जानिए क्या रहा है राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के ऐलान का इतिहास
राष्ट्रपति के उम्मीदवार की घोषणा के बारे में क्या है इतिहास, जानिए क्या किया है पूर्व की सरकारों ने
नई दिल्ली। देश के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सत्ताधारी दल भाजपा ने बिना अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा किए हुए विपक्षी दलों के पास मुलाकात करने के लिए पहुंची है। लेकिन इससे पहले के वाकयों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने पिछले दो बार अपने उम्मीदवार की घोषणा करने के बाद ही विपक्ष से इस मुद्दे पर बात की है। 2007 और 2012 पर नजर डालें तो कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी के नाम की घोषणा के बाद ही विपक्ष से मुलाकात करने के लिए पहुंची थी।
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2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी सोनिया से मुलाकात
जिस तरह से मौजूदा सरकार ने राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष को एकजुट लाने की कोशिश की है, ठीक उसी प्रकार 2002 में भी भाजपा सरकार ने एपीजे अब्दुल कलाम के नाम की घोषणा से पहले विपक्षी दलों के पास उनका समर्थन और सुझाव लेने पहुंची थी। उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सहति तमाम कांग्रेस के नेताओं को अपने घर मुलाकात के लिए बुलाया था। 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सोनिया गांधी को मुलाकात के लिए बुलाया था और एपीजे अब्दुल कलाम के लिए समर्थन मांगा था, जिसपर कांग्रेस तैयार हो गई थी। लेकिन सीपीआई, सीपीएम, जनता दल ने लक्ष्मी सहगल को अपना समर्थन दिया था।
2007 में काफी देर में याद आई थी भाजपा की
प्रतिभा पाटिल के नाम की ऐलान यूपीए और लेफ्ट पार्टियों के साथ मुलाकात के बाद किया गया था, सोनिया गांधी ने वाजपेयीजी को फोन नाम के ऐलान के बाद ही किया था, उस वक्त एनडीए की ओर से भैरो सिंह शेखावत उम्मीदवार थे। इस वक्त लेफ्ट पार्टियों ने प्रतिभा पाटिल के नाम पर राय बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, उस वक्त कांग्रेस की पहली पसंद उस वक्त के गृहमंत्री शिवराज पाटिल थे, लेकिन लेफ्ट पार्टी ने इसका विरोध किया, जिसके बाद प्रतिभ पाटिल पर लेफ्ट और यूपी राजी हो गए थे। 2007 और 2012 के समय की राजनीति स्थिति पर नजर डालें तो उस वक्त विपक्ष बंटा हुआ था, शिवसेना और भाजपा महाराष्ट्र में एक साथ थी, लेकिन शिवसेना ने प्रणव मुखर्जी औऱ प्रतिभा पाटिल को अपना वोट दिया था, जबकि जनता दल, जो कि एनडी का समर्थक ता ने भी प्रणव मुखर्जी को अपना वोट दिया था।
2012 में लेफ्ट को कर दिया था किनारे
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने पीए संगमा को समर्थन का ऐलान किया था, उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र में चुनाव जरूरी है, संविधान में ऐसा नहीं कहा गया है कि एकमत से राष्ट्रपति का चयन होना चाहिए, हम कांग्रेस को वॉकओवर नहीं देंगे। ऐसा उस वक्त किया गया जब पार्टी के भीतर प्रणव मुखर्जी को समर्थन देने की मांग उठी थी। माना जा रहा था कि यूपीए के खिलाफ एनडीए इसलिए भी गया था क्योंकि यूपीए ने विपक्ष से नाम का ऐलान करने से पहले राय नहीं मांगी थी। उस वक्त राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा था कि विपक्ष को नाम का ऐलान करने के बाद ही सूचित किया गया है, लोगों के सामने एक ही विकल्प रखा गया का आप हमारा समर्थन कीजिए, कई इसके लिए राजी हो गए और कईयों ने इससे इनकार कर दिया, हमने उनके आदेश का पालन नहीं करने का फैसला लिया है।
ममता-मुलायम ने दिखाए थे तेवर
राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस वक्त यूपी में भी टकराव था, ममता बनर्जी उस वक्त यूपीए का हिस्सा थी, लेकिन उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम और मनमोहन सिंह के नाम को आगे बढ़ाया था, उनका साथ मुलायम सिंह ने भी दिया था, लेकिन ऐन वक्त पर मुलायम सिंह अपनी बात से मुकर गए और उन्होंने यूपी के उम्मीदार को अपना समर्थन देने की बात कही थी। जिसके बाद ममता ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी और उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके ऐलान किया था कि यूपीए का राष्ट्रपति का उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी हैं, जबकि उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदार हामिद अंसारी हैं।