचल प्रदेश) और छठी अनुसूची (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों से जुड़े प्रावधान)।
बता दें कि महाराष्ट्र कैबिनेट ने 29 अक्टूबर को जिन 12 नेताओं को विधान परिषद भेजने की गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को सलाह दी है, वे हैं- एनसीपी के एकनाथ खडसे, राजू शेट्टी, यशपाल भिंगे और आनंद शिंदे, कांग्रेस के रजनी पाटिल, सचिन सावंत, मुजफ्फर हुसैन और अनिरुद्ध वनकर और शिवसेना के नितिन वानगुडे पाटिल, विजय करंजकर, चंद्रकांत रघुवंशी और उर्मिला मातोंडकर। इस संबंध में कैबिनेट नोट में कहा गया है कि इन लोगों की नियुक्ति से विधान परिषद के बाकी सदस्यों को अपनी ज्ञान वृद्धि करने का मौका मिलेगा। इसमें नामांकन में पहले ही हो चुकी देरी और विधानसभा के शीतकालीन सत्र जल्द शुरू होने का भी जिक्र किया गया है। अब देखना होगा कि महाराष्ट्र में यह मामला फिर अदालत के दरवाजे तक जाता है या फिर उससे पहले ही कोई हल निकल जाता है।