पटना का एक बड़ा हिस्सा क्यों डूब गया: पांच कारण
सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से साफ पता चल रहा है कि बिहार की राजधानी पटना का लगभग 90 फीसदी हिस्सा जलमग्न है. क्या मंत्री, क्या संतरी, अमीर, गरीब सबके घरों के ग्राउंड फ्लोर पर पानी है. जो अपनी संपत्ति का मोह छोड़कर किसी तरह बाहर निकल गए हैं वे बेहद परेशान हैं. जबकि एक बड़ी आबादी अभी भी अपने घरों में फंसी है. जिनके पास पीने का पानी और खाने के सामान का विकट संकट है.
सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से साफ पता चल रहा है कि बिहार की राजधानी पटना का लगभग 90 फीसदी हिस्सा जलमग्न है.
क्या मंत्री, क्या संतरी, अमीर, गरीब सबके घरों के ग्राउंड फ्लोर पर पानी है. जो अपनी संपत्ति का मोह छोड़कर किसी तरह बाहर निकल गए हैं वे बेहद परेशान हैं.
जबकि एक बड़ी आबादी अभी भी अपने घरों में फंसी है. जिनके पास पीने का पानी और खाने के सामान का विकट संकट है. पानी में घिरे ये लोग अब प्रार्थना कर रहे हैं.
फिलहाल बारिश थम गई है. सोमवार को कभी-कभी सिर्फ बूंदाबांदी ही हुई. कुछ ऊंचे इलाकों से पानी हटा भी है. मगर अभी भी निचले इलाकों राजेंद्र नगर, कदमकुआं, पटना सिटी, कंकड़बाग और इंद्रपूरी-शिवपुरी में लाखों की आबादी जलजमाव में फंसी है.
ऐसा अनुमान किया जा रहा है कि उन इलाकों से पानी हटने में हफ्ते भर का भी समय लग सकता है.
जहां तक सरकार, प्रशासन की भूमिका और "राहत तथा बचाव" कार्यों की है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे नेचर (प्रकृति) से उत्पन्न आपदा मान चुके हैं, प्रशासन की विफलता इस बात से भी स्पष्ट हो जाती है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बिहार कोकिला कही जाने वालीं पद्मश्री गायिका शारदा सिन्हा जैसी बड़ी हस्तियों को तीन दिन बाद पानी से निकाला जा सका. ऐसे में आम आदमी की बात ही करना बेमानी सा लगता है.
क्योंकि लाखों की आबादी जो अपने घरों में बिना खाना - पानी के फंसी है, उसके लिए एनडीआरएफ के महज 33 बोट्स ही काम कर रहे हैं.
सबसे बड़ा सवाल ये है महज चार दिनों की बारिश में पटना क्यों डूब गया. ऐसा कि लोग इसकी तुलना 1967 में आयी प्रलयंकारी बाढ़ से करने लगे हैं. हलांकि वो बाढ़ नदियों के बढ़े जलस्तर और बांधों के टूटने के कारण आयी थी.
लेकिन इस बार तो ना कहीं बांध टूटे, ना किसी नदी के उफान बाढ़ आया. 72 घंटों के दौरान करीब 300 मीमी की बारिश हुई. और इतने में ही पूरा पटना शहर डूब गया.
ऐसा भी नहीं कि पटना में पहले कभी इतनी बारिश नहीं हुई, मुहल्लों में जलभराव नहीं हुआ, पर पटना के रहने वाले कह रहे हैं कि उनके जीवनकाल में ऐसे हालात कभी नहीं पैदा हुए!
इस बार क्यों पूरा पटना जलमग्न हो गया?
मुख्यमंत्री द्वारा भले ही इसका कारण जलवायू परिवर्तन के परिणाम और प्रकृति की आपदा के रूप में गिनाया जा रहा हो. मगर यह अकेला कारण नहीं है.
पहला कारण तो ये कि शहर की ड्रेनेज व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई है. इसके जिम्मेदार पटना नगर निगम और बुडको दोनों है. दोनों में कोई समन्वय ही नहीं है. समन्वयक का एक पोस्ट तो है मगर वो भी खाली है. चुँकि इस वक्त स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत बुडको द्वारा निर्माण के कई काम कराए जा रहे थे.
इसलिए कई जगहों पर सड़कें खुदी हुई हैं. खुदी हुई मिट्टी और कचरे के अंबार ने ड्रेनेज ब्लॉक कर रखा है. संप हाउस सारे सिल्ट (गाद) से भर गए हैं. कई जगहों के संप हाउस डूब भी चुके हैं.
दूसरा कारण ये कि जिन नदियों में बारिश का पानी छोड़ा जाता है वे पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं. पानी का प्रेशर इतना बढ़ गया था कि सारे ड्रेनेज पहले से बंद कर दिए गए था. इसलिए पानी कहीं जा नहीं सका.
अब पटना पर बाढ़ का खतरा भी मंडराने लगा है. बीते हफ्ते भर से गंगा का जलस्तर स्थिर था. मगर अब बढ़ने लगा है. पटना से सटे दीघा में गंगा नदी अपने 44 साल के जलस्तर के रिकार्ड को पार कर 50.79 मीटर पर आ गया है. ऑल टाइम हाइेस्ट से महज 1.07 मीटर ही कम है. इसका प्रमुख कारण है सहयोगी नदियों पुनपुन, सोन और गंडक का जलस्तर भी खतरे के निशान को पार कर चुका है.
तीसरा कारण है राहत बचाव कार्यों के नाकाफी इंतजाम. क्योंकि पहले से कोई तैयारी नहीं थी. पूरा सिस्टम सूखे से निपटने की योजना बनाने में लगा था. कल्पना की जा सकती है कि जब इतनी बड़ी आबादी पानी में घिरी है, तब केवल 33 बोट की राहत और बचाव कार्य में लगे हैं.
राहत और बचाव कार्यों में सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के एक बड़े इलाके राजीव नगर, इंद्रपुरी, शिवपुरी, फाटलीपुत्र जहां करीब एक लाख की आबादी फंसी है वहां तीसरे दिन एक बोट उपलब्ध करायी जा सकी.
हमारी पड़ताल में ये भी सामने आया है कि प्रशासन की तरफ से जो राहत और क्विक रिस्पांस टीम के नंबर जारी किए गए हैं, उनपर फोन नहीं लग रहा. अगर कहीं लग भी रहा है तो कोई रिस्पांड नहीं कर रहा. रविवार को ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान हमें कई ऐसे फंसे परिवार मिले जो लगातार उन नंबरों पर कॉल करके मदद की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिल पायी.
चौथा और सबसे अहम कारण है कि सरकारी सिस्टम इस बारिश का आकलन करने में पूरी तरह विफल रहा. पहले तो सब सूखे के इंतजार में आंख मूँद कर सोए रहे. और जब बारिश शुरू हुई तो उसकी भयावहता का अंदाजा नहीं लगा सके. बारिश छूटने का इंतजार होता रहा.
पाँचवा कारण वही है जो मुख्यमंत्री ने कहा है. इस हालात लेकर बोली गई उनकी बात से ऐसा लगता है जैसे सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हो. पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का ख्वाब देख रही सरकार 300 मिलीमीटर वर्षापात से जमा पानी भी निकाल पाने में अक्षम है.
राहत की बात है कि मंगलवार की सुबह शहर में कभी-कभी धूप खिल रही है. जलभराव वाले इलाकों से पानी कम हो रहा है.
बिहार सरकार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने कहा है कि 578 एचपी मशीनों के जरिए जलभराव वाले इलाकों से पानी निकाला जा रहा है. लेकिन सवाल यही है आखिर कितना पानी कहां निकालकर ले जाया जाएगा! सभी नदियां, तालाब, नहरें, नाले ओवरफ्लो कर रहे हैं. प्रशासन शायद इसी भयावहता को मद्देनजर रखते हुए हैलिकाप्टरों से लोगों को एयरलिफ्ट भी करने लगा है. सोमवार से दो हेलिकाप्टर राहत और बचाव कार्य में लग गए हैं.