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कर्नाटक में जोड़तोड़ से नहीं बनाई भाजपा ने सरकार तो चुनाव में मिलेगा बंपर बहुमत? नेतृत्व की दुविधा

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नई दिल्ली- कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी सरकार का संकट जितना गहराता जा रहा है, उतना ही बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। वो 'अभी नहीं, तो कभी नहीं' वाले अंदाज में नई सरकार बनाने को लेकर उतावले हो चुके हैं। लेकिन, कयास ये लगाया जा रहा है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इसपर किसी तरह की जल्दीबाजी के मूड में नहीं है। वह मानकर बैठा है कि कांग्रेस-जेडीएस सरकार का खुद से गिरना निश्चित है। बस वह उसी घड़ी के इंतजार में है, जब वहां संवैधानिक संकट पैदा हो और उसे वहां कानूनी तौर पर दखल देने का मौका मिल जाए। यह भी माना जा रहा है कि येदियुरप्पा लाख छटपटाएं, मोदी और शाह वहां चुनाव के माध्यम से ही सरकार बनाना चाहते हैं। लेकिन, इस फैसले के लिए येदियुरप्पा को राजी करना भी बीजेपी लीडरशिप के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

येदियुरप्पा की बेसब्री

येदियुरप्पा की बेसब्री

कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी सरकार के अल्पमत में आते ही राजनीतिक और संवैधानिक तौर पर गेंद बीजेपी के पाले में आनी तय है। लेकिन, सवाल ये है कि बीजेपी क्या करेगी। वह कांग्रेस-जेडीएस के बागी विधायकों की मदद से डांवाडोल सरकार बनाएगी या चुनाव मैदान में जाना चाहेगी। जहां तक प्रदेश के सबसे बड़े भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का सवाल है, तो वो हर हाल में सरकार बनाने के लिए तैयार बैठे हैं। मसलन, रविवार को ही उन्होंने कहा था कि बीजेपी में लोग 'संन्यासी' नहीं हैं, जो सरकार बनाने की संभावनाओं से मुंह मोड़ेंगे। यही वजह है कि जब कुमारस्वामी सरकार से निर्दलीय विधायक नागेश ने समर्थन वापस लिया, तो येदियुरप्पा के पीएम उनको लेकर मुंबई उड़ गए, जहां पहले से ही कांग्रेस-जेडीएस के बागी विधायक एक होटल में डेरा डाले हुए हैं। यानी येदियुरप्पा हर हाल में फिर से मुख्यमंत्री बनने को तैयार बैठे हैं, जबकि पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद वो इसी चक्कर में बीजेपी की किरकिरी भी करा चुके हैं। 76 साल के येदियुरप्पा को लग रहा है कि अगर अभी मैदान चूक गए, तो चुनाव के बाद हालात उनके पक्ष में रहेंगे, इसकी क्या गारंटी? अगर भाजपा मौजूदा मोदी लहर पर सवार होकर बहुमत से काफी ज्यादा सीट ले आई तो उनका तो गेम ही ओवर हो जाएगा।

बीजेपी नेतृत्व की दुविधा

बीजेपी नेतृत्व की दुविधा

भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनाने की बात जरूर कही है, लेकिन इसको लेकर वो इतने उतावले नहीं दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि मोदी और शाह फिलहाल कर्नाटक की राजनीतिक परिस्थितियों पर 'वेट एंड वॉच' के मूड में हैं। क्योंकि, वे जानते हैं कि कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिरती है, तो राष्ट्रपति शासन के जरिए परोक्ष रूप से वहां की सत्ता उन्हीं के हाथों में आनी है। ऐसे में वो बिना मतलब कांग्रेस को बैठे-बिठाए सहानुभूति बटोरने का मौका नहीं देना चाहते। कयास लगाए जा रहे हैं कि वे चाहते हैं कि मौजूदा सरकार अपनी वजहों से ही गिरे। लेकिन, बीजेपी अभी नई सरकार बनाने के बजाय चुनाव की तैयारी करे। इसका कारण ये है कि अगर एक साल में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का कुछ विधायकों के चलते ये हाल हो रहा है, तो बीजेपी की सरकार पर कोई संकट नहीं आएगा ये कहना असंभव है। ऊपर से कांग्रेस छाती पीट-पीट कर सरकार गिराने का तोहमत लगाएगी सो अलग। ऐसे में कहा जा रहा है कि उन्हें चुनाव मैदान में जाकर भारी बहुमत से नई सरकार बनाने का विकल्प ज्यादा सटीक लग रहा है।

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कर्नाटक के सियासत की जमीनी हकीकत

कर्नाटक के सियासत की जमीनी हकीकत

दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार में जो सियासी संकट खड़ा हुआ है, उसकी वजह लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिली बड़ी जीत है। प्रदेश की 28 सीटों में से 25 भाजपा ने जीत का परचम लहराया है। इसबार कर्नाटक में मोदी की दूसरी लहर का असर इतना व्यावक रहा कि जेडीएस के टिकट पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे तक बुरी तरह से परास्त हो गए। वहीं कांग्रेस ने जिन मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में पांच साल तक पार्टी का नेता बनाकर रखा और उनसे कई अहम फैसलों में मोदी सरकार को परेशानी में डलवाया, वे भी अपनी नाक नहीं बचा सके। इसलिए, बीजेपी लीडरशिप को लगता है कि अगर मौजूदा सरकार के खुद से गिरने के बाद चुनाव मैदान में उतरा जाय, तो उसे अपने दम पर ही पूर्ण बहुमत मिल सकता है। कांग्रेस-जेडीएस के जिन विधायकों ने इस्तीफे का जोखिम लिया है, उन्हें भी लगता होगा कि अगर बीजेपी से टिकट ले लिया, तो दोबारा विधानसभा भी पहुंच सकते हैं और उन्हें नई सरकार में वफादारी का इनाम भी मिल सकता है।

बीजेपी नेतृत्व की चिंता क्या है?

बीजेपी नेतृत्व की चिंता क्या है?

225 सदस्यों (एक मनोनीत) वाले कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी के पास 105 विधायक हैं। जबकि, कांग्रेस के 80, जेडीएस के 37 विधायक हैं। इनके अलावा एक विधायक बीएसपी का है और एक निर्दलीय। जिनमें से कांग्रेस के 10 और जेडीएस के 3 विधायकों ने इस्तीफा दिया है और निर्दलीय ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। ऐसे में बीजेपी अगर जोड़तोड़ से सरकार बना भी लेती है, तो उसका ज्यादा दिन तक चल पाना सवालों के घेरे में रहेगा। इसलिए, बीजेपी नेतृत्व को चुनाव मैदान में जाना हर हाल में फायदे का सौदा लग रहा है। इससे विपक्ष के आरोपों से भी बचा जा सकता है और पांच साल तक चलने लायक बहुमत मिलने की भी उम्मीद है। लेकिन, नेतृत्व की सबसे बड़ी उलझन शायद येदियुरप्पा हैं, जिन्हें सिर्फ अपने लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी दिख रही है।

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English summary
form government with rebel congress-jds mla's in karnataka or go to polls: BJP Leadership dilemma
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