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राम प्रसाद बिस्मिल: काकोरी कांड से हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत, 30 साल की उम्र में फांसी पर झूले

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नई दिल्ली, 11 जून: 'मेरा रंग दे बसंती चोला' और 'सरफरोशी की तमन्ना' जैसे गीत लिखकर आज भी आने वाली पीढ़ी के अंदर देशभक्ति का जोश भरने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आज पूरा देश उनकी जयंती पर याद कर रहा है। मात्र 30 साल की आयु में देश के लिए फांसी पर झूलने वाले राम प्रसाद बिस्मिल भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। आज यानी 11 जून को उनकी 125वीं जयंती मनाई जा रही है। ऐसे में जानिए काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन से जुड़ी खास बातें...

Ram Prasad Bismil story

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यूपी के शाहजहांपुर में जन्मे बिस्मिल

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 11 जून 1897 को ब्राह्मण परिवार में जन्मे राम प्रसाद बिस्मिल शायर, कवि और लेखक थे। 19 साल की उम्र में नाम के आगे बिस्मिल लगाकर उन्होंने उर्दू और हिन्दी को एक साथ मिलाकर देशभक्ति की जोश भर देने वाली कविताएं लिखना शुरू किया था। अंग्रेजों के खिलाफ 9 अगस्त 1925 को घटे काकोरी कांड के लिए उनको हमेशा याद किया जाता है। ट्रेन लूट के इस साहसी कदम के साथ रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी, रोशन सिंह और अन्य कई क्रांतिकारियों का नाम जुड़ा है।

हिंदी और उर्दू में हुई पढ़ाई

रामप्रसाद बिस्मिल का परिवार सामान्य था। उनकी माता का नाम मूलमती और पिता का नाम मुरलीधर था। उनके पिता शाहजहांपुर नगरपालिका में कर्मचारी थे, ऐसे में सीमित आय की चलते बिस्मिल का बचपन भी सामान्य ही गुजरा। बिस्मिल की हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषा में पढ़ाई हुई, हालांकि बचपन में उनकी पढ़ाई में कम रूचि थी। जिसके चलते उनको अपने पिता के खूब मार भी पड़ती थी।

19 वर्ष की आयु में बने क्रान्तिकारी

सन् 1916 में 19 वर्ष की आयु में उन्होंने क्रान्तिकारी बनने का फैसला किया। अपने 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और खुद ही उन्हें प्रकाशित किया। इन किताबों को बेचकर उनको जो भी पैसा मिला था, उससे रामप्रसाद बिस्मिल हथियार खरीदे और उनका इस्तेमाल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किया। बिस्मिल की 11 पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से ज्यादातर अंग्रेजी सरकार में जब्त कर ली गई थी।

काकोरी कांड के महानायक

रामप्रसाद बिस्मिल काकोरी कांड के महानायक थे। दरअसल, उस वक्त हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया था, जिसको भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने बनाया था, जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने का फैसला किया गया। ऐसे में हथियार खरीदने के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए काकोरी कांड की योजना बनाई गई। 9 अगस्त, 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी सहित 10 क्रांतिकारियों के एक दल ने अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती दी।

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गोरखपुर जेल में दी फांसी

क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ की ओर निकली ट्रेन को रोककर उसमें रखा अंग्रेजों का खजाना लूट लिया। ऐसे में जिस जगह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे बड़ा कदम उठाया गया वो लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर काकोरी था। इस घटना के बाद उनको 26 सितंबर, 1925 को पकड़ लिए और लखनऊ की सेंट्रल जेल की 11 नंबर की बैरक में रखा गया। जिसके बाद उन्होंने अपने जिंदगी के आखिरी चार महीने गोरखपुर जेल में बिताए थे। करीब दो साल चले मुकदमे के बाद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और रौशन सिंह को फांसी की सजा सुना दी गई। 19 दिसम्बर, 1927 को उनको गोरखपुर जेल में फांसी दी गई।

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English summary
freedom fighter Ram Prasad Bismil birth anniversary know about Kakori incident
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