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गंगा भी हमेशा नहीं बहेगी ? गंगोत्री ग्लेशियर 87 वर्षों में 1,700 मीटर पिघला, शोध में भविष्य की बात पता चली

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देहरादून, 22 सितंबर: करोड़ों भारतीयों के लिए जीवनदायिनी कलकल-अविरल बहती पवित्र गंगा को लेकर एक बहुत बड़ा शोध किया गया है। मूल बात ये है कि अगर जलवायु परिवर्तन की स्थिति बरकरार रही तो गंगाजल पर भी भविष्य में ब्रेक लगने की आशंका पैदा हो चुकी है। इसकी वजह ये है कि गंगोत्री ग्लेशियर बहुत ही तेजी से पिघलने लगा है। गंगा नदी का यही ग्लेशियर मूल स्रोत है। यूं तो ग्लेशियर पिघलने की घटना लंबे समय से चल रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस रफ्तार में यह पिघलने लगा है, वह भविष्य के लिए खतरे की घंटी है!

गंगोत्री ग्लेशियर 87 वर्षों में 1,700 मीटर पिघला

गंगोत्री ग्लेशियर 87 वर्षों में 1,700 मीटर पिघला

पवित्र गंगा नदी उत्तराखंड के हिमालय के जिस गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है, उसको लेकर एक रिसर्च में बहुत ही खतरनाक जानकारी मिली है। यह शोध देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमलायन जिओलॉजी की ओर से किया गया है। इसमें पाया गया है कि साल 1935 से लेकर 2022 के बीच यानी कुल 87 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर 1,700 मीटर पिघल चुका है। भारत में गंगा की सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं है। यह सच्चाई में जीवनदायिनी नदी है। यह करीब 2,500 किलो मीटर तक सदियों से जो अविरल-कलकल बहती रही है, उसके भरोसे आज करीब 40 करोड़ की आबादी निर्भर है। ऐसे में इस पवित्र गंगाजल के मूल स्रोत में करीब पौने दो किलो मीटर की कमी भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैज्ञानिक साक्ष्य भी मिल चुके हैं कि भारत की धरती पर कभी सरस्वती नदी भी बहा करती थी, जो पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है और उसकी मौजूदगी के निशान तलाशने पड़ रहे हैं।

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हाल के वर्षों में बहुत ही तेजी से पिलने लगा है गंगोत्री ग्लेशियर

हाल के वर्षों में बहुत ही तेजी से पिलने लगा है गंगोत्री ग्लेशियर

87 साल में 1,700 मीटर सिर्फ यह आंकड़ा देखने में कम लग सकता है। लेकिन, जब शोध के विस्तार में जाएंगे तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी! क्योंकि, विभिन्न शोध से पाया गया कि 1935 से लेकर 1996 तक तो औसतन गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 20 मीटर पिघला, लेकिन उसके बाद यह बढ़कर 38 मीटर सालाना औसत से पिघलना शुरू हो गया था। लेकिन, पिछले दशक में यह गति करीब 300 मीटर तक पहुंच चुकी है। हालांकि, यह शोध अभी प्रकाशित होना है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से संचालित इस संस्था के एक वैज्ञानिक और इस स्टडी के लीड ऑथर राकेश भांबरी ने कहा है, 'हमारे ताजा अनुमान से पता चलता है कि ग्लेशियर 1,700 मीटर पीछे हुआ है; और इसकी पीछे होने की दर बढ़ रही है।' उनका कहना है कि ग्लेशियर के पिघलने की दर लगातार बढ़ती जा रही है।

कैसा है गंगोत्री ग्लेशियर का भविष्य ?

कैसा है गंगोत्री ग्लेशियर का भविष्य ?

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमलायन जिओलॉजी ने पाया है कि ग्लेशियर पिघलने की वजह हिमपात में कमी और ज्यादा बारिश होने के अलावा हिमालय के ऊपरी इलाकों में तापमान में बढ़ोतरी होना शामिल है। यह सारे कारणों के लिए इंसान ही दोषी है, क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से लगातार जलवायु परिवर्तन हो रहा है और मौसम में बहुत ही तेजी से बदलाव इस समय भी महसूस किया जाने लगा है। वैसे भांबरी का कहना है कि अगर मौजूदा दर से भी ग्लेशियर पिघलता रहा तो करीब 1,500 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर पूरी तरह पिघल सकता है। हालांकि, उन्होंने कहा है, 'लेकिन, सटीक नहीं हो सकता, क्योंकि हम नहीं जानते कि आने वाले वर्षों में तापमान, बारिश और हिमपात में किस तरह से बदलाव आएगा,जो कि इसे प्रभावित करते हैं।' हालांकि, भविष्य में वह और ज्यादा सटीक अनुमान लगा पाने की उम्मीद कर रहे हैं।

उत्तराखंड हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर सबसे बड़ा है

उत्तराखंड हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर सबसे बड़ा है

उत्तराखंड हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर सबसे बड़ा है, जिसकी लंबाई लगभग 30 किलोमीटर, चौड़ाई 0.5 से लेकर 2.5 किलोमीटर और क्षेत्रफल 143 वर्ग किलोमीटर है। गंगोत्री ग्लेशियर से पिघला हुआ गंगाजल गौमुख से 3,950 मीटर की ऊंचाई पर निकलता है और यह भागीरथी नदी का स्रोत है। यही नदी देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है और गंगा नदी कहलाती है। भांबरी के मुताबिक ग्लेशियर पिघलने और इलाके में हो रही बाकी बदलावों की वजह से वहां मॉर्फोलॉजिकल परिवर्तन भी हो रहे हैं।

बर्फबारी में कमी और बारिश में बढ़ोतरी ने बिगाड़ा संतुलन

बर्फबारी में कमी और बारिश में बढ़ोतरी ने बिगाड़ा संतुलन

इसी साल मार्च में केंद्र सरकार ने राज्यसभा को बताया था कि 2001 से 2016 के बीच 15 साल में 0.23 वर्ग किलोमीटर गंगोत्री ग्लेशियर खत्म हो चुका है। भांबरी का कहना है कि इसका मूल कारण बाकी चीजों के अलावा इलाके में हिमपात और बारिश के पैटर्न में बदलाव होना है, जैसे कि ग्लोबल वॉर्मिंग। उन्होंने कहा, 'कुल मिलाकर पैटर्न यह है कि क्षेत्र में बारिश में वृद्धि हुई है और बर्फबारी में कमी आई है। पहले बहुत ज्यादा बर्फबारी होने से ग्लेशियर सुरक्षित रहता था, अब ज्यादा बारिश होने से ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघलने लगा है। स्थानीय लोग भी इस तथ्य को मानते हैं कि पहले अक्सर बहुत ज्यादा बर्फबारी होती थी, लेकिन अब वैसी नहीं होती है।'

ग्लेशियर फटने का भी बढ़ा है खतरा

ग्लेशियर फटने का भी बढ़ा है खतरा

उनका कहना है कि हिमालय के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर वाले क्षेत्र में ग्लेशियर फटने जैसी घटनाओं के खतरे और बढ़ सकते हैं। गौरतलब है कि 2021 में चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से धौलीगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ के कारण रैनी गांव में भारी तबाही मच गई थी और दो हाइड्रो पावर प्लांट को काफी नुकसान हुआ था। इस आपदा में लगभग 170 लोगों की जान चली गई थी। इसी तरह से 2013 की केदरानाथ त्रासदी को याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

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उत्तराखंड में हैं 968 ग्लेशियर

उत्तराखंड में हैं 968 ग्लेशियर

भारत में हिमालय का जितना हिस्सा है, उसमें कुल 9,575 ग्लेशियर हैं, इनमें से 968 उत्तराखंड में ही स्थित हैं। इन ग्लेशियरों में से फिलहाल दो दर्जन से भी कम ग्लेशियरों की ही निगरानी हो पा रही है। ये ग्लेशियर हैं- गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, दोकरियानी और पिंडारी ग्लेशियर। यानी ज्यादातर ग्लेशियर किस हाल में हैं, उनके बारे में हमें ज्यादा कुछ भी नहीं पता। इसलिए, इंसान के हाथ में सिर्फ एक चीज है- पर्यावरण। उसी को बचाने से भविष्य को बचाया जा सकता है। (कुछ तस्वीरें- ट्विटर वीडियो से)

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English summary
Gangotri Glacier is melting rapidly, has come more rapidly in recent decades. Climate change is the biggest reason - Dehradun's institute has done research
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