गुजरात चुनाव: आख़िर पटेलों ने वोट किसे दिया?
कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा, लेकिन स्पष्ट बहुमत जीत तक क्यों नहीं पहुंची?
गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजों का अंदाज़ा देने वाले सभी एग्ज़िट पोल में भाजपा को जीत या बड़ी जीत की तरफ़ जाते दिखाया गया था.
सोमवार सवेरे ईवीएम खुली तो अंदाज़ा हो गया कि भाजपा के लिए जीत की राह बहुत आसान नहीं है.
22 साल से गुजरात पर राज कर रही भाजपा कांग्रेस से आगे दिख रही है, लेकिन राहुल गांधी की अगुवाई में दमदार तरीके से लड़ी कांग्रेस इस हार में अपनी जीत देख रही है.
राहुल और त्रिमूर्ति
पहली बार उसने पूरा चुनाव राहुल गांधी और उनके नए साथियों (हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर) के दम पर लड़ा और अपने क्षेत्रीय नेताओं को दूर ही रखा.
ऐसा अंदाज़ा था कि आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा सरकार से बेहद ख़फ़ा चल रहा पटेल समुदाय खेल पलट देगा. हार्दिक लगातार भाजपा को निशाना बना रहे थे और उनकी हर रैली में काफ़ी भीड़ जुट रही थी.
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ये सवाल खड़ा होना लाज़िमी है कि अगर किसान, कारोबारियों के अलावा पटेल समुदाय भी भाजपा से नाराज़ था, ऐसे में भाजपा फिर भी कांग्रेस से आगे निकलने में कैसे कामयाब हुई?
पटेलों के वोट बंटे?
पटेलों ने आख़िर किसे वोट दिया? क्या हार्दिक, पटेलों के वोट कांग्रेस के खाते में ले जाने में कामयाब रहे? क्या पटेलों के वोट बंट गए? इन सवालों के सटीक जवाब तो सारे आंकड़े साफ़ होने के बाद पता चलेगा, लेकिन शुरुआती रुझान क्या कह रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिवम विज ने बीबीसी हिन्दी से बातचीत में साफ़ किया कि गुजरात में जब वो घूम रहे थे तो साफ़ था कि भाजपा सरकार बचाने में कामयाब रहेगी, लेकिन उसकी सीटें कम ज़रूर होंगी. और यही हुआ.
उन्होंने कहा, ''दरअसल, गुजरात के कई तबकों को भाजपा को ये संदेश देना था कि उनका ख़्याल रखा जाए. कांग्रेस जीत नहीं रही थी और जनता में उसने ये संदेश भी नहीं दिया कि वो बदलाव लाने का दमखम रखती है. उसने मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा भी सामने नहीं रखा. और इसका नुकसान भी हुआ.''
कांग्रेस को कुछ फ़ायदा?
हार्दिक पटेल की रैलियों में इतनी भीड़ जुट रही थी, फिर वो वोट में बदलती क्यों नहीं दिखी? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ''पटेल बहुल सीटों पर भाजपा का वोट घटा है और कांग्रेस का थोड़ा बढ़ा है.''
''सौराष्ट्र और कच्छ में आप देखेंगे कि पटेलों के वोट का फ़ायदा कांग्रेस को हुआ है. लेकिन सूरत और अहमदाबाद जैसे शहरों में ऐसा नहीं हुआ. किसानों से जुड़े मुद्दों, जीएसटी, नोटबंदी और पटेलों में नाराज़गी के बावजूद भाजपा शहरी इलाकों में जीत रही है.''
उन्होंने कहा, ''जब मैं गुजरात में घूम रहा था तो 10 में से 8 पटेल भाजपा की जीत की बात कर रहे थे. और पटेल वोट शहरी इलाकों में कांग्रेस की तरफ़ नहीं गए. ये हार्दिक की लोकप्रियता थी, लेकिन कांग्रेस की नहीं थी.''
दलित किस तरफ़ गए?
''दलित पहले से कांग्रेस के साथ थे, ऐसे में उस मोर्चे पर कुछ ख़ास बदलना नहीं था. और जिग्नेश मेवाणी जैसे दूसरे नेताओं की बात करें तो अपने इलाके के बाहर उनकी लोकप्रियता कुछ ज़्यादा नहीं थी.''
भाजपा को इस बात से राहत मिल सकती है कि वो सरकार बचाती दिख रही है, लेकिन साथ ही उसका वोट शेयर बढ़ना भी अच्छी ख़बर है.
विज ने कहा, ''लेकिन ये नतीजे उसके लिए चिंता भी हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए इसमें अहम संदेश छिपा है. उन्होंने 150 से ज़्यादा सीटों का लक्ष्य रखा था. अगले साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों को देखें तो उस हिसाब से भाजपा को 162 सीटें जीतनी बनती थी.''
तीन साल पहले का करिश्मा कहां?
''ऐसे में ये साफ़ है कि भाजपा गुजरात में 2014 का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई है. असल में हमेशा की तरह गुजरात के शहरों ने भाजपा को बचाया है. सौराष्ट्र जैसे इलाकों में किसान नाराज़ थे, रोज़गार नहीं हैं और खेती से कमाई घट रही है, वहां भाजपा को चुनौती मिली है.''
लेकिन दूसरे दौर के मतदान से पहले मोदी ने चुनाव प्रचार का रुख़ मोड़ा जिससे भाजपा को मदद मिली.
दूसरी ओर, इन चुनावों में पटेलों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हार्दिक पटेल का इन नतीजों पर क्या कहना है?
हार्दिक क्या बोले?
उन्होंने कहा, ''हमारी जो बात थी वो हमारी नहीं, जनता के लिए थी. विपक्षी दलों को ईवीएम हैक के ख़िलाफ़ एकजुट होना चाहिए. अगर एटीएम हैक हो सकता है तो ईवीएम क्यों हैक नहीं हो सकता.''
हार्दिक ने कहा, ''बेरोज़गारी के मुद्दे पर लड़ाई जारी रहेगी. हम जेल जाने के लिए तैयार हैं. गुजरात के अंदर ईवीएम टैम्परिंग करके जीत हासिल की है.''
''पाटीदार इलाकों में बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट डाले गए थे. जो लोग कहते हैं कि हार्दिक का आंदोलन नहीं चला, बता दूं कि ये मेरी अकेले की लड़ाई नहीं है.''