राहुल और कांग्रेस के कितना काम आएगी डीयू में एनएसयूआई की जीत
राहुल और कांग्रेस के कितना काम आएगी डीयू में एनएसयूआई की जीत
नई दिल्ली। आज दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव के परिणाम आए। तमाम अनुमानों और संभावनाओं को दरकिनार करते हुए परिणाम नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के पक्ष में आए। अनुमान इस बात के लगाए जा रहे थे कि परिणाम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के पक्ष में आएंगे और बीते 4 सालों की तरह ही वो इस बार क्लीन स्वीप करेगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
जीत के बाद NSUI का कहना है कि हमने 4 साल तक लगातार मेहनत की और मौजूदा छात्र संघ के खिलाफ छात्रों में रोष था इसलिए परिणाम हमारे पक्ष में आए। हालांकि NSUI ने क्लीन स्वीप तो नहीं किया लेकिन पर स्थायी नेताओं के अभाव से जूझ रही कांग्रेस के लिए यह जीत संजीवनी का काम कर सकती है। गुजरात के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत इतना असरदार नहीं हुई थी। अहमद पटेल की जीत से पार्टी का हाईकमान और 24 अकबर रोड भले खुश हो गए हों लेकिन कार्यकर्ताओं में जो निराशा मौजूद थी वो आगे भी बरकरार रही।
यह बात दीगर है कि साल 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद से कांग्रेस एक कमजोर विपक्ष के तौर पर उभरी। देश की तमाम समस्याओं को सिर्फ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र के भाषणों तक सीमित कर दिया गया। मार्च में संपन्न हुए 5 राज्यों के चुनाव के दौरान कांग्रेस कुछ राज्यों में जीत कर भी हार गई। गोवा और मणिपुर इसके उदाहरण हैं। उसके बाद से दिल्ली नगर निगम और फिर बवाना विधानसभा के उपचुनाव ने भी पार्टी की लुटिया डुबोने का काम किया था।
अब कांग्रेस को मिलेगी ताकत
NSUI की जीत से कांग्रेस का मुख्य संगठन भी अब ज्यादा खुलकर केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ बोल सकते हैं। क्योंकि जब कभी भी कांग्रेस ने भाजपा और सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलना चाहा या बोला तो उसे युवाओं और चुनाव में मिली जीत के नाम पर चुप कराने की पूरी कोशिश होती थी। हालांकि अब संभवतः भाजपा भी अपने अंदर झांक कर देखेगी। अब वो बार-बार चुनाव और युवा के नाम पर किसी भी दल की बात को दरिकनार करने की कोशिश नहीं करेगी।
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए जेएनयू के चुनाव से ज्यादा तगड़ा झटका ये चुनाव है क्योंकि माना जाता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में चुनाव वही जीतता है जिसकी केंद्र में सरकार होती है। लेकिन साल 2013 में जो रिकॉर्ड टूटा था, वो 4 साल बाद फिर टूटा और NSUI ने परचम लहराया। यूं तो NSUI केवल अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर ही जीत सकी लेकिन इस जीत के लिए उसके कई मायने है। कांग्रेस अब इस जीत के जरिए राष्ट्रीय संदेश देने की कोशिश करेगी कि किस तरह से युवाओं ने भाजपा की नीतियों को दरकिनार कर दिया है।
विमुद्रीकरण और जीएसटी सरीखे मसलों पर जहां कांग्रेस खुल कर नहीं बोल पाती थी, वहां वो अब करारा प्रहार करने की कोशिश में होगी क्योंकि अब उसके पास एक बड़ा आधार है। यहां एक बात और सामने आती है कि जब साल 2013 का DUSU चुनाव कांग्रेस हार गई थी, उसके ठीक अगले साल उसके हाथ से केंद्र की सत्ता भी बुरी तरह से निकल गई। इतनी खराब हालत तो कांग्रेस की इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भी नहीं हुई थी क्योंकि जब कांग्रेस के खिलाफ पूरा विपक्ष था तो भी उसके हिस्से में 542 में से 154 सीटें आई थीं। साल 2014 में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई थी। कहीं DUSU का यह चुनाव केंद्र की भाजपा सरकार के लिए एक खतरे की घंटी की तरह तो नहीं है? उम्मीद है कि भाजपा इस हार को सिर्फ एक विश्वविद्यालय की हार नहीं मानेगी और कांग्रेस इसी के दम पर बहुत ज्यादा नहीं खुश होना होगा।
नहीं तो फिर इस जीत के कोई मायने नहीं
राजस्थान, पंजाब और गुवाहाटी के छात्र संघ चुनावों में मिली जीत के बाद कांग्रेस को सरकार और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष बन कर उभरना होगा, नहीं तो इस जीत के कोई मायने नहीं हैं। अगर कांग्रेस इस जीत का सदुपयोग नहीं कर पाई तो ये जीत सिर्फ फ्रेम में सजाने और तस्वीर के लिए ही काम आएगी। यहां एक और बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। यूं तो अब दलों में नगर निगम के चुनाव की जीत के बाद भी हाईकमान को जिम्मेदार बता देने चलन बन गया है। भाजपा में इसके लिए मोदी और शाह हैं। कांग्रेस में राहुल और सोनिया। लेकिन NSUI की इस जीत में किसी भी बड़े नेता की कोई खास भूमिका नहीं रही। ये कोई कपोल कल्पना नहीं है बल्कि इसमें उन लोगों की भूमिका है जिन्होंने फेलोशिफ ना आने पर यूजीसी के सामने धरना प्रदर्शन किया। ये उन लोगों की जीत है जो पैसे वाले होने के बाद भी दिल्ली और जेएनयू सरीखे विश्वविद्यालय में सीट काट दिए जाने के कारण एडमिशन नहीं ले सके। ये जीत किसी राहुल-सोनिया की नहीं बल्कि उन लोगों की है जो अपने सपनों को प्राइवेट विश्वविद्यालयों की महंगी छांव में पनपता देख रहे हैं। मैं अपनी इस बात के लिए बहुत निश्चिंत हूं। यकीन ना हो तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का ट्विटर हैंडल देख लीजिए। आज जब जीत मिली दो बार में राहुल गांधी ट्वीट कर पाए। पहला ट्वीट डिलीट कर दिया था। दोबारा NSUI को जीत की बधाई दे पाए।
ये जीत फिरोज खान और रुचि गुप्ता की टीम की है। ये जीत उन तमाम NSUI कार्यकर्ताओं की है, जो लगातार अपने ही दोस्तों से यह सुन रहे थे कि यार तुम्हारी पार्टी तो अब डूब गई है छोड़ो हमारे साथ आओ। फिर भी वो मजबूती के साथ अपने दल के साथ खड़े रहे और संघर्ष के दिनों को पार कर एक बार फिर अपना परचम लहराया।