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जम्मू कश्मीर में क्या इस साल चुनाव होंगे और कौन डाल सकेगा वोट?

जम्मू कश्मीर में नई मतदाता सूची, नए परिसीमन और चुनावों को लेकर क्या चर्चा हो रही है? चुनाव के मुद्दे पर कौन क्या कह रहा है?

By BBC News हिन्दी
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जम्मू-कश्मीर में अगले महीने की 15 तारीख़ से नए मतदाताओं की नई सूची को विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के मतदान केंद्रों पर चिपकाया जाएगा.

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार के अनुसार, "जो ग़ैर-कश्मीरी लोग राज्य में रह रहे हैं, वे अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल कराकर वोट डाल सकते हैं."

हृदेश कुमार ने बताया कि नए मतदाताओं के पंजीकरण का काम तब से ही शुरू कर दिया गया था जब अनुच्छेद 370 को रद्द किया गया था.

भले ही इसकी कवायद 2019 से शुरू हो गई थी लेकिन, मामला विवाद में तब आया जब इस केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित करके इसकी घोषणा की.

उन्होंने इसकी औपचारिक जानकारी देते हुए कहा कि नए पंजीकरण के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में 25 से 30 लाख अतिरिक्त मतदाता जुड़ सकते हैं.

परिसीमन का काम भी पूरा कर लिया गया है और सात नए विधानसभा क्षेत्र भी बनाए गए हैं.

ऐसे में अब 6000 अतिरिक्त मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिससे कुल मतदान केंद्रों की संख्या बढ़कर 11,370 हो गई है.

क्या है मामले में पेंच

लेकिन, ये मामला जितना आसान लग रहा है उतना है नहीं. मामले में अब भी कई पेंच दिख रहे हैं.

पेंच ये है कि परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को अभी तक संसद के पटल पर नहीं रखा गया है और सदन ने इसे अनुमोदित नहीं किया है.

जम्मू-कश्मीर गुपकार गठबंधन के संयोजक और सीपीआईएम के वरिष्ठ नेता यूसुफ़ तारिगामी पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, "एक तो बिना जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कोई प्रस्ताव लाए, राज्य को तोड़ दिया गया और फिर परिसीमन के दौरान जिस तरह सात नए विधानसभा क्षेत्र बनाए गए वो पूरी तरह से संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन हैं."

वे कहते हैं, "केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की 'डेमोग्राफ़ी' यानी जनसांख्यिकी में बदलाव करने की कोशिश कर रही है. ये एकतरफ़ा कार्रवाई है जिसमें जम्मू-कश्मीर में रहने वालों की कोई राय नहीं ली गई."

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि इस मसौदे को लेकर कई विपक्षी संगठनों वाले 'गुपकार गठबंधन' ने विरोध दर्ज किया है.

"भावनाएं आहत हुई हैं"

तारिगामी बीबीसी से कहते हैं, "जब अनुच्छेद 370 को रद्द करने और परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर हैं, तो ऐसी सूरत में मुख्य चुनाव अधिकारी के ज़रिए ऐसा कराने से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं."

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि परिसीमन आयोग में जिन विधानसभा सीटों को बढ़ाया गया है उसमें कश्मीर घाटी की सिर्फ़ एक सीट बढ़ी है जबकि जम्मू संभाग में 6 सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव है.

बीबीसी से वे कहते हैं, "अगर पुंछ ज़िले की आबादी के हिसाब से परिसीमन होता तो यहां कई और विधानसभा क्षेत्र बनाए जा सकते थे. लेकिन जनसंख्या को ध्यान में नहीं रखा गया."

दूसरी तरफ़ 'इकजुट कश्मीर' के अंकुर शर्मा ने भी इस कवायद पर आपत्ति जताई है.

अंकुर शर्मा का कहना है कि जम्मू संभाग के दस ज़िलों में कश्मीर घाटी से ज़्यादा आबादी है मगर परिसीमन आयोग ने जम्मू संभाग में सिर्फ़ 43 विधानसभा सीटों का प्रावधान रखा है.

शर्मा कहते हैं कि जिस आबादी का हवाला गुपकार गठबंधन दे रहा है उसके हिसाब से जम्मू संभाग के दस ज़िलों की आबादी अगर देखी जाए तो जम्मू संभाग में 50 सीटें होनी चाहिए जबकि घाटी में 40.

धारा 370
Getty Images
धारा 370

370 हटाए जाने से पहले और अब क्या बदला?

अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत ही चुनाव होते थे. तब लोकसभा में तो यहां के 'वाल्मीकि समाज, गोरखा समाज और पश्चिमी पाकिस्तान से आए 'रिफ़्यूजी' वोट डाल सकते थे, मगर विधानसभा के चुनाव में नहीं.

370 हटाए जाने के बाद अब वो विधानसभा के चुनावों में भी वोट डाल सकते हैं क्योंकि उन्हें भी जम्मू-कश्मीर का स्टेट सब्जेक्ट या नागरिक मान लिया गया है.

जम्मू-कश्मीर चुनाव विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मतदाता सूची में इन लोगों के नाम लोकसभा के लिए तो हैं मगर विधानसभा में नहीं. अब इनको भी सूची में शामिल कर लिया गया है.

कश्मीरी पंडित सुनील पंडिता कहते हैं कि परिसीमन से उनके समाज को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है क्योंकि वो घाटी में जिस विधानसभा क्षेत्र से भाग कर आने के बाद जम्मू में जिस कैम्प में रहते हैं, वहां उनके नाम मतदाता सूची में दर्ज हैं. वो अपनी विधानसभा के चुनावों में पोस्टल बैलेट के माध्यम से वोट डालते आ रहे हैं.

वे कहते हैं कि ये प्रक्रिया शरणार्थी कश्मीरी पंडित समाज के लिए वर्ष 1998 से ही लागू है.

"सरकार लोगों का भरोसा जीतने में असफल रही है"

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार बशीर मंज़र ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस पूरे मामले में मुख्य चुनाव अधिकारी की अचानक हुई प्रेस वार्ता से लोग असमंजस में आ गए हैं क्योंकि उनको कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है.

वे कहते हैं, "पिछली तीन सरकारों और आम लोगों के बीच दूरियां बढ़ी हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव लंबित हैं. लोग चाहते हैं कि वो अपना प्रतिनिधि चुनें मगर सरकार जम्मू और कश्मीर के लोगों का भरोसा जीतने में असफल रही जो इस पूरे विवाद की जड़ है."

बशीर मंज़र कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि सुरक्षा के लिहाज़ से स्थिति बेहतर हुई है. पहले पैलेट से लोगों की आंखें जा रही थीं. आम लोगों की हत्या हो रही थी. रोज़ विरोध प्रदर्शनों में किसी न किसी की मौत हो रही थी. ऐसा बीते तीन सालों से नहीं हो रहा था. ये अच्छी बात है."

"लेकिन जहां तक लोगों का भरोसा जीतने की बात है उसके लिए यहां लोगों को सरकार चाहिए. लेकिन, बीते चार साल से यहां लोगों की सरकार नहीं है. जो सरकार चल रही है वो सीधे दिल्ली से चल रही है. ऐसे में लोगों और सरकार के बीच कम्युनिकेशन उतना मज़बूत नहीं है, जितना लोगों की और गणतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार का होता है."

क्या इस साल होंगे चुनाव?

बशीर मंज़र कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोग चार सालों से विधानसभा के चुनावों का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इस साल चुनाव हो पाएंगे.

उनको लगता है कि सितंबर और नवंबर तक मतदाता सूची के 'अपडेशन' का काम चलेगा. उसके बाद सर्दियों के दिन शुरू हो जाएंगे और यहां सर्दियों में चुनाव करवाना लगभग असंभव है.

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि साल 2023 के शुरू होने से पहले चुनाव नहीं होने वाले. ऐसे में लोगों के मन में सवाल तो पैदा होता है कि उन्हें अपने प्रतिनिधि चुनने का मौक़ा क्यों नहीं दिया जा रहा."

पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह
Getty Images
पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह

"सरकार संवाद के ज़रिए भ्रम दूर करे"

इस मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और 'नेशनल कांफ्रेंस' के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, "इस कवायद के बावजूद भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं होगा जब जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोग अपना मत डालेंगे."

जम्मू में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विक्रम रंधावा ने भी बीबीसी से बात करते हुए कहा, "ये कहना कि 'बाहरी लोग आकर बस जाएंगे' अपरिपक्वता होगी. कई सालों से रह रहे लोग जो दूसरी जगहों से यहां तैनात हैं या रोज़गार कर रहे हैं वो अब अपना मतदाता पहचान पत्र यहां बनवा सकते हैं और अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं."

रंधावा कहते हैं, "अब कोई ट्रकों में भर-भर कर आकर वोट थोड़े न डालेगा. भारत में एक मतदाता पहचान पत्र बनता है. कोई भी मतदाता एक ही जगह मताधिकार का प्रयोग कर सकता है न कि किसी भी बूथ पर जाकर वोट डाल देगा. इसलिए कई भ्रांतियां हैं जिसे सरकार को चाहिए कि लोगों के बीच संवाद पैदा कर दूर करे."

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English summary
elections in Jammu and Kashmir this year?
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