चुनाव आयोग जम्मू-कश्मीर का मार्च में करेगा दौरा, विधानसभा चुनाव पर लेगा फैसला
नई दिल्ली: भारतीय चुनाव आयोग लोकसभा की तारीखों का ऐलान करने से पहले जम्मू-कश्मीर का दौरा करेगा। ये दौरा मार्च के पहले हफ्ते(4-5) मार्च को होगा। अपने इस दौरे के बाद चुनाव आयोग राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने या फिर बाद में राज्य में चुनाव कराने को लेकर अंतिम फैसला ले सकता है। जम्मू कश्मीर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के दौरे के बाद जम्मू-कश्मीर पहुंचेगा। अपने इस दौरे के बाद वो लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ जम्मू-कश्मीर में चुनाव को लेकर घोषणा कर सकता है।
'जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सुरक्षा ज़रूरतों की जानकारी दी'
इकोनोमिक्स टाइम्स के मुताबिक राज्य के प्रशासन ने पर्याप्त सुरक्षा बल उपलब्ध कराने पर विधानसभा चुनाव संपंन्न कराने की तैयारी की जानकारी दी है। गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग को सुरक्षा की जरूरत से जुड़ी स्थितियों के बारे में बताया गया है। ये आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्य में विधानसभा चुनाव कराने या फिर लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद चुनाव कराने को लेकर है। राज्य में 20 जून को राष्ट्रपति शासन खत्म हो रहा है।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद हालात संवेदनशील
गृह मंत्रालय ने राज्य में एक से अधिक चरणों में चुनाव संपंन्न कराने के लिए सुरक्षा के चाकचौबंद इंतजाम करने के संकेत दिए हैं। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा कराने के लिए 800 से ज्यादा अर्धसैनिक बलों की कंपनियों की जरूरत होगी। ये भी आकलन है कि अकेले विधानसभा चुनाव के लिए 200 से ज्यादा अर्धसैनिक बलों की कंपनियों की ज़रूरत होगी क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अतिरिक्त सुरक्षा देने की जरूरत पड़ेगी। जम्मू और कश्मीर में 80 फीसदी से अधिक मतदान केंद्र अतिसंवेदनशील हैं।पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद चुनाव कराने के लिए और अधिक अर्द्धसैनिक बलों की जरूरत होगी।
100 से ज्यादा कंपनिया पिछले हफ्ते भेजी गई
पुलवामा आंतकी हमले के बाद पिछले ही हफ्ते 100 से ज्यादा अर्धसैनिक बलों की कंपनियों को राज्य में भेज दिया गया है। जम्मू और कश्मीर में हाल ही में हुए पंचायत चुनावों के संपन्न होने के बाद पहले से ही अर्धसैनिक बलों की 400 अतिरिक्त कंपनियां मौजूद हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां 400 कंपनियां तैनात की गई थी। वहीं 2009 के चुनाव में यहां इनकी 600 कंपंनियां तैनात की गई थी। चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के 2002 में सुनाए गए फैसले को मानने के लिए बाध्य हैं, जिसमें कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर के एक सदन के निर्धारित अवधि से पहले भंग होने से पहले चुनाव आयोग को चुनाव कराने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किसी भी परिस्थिति में विधानसभा भंग होने की तारीख से 6 महीने से अधिक की देरी नहीं होनी चाहिए। राज्य विधानसभा के भंग होने के 6 महीने आगामी 20 मई को समाप्त हो रहे है और राज्य में राष्ट्रपति शासन 20 जून को खत्म हो रहा है। नई लोकसभा को इसे बढ़ाने की जरूरत होगी।हालांकि जब राज्य सरकार ने चुनावों के लिए अपनी का इच्छा का संकेत दिया है, तो ऐसे में सूबे में चुनाव में देरी की संभावना काफी कम हो जाती है।