इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी का अंतिम गढ़ का गिरना 'घातक', SC के पूर्व जज ने कानून मंत्री को दिलाई याद
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिके निर्णयों का पालन करना सरकार का कर्तव्य है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर के सुझाव पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति ने कानून मंत्री की निशाना साधा। इसके साथ ही उन्होंने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के भी उस बयान पर टिप्पणी, जिसमें उन्हों संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति ने कहा कि भगवान का शुक्र है कि 'संविधान का बुनियादी ढांचा' मौजूद रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्र के बढ़ते हमलों के बीच उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू को निशाने पर लिया। उन्होंने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर भी उनका का नाम लिए बिना निशाना साधा। नरीमन ने कहा कि भगवान का शुक्र है संविधान का बुनियादी ढांचा बचा है और ये रहेगा। पूर्व जज नरीमन ने कहा कि अगर ये गढ़ भी गिर जाएगा तो हम एक नए अंधकार की खाई के युग में चले जाएंगे।
शुक्रवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में न्यायपालिका पर कानून मंत्री की सार्वजनिक टिप्पणी को 'आलोचना' का जिक्र करते कहा कि अदालत के फैसले को स्वीकार करना उनका 'कर्तव्य' है, चाहे वह 'सही हो या गलत'। पूर्व जज ने कोलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को लेकर केंद्र के सुझाव पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की खिंचाई की। उन्होंने केंद्र के इस निर्णय को "लोकतंत्र के लिए घातक" बताया।
पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में जजों की नियक्ति की प्रक्रिया के खिलाफ कानून मंत्री द्वारा एक निंदा सुनी है। उन्होंने आगे कहा, "मैं कानून मंत्री को आश्वस्त करता हूं कि दो बुनियादी संवैधानिक मूलभूत सिद्धांत हैं जिन्हें उन्हें जानना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 145(3) की व्याख्या पर भरोसा किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई समकक्ष नहीं है। इसलिए न्यूनतम 5, जिसे हम संविधान पीठ कहते हैं, संविधान की व्याख्या करने के लिए विश्वसनीय हैं। एक बार उन पांच या अधिक ने संविधान की व्याख्या कर ली, तो यह उस निर्णय का पालन करने के लिए अनुच्छेद 144 के तहत एक प्राधिकरण के रूप में आपका कर्तव्य है।"
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से केंद्र पर आरोप लग रहे हैं कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में बड़ी भूमिका के लिए दबाव बना रही है। हाल ही में 1993 से सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम या वरिष्ठतम न्यायाधीशों के पैलन वाले डोमेन के प्रक्रिया के तहत लिए गए एक निर्णय केंद्र से सवाल खड़े किए थे।
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाते हुए केंद्र का समर्थन किया था। उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को रद्द करना संसदीय संप्रभुता के लिए "गंभीर समझौता" बताया। उपराष्ट्रपति ने केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को विधायिका बनाम न्यायपालिका की बहस का एक पुराना उदाहरण बताते हुए 'गलत मिसाल'कहा।