राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार पर कितना दबाव?
लेकिन आरएसएस के एक क़रीबी सूत्र मंदिर निर्माण के लिए क़ानून की मांग को 'शुद्ध राजनीतिक कोशिश बताते हैं, जो सरकार की शह पर हो रही है.' इस मामले में बिल पास न होने की सूरत में मोदी सरकार ये कह पाएगी कि उसने तो कोशिश की लेकिन दूसरे दलों ने साथ नहीं दिया.
राम मंदिर निर्माण पर विधेयक लाने का एक पहलू ये भी है कि ये आने वाले दिनों में बनने वाले राजनीतिक गठबंधन को तय करेगा. इस पूरे मामले में सबसे मुश्किल सॉफ़्ट हिंदूत्व कार्ड खेल रही कांग्रेस के लिए होगा कि वो बिल पर क्या रुख़ अपनाए?
पिछले कई महीनों की कोशिशों के बावजूद अयोध्या धर्मसभा में उम्मीद के मुताबिक़ भीड़ भले ही जमा न हुई हो, लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए क़ानून की मांग फिर से चर्चा में है. हिंदू संगठन और संत दावा कर रहे हैं कि 11 दिसंबर के बाद कुछ-कुछ हो सकता है.
"मैं सरकार से आश्वासन के आधार पर कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री भव्य मंदिर निर्माण के लिए रास्ता प्रशस्त करेंगे. अध्यादेश आ सकता है या कुछ-कुछ हो सकता है." हिंदू धर्मगुरु स्वामी राम भद्राचार्य ने बीबीसी से 25 नवंबर के उसी बयान को दोहाराया, जिसमें उन्होंने इस मुद्दे पर मोदी मंत्रिमंडल में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण मंत्री से आश्वासन मिलने का दावा किया था.
लेकिन मंदिर पर क़ानून या अध्यादेश लाए जाने की संभावना महज़ चंद दावों और 'संतो का ये धर्मादेश, क़ानून बनाओ या अध्यादेश,' और 'संविधान से बने, विधान से बने' जैसे नारों के आधार पर नहीं जताए जा रहे हैं, बल्कि इसकी कुछ और कड़ियां भी हैं.
अयोध्या धर्म संसद से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित राजस्थान के अलवर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के नागपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी राम मंदिर से संबंधित बयान दिए थे.
लोकसभा में कर्नाटक के धारवाड़ से पार्टी सांसद प्रह्लाद वेंकटेश जोशी और राज्यसभा में मनोनीत सदस्य राकेश सिन्हा की ओर से तैयार प्राइवेट मेंबर्स बिल्स को भी इसी का हिस्सा माना जा रहा है.
आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा अब भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं.
राकेश सिन्हा का कहना है कि दूसरे राजनीतिक दलों से सकारात्मक जवाब न मिलने के कारण उन्होंने फ़िलहाल अपना बिल सदन में पेश करने का इरादा स्थगित कर दिया है, लेकिन प्रह्लाद वेंकटेश जोशी का मसौदा लोकसभा अध्यक्ष कार्यालय में भेजा जा चुका है.
'... निजी पहल'
प्रह्लाद वेंकटेश जोशी ने बीबीसी को बताया कि अब उन्हें लोकसभा अध्यक्ष के यहां से जवाब का इंतज़ार है, जिससे ये तय होगा कि बिल पर शीतकालीन सत्र के दौरान बहस होगी या नहीं.
उन्होंने कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र में राम मंदिर निर्माण को लेकर बार-बार मांग उठती रहती है, जिससे उन्हें प्राइवेट मेम्बर बिल लाने का विचार आया. ये उनकी निजी पहल है और इसका उनकी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है.
वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन का भी कहना है कि प्रह्लाद वेंकटेश जोशी का बिल निजी हैसियत से लाया गया है और दूसरे दलों के सांसद भी अलग-अलग मुद्दों पर प्राइवेट मेम्बर बिल्स ला चुके हैं.
हिंदू संगठनों की ओर से राम मंदिर निर्माण पर अध्यादेश या क़ानून लाने की मांग पर शाहनवाज़ हुसैन कहते हैं, "ये उनका हक़ है."
अक्तूबर से इस मुद्दे पर कई संत-सभाएं और अयोध्या की धर्म-सभा कर चुकी वीएचपी रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में फिर एक धर्म-सभा आयोजित कर रही है.
वीएचपी के मुताबिक़ दिल्ली का कार्यक्रम 'मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बनाओ' आंदोलन के तीसरे चरण का हिस्सा है. पहले चरण में विश्व हिंदू परिषद संतों के ज़रिए राष्ट्रपति को ज्ञापन दिए जाने, राज्यपालों और सभी दलों के सांसदों से मिलने का काम पूरा कर चुकी है.
- राम मंदिर की टलती सुनवाई से बीजेपी को फ़ायदा या नुकसान
- राम मंदिर मुद्दा: मोदी पर संकट या बनेगा संकटमोचक?
संगठन के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन का दावा है कि दोनों, सत्ता और विरोधी दलों के सांसदों ने राम मंदिर निर्माण पर क़ानून को समर्थन का भरोसा दिलाया है.
सुरेंद्र जैन कहते हैं, "दशकों से अलग-अलग अदालतों में लंबित रहा राम मंदिर का मामला कोर्ट में तय नहीं हो सकता है और इसलिए इसके निर्माण के लिए जल्द से जल्द क़ानून लाया जाना चाहिए."
'सरकार की शह पर'
'अयोध्या द डार्क नाइट' पुस्तक के सह-लेखक धीरेंद्र झा कहते हैं, "रामभद्रायार्च का बयान, आरएसएस प्रमुख का भाषण, नरेंद्र मोदी का बयान और साथ ही वीएचपी के एक के बाद-एक कई कार्यक्रम सारे बिना किसी मतलब के तो नहीं हो रहे होंगे."
नवंबर के आख़िरी रविवार को जब अयोध्या में संतों की सभा जारी थी, तक़रीबन उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में देरी के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया था.
दूसरी तरफ़ नागपुर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उसी दिन विश्व हिंदू परिषद की हुंकार रैली में बयान दिया कि मंदिर मामले पर सुनवाई में देरी की वजह सुप्रीम कोर्ट का समाज की भावनाओं को न समझ पाना है और इसलिए अब मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बनाया जाना चाहिए.
आरएसएस पर पैनी नज़र रखनेवाले नागपुर स्थित लेखक दिलीप देवधर कहते हैं, "फ़िलहाल मोदी-शाह-भैयाजी और भागवत की यूनिटी इंडेक्स 100 परसेंट है. जब सब एक स्वर में बोल रहे हों तो उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए."
राम भद्राचार्य ने अपने भाषण में ये भी कहा था कि मोदी सरकार के एक मंत्री ने उन्हें कहा है कि राम मंदिर क़ानून पर 11 दिसंबर को फ़ैसला लिया जा सकता है.
11 दिसंबर को पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के नतीजे आ रहे हैं. चुनाव सर्वेक्षणों में कहा जाता रहा है कि बीजेपी की हालत कुछ सूबों में पस्त है. कुछ जानकार कहते हैं कि अगर मंगलवार को आए नतीजे बीजेपी के विरोध में आते हैं तो राम मंदिर क़ानून के पक्ष में मज़बूत संभावनाएं तैयार हो सकती हैं.
दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह कहते हैं कि जब बाबरी मस्जिद-राम मंदिर टाइटिल सूट सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो सरकार इस मामले पर किसी तरह का क़ानून लाने की चूक नहीं करेगी और "धर्म सभाओं और आरएसएस के बयानों को हिंदू संगठनों की अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिश से अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए."
क्या करेगी कांग्रेस?
संविधान के जानकार ये कहते रहे हैं कि सरकार के पास इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने का अधिकार तो है लेकिन वो फ़ौरन सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज हो जाएगा और कोर्ट उसे रद्द कर देगा.
राम मंदिर पर किसी क़ानून को पास करवाना सरकार के लिए शायद इसलिए भी मुश्किल हो क्योंकि उसे राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं.
लेकिन आरएसएस के एक क़रीबी सूत्र मंदिर निर्माण के लिए क़ानून की मांग को 'शुद्ध राजनीतिक कोशिश बताते हैं, जो सरकार की शह पर हो रही है.' इस मामले में बिल पास न होने की सूरत में मोदी सरकार ये कह पाएगी कि उसने तो कोशिश की लेकिन दूसरे दलों ने साथ नहीं दिया.
राम मंदिर निर्माण पर विधेयक लाने का एक पहलू ये भी है कि ये आने वाले दिनों में बनने वाले राजनीतिक गठबंधन को तय करेगा. इस पूरे मामले में सबसे मुश्किल सॉफ़्ट हिंदूत्व कार्ड खेल रही कांग्रेस के लिए होगा कि वो बिल पर क्या रुख़ अपनाए?
अगर वो विधेयक का विरोध करती है तो बीजेपी कांग्रेस के हिंदू-विरोधी होने के दावे पर और शोर मचाएगी और अगर समर्थन करती है तो वो दल उससे दूरी बना लेंगे जिनके समर्थकों में मुस्लिमों की अच्छी तादाद है.