गोवा विधानसभा चुनाव: बीजेपी क्या जीत की हैट्रिक लगा पाएगी
गोवा ने बीते दो साल के दौरान कई बड़े राजनीतिक उतार चढ़ाव देखे हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है.
गोवा विधानसभा की 40 सीटों के लिए सोमवार को वोट डाले जा रहे हैं. पिछले 10 साल से राज्य की सत्ता में रही बीजेपी को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की ग़ैर-मौजूदगी में इस चुनाव में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
इस वक़्त देश के पाँच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं. छोटा राज्य होने के बाद भी गोवा का चुनावी समीकरण बेहद दिलचस्प बन गया है, लिहाजा लोगों की नज़रें यहाँ भी टिकी हैं.
बीबीसी मराठी ने शनिवार को चुनाव प्रचार थमने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों और पत्रकारों से ट्विटर स्पेस के ज़रिए राज्य के चुनावी समीकरण को समझने की कोशिश की.
दरअसल, बीते दो साल के दौरान गोवा ने कई बड़े राजनीतिक उतार चढ़ाव देखे हैं. इनके बीच लोगों का मानना है कि इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है.
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गोवा की स्थिति और मुद्दे
गोवा में 40 विधानसभा सीटें हैं. पाँच साल पहले 2017 के चुनाव के दौरान भी किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था लेकिन बीजेपी ने संख्या बल जुटाकर सरकार बना ली थी.
तब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर को बीजेपी का झंडा फहराने के लिए एक बार फिर गोवा लौटना पड़ा. पर्रिकर को वापस गोवा भेजकर भाजपा राज्य में सत्ता कायम रखने में सफल रही.
2017 में राज्य में 17 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. लेकिन पर्रिकर ने क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के साथ गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. लेकिन पर्रिकर के निधन के बाद गोवा में कई तरह की राजनीतिक हलचल देखने को मिली.
पर्रिकर की मृत्यु के बाद, बीजेपी ने सत्ता बनाए रखने के लिए और भी आक्रामक तरीक़ा अपनाया और यह निश्चित किया कि कांग्रेस बीजेपी को सत्ता से बेदखल नहीं कर सके.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों और वरिष्ठ पत्रकारों का दावा है कि पिछले पाँच वर्षों में गोवा में जिस तरह की राजनीतिक जोड़ तोड़ देखने को मिली उन सबका असर मौजूदा चुनाव पर देखने को मिल रहा है.
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'धार्मिक एजेंडा कामयाब नहीं होता'
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संदेश प्रभुदेसाई ने गोवा की राजनीति पर 'अजब गोवा की ग़ज़ब राजनीति' नाम से एक किताब लिखी है.
बीबीसी मराठी के ट्विटर स्पेस में उन्होंने बताया, "भाजपा गोवा में सत्ता की हैट्रिक लगाना चाहती है. लेकिन हिंदुत्व या किसी अन्य धर्म के एजेंडे के साथ गोवा में सत्ता में आना मुश्किल है. यही वजह है कि गोवा भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होने जा रहा है."
गोवा में 25 प्रतिशत ईसाई आबादी है और 67 प्रतिशत हिंदू हैं. बावजूद इसके संदेश प्रभुदेसाई बताते हैं कि गोवा की भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ऐसी रही है कि यहाँ बीजेपी का धार्मिका एजेंडा कामयाब नहीं होता.
दरअसल, गोवा में सरकार बनाने के लिए दोनों आबादी समूह का समर्थन ज़रूरी है. संदेश प्रभुदेसाई के मुताबिक़ पिछले कई चुनावों से ये ज़ाहिर होता रहा है.
प्रभुदेसाई कहते हैं, "बीजेपी जब 2012 में सत्ता में आई तो 21 सीटों में पर्रिकर के पास 10 ईसाई विधायक थे. 2017 में 13 एमएलए में से सात ईसाई विधायक थे. पर्रिकर ने हिंदुत्व के एजेंडे का इस्तेमाल किया था, लेकिन उन्होंने नरम हिंदुत्व का इस्तेमाल किया था. बाद में उन्होंने सुशासन का मुद्दा उठाया. इसलिए उनके पास समर्थन था."
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दलबदल का असर
वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी ने कहा कि गोवा की चुनावी पृष्ठभूमि में टू प्लस टू न केवल चार हो सकता है, बल्कि छह या शून्य भी हो सकता है.
उनके मुताबिक़ दूसरी पार्टी से बीजेपी में शामिल होने वालों को देखते हुए महाराष्ट्र और गोवा की तुलना करना संभव नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी में शामिल हुए नेता बड़े परिवार के थे. वह अपने दम पर चुनाव जीत सकते थे जबकि गोवा के हालात बिल्कुल अलग हैं.
सूर्यवंशी साउथ गोवा का उदाहरण देते हैं. यहाँ के सालसेट इलाक़े की कुछ विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के टिकट पर चुने गए विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
सूर्यवंशी कहते हैं, "लोगों के साथ इस मामले पर चर्चा करने के बाद, यह महसूस हुआ कि यह एक ईसाई बहुल निर्वाचन क्षेत्र है. इसलिए विधायकों को पता था कि यहाँ के मतदाता भाजपा को वोट नहीं देंगे, अब वे निर्दलीय खड़े हैं."
सुधीर सूर्यवंशी कहते हैं कि गोवा के 'मतदाता मूर्ख नहीं.' दल बदल करने वाले उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ यहां काफ़ी ग़ुस्सा है.
लेकिन यह बात गोवा के मतदाता भी जानते हैं और ऐसे उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं, जो दलबदल कर रहे हैं.
'कार्यकर्ता हैं नाराज़'
संदेश प्रभुदेसाई के मुताबिक़ किसी भी पार्टी के चुनाव जीतने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक उसका काडर होता है, लेकिन गोवा में बीजेपी को अपने ही काडर की नारज़गी का सामना करना पड़ रहा है.
गोवा में 2017 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. उसके बाद जिस तरह से राज्य में बीजेपी की स्थिति में बदलाव हुआ है, उसका आकलन करते हुए प्रभुदेसाई कहते हैं, 'राज्य की 40 विधानसभा सीटों में 30 सीटें ऐसी हैं जिन पर बीजेपी कभी ना कभी चुनाव जीत चुकी है और इन 30 सीटों में 20 पर कांग्रेस से उम्मीदवार खड़े हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो वर्तमान बीजेपी कांग्रेस के साथ है.'
प्रभुदेसाई ने कहा, "इसके चलते बीजेपी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया गया है और इससे वे नाराज हैं. मैंने ऐसे कार्यकर्ताओं से बात की है. कार्यकर्ताओं को लगता है कि उनकी पार्टी तभी पुनर्जीवित होगी जब बीजेपी को कांग्रेसियों द्वारा उखाड़ फेंका जाएगा."
उत्पल पर्रिकर और अन्य मुद्दे
गोवा वासियों के लिए मनोहर पर्रिकर से एक भावनात्मक जुड़ाव रहा है. हालांकि, बीजेपी ने उनके बेटे उत्पल पर्रिकर को टिकट देने से इनकार कर दिया.
सुधीर सूर्यवंशी इसे लेकर कहते हैं कि भूकंप के झटके के बाद भी कई झटके महसूस होते हैं.
उन्होंने कहा, "बीजेपी कह रही है कि पार्टी में वंशवाद के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन लोग राणे या अन्य का उदाहरण देकर इस मुद्दे को भी ख़ारिज कर रहे हैं. नतीजतन पर्रिकर को मानने वाला समूह नाराज़ है."
सूर्यवंशी कहते हैं, "गोवा में हार-जीत का अंतर बहुत कम होता है. कुछ सीटों पर 500 या 100 मतों से फैसला होता है. इसलिए, अगर इस भावना के कारण 100-500 मतों का नुकसान होता है तो स्थिति बदल सकती है और यह एक चेतावनी की घंटी है."
वहीं संदेश प्रभुदेसाई के मुताबिक़, 'मौजूदा हालात में बीजेपी और अल्पसंख्यक एक साथ नहीं आ सकते और इसमें चर्च की सीधी भूमिका रही है. इसलिए यह चुनाव भाजपा के लिए मुश्किल होने वाला है.'
गोवा में कोविड महामारी के दौरान 3500 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. उस समय ऑक्सीजन की कमी का बड़ा मुद्दा बना था. विश्लेषकों का मानना है कि इससे भी मतदाताओं में नाराज़गी है.
वोटों के बँटवारे से बीजेपी का फ़ायदा?
गोवा एक छोटा राज्य है. इस बार राज्य में आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां भी मैदान में हैं.
क्रांतिकारी गोवा पार्टी भी चुनाव में हैं. ऐसे में उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से मतदाताओं के बँटने की संभावना भी है. हालांकि संदेश प्रभुदेसाई ऐसा नहीं मानते.
उनके मुताबिक़, "ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. यहाँ पहले भी तृणमूल, शिवसेना और एनसीपी ने ऐसा प्रयास किया था. लेकिन इसका ज़्यादा असर नहीं देखने को मिला."
संदेश प्रभुदेसाई के मुताबिक़, 'यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि साल 2012 के बाद से, स्थानीय मतदाताओं ने मतों में बिखराव रोका है. इस बार भी इसका असर दिखेगा."
लेकिन राज्य में असमंजस की स्थिति लगातार बनी हुई थी, किसी एक पक्ष में हवा का कोई झुकाव नहीं दिखा है. ऐसे में स्विंग मतदाताओं का वोट किधर जाता है, यह अहम होगा.
कुल मिलाकर, गोवा का चुनाव काफ़ी अनिश्चित माना जा रहा है, कोई यह दावा नहीं कर रहा है कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी, लेकिन हर कोई यह ज़रूर मान रहा है कि बीजेपी के लिए हैट्रिक लगाना बेहद मुश्किल चुनौती है.
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