जानिए, पश्चिमी यूपी में जातीय समीकरण बदलने के लिए कैसे हो रहा है नया सियासी प्रयोग?
नई दिल्ली- राजनीति में जातीय समीकरणों के हिसाब से शह और मात का खेल तो चलता रहता है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार जो राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है, वह बहुत ही अनोखी है। महागठबंधन के सामने बीजेपी से मुकाबले के लिए और कांग्रेस की अड़चनों को दरकिनार कर दलित-मुस्लिम-जाट वोट बैंक को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की चुनौती है। सियासी गोटियां फिट करने के सारे प्रयास जारी हैं और क्षेत्र की तीन लोकसभा सीटें सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और कैराना इस नए राजनीतिक प्रयोग के बाद सामने आने वाले परिणाम की गवाही देने के लिए तैयार हैं। इन तीनों सीटों पर पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है। इन सभी जगहों पर बीजेपी,महागठबंधन और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होना तय लग रहा है।
बुआ और बबुआ का फॉर्मूला
बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी इस फॉर्मूले पर पूरे भरोसे के साथ मेहनत में जुटी है कि क्षेत्र के मुसलमान वोट पर उनका एकमात्र अधिकार है। हालांकि,सच्चाई ये भी है कि इसमें फिलहाल कांग्रेस बहुत बड़ी कठिनाई पेश कर रही है। बीएसपी के लिए एक और चुनौती दलित वोट को अपने पाले में मजबूती से एकजुट रखने की भी है। क्योंकि,2014 में वह इसमें पूरी तरह सफल नहीं हो पाई थी। मायावती के लिए इस इलाके में अनुसूचित जाति और जाट वोटरों को जोड़ना भी बहुत बड़ा चैलेंज है। इसके लिए उनकी पार्टी सहारनपुर पर बहुत ही ज्यादा ध्यान दे रही है, जहां 2 लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं। इसी भरोसे बहन जी ने यहां एक स्थानीय चेहरे हाजी फजलु रहमान को टिकट दिया है, ताकि मुस्लिम-दलित वोटरों को एकजुट रख सकें। पिछले चुनाव में बीएसपी को यहां 2.30 लाख वोट मिले थे। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में समाजवादी अलग लड़ी थी। समाजवादी पार्टी की पूरी कोशिश है कि वो यहां पर गुर्जुरों का वोट बीएसपी उम्मीदवार को ट्रांसफर करा सके। इकोनॉमिक टाइम की खबरों के मुताबिक स्थानीय एसपी नेता इसके लिए गुर्जरों के इलाकों का दौरा कर रहे हैं।
अजित सिंह के सामने चैलेंज
इस बार के लोकसभा चुनाव में आरएलडी सुप्रीमो अजित सिंह का सियासी भी भाग्य तय हो जाना है। मुजफ्फरनगर में जीतकर उनके सामने छठी बार लोकसभा पहुंचने का अवसर है। लेकिन, अबकी बार अगर वो लोकसभा पहुंचने से चूक गए, तो उनका आगे का राजनीतिक सफर बेहद कठिन हो सकता है। 2013 के दंगों का जख्म झेल रहे मुजफ्फरनगर में मुस्लिम-जाट वोटरों को एक साथ अपने पक्ष में लाना उनके लिए कोई मामूली चैलेंज नहीं है। इसी तरह कैराना सीट भी उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। गठबंधन के तहत कैराना लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के खाते में दी गई है। यहां पर आरएलडी को जाटों का वोट एसपी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के पक्ष में ट्रांसफर करवाना है। हालांकि, उनके लिए राहत वाली बात ये है कि वे आरएलडी से ही एसपी में जाकर चुनाव लड़ रही हैं। लेकिन, सवाल ये है कि क्या एसपी में रहते हुए जाट मतदाता उनके पक्ष में उसी खुले दिल से वोट करेंगे, जैसे आरएलडी उम्मीदवार के तौर पर दे पाते।
बीजेपी-कांग्रेस का अंकगणित
अगर कैराना लोकसभा क्षेत्र को बीजेपी के नजरिए से देखें तो उसने मृगांका सिंह की जगह गंगोह के विधायक प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है। ये दोनों गुर्जर जाति से हैं, इसलिए बीजेपी को यहां कोई ज्यादा फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस ने यहां पर हरेंद्र मलिक को टिकट दिया है। सबसे दिलचस्प लड़ाई सहारनपुर की हो गई है, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद बीएसपी की नींद उड़ाए हुए हैं। क्योंकि, उनका मुसलमानों में तो पैठ है ही, वे प्रियंका गांधी वाड्रा की मदद से दलित वोट बैंक पर भी हाथ साफ करने की जुगत लगा चुके हैं। जानकारी के मुताबिक प्रियंका ने भीम आर्मी के चीफ से मसूद के कहने पर ही मेरठ के अस्पताल में मिल आई थीं। गौरतलब है कि चंद्रशेखर का पश्चिमी यूपी के दलित युवाओं में बहुत ही ज्यादा प्रभाव है।
वहीं बीजेपी ने इस क्षेत्र में स्थानीय और अति पिछड़ी जातियों जैसे सैनी और कश्यप प्रत्याशियों पर ज्यादा दांव लगाया है। इसके अलावा वह केंद्र और राज्य सरकार की ओर से किए गए विकास कार्यों को भी जोर-शोर से उठा रही है। यही कारण है कि सहारनपुर में पार्टी के उम्मीदवार राघव लखनपाल इस बार भी यहां फिलहाल मजबूत विकेट पर दिखाई दे रहे हैं और सहारानपुर का सियासी द्वंद बीजेपी की राह आसान भी बना सकता है। क्योंकि, खुद महागठबंधन के लोग आशंका जताते रहे हैं कि यहां अगर बीजेपी ध्रुवीकरण करवाने में सफल रही, तो उन्हें इसका नुकसान हो सकता है।
यही कारण है कि महागठबंधन ने यहां के देवबंद में 7 अप्रैल को पहली साझा रैली करने की घोषणा की है, जहां मायावती, अखिलेश यादव और अजित सिंह एक साथ एक मंच पर उतरेंगे। गौरतलब है कि देवबंद, मुजफ्फरनगर, सहारानपुर और कैराना तीनों लोकसभा क्षेत्रों से सटा हुआ। जानकारी ये भी है कि उसी दिन प्रियंका गांधी वाड्रा भी सहारनपुर में ही चुनावी रैली करने वाली हैं। यहां ये बताना भी जरूरी है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसी क्षेत्र से बीजेपी के प्रचार अभियान की शुरुआत की थी।
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