चुनाव 2019 : क्या है राहुल गांधी की 'न्यूनतम आमदनी गारंटी' योजना?
"कांग्रेस पहले से ही गरीबी हटाओं का नारा लगाती रही है और गरीब लोगों की वजह से ही कांग्रेस सत्ता में भी इतने सालों तक रही है. अब राहुल गांधी का यह ऐलान चुनावों के नज़रिए से बहुत ही महत्वपूर्ण समझा जा रहा है."
राधिका कहती हैं कि अब यह देखना होगा कि यह ऐलान पार्टी को चुनावों में कितना फायदा पहुंचा पाता है, लेकिन उससे पहले सत्तारूढ़ भाजपा संसद में अंतरिम बजट पेश करेगी.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ की एक रैली में सोमवार को कहा कि आम चुनावों के बाद अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो सरकार न्यूनतम आमदनी योजना शुरू करेगी.
राहुल गांधी ने कहा, "हमने निर्णय लिया है कि हिंदुस्तान के हर ग़रीब को 2019 के बाद कांग्रेस पार्टी वाली सरकार गारंटी करके न्यूनतम आमदनी देगी. इसका मतलब यह है कि देश के हर गरीब के बैंक अकाउंट में न्यूनतम आमदनी आएगी."
"हिंदुस्तान में न कोई भूखा रहेगा और न कोई गरीब रहेगा. यह हम छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हर राज्य में करेंगे."
राहुल गांधी ने इससे पहले कहा कि वो जो कुछ कहते हैं वो करते हैं.
राहुल के इस ऐलान के बाद विरोधियों ने उनसे पूछा है कि सरकार इतने पैसे आख़िर कहां से लाएगी. उन्होंने आरोप लगाए हैं कि यह वोटरों को लालच देने जैसा है.
क्या कांग्रेस अध्यक्ष की ये घोषणा वास्तव में लागू नहीं की जा सकती है, आख़िर ये न्यूनतम आमदनी योजना है क्या और इसके लागू करने पर सरकारी खजाने पर कितना भार पड़ेगा, इन सभी सवालों के जवाब तलाशने के लिए बीबीसी ने कई अर्थशास्त्रियों और वरिष्ठ पत्रकार से बात की.
यह योजना है क्या, जिसका राहुल ने जिक्र किया है
राहुल गांधी ने जिस न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना का जिक्र किया है, उसमें लोगों को सरकार न्यूनतम आय गारंटी के रूप में देगी.
अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला इसे समझाते हुए कहते हैं, "वर्तमान में गरीब के नाम पर जो तमाम सब्सिडियां दी जा रही हैं, जिसमें खाद्य सब्सिडी, खाद सब्सिडी शामिल हैं, इस पर सरकार हर साल 500 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है."
अगर इतनी बड़ी राशि को ही न्यूनतम आमदनी गारंटी में शामिल कर लिया जाए तो बिना अतिरिक्त खर्च के ही यह संभव हो सकेगा.
ये ऐलान सार्थक और सकारात्मक पहल है.
हर नागरिक को एक मासिक रकम दे दी जाएगी, जिससे उनकी न्यूनतम ज़रूरतें पूरी हो सके और वो भूखा नहीं रह सके.
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जिस तरह वृद्ध लोगों को पेंसन दी जाती है, वैसे इसे भी लागू किया जा सकता है.
क्या यह कोई नई चीज हैं?
अर्थशास्त्री मनोज पंत राहुल की इस घोषणा को नया नहीं बताते हैं. वो कहते हैं कि इसका जिक्र आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में किया गया था.
इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम कहते हैं. बहुत साल पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की शुरुआत की गई थी. उसका मतलब भी यही था कि किसानी क्षेत्र में एक तय आमदनी साल में सरकार गारंटी के तौर पर देती है. यह स्कीम भी गारंटी योजना थी.
इस पर दो-तीन साल से बहस हो रही है. अब जो राहुल गांधी कह रहे हैं उसका जिक्र पिछले एक या दो साल से आर्थिक सर्वेक्षणों में किया गया है.
कितनी आमदनी होगी?
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामासेशन कहती हैं कि राहुल के इस ऐलान के तहत कितनी राशि लोगों को हर महीने मिलेगी, इसकी घोषणा नहीं की गई है. जब सरकार आएगी तो इस पर निर्णय लिए जा सकते हैं. अगर भाजपा फिर से सत्ता में आने में कामयाब होगी तो राहुल गांधी का यह ऐलान, ऐलान बन कर रह जाएगा.
राधिका कहती हैं, "मनरेगा की योजना के तहत शुरुआत में यह तय किया गया था कि यह पूरे साल जारी रहेगा, पर बाद में जब विधेयक संसद में पारित हुआ तो दिनों की संख्या 100 कर दी गई."
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"तो इसमें भी कई तरह के बदलाव हो सकते हैं, क्योंकि अभी इसका ऐलान किया गया है और धरातल पर उतारने में कई बदलाव किए जा सकते हैं, अगर पार्टी सत्ता में आती है तो."
क्या इसके लागू करने से सरकारी खजाना खाली हो जाएगा?
अर्थशास्त्री मनोज पंत इस सवाल के जवाब में कहते हैं, "तेंदुलकर समिति के मुताबिक गरीबों की संख्या कुल आबादी का 22 प्रतिशत थी. अब करीब 30 करोड़ लोग को तीन हजार रुपए प्रति महीना देते हैं तो 100 से 110 लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा और ये बहुत बड़ी राशि नहीं है.''
''इससे असर यह होगा कि मनरेगा का खर्च बंद हो जाएगा, लोन के खर्चे कम हो जाएंगे और दूसरी योजनाओं पर जो सब्सिडी दी जा रही है, वो कम कर दिए जाएंगे.''
दूसरे नज़रिए से देखा जाए तो राहुल का यह बयान मनरेगा योजना को पूरे देश में फैलाने जैसा होगा. पहले मनरेगा सिर्फ ग्रामीण इलाक़ों तक सीमित था. मेरे नजरिए से सब्सिडी बंद करके यह शुरू किया जाता है तो यह बेहद ही सकारात्मक कदम साबित होगा.
चुनौतियां क्या होंगी?
भरत झुनझुनवाला चुनौतियां गिनाते हैं, "इसके लाभार्थी अगर गरीबी रेखा से तय किए जाएंगे तो बीपीएल और एपीएल का झंझट होगा."
"हर आदमी कहेगा कि वो गरीबी रेखा से नीचे हैं, और उन्हें चिह्नित करना बड़ी चुनौती होगी. दूसरी चुनौती होगी इसे लागू करने की. इसे ज्यादा से ज्यादा आम लोगों तक पहुंचाना भी बड़ी चुनौती होगी."
क्या बेरोजगारी की समस्या खत्म हो जाएगी?
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामासेशन इस सवाल के जवाब में कहती हैं, "कांग्रेस इससे पहले रोजगार के नाम पर मनरेगा योजना लेकर आई थी. लेकिन पिछले चार सालों के दौरान इसके बजट में भाजपा सरकार ने कटौती की."
"ऐसी रिपोर्ट सामने आ रही है कि गांवों में रोजगार की स्थिति बिगड़ी है और नोटबंदी और जीएसटी की वजह से देहातों के छोटे रोजगार प्रभावित हुए हैं."
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"चुनावों के बाद अब जिसकी भी सरकार बने, उन्हें शहरों के साथ-साथ गांवों को रोजगार देना होगा."
"ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था में फिर से जान फूंकने की ज़रूरत होगी और मुझे लगता है कि राहुल गांधी के सिर्फ न्यूनतम आय योजना से कुछ नहीं होगा, रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे."
इस ऐलान का राजनीतिक मतलब क्या?
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामासेशन कहती हैं कि कांग्रेस का यह ऐलान अपने वोटरों को वापस लाने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है.
वो कहती हैं कि साल 2014 के चुनावों में भारी संख्या में कांग्रेस के वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट कर गए थे.
"कांग्रेस पहले से ही गरीबी हटाओं का नारा लगाती रही है और गरीब लोगों की वजह से ही कांग्रेस सत्ता में भी इतने सालों तक रही है. अब राहुल गांधी का यह ऐलान चुनावों के नज़रिए से बहुत ही महत्वपूर्ण समझा जा रहा है."
राधिका कहती हैं कि अब यह देखना होगा कि यह ऐलान पार्टी को चुनावों में कितना फायदा पहुंचा पाता है, लेकिन उससे पहले सत्तारूढ़ भाजपा संसद में अंतरिम बजट पेश करेगी.
अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा भी राहुल की घोषणा के मद्देनजर कुछ ऐसा ऐलान कर सकती है जिससे उनकी इसकी काट निकाली जा सके.