नामांकन खारिज होने के बावजूद तेजबहादुर और सपा के दोनों हाथों में क्यों हैं लड्डू?
नई दिल्ली। तेजबहादुर सैनिकों के भोजन में व्याप्त भ्रष्टाचार को सोशल मीडिया में दिखाकर जितने सुर्खियों में आये थे, उससे भी अधिक सुर्खियों में अब हैं। वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से नरेंद्र मोदी के विरूद्ध चुनाव लड़ने की उनकी संभावनायें खत्म हो गयी हैं। चुनाव आयोग ने उनका नामांकन रद्द कर दिया है। वैसे तो वाराणसी संसदीय क्षेत्र से कुल 90 उम्मीदवारों का नामांकन रद्द हुआ है। लेकिन तेजबहादुर की चर्चा कुछ ज्यादा है।
वैसे देखा जाए तो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में तेजबहादुर उतने चर्चित नहीं हुए थे जितना सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार बनने पर हुए।
समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन से उत्तरप्रदेश की राजनीति की सरगर्मी इस बार गत लोकसभा चुनाव से काफी ज्यादा है। नरेंद्र मोदी की आक्रामक राजनीतिक शैली और उनके खुद वाराणसी से चुनाव लड़ने के मास्टर स्ट्रोक नें पिछली बार भाजपा को वहां की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर जीत दिला दी थी। इस मोदी लहर में बसपा खाता भी न खोल सकी, जबकि बहुजन समुदाय में मायावती की अच्छी खासी पैठ है। सपा को इस लहर में किसी तरह डूबते को तिनके का सहारा मिला। अपनी 5 सीटें बचा सकीं।
मोदी फिर से आक्रामक हैं
मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव 2019 फिर से उसी आक्रामकता से लड़ा जा रहा है। संगठन के किसी भी स्तर पर भाजपा किसी भी अन्य पार्टी से कोसों आगे है। सपा बसपा ने इसकी काट अपने महागठबंधन से निकाला है। दोनों पार्टी पुराने गिले-शिकवे छोड़ कर साथ आये हैं। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का चातुर्य और उनकी रणनीति चार चरण के चुनावों में किसी अन्य पार्टी से कम अच्छी नहीं रही है।
मूल बातें घूम फिरकर मुद्दों की हो जा रही है। सरकार के किये गए कामों का पोस्टमार्टम कर जनता के सामने रखने का काम सपा-बसपा तो कर रही है लेकिन भाजपा के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक, सेना, सैनिक, कश्मीर आदि मुद्दों के आगे टिक नहीं पा रही है। कम से कम जन संवाद में तो ऐसा ही लग रहा है।
सपा की नजरें किन मुद्दों पर मुखर होने की है?
तेजबहादुर ने सैनिक के भोजन में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार को उजागर किया था। जिसके बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया था। उसने प्रतिरोध जारी रखा। इस तरह वह मोदी सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के कितने खतरे हैं, का प्रतीक बन गए।
सपा को देर ही सही, तेजबहादुर में मोदी सरकार के खिलाफ उनके ही मुद्दों पर उन्हें घेरने के एक बड़े अवसर के रूप में संभावना दिखी। अगर ऐसा न होता तो पहले तेजबहादुर निर्दलीय पर्चा नही भरे होते। तेजबहादुर को मोदी के सामने खड़ा करके सपा मोदी सरकार को उनके राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार, सैनिक, बॉर्डर आदि जैसे मुद्दों पर सीधी चुनौती देते। हालांकि मोदी वाक कौशल्य हैं लेकिन ऐसी स्थिति निश्चित रूप से उनके लिए असहज होती।
आखिर कौन से मुद्दे मोदी को असहज करने वाले हैं?
तेजबहादुर का पर्चा ख़ारिज होने के बाद भी समाजवादी पार्टी अब चुनाव के बचे चरणों मे भाजपा के ही मुद्दों पर तेजबहादुर को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल करेगी और पुरजोर तरीके से कह सकेगी की असली चौकीदार तेजबहादुर है। और समाजवादी पार्टी देश, सैनिक, किसान आदि का भरपूर सम्मान करती है। राष्ट्रवाद सैनिकों का सम्मान करना है, जो वह कर रही है। मोदी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने की सजा तेजबहादुर की जिंदगी तबाह होने जैसी है।
तेजबहादुर और सपा के दोनों हाथों में क्यों हैं लड्डू?
वैसे वाराणसी लोकसभा सीट मोदी की उम्मीदवारी के बाद किसी भी दल के लिए जीतना आसान नहीं होगा। यह सारी पार्टियां जानती हैं। इसलिए विपक्ष कोई मजबूत उम्मीदवार मोदी के विरुद्ध खड़ा नहीं कर सका। लेकिन तेजबहादुर को अपनी पार्टी से टिकट देने के फैसले से विपक्ष को एक नैतिक बढ़त जरूर मिलेगी और इसमें समाजवादी पार्टी ने बाजी मारी है। तेजबहादुर का मौका सपा के दोनों हाथ लड्डू आने जैसा है। अब सपा इसका कितना फायदा लोकसभा चुनाव में उठा पाती है, इस पर सबकी नजर रहेगी।