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आरसीपी सिंह के गाँव वाले किस डर से बात नहीं करते हैं?- ग्राउंड रिपोर्ट

आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री पद और जेडीयू से इस्तीफ़े के बाद नालंदा स्थित अपने गाँव मुस्तफ़ापुर में हैं. आरसीपी सिंह के समर्थकों की कोशिश होती है कि गांव के लोग मीडिया से बात न करें.

By BBC News हिन्दी
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नालंदा ज़िले का मुस्तफ़ापुर गाँव पटना से क़रीब 70 किलोमीटर दूर है. गाँव का नाम भले मुस्तफ़ापुर है लेकिन यहाँ एक भी मुसलमान नहीं है.

हल्की बारिश के बाद आसमान बिल्कुल साफ़ है और नीला रंग कुछ ज़्यादा ही चमकीला हो गया है. यह गाँव बिल्कुल सड़क के किनारे है. गाँव के भीतर जाने के लिए पतली गली है. इन गलियों में पासवान दलितों के आधे-अधूरे घर हैं. ईंट की दीवारें अपने कंधों पर छत थामने का इंतज़ार कर रही हैं.

For what fear do the villagers of RCP Singh not talk?

इन घरों की दुबली-पतली महिलाएं पशुओं के गोबर हटाने और बर्तन साफ़ करने में मशगूल हैं. हमने इन महिलाओं से पूछा कि आरसीपी सिंह का घर किधर है.

महिलाओं ने अपने बच्चों से बताने के लिए कहा. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह किसी वक़्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी और उनके मन में इतनी तेज़ी से जगह बना चुके थे कि बाक़ियों के मन में रश्क होना बहुत अनुचित नहीं लगता.

जब महिलाओं से आरसीपी सिंह के घर का रास्ता पूछा तो उनके मन में बहुत उत्साह नहीं था. ऐसा लग रहा था कि वे कुछ कहना चाह रही हों लेकिन उन्हें डर है कि उनकी बात कोई सुन ना ले. हम इनसे बात करने के बजाय आरसीपी सिंह जहाँ बैठे थे, वहाँ के लिए बढ़ गए. कुछ मीटर दूर से ही दो मंदिर और एक तालाब दिखा. वहीं दर्जन भर कुर्सियां लगी हैं. एक कुर्सी पर आरसीपी सिंह और बाक़ी उनके सामने बैठे हैं.

हम लोग वहाँ पहुँचते कि उससे पहले ही दो लोग तेज़ी से आ धमके. शनि पटेल नाम के वज़नदार युवा ने कहा, "आप लोग वहाँ नहीं जा सकते. सर ने मना किया है. अभी वह किसी को इंटरव्यू नहीं देंगे." हालांकि हमने आरसीपी सिंह के क़रीबी बिटु सिंह से बात कर ली थी लेकिन शनि ने आगे नहीं बढ़ने दिया.

शनि के साथ एक मुन्ना सिद्दीक़ी भी थे. सिद्दीक़ी ने कहा कि हम यहाँ से लौट जाएं. हमने कहा कि इतना जाकर बता दीजिए कि दिल्ली से आए हैं और अगर इंटरव्यू नहीं दे सकते हैं तो एक बार ऐसे ही मिल लें. हम लोगों का यह अनुरोध लेकर अजय पटेल नाम के एक व्यक्ति आरसीपी सिंह के पास गए. उन्होंने कुछ देर बात की और आकर बताया, 'सर, मिलने को तैयार नहीं हैं.'

युवाओं को भी बात नहीं करने दी

हमलोग वहाँ से निकल गए. मुश्किल से दस क़दम आगे बढ़े थे कि कुछ युवा मिल गए. उनसे गाँव के बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ जानकारी दी. फिर उनसे कहा कि क्या वे वीडियो के लिए बात करेंगे. सारे तैयार हो गए. माइक निकालकर लगाने ही वाला था कि आरसीपी सिंह के तीन लोग दौड़ते हुए आए और उन युवाओं को डाँटकर भगा दिया.

दूर से आरसीपी भी ये सब देख रहे थे. युवाओं को भगाने वाले शख़्स का नाम मुन्ना सिद्दीक़ी था. हमने युवाओं को डराने पर तीखी आपत्ति की और कहा, 'आप ऐसा नहीं कर सकते हैं.'

हमारी आपत्ति पर मुन्ना सिद्दीक़ी की आक्रामकता थोड़ी कम हुई और उन्होंने कहा कि अभी बात मत कीजिए, जब सर बुलाएंगे तब बात कीजिएगा. हमने कहा कि क्या गाँव वाले आरसीपी सिंह के आदेश पर बात करेंगे? आरसीपी सिंह के कुछ समर्थकों को लगा कि स्थिति उनके ख़िलाफ़ हो रही है तो उन्होंने मुन्ना सिद्दीक़ी से कहा कि ऐसे मत बोलो. लेकिन तब तक युवा वहाँ से चले गए थे.

इसी बीच आरसीपी सिंह के क़रीबी बिटु सिंह का फ़ोन आया और कहा, 'आपलोग गाँव से तुरंत निकल जाइए.' मैंने पूछा, 'क्यों?' बिटु सिंह ने कहा कि गाँव के लोगों से आप बात क्यों कर रहे हैं, सर का मन नहीं है.

बिटु सिंह से कहा कि आरसीपी सिंह गाँव के लोगों को बात करने से कैसे रोक सकते हैं? इतना सुनकर बिटु सिंह ने फ़ोन काट दिया. गाँव से हमलोग निकल रहे थे लेकिन हमारे पीछे आरसीपी सिंह के कई समर्थक लग चुके थे.

मैंने आरसीपी सिंह के लोगों से पूछा, "गाँव के लोग क्या आरसीपी सिंह की शिकायत करते, इसलिए आप बात नहीं करने दे रहे हैं?" इस सवाल के बाद उनके समर्थक अपने रुख़ के बचाव में आ गए.

ग़रीबों के टूटे-फूटे घरों के बीच आरसीपी सिंह का भव्य घर

हमने आरसीपी के समर्थकों से कहा कि वे पीछे-पीछे ना चलें. लेकिन गाँव वाले स्थिति को भाँप गए थे. हम वहाँ से दलितों की गली में पहुँचे. दलितों की गली से आरसीपी सिंह का घर दिखता है. गाँव में दलितों और ग़रीबों के टूटे-फूटे घरों के बीच आरसीपी सिंह का भव्य घर चिढ़ाता हुआ दिखता है. राधे पासवान नाम के एक युवा से पूछा कि "क्या यह आरसीपी सिंह का महल है, तो उसने तंज़ करते हुए कहा- महल नहीं शीशमहल है."

शाम के सात बज चुके थे. कई महिलाएं नल से पानी भर रही हैं. हर घर में नल है. किसी को पानी के लिए हैंडपंप नहीं चलाना होता है. अपने घर की देहरी पर चूल्हा जलाने की कोशिश कर रहीं एक बुज़ुर्ग महिला से पूछा, यह नल किसने दिया?

महिला ने कहा, 'नीतीश बाबू ने.'

उन्होंने कहा, "नीतीश बाबू ने ही जो कुछ किया है, वही है. गाँव वाले नेता जी ने कुछ नहीं किया? उस महिला ने अगल-बगल देखा कि कोई है तो नहीं और कहा- आप देखने आए हैं न ख़ुद ही समझ लीजिए. सच्चाई नहीं छिपती है. हम भले डर से ना बोलें लेकिन सच्चाई सबको पता है.''

मुस्तफ़ापुर के लोगों ने बताया कि इस गाँव की आबादी क़रीब एक हज़ार होगी. यहाँ यादव, कुर्मी और दलित हैं. आरसीपी सिंह के समर्थकों को छोड़ दें तो जिन लोगों से भी मुलाक़ात हुई उनमें से किसी भी जाति के लोग ने उनकी तारीफ़ नहीं की.

कुर्मी जाति के ही एक व्यक्ति ने कहा, ''नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को कुछ ज़्यादा ही सिर पर बैठा लिया था. नीतीश कुमार जब रेल मंत्री थे तो निजी सचिव बनाया. मुख्यमंत्री बने तो प्रधान सचिव बनाया. फिर दो टर्म राज्यसभा भेजा. पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया. फिर केंद्र में मंत्री भी बन गए. लेकिन वफ़ादारी किसके प्रति दिखा रहे थे? बीजेपी के प्रति.''

आरसीपी सिंह के समर्थक अजय पटेल से पूछा कि नीतीश कुमार ने इतना कुछ दिया और भरोसा किया फिर दिक़्क़त कहाँ हुई?

अजय पटेल कहते हैं, ''पार्टी के लोगों ने ही नीतीश जी का आरसीपी सिंह के ख़िलाफ़ कान भरा है. आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री थे तो वह बीजेपी की बुराई नहीं कर सकते थे. नीतीश कुमार को लगता था कि वह बीजेपी को लेकर हमलावर रहें. लेकिन आरसीपी सिंह एनडीए के समर्थक थे.''

क्या आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल होंगे? अजय पटेल कहते हैं, ''अभी नहीं होंगे लेकिन बाद में वहीं जाएंगे.''

गाँव इतना पिछड़ा क्यों?

आरसीपी सिंह गाँव में क्यों रहते हैं? अजय पटेल ने इस सवाल के जवाब में कहा, ''उनका किसी भी शहर में घर नहीं है. पटना में भी एमएलसी संजय गाँधी के घर में रहते थे. कोरोना के टाइम में भी गाँव में ही रहे थे. उनकी पत्नी गिरिजा देवी तो हमेशा से गाँव में रहती हैं. गाँव से उनका लगाव है.''

लेकिन गाँव से लगाव है तो यह गाँव इतना पिछड़ा क्यों दिखता है?

अजय पटेल कहते हैं, ''किसी ने विकास के लिए ज़मीन नहीं दी इसलिए कुछ नहीं हो पाया.''

क्या आरसीपी सिंह का किसी भी शहर में घर नहीं है?

इस सवाल के जवाब में जेडीयू के एक प्रवक्ता ने कहा, ''हो सकता है कि उनके नाम से ना हो लेकिन मुझे लगता है कि भारत के कई शहरों में उनके दसियों घर होंगे. जैसे उनकी पत्नी का नाम गिरिजा देवी है लेकिन इन्होंने जो ज़मीन ख़रीदी है, वह गिरिजा सिंह के नाम से है. अभी इंतज़ार कीजिए. इनके सारे राज़ धीरे-धीरे खुल जाएंगे.''

जेडीयू ने बेहिसाब संपत्ति और अनियमितताओं के आरोप लगाते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा भी भेजा है. आरसीपी सिंह इन आरोपों को 'हास्यास्पद और बेतुका' बताकर ख़ारिज कर चुके हैं.

गाँव से निकलते वक़्त तीन युवा मिले. संदीप पासवान, राधे पासवान और एक ने नाम नहीं बताया. हमने तीनों से आरसीपी सिंह के बारे में पूछा तो उन्होंने पहले आगे-पीछे देखा. देखने के बाद संदीप पासवान ने कहा, ''गाँव की हालत देख रहे हैं. इस गाँव में एक शीशमहल के अलावा क्या है? इनके होने का मतलब यह है कि हम किसी से खुलकर अपनी समस्याएं ना बताएं. हम चुप रहें. कोई आए तो हम उनकी तारीफ़ करें. हम नीतीश कुमार के समर्थक नहीं हैं लेकिन तेजस्वी यादव हमें ठीक लगते हैं और नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ आकर अच्छा किया है. आरसीपी बीजेपी के आदमी हैं और अब तो स्पष्ट हो गया है.''

आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार की तरह नालंदा ज़िले के हैं और उन्ही की जाति कुर्मी से ताल्लुक रखते हैं. जेडीयू के भीतर ही कई लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को 'स्वजाति होने की वजह से इतनी तवज्जो दी थी.'

जेडीयू के एक प्रवक्ता से पूछा कि क्या कुर्मी होने की वजह से आरसीपी सिंह जेडीयू में इतने ताक़तवर बने थे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''ऐसा नहीं है लेकिन एक ग़लत आदमी पर नीतीश कुमार ने दाँव खेला था. आरसीपी पार्टी को भीतर से खोखला करने में लगे हुए थे. अच्छा हुआ कि हक़ीक़त सामने आ गई.''

https://www.youtube.com/watch?v=lZ1UhAy2aE8

बीजेपी के एक प्रवक्ता से पूछा कि क्या आरसीपी बीजेपी में आएंगे? उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा, "आना होगा तो आ जाएंगे लेकिन हमें भी पता है कि वह अपने दम पर मुखिया का भी चुनाव जीत जाएं तो काफ़ी है.''

आरसीपी सिंह जेडीयू से इस्तीफ़ा दे चुके हैं. इस्तीफ़े के बाद से ही गाँव में हैं. जेडीयू ने आरसीपी से जुड़ी अचल संपत्तियों की लिस्ट निकाली है और इस पर जवाब मांगा है.

तेजस्वी यादव जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तो 'आरसीपी टैक्स' की बात करते थे. कई लोग आरोप लगाते हैं कि जब जेडीयू की कमान आपसीपी सिंह के पास थी तो बिना 'आरसीपी टैक्स' के कोई काम नहीं होता था. जेडीयू के एक नेता ने कहा, "पाकिस्तान में आसिफ़ अली ज़रदारी को मिस्टर 10 पर्सेंट कहा जाता था उसी तरह से आरसीपी टैक्स यहाँ चलता था."

आरसीपी सिंह और उनके समर्थक ऐसे आरोपों को ग़लत बताते रहे हैं. उनके मुताबिक ये आरोप 'राजनीति से प्रेरित' हैं.

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