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मणिपुर में बीजेपी ने कैसे हासिल किया पूर्ण बहुमत?

मात्र दस साल के अंदर शून्य से बहुमत पाने तक का सफर बीजेपी ने कैसे तय किया.

By BBC News हिन्दी
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मणिपुर में जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी नेता
Twitter/BJP4Manipur
मणिपुर में जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी नेता

मणिपुर में सत्तारूढ़ बीजेपी राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल कर कांग्रेस के बाद ऐसा करने वाली दूसरी पार्टी बन गई है. दरअसल 21 जनवरी 1972 को बने मणिपुर में केवल कांग्रेस ने 2012 में 42 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया था. लेकिन अब इस रिकार्ड को बीजेपी ने तोड़ दिया है.

बीजेपी ने इस बार के चुनाव में 32 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि कांग्रेस को महज पांच सीटों पर ही जीत हासिल हुई है. इस लिहाज से जनता दल (यूनाइटेड) ने राज्य में अच्छा प्रदर्शन करते हुए 6 सीटें जीती है.

वहीं मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की अध्यक्षता वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने 7 सीटों पर जीत हासिल की है और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) को पाँच सीटें मिली है. तीन सीटें निर्दलीय को और दो सीटों पर कुकी पीपल्स अलाइअन्स की जीत हुई है.

दस साल में शून्य से बहुमत का सफर

मणिपुर में अगर बीजेपी की एंट्री और पार्टी की शुरुआती राजनीति पर गौर करें तो 2012 के चुनाव में भगवा पार्टी का एक भी विधायक नहीं था लेकिन 2017 में कांग्रेस की 28 सीटों के मुकाबले महज 21 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने प्रदेश में गठबंधन के सहारे सरकार बना ली और पाँच साल शासन करने के बाद अब पूर्ण बहुमत के साथ वापसी की है.

मणिपुर में बीजेपी की राजनीति करने के तरीकों पर नज़र रखने वाले जानकारों की मानें तो बीजेपी ने एक "कॉर्पोरेट-शैली" दृष्टिकोण वाली राजनीति से कांग्रेस की सालों पुरानी पारंपरिक तरीके वाली राजनीति को समाप्त कर दिया है.

वैसे तो मणिपुर में चुनाव को लेकर लोगों में कुछ ख़ास उत्साह देखने को नहीं मिला लेकिन गुरुवार को नतीजे आने के बाद इम्फ़ाल शहर भगवा रंग में रंगा हुआ दिखाई दिया.

बीजेपी को निर्णायक जीत दिलाने के बाद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी एनपीएफ और अन्य समान विचारधारा वाले दलों के साथ "गठबंधन धर्म" को बनाए रखेगी, लेकिन उन्होंने एनपीपी के साथ किसी भी तरह के गठजोड़ से इनकार किया.

एनपीपी और एनपीएफ दोनों बीजेपी सरकार में सहयोगी रहें लेकिन एनपीपी ने 2020 में अस्थायी रूप से बाहर निकलकर बीरेन सिंह सरकार को संकट में डाल दिया था. इसके अलावा एनपीपी के प्रमुख नेता तथा उपमुख्यमंत्री रहें युमनाम जॉयकुमार सिंह के साथ खासकर बीरेन सिंह के मतभेद सार्वजनीक तौर पर सामने आ रहे थे.

हालांकि एनपीएफ ने 2017 (चार सीटें) के अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए इस बार सात सीटें हासिल की है.

मणिपुर में जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी नेता
Twitter/BJP4Manipur
मणिपुर में जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी नेता

पहाड़ी और घाटी के मुद्दों का टकराव

मणिपुर मुख्य रूप से ग़ैर-आदिवासी घाटियों (इंफाल और जिरीबाम) और विभिन्न जनजातियों द्वारा बसी हुई पहाड़ियों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से विभाजित है. यहां हमेशा पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच कई सारे मुद्दों को लेकर टकराव रहा है लेकिन बीजेपी शासन में आने के बाद से पहाड़ी-घाटी की खाई को पाटने के प्रयास किए गए.

यही कारण है कि बीजेपी ने इन दोनों क्षेत्रों में अपने 2017 के प्रदर्शन के मुक़ाबले काफी सुधार किया है.

पार्टी की घाटी की सीटें पांच साल में 16 से बढ़कर 26 हो गईं है और पर्वतीय इलाकों में पांच से छह हो गईं है. जबकि तुलनात्मक रूप से कांग्रेस ने 2017 में 19 सीटों की तुलना में घाटियों में पांच सीटें ही हासिल की है जबकि उसे पहाड़ियों में एक भी सीट (2017 में नौ) नहीं मिली है.

बीजेपी की ख़ास चुनावी रणनीति

मणिपुर में इस तरह के नतीजों पर वरिष्ठ पत्रकार युमनाम रूपचंद्र कहते है, "2017 के मुकाबले बीजेपी की इस बार चुनावी रणनीति बिलकुल अलग थी. अपनी सरकार के दौरान बीजेपी ने एक-दो ऐसे काम किए थे जिसे पार्टी जनता तक ले जाने में सफल रही. असल में कांग्रेस के 15 सालों के शासन में मणिपुर में जो बंद और रास्तो रोको होते थे बीजेपी ने उस समस्या को एक तरह से ख़त्म कर दिया."

"इसके अलावा पहाड़ी और घाटी के बीच जो टकराव था उसे भी काफी हद तक सुलझाया गया. सबसे बड़ी बात कि चुनावी कैम्पैन के दौरान बीजेपी यहां के लोगों को अपने काम के बारे में समझाने में सफल रही."

वो कहते हैं, "एक ऐसा नैरेटिव बनाया गया जिसमें कांग्रेस के 15 साल के शासन की जो उपलब्धियां थी उसे एक तरह से खारिज कर दिया गया. पहाड़ी इलाकों में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सस्पेंशन ऑफ़ ऑपरेशन लागू किया गया जिससे बीजेपी के प्रति लोगों में भरोसा जगा."

"इसके अलावा बीजेपी का चुनावी कैम्पैन एक तरह से "कॉर्पोरेट-शैली" की तर्ज पर दिखा. कांग्रेस ने सशस्त्र बल विशेष अधिकार क़ानून हटाने से लेकर कई लोक लुभावन बातें अपनी चुनावी घोषणापत्र में शामिल की थी पर वो जनता को अपनी तरफ लाने में असफल रही. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी के शीर्ष नेता अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी ने जिस कदर प्रदेश में चुनावी सभाएं की कांग्रेस वैसा कुछ नहीं कर पाई. कांग्रेस के अपने 28 विधायकों में से आधे चुनाव से पहले बीजेपी की तरफ उआ गए जिसके फ़लस्वरूप भगवा पार्टी को बहुमत का आंकड़ा पार करने में मदद मिली.आमतौर पर उत्तर-पूर्वी ये छोटे राज्य उस व्यवस्था के साथ जाते हैं जो केंद्र में शासन करती है."

इस चुनाव में पूर्ण बहुमत ने बीजेपी की इस दुविधा को भी कम कर दिया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा. दरअसल मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी में कम से कम दो अन्य दावेदार भी थे. अगर बीजेपी को 25 से कम सीटें मिलती तो अगले मुख्यमंत्री के चयन को लेकर पार्टी को शायद काफी घमासान का सामना करना पड़ता.

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English summary
How did BJP get absolute majority in Manipur?
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