गुजरात: 'मोदी काल में हुए तीन एनकाउंटर फ़र्ज़ी'
हाजी इस्माइल वाले दूसरे फर्जी मुठभेड़ के मामले में मानिटरिंग कमेटी के सामने पुलिस ने कोई बयान नहीं रखा, जिससे पुलिस पर सवाल उठता है. कमेटी के सामने पेश किए गए फॉरेंसिक सबूतों में भी खामियां पाई गईं.
समीर ख़ान वाला तीसरा फर्जी एनकाउंटर, जैसा कि बेदी कमेटी ने बताया, 2002 में किया गया था. पुलिस ने उसे जैश-ए-मोहम्मद आतंकवादी बताया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत वीवीआईपी को मारने के लिए एक अपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप भी लगाया था.
गुजरात में 2002 से 2006 के बीच 17 मुठभेड़ों की जांच करने वाली जस्टिस (रिटायर्ड) हरजीत सिंह बेदी कमेटी को राज्य के तत्कालीन नेता या किसी हाई-प्रोफ़ाइल पदाधिकारी के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला है.
17वें लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए ये बड़ी राहत कही जा सकती है.
हालांकि, कमेटी ने कहा है कि तीन मामलों में कुछ तो गड़बड़ है और इन मामलों से जुड़े पुलिस अधिकारियों की आगे जांच होनी चाहिए. कमेटी ने यह सिफ़ारिश भी की है कि इन तीन मामलों में मारे गए तीन लोगों के परिजनों को मुआवज़ा भी दिया जाना चाहिए.
2002 से 2006 से बीच गुजरात में 17 एनकाउंटर हुए थे और उस समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई दो याचिकाओं में दावा किया गया था कि पुलिसकर्मियों द्वारा किए गए फ़र्जी एनकाउंटरों में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है और कुछ मौतें तो उनकी हुई हैं जो पहले से ही पुलिस हिरासत में थे.
ये याचिकाएं दिवंगत पत्रकार बीजी वर्गीज़, जाने-माने गीतकार जावेद अख़्तर और मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने 2007 में दायर की थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने गठित की थी कमेटी
2012 में दो याचिकाकर्ताओ- अख़्तर और वर्गीज़ की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एचएस बेदी की अध्यक्षता में एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई गई और उन्हें 2002 से 2006 के बीच मुठभेड़ों में हुई मौतों की जांच करने के लिए कहा गया.
दोनों याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से गुज़ारिश की थी कि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) गठित की जाए या फिर राज्य में हुई फ़र्ज़ी मुठभेड़ों की जांच सीबीआई के माध्यम से करवाई जाए.
बेदी कमेटी ने फ़रवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट जमा की थी.
नौ जनवरी को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुजरात सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि कमेटी की रिपोर्ट की गोपनीयता को बरकरार रखा जाए, लेकिन साथ ही ये भी आदेश दिया कि रिपोर्ट की प्रति जावेद अख्तर समेत अन्य याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध कराई जाए.
रिपोर्ट में पाया गया था कि 17 में से तीन मुठभेड़ें जांच में फ़र्जी निकलीं. कमेटी ने सिफ़ारिश की थी कि इन मामलों में शामिल रहे पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.
बेदी कमेटी की रिपोर्ट की एक प्रति बीबीसी के पास उपलब्ध है. इसमें लिखा गया है, "सबूतों और गवाहों के बयानों के आधार पर समीर ख़ान, हाजी इस्माइल और कासिम जाफ़र हुसैन को फ़ेक एनकाउंटर में मारा गया."
अब इन मामलों में क्या होगा
कमेटी ने नौ पुलिस अधिकारियों पर भी आरोप तय किए हैं जिनमें तीन इंस्पेक्टर रैंक के अफ़सर हैं. हालांकि कमेटी ने किसी भी आईपीएस अधिकारी पर मुक़दमा चलाए जाने की सिफ़ारिश नहीं की है.
जानी-मानी क्रिमिनल लॉयर गीता लूथरा ने बीबीसी से कहा, "बेदी कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि तीन मुठभेड़ें फ़र्ज़ी पाई गई हैं और सिफ़ारिश की गई है कि इन मामलों में से जुड़े पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक्शन लिया जाए. यानी इन तीन मामलों की आगे जांच होनी है."
बेदी कमेटी की रिपोर्ट ने गुजरात के पूर्व डीजीपी आर बी श्रीकुमार द्वारा जताई गई गंभीर चिंताओं को ख़ारिज किया है कि मुस्लिम चरमपंथियों की निशाना बनाकर की गई हत्याओं में राज्य के प्रशासन की भी मिलीभगत थी.
समिति की रिपोर्ट में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की क्रमबद्ध हत्या नहीं पाई गई. इसमें कहा गया है कि जो लोग मुठभेड़ों में मारे गए, वे विभिन्न समुदायों से थे, यह कहते हुए कि उनमें से अधिकांश का आपराधिक रिकॉर्ड था.
पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन ने बीबीसी को बताया कि इस रिपोर्ट की अविश्वसनीयता का कोई कारण नहीं था.
परासरन कहते हैं, "बेदी कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसलमानों को लक्षित नहीं किया गया है, यह एक अच्छी बात है, क्योंकि यह आरोप लगाया गया था कि इसी समुदाय के लोगों को टारगेट किया गया था. अब याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी समेत विभिन्न पक्षों की याचिका को सुप्रीम कोर्ट सुनेगा."
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तीन फर्जी मुठभेड़ मामले क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ़्ते आदेश दिया था कि बेटी कमेटी की रिपोर्ट को संबंधित पक्षों और याचिकाकर्ताओं के साथ साझा किया जाए और बेटी कमेटी की रिपोर्ट/निष्कर्षों को गोपनीय रखने के लिए गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया.
बेदी कमेटी ने निष्कर्ष निकाला कि ये तीन मामले वास्तविक नहीं जान पड़ते और उन्होंने सिफारिश की कि उन मामलों से जुड़े पुलिस अधिकारियों की जांच की जाए.
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सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट में उन तीन मामलों का संक्षिप्त रूप इस प्रकार है:
कासिम जाफर को 2002 में पुलिस हिरासत में कथित रूप से पीट पीट कर मार डाला गया था.
इसे जस्टिस बेदी कमेटी ने 'फर्जी मुठभेड़ों में से एक' कहा.
समिति ने कहा, गवाहों ने कमेटी के सामने यह बताया कि उन्होंने पुलिस को लोहे की छड़, साड़ियां और रस्सी ले जाते देखा था.
जस्टिस बेदी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "पुलिस अधिकारियों ने मृतक और उसके साथियों को अपराधियों के रूप में डब करने का प्रयास भी सफल नहीं हुआ क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिसमें यह साबित हो सके कि वो अपराध में संलिप्त थे. इस तरह 13 अप्रैल 2006 को उन्हें रॉयल होटल से हिरासत में लेना उचित नहीं ठहराया जा सकता."
21 नवंबर 2013 को दी गई कमेटी की रिपोर्ट में मृतक की पत्नी और बच्चों को मुआवजे के रूप में 14 लाख रुपये दिये गए थे.
हाजी इस्माइल वाले दूसरे फर्जी मुठभेड़ के मामले में मानिटरिंग कमेटी के सामने पुलिस ने कोई बयान नहीं रखा, जिससे पुलिस पर सवाल उठता है. कमेटी के सामने पेश किए गए फॉरेंसिक सबूतों में भी खामियां पाई गईं.
समीर ख़ान वाला तीसरा फर्जी एनकाउंटर, जैसा कि बेदी कमेटी ने बताया, 2002 में किया गया था. पुलिस ने उसे जैश-ए-मोहम्मद आतंकवादी बताया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत वीवीआईपी को मारने के लिए एक अपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप भी लगाया था.
इसके अलावा, पैनल ने समीर के परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजा भी दिया है.