30 साल पहले, 26 जनवरी को क्रिकेट में रचा गया वो इतिहास जो आज भी है कायम
26 जनवरी 1993 को क्रिकेट के इतिहास का वो रोमांचक मैच खेला गया जिसकी बानगी न उससे पहले, न उसके बाद कभी देखी गई.
भारतीय क्रिकेट टीम ने श्रीलंका और न्यूज़ीलैंड से तीन-तीन मैचों की वनडे सिरीज़ क्लीन स्वीप कर ली है. इसके साथ ही उसने टी20 के बाद अब वनडे क्रिकेट की आईसीसी रैंकिंग में भी अपनी बादशाहत कायम कर ली है यानी इस लिस्ट में टॉप पर पहुंच गई है.
अब अगले महीने ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर आ रही है. कंगारुओं के साथ भारतीय टीम चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेलेगी.
इस सिरीज़ को 2-0 या 3-1 से जीतने की सूरत में भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट में भी नंबर-1 बन जाएगी.
ऑस्ट्र्लियाई टीम पिछले 15 टेस्ट मैचों में केवल एक हारी ही है. हालांकि भारत के साथ खेली गई पिछले तीनों सिरीज़ टीम हार गई थी.
लेकिन क्या ऑस्ट्रेलियाई टीम को हरा कर टी20, वनडे के साथ-साथ टेस्ट क्रिकेट में भी भारत अपनी बादशाहत कायम कर पाएगा?
इसका जवाब तो अभी भविष्य में छिपा है लेकिन इस सवाल के बीच चलिए हम ऑस्ट्रेलियाई टीम से जुड़े उस टेस्ट मैच की कहानी को याद करते हैं जिसका नतीजा आज भी टेस्ट मैच में सबसे छोटे अंतर से मिली जीत के रूप दर्ज है.
- ऑस्ट्रेलियाई टीम के भारत दौरे के दौरान दोनों के बीच चार टेस्ट मैचों के अलावा तीन वनडे मैच खेले जाएंगे.
- टेस्ट मैच 9 से 13 फरवरी को नागपुर में, 17 से 21 फरवरी को दिल्ली में, एक से पांच मार्च को धर्मशाला में और 9 से 13 मार्च को अहमदाबाद में होंगे.
- वहीं 17 मार्च को वानखेड़े में, 19 मार्च को विशापत्तनम में और 22 मार्च को चेन्नई में वनडे मैच होंगे.
- भारत की तरफ से टीम की कप्तानी रोहित शर्मा के हाथओं में है, वहीं मेहमान ऑस्ट्रेलिया पैट कमिन्स की कप्तानी में मैदान में उतरेगी.
सबसे कम रन से जीत का रिकॉर्ड
26 जनवरी यानी आज एक यादगार और ऐतिहासिक मैच के 30 साल पूरे हो गए हैं. 1993 में इसी तारीख़ को टेस्ट मैच के इतिहास में सबसे कम रन से जीत का रिकॉर्ड बना था जो आज भी बरकरार है.
आज के दौर में बेशक टी20 और वनडे में आख़िरी गेंद पर और 1 रन से जीतने के कई उदाहरण बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. लेकिन आपको ये जान कर हैरानी होगी कि टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में ऐसा केवल एक ही बार हुआ था.
ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ के बीच एडिलेड में खेले गए उस टेस्ट मैच का फ़ैसला 26 जनवरी 1993 को आया था जिसे वेस्ट इंडीज़ की टीम ने केवल एक रन से जीता था और तब टेस्ट मैचों के इतिहास में सबसे कम रन से जीत का रिकॉर्ड बना था जो आज भी बरकरार है.
तो 26 जनवरी 1993 को एडिलेड टेस्ट में क्रिकेट का ऐसा इतिहास रचा गया था जो न केवल बेहद रोमांचक था बल्कि जिसकी बानगी न उससे पहले न उसके बाद कभी देखी गई.
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वेस्ट इंडीज़ टेस्ट क्रिकेट का स्वर्णिम दौर
आज के दौर में वेस्ट इंडीज़ की जो टीम दिखती है, ठीक उसके उलट इस टीम को 1976 से शुरू हुए उसके स्वर्णिम काल के दौरान हराना बहुत मुश्किल था.
उत्तरी अटलांटिक महासागर और कैरिबियाई सागर से घिरे द्वीप समूहों के खिलाड़ियों से बनी वेस्ट इंडीज़ की टीम 95 वर्षों (1928) से टेस्ट क्रिकेट खेल रही है. अब तक उसने 163 टेस्ट सिरीज़ में से 66 में जीत हासिल की है.
इस कैरिबियाई टीम अपने उस स्वर्णिम काल के दौरान इनमें से 25 टेस्ट सिरीज़ जीती, दो टेस्ट सिरीज़ हारी और नौ ड्रॉ रहे.
ये वो दौर था जब इस चैंपियन टीम की कमान क्लाइव लॉयड से होते हुए रिची रिचर्डसन तक पहुंची थी.
लॉयड वेस्ट इंडीज़ को दो बार वनडे वर्ल्ड कप जिताने वाले कप्तान भी थे. टीम के पास उस दौरान अलग-अलग समय में एक से बढ़ कर एक बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ ही नहीं बल्कि विकेटकीपर और फ़ील्डर भी मौजूद थे.
स्वर्णिम काल के इन वर्षों के दौरान टीम के पास जोएल गार्नर, माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, कर्टले एम्ब्रोज, कर्टने वाल्श, इयान बिशप जैसे ख़ौफ़नाक तेज़ गेंदबाज़ों एक लंबी फेहरिस्त थी, तो बल्लेबाज़ी में लॉयड, सर विवियन रिचर्ड्स, गॉर्डन ग्रिनीज, डेसमंड हेंस, फिल सिमंस, लैरी गोम्स, गस लोगी, ब्रायन लारा, कार्ल हूपर, रिची रिचर्डसन, जेफ़ डुजॉन जैसे विपक्ष की गेंद की धार को कुंद करने वाले बल्लेबाज़ हुआ करते थे.
साठ के दशक से ही क्रिकेट के पटल पर अपनी बादशाहत कायम करने वाली वेस्ट इंडीज़ की टीम ने स्वर्णिम काल के दौरान अपनी क्रिकेट को एक ऐसी ऊंचाई दी जिसकी चर्चा आज तक कायम है.
ये ऐतिहासिक मैच उसी दौर में खेला गया था. हालांकि तब वेस्ट इंडीज क्रिकेट का स्वर्णिम काल अपने ढलान पर था. तब वेस्ट इंडीज़ की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी. जहां एडिलेड में टेस्ट सिरीज़ का दूसरा मुक़ाबला खेला जा रहा था.
1993 में खेले गए एडिलेड टेस्ट में क्या हुआ था?
कंगारुओं के जबड़े से जीत चुरा ले जाने के रिकॉर्ड के रूप में दर्ज उस टेस्ट मैच में वेस्ट इंडीज़ की टीम ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाज़ी करना चुना.
पारी की शुरुआत तो अच्छी हुई लेकिन 84 रन के योग पर एक बार फिल सिमंस और डेसमंड हेंस की सलामी जोड़ी टूट गई तो मध्य क्रम में ब्रायन लारा और जूनियर मरे की बल्लेबाज़ी को छोड़ कर और कोई बल्लेबाज़ नहीं चला. कैरिबियाई टीम ने लड़खड़ाते हुए रन 252 का स्कोर खड़ा किया. ऑस्ट्रेलिया की ओर से मर्व ह्यूज ने पांच विकेट लिए.
इसके जवाब में कंगारुओं ने स्टीव वॉ (42 रन) और मर्व ह्यूज के 43 रनों की बदौलत 213 रन बनाए.
पहली पारी के आधार पर वेस्ट इंडीज़ को मामूली बढ़त मिल गई लेकिन दूसरी पार में कैरिबियाई टीम पूरी तरह से लड़खड़ा गई और केवल 146 रन ढेर हो गई. इसमें से क़रीब आधे (72 रन) तो केवल कप्तान रिचर्डसन ने बनाए.
चार साल बाद टीम में वापसी कर रहे टिम मे ने अपनी 41 गेंदों के दौरान केवल 9 रन देते हुए पांच विकेट लिए तो क्रेग मैक्डरमॉट ने तीन विकेट चटकाए.
अब ऑस्ट्रेलिया के सामने जीत के लिए महज 186 रन का लक्ष्य था. ऑस्ट्रेलियाई टीम के ओपनर्स डेविड बून (शून्य) और मार्क टेलर (7 रन) जल्दी जल्दी आउट हो गए. 26 रन की पारी खेल कर मार्क वॉ भी आउट हो गए. जस्टिन लेंगर ने अर्धशतक जमाया लेकिन 144 रन बनने तक 9 खिलाड़ी आउट हो गए.
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ऑस्ट्रेलिया की टीम के लिए जीत अब भी 42 रन दूर थी. ऐसे में एक छोर पर टिम मे और दूसरी पर क्रेग मैक्डरमॉट डट गए, दोनों बेहद संभल संभल कर खेलते हुए स्कोर को 184 रन पर ले गए.
9वें विकेट की साझेदारी में 40 रन बन चुके थे तो इस उम्मीद में कि ऑस्ट्रेलिया जीत जाएगा, स्टेडियम में वाल्ज़िंग मटिल्डा के गाने बजाए जाने लगे.
अब जीत केवल दो रन दूर थी और गेंदबाज़ी का छोर कर्टनी वाल्श संभाल रहे थे तो बल्लेबाजी का सिरा क्रेग मैक्डरमॉट के पास था.
वाल्श गेंदबाज़ी कर रहे थे. उनकी अगली गेंद मैक्टरमॉट के ग्लव्स से लगते हुए विकेट के पीछे चली गई और अंपायर ने अपनी ऊंगली खड़ी कर दी. इसके साथ ही हार के मुहाने पर खड़ी वेस्ट इंडीज़ की टीम ने 1 रन से मिली इस जीत से सिरीज़ में वापसी की और अगला मैच जीत कर सिरीज़ पर क़ब्ज़ा भी कर लिया.
वॉल्श ने मैक्डरमॉट को वो गेंद बाउंसर डाली थी. अंपायर का वो फ़ैसला आज भी विवादित करार दिया जाता है क्योंकि टीवी रीप्ले पर यह स्पष्ट था कि गेंद और ग्लव्स के बीच पर्याप्त अंतर था.
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क्या बोले बॉर्डर और रिचर्डसन?
मैकडरमॉट को आउट देने का फ़ैसला ऑन फील्ड ऑस्ट्रेलियाई अंपायर डेरेल हेयर ने दिया था.
हालांकि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने उनके इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील भी की लेकिन डेरेल हेयर ने अपने फ़ैसले में कोई बदलाव नहीं किया.
टीवी पर एक्शन रीप्ले में यह साफ़ दिखा कि वाल्श की गेंद मैकडरमॉट के हाथ को बिना छुए विकेट के पीछे गई थी.
मैच के बाद ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलेन बॉर्डर ने खेल भावना का पूरी परिचय देते हुए अंपायर डेरेल के फ़ैसले पर कोई सवाल नहीं उठाया. बॉर्डर ने कहा, "मैच के फ़ैसले की तरह ही ये बहुत ही नजदीक़ी मामला था. आप क्या कह सकते हैं- एक रन? दिन की शुरुआत में मैं बहुत आश्वस्त था कि 186 रन तो बन ही जाएगा."
वहीं कैरिबियाई टीम के कप्तान रिचर्डसन ने कहा, मुझे लग रहा था कि वाल्श अपनी उस गेंद पर विकेट ले लेंगे. मैंने उम्मीद बिल्कुल ही नहीं छोड़ी थी."
दोनों कप्तानों ने उस मैच के हीरो रहे वेस्ट इंडीज़ के गेंदबाज़ की तारीफ़ में कोई कसर नहीं छोड़ी.
मैच का फ़ैसला बेशक कर्टने वाल्श की गेंद पर आया लेकिन ऑस्ट्रेलियाई पारी के पतन का कारण रहे एम्ब्रोस जिनकी 10 गेंदों ने उस टेस्ट मैच में न केवल 10 कंगारू बल्लेबाज़ों को पवेलियन की राह दिखाई बल्कि उस दिन के खेल में लंच के बाद अपनी 19 गेंदों के दरम्यान स्टीव वॉ, मार्क वॉ और मर्व ह्यूज को आउट किया.
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डेरेल हेयर अध्याय की शुरुआत
यह मैच इस लिहाज से भी यादगार रहा कि इसी के साथ डेरेल हेयर के विवादास्पद अंपायरिंग करियर की शुरुआत भी हुई थी.
1992 में अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट में अंपायर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले डेरेल हेयर अपने कई विवादास्पद फ़ैसलों के लिए चर्चा में रहे और ऐसी नौबत भी आई कि आईसीसी को उन्हें अंपायरिंग से हटाना भी पड़ा.
ये वो ही अंपायर हैं जिन्होंने श्रीलंका के स्टार गेंदबाज़ मुथैया मुरलीधरन की गेंदबाज़ी एक्शन को ग़लत ठहराया था और उनकी गेंद को तब तक नो बॉल करार देते रहे जब तक कि कप्तान अर्जुन रणातुंगा ने उन्हें गेंदबाज़ी से हटा नहीं लिया. तब डेरेल हेयर ने मुरलीधरन के तीन ओवर में सात गेंदों को चकिंग के आरोप में नो बॉल दिया था.
उस मैच के दूसरे अंपायर न्यूज़ीलैंड के स्टीव डन को मुरलीधरन के एक्शन में कोई परेशानी नहीं दिखी. हेयर के मुरलीधरन की गेंदों पर लिए गए फ़ैसलों से कप्तान अर्जुन रणतुंगा ख़फ़ा हो गए और टीम को मैदान से बाहर ले गए. हालांकि वो टीम को दोबारा मैदान पर लेकर लौटे भी.
2006 में डेरेल हेयर ने पाकिस्तान की टीम पर गेंद से छेड़छाड़ का आरोप लगाया और उस पर पांच रन जुर्माना लगा दिया. पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच ओवल में खेले गए इस (चौथे) टेस्ट मैच में पाकिस्तानी टीम ने चायकाल के बाद मैदान पर नहीं उतरने का फ़ैसला किया.
तब इस विवाद को सुलझाने के लिए घंटों कोशिश की और पाकिस्तान की टीम फिर मैदान में उतरी भी लेकिन तब तक अंपायर ने इंग्लैंड को विजेता घोषित कर दिया था.
इस टेस्ट मैच के बाद आईसीसी ने उन्हें अंपायरिंग से हटा लिया और हेयर अगले 21 महीने अंपायरिंग से बाहर रहे. फिर 2008 में उन्होंने वापसी की लेकिन केवल दो मैचों के बाद उन्होंने इसे (अंपायरिंग को) हमेशा के लिए छोड़ दिया.
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एडिलेड टेस्ट- एक अहम मोड़
क्रिकेट एंथोलॉजी ऑफ़ द एशेज में साइमन ह्यूज लिखते हैं, "वेस्ट इंडीज़ के इस ऑस्ट्रेलियाई दौरे में एडिलेड टेस्ट का बहुत महत्व है, क्योंकि ये वो मौक़ा था जब कैरिबियाई टीम की बादशाहत को एक बहुत बड़ी चुनौती मिली थी."
ऑस्ट्रेलिया 1987 के वनडे वर्ल्ड कप को अपने नाम कर चुका था और 1992 का वनडे वर्ल्ड कप आयोजित कर चुका था. उसकी टीम लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी.
तब कैरिबिाई खिलाड़ी घरेलू मैदानों पर शेर तो थे ही, विदेशी धरती पर भी उनकी तूती बोल रही थी.
ऐसे में 1993 का ऑस्ट्रेलियाई दौरा वेस्टइंडीज की बादशाहत को चुनौती देने के लिहाज से बेहद अहम मोड़ माना जा सकता है.
वैसे वनडे वर्ल्ड कप में 1983 में भारत और 1987 में ऑस्ट्रेलिया जीत दर्ज कर चुका था लेकिन इस दौरान टेस्ट क्रिकेट में वेस्ट इंडीज़ की टीम एक भी सिरीज़ नहीं हारी थी.
लेकिन 1993 का ऑस्ट्रेलियाई दौरा उनकी बादशाहत को चुनौती देने वाला रहा. क्योंकि इसी ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 1995 में क़रीब 15 साल बाद वेस्ट इंडीज़ को टेस्ट सिरीज़ में हार का सामना करना पड़ा और इसके साथ ही क्रिकेट के एक नए बादशाह का जन्म हुआ.
अब ठीक वैसे ही ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर आ रही है और टेस्ट क्रिकेट में वो नंबर-1 हैं जबकि भारतीय टीम नंबर-2 पर और सिरीज़ में इस लेख में बताए तरीकों से मिली हार से कंगारू टीम की बादशाहत चली जाएगी और ये वो पल होगा जब भारतीय टीम क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में रैंकिंग का बादशाह होगा.
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