सोहराबुद्दीन मामला: पूर्व जस्टिस ने खोले कई राज, उठाए कई सवाल
नई दिल्लीः सोहराबुद्दीन शेख केस पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। एक दशक बाद भी ये मामला बार-बार उठता रहता है। इस केस में गुजरात के कई मंत्रियों के अलावा वहां के कई अफसरों के नाम आए थे। इस केस में चार जमानत याचिकाओं की सुनवाए करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश भय एम थिस्सेव ने रिटायनेंट के बात कई चौंकाने वाली बाते कहीं हैं। रिटायर होने के एक साल बाद एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है कि जस्टिस लोया की मौत में कुछ संदिग्ध" और "सामान्य बातों से अगल था।
पूर्व न्यायाधीश अभय एम थिस्सेव ने अपने कार्यकाल के दौरान में डीजी वंजारा, डीआईजी के पूर्व डीआईजी और गुजरात के आतंकवाद विरोधी दस्ते के पूर्व डीआईएसपी एम परमार, डॉ नरेंद्र के अमीन, बी आर चौबे की जमानत की सुनवाई कर चुके हैं।
एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में जस्टिस अभय ने कहा कि जस्टिस लोया की मौत के बारे में कहा कि मैंने इस केस के बारे में काफी सुना तो मैंने आदेशों को तलाशना शुरू किया। फिर मैंने एक इंडियन एक्प्रेस में एक रिपोर्ट पढ़ी। ऐसी कई अप्राकृतिक चीजें हैं जिन्हें मैंने जब देखा था तो आदेश के बारे में विचार करना शुरू कर दिया। इस मामले को निर्वहन के आदेश को कैसे पारित कर दिया गया।
सवालः
सीबीआई
जज
लोया
की
मृत्यु
के
आसपास
के
विवाद
को
आप
कैसे
देखते
हैं?
जवाबः
मैं
मौत
पर
टिप्पणी
नहीं
करना
चाहता।
लेकिन
ये
कहना
है
कि
ये
अप्राकृतिक
था,
बहुत
दूर
की
बात
होगी।
मैं
विश्वास
नहीं
करता,
हमें
लोया
की
सीडीआर
(कॉल
विवरण
रिकॉर्ड)
को
देखा
जाना
चाहिए।
जब
किसी
को
नियुक्त
किया
जाता
है
कि
तो
उसका
तुरंत
तबादला
किया
जाता
है।
यह
एक
असामान्य
बात
है
लोया
से
पहले
नियुक्त
किए
गए
जज
उटप्ट
का
तबादला
कर
दिया
गया।
मैंने
अचानक
इसलिए
कहा
क्योंकि
तबादला
तीन
साल
से
पहले
नहीं
किया
जाता
है,
जब
तक
कोई
असाधारण
परिस्थितियों
न
हो।
क्या आपने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट सेअनुमति ली है? क्या कोई ऐसे हालात थे, जिसकी वजह से वो तीन साल के सामान्य कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाते। जब भी सत्र न्यायाधीश लाए जाते हैं, तो वे आमतौर पर उन्हें आश्वासन दिया जाता है कि वो तीन साल तक यहीं रहेंगे। अर्थात उनका तबादला नहीं होगा।
कई बार ऐसे हालत बनते हैं कि कई जज तीन साल पूरे नहीं कर पाते तो इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया जाता है। क्या इस केस में किया गया है इस बात को देखने की जरुरत है।
सवालः
आपने
इस
मामले
पर(सोहराबुद्दीन
शेख
केस)
अपनी
चुप्पी
तोड़ने
का
फैसला
क्यों
किया?
जबावः
मैं
बहुत
असहज
था
क्योंकि
मैंने
इस
केस
को
देखा
है,
मुझे
इस
मामले
के
कई
तथ्यों
के
बारे
में
पता
है,
क्योंकि
मैंने
कुछ
अभियुक्तों
के
जमानत
याचिकाओं
पर
सुनवाई
की
है।
इस
केस
में
38
में
15
को
छुट्टी
दे
दी
गई।
हालांकि,
मैं
अपनी
आदेश
में
वंजारा
को
जमानत
देने
के
पक्ष
में
नहीं
था।
लेकिन
मुझे
जमानत
देनी
पड़ी
क्योंकि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
दूसरे
आरोपी
राजकुमार
और
चौबे
को
जमानत
दे
दी।
हालांकि,मैंने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया था कि उनके खिलाफ (वंजारा) प्राइमफेसी का मामला था और यह भी एक बहुत ही जघन्य अपराध भी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन पहलूओं पर ध्यान नहीं दिया और जमानत दे दी। हालांकि, जब इन सब आधारों पर दूसरे को जमानत मिल गई तो उसे (वंजारा) जमानत न देना अनुचित था। यही कारण था कि मैंने वंजारा को जमानत दे दी।
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