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दिल्ली दंगा एक साल बाद- चार्जशीट, क्रोनोलॉजी, साज़िश, गिरफ़्तार छात्र नेता और कार्यकर्ता

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में सीएए के खिलाफ़ शुरू हुए प्रदर्शनों का अंत दंगों की शक़्ल में हुआ। 23 फ़रवरी से 26 फ़रवरी 2020 के बीच हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई। 13 जुलाई को हाईकोर्ट में दायर दिल्ली पुलिस के हलफ़नामे के मुताबिक, मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे।

By BBC News हिन्दी
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नई दिल्‍ली। दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में सीएए के खिलाफ़ शुरू हुए प्रदर्शनों का अंत दंगों की शक़्ल में हुआ। 23 फ़रवरी से 26 फ़रवरी 2020 के बीच हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई। 13 जुलाई को हाईकोर्ट में दायर दिल्ली पुलिस के हलफ़नामे के मुताबिक, मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। दिल्ली पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 751 एफ़आईआर दर्ज की। पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली दंगा
Getty Images
दिल्ली दंगा

पुलिस का तर्क है कि कई जानकारियां 'संवेदनशील' हैं इसलिए उन्हें वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया जा सकता है। दिल्ली पुलिस ने सीपीआई (एम) की नेता वृंदा करात की हाईकोर्ट में दायर याचिका के जवाब में 16 जून को ये बात कही थी। ऐसे में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की जांच से जुड़ी जानकारियां जुटाना एक चुनौती रही है लेकिन बीबीसी ने जांच से जुड़े कोर्ट के ऑर्डर और एफ़आईआर-चार्जशीट जैसे दस्तावेज़ जुटाकर जाँच के तौर-तरीकों को समझने कोशिश की है।

एफ़आईआर-59 यानी 'साज़िश' का मामला

इस मामले में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच का कहना है कि दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी. एफ़आईआर 59 इसी कथित साज़िश के बारे में है. इसमें अनलॉफ़ुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) की तीन धाराएं लगाई गई हैं. यूएपीए का इस्तेमाल आम तौर पर आतंकवाद के संदिग्ध लोगों को लंबे समय तक बिना ज़मानत के जेल में रखने के लिए किया जाता है.

इस एफ़आईआर में उन छात्र नेताओं के नाम शामिल हैं जो दिल्ली में सीएए के खिलाफ़ प्रदर्शनों में प्रमुख चेहरे रहे. 6 मार्च 2020 को दर्ज हुई इस मूल एफ़आईआर में सिर्फ़ दो लोगों- जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद और पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) से जुड़े दानिश के नाम हैं.

एफ़आईआर-59 के आधार पर अब तक 22 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. जिनमें से सफ़ूरा ज़रगर, मोहम्मद दानिश, परवेज़ और इलियास इस समय ज़मानत पर रिहा हैं. बाकी सभी लोग अब भी न्यायिक हिरासत में हैं. ख़ास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर लोगों को शुरूआत में दिल्ली दंगों से जुड़ी अलग-अलग एफ़आईआर में गिरफ़्तार किया गया लेकिन जैसे ही उन मामलों में उन्हें ज़मानत मिली या मिलने की संभावना बनी, इनका नाम एफ़आईआर संख्या 59 में जोड़ दिया गया और इस तरह इन लोगों पर यूएपीए की धाराएँ लग गईं.

इस केस में उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी 13 सितंबर, 2020 को देर रात में की गई, चूंकि तब तक इस मामले में यूएपीए की धाराएं जोड़ दी गई थी ऐसे में उमर को अब तक ज़मानत नहीं मिल सकी है और वे न्यायिक हिरासत में हैं. 16 सितंबर को स्पेशल सेल ने एफ़आईआर 59 की 17 हज़ार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की जिसमें 15 लोगों के खिलाफ़ धाराएँ और सबूत का ज़िक्र किया गया.

इस चार्जशीट में उमर ख़ालिद और शरजील इमाम के खिलाफ़ आरोप नहीं तय किए गए थे. 22 नवंबर, 2020 को स्पेशल कोर्ट में उमर ख़ालिद, शरजील इमाम और फ़ैज़ान खान के ख़िलाफ़ एक 200 पन्नों की एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई. इन पर 26 धाराएं लगाई गई हैं, जिनमें तीन धाराएं यूएपीए की शामिल हैं. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कहना है कि जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी (जेसीसी), पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई), पिंजरा तोड़, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े लोगों ने साज़िश के तहत दिल्ली में दंगे कराए.

ये उन लोगों की सूची है जिन्हें गिरफ़्तार तो अलग-अलग एफ़आईआर के आधार पर किया गया लेकिन बाद में यूएपीए वाली एफ़आईआर-59 में उनका नाम जुड़ गया, इस मामले में उमर ख़ालिद ही अकेले व्यक्ति हैं जिनका नाम उस एफ़आईआर में पहले से था.

ख़ालिद सैफ़ी- यूनाइटेड अगेंस्ट हेट

इशरत जहां- पूर्व कांग्रेस पार्षद

सफ़ूरा ज़रगर-एमफ़िल छात्रा, जामिया

मीरान हैदर- पीएचडी छात्र, जामिया

गुलफ़िशां फ़ातिमा- एमबीए छात्र, गाज़ियाबाद

शादाब अहमद- जामिया छात्र

शिफ़ा-उर-रहमान- जमिया एल्युमिनाई

नताशा नरवाल- जेएनयू छात्र,'पिंजरा तोड़' की सदस्य

देवांगना कलिता- जेएनयू छात्र, 'पिंजरा तोड़' की सदस्य

आसिफ़ इक़बाल तन्हा- जामिया छात्र

उमर ख़ालिद-पूर्व जेएनयू छात्र

शरजील इमाम-जेएनयू छात्र

ताहिर हुसैन- पूर्व 'आप' पार्षद

उमर ख़ालिद
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उमर ख़ालिद

बीबीसी ने अब तक हुई इस पूरी कार्रवाई को समझने के लिए पहले एफ़आईआर से लेकर कोर्ट में हुई कार्यवाहियों और इस मामले दायर की गई दो चार्जशीटों का अध्ययन किया. 6 मार्च से लेकर अब तक इस केस में क्या-क्या हुआ, पुलिस की दलीलें क्या हैं और आख़िर कोर्ट ने कब-कब ज़मानत की अपील ख़ारिज की, और 2 लोगों के नाम से दर्ज इस एफ़आईआर में किस तरह 14 लोगों की गिरफ्तारी हुई?

एफ़आईआर के मुताबिक उमर ख़ालिद ने तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दंगों की साज़िश रची और पीएफ़आई के मोहम्मद दानिश ने दंगों के लिए लोगों की भीड़ जुटाई.मूल एफ़आईआर की कॉपी में आईपीसी की धाराएँ---147 (दंगे भड़काने), 148 (दंगे में घातक हथियारों का इस्तेमाल), 149 (ग़ैर-कानूनी तरीक़े से सभा करना) 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र)--लगाई गई थीं. ये सभी धाराएँ ज़मानती हैं.

इस मामले में मोहम्मद दानिश सहित तीन पीएफ़आई सदस्यों की गिरफ़्तारी हुई थी जिन्हें 13 मार्च,2020 को मेट्रोपॉलिटन मस्जिट्रेट की अदालत से ज़मानत इस शर्त के साथ मिली कि वे देश से बाहर नहीं जाएँगे. इस केस को क्राइम ब्रांच ने दर्ज किया था लेकिन कुछ दिन बाद ही साज़िश के केस की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफ़र कर दी गई.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल साज़िश, आतंकवादी गतिविधि जैसे जटिल मामलों की जांच करती है. दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है. 15 मार्च 2020 को इस केस में 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश), 124A (राजद्रोह) जैसी ग़ैर-ज़मानती धाराएं जोड़ी गईं. इसके अलावा 154A (गैर कानूनी सभा), 186 (किसी सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालना), 353, 395 (डकैती), 435 (आगजनी या धमाके से नुकसान पहुंचाना), सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के सेक्शन 3, 4 और आर्म्स एक्ट के सेक्शन 25 और 27 भी एफ़आईआर में जोड़ी गईं.

19 अप्रैल 2020 को इस केस में सख़्त कानून यूएपीए का सेक्शन 13 (गैर-कानूनी गतिविधि की सज़ा), 16 (आतंकवादी गतिविधि की सज़ा), 17 (आतंकवादी गतिविधि के लिए फ़ंड जुटाने की सज़ा) और 18 (साजिश रचने की सज़ा) जोड़ा गया. आम तौर पर किसी भी एफ़आईआर में 90 दिनों की अवधि में चार्जशीट दाख़िल करना होता है लेकिन एफ़आईआर 59 में स्पेशल सेल ने यूएपीए 43D (2) का इस्तेमाल करके 17 सितंबर यानी तकरीबन छह महीने का वक़्त मांगा था, लेकिन सेशन जज धर्मेंद्र राणा की कोर्ट ने पहले 14 अगस्त तक का ही समय दिया.

इसके बाद 13 अगस्त को कोर्ट ने चार्जशीट दायर करने अवधि बढ़ाकर 17 सितंबर, 2020 कर दी, यानी छह महीने. यूएपीए में 90 दिनों की अवधि को 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है लेकिन ऐसा करने के लिए जांच अधिकारी को कोर्ट के सामने अतिरिक्त वक़्त लेने की वजह बतानी होती है और दलीलों से कोर्ट को सहमत करना पड़ता है. इस केस में 16 सितंबर को स्पेशल सेल ने इस केस की पहली चार्जशीट दायर की. आइए उन लोगों के बारे में जानते हैं जिन्हें पहले मामले में ज़मानत मिली और उसके फ़ौरन बाद एफ़आईआर-59 में दोबारा गिरफ़्तारी कर ली गई.

ख़ालिद सैफ़ी

ख़ालिद सैफ़ी
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ख़ालिद सैफ़ी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के रहने वाले ख़ालिद पेशे से कारोबारी हैं. वे 'यूनाइटेड अगेंस्ट हेट' संस्था के मुख्य सदस्यों में से एक हैं. साल 2017 में इस संस्था ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ़ अभियान शुरू किया था. ये कैंपेन एक नौजवान लड़के जुनैद की चलती ट्रेन में पीटकर की गई हत्या के बाद शुरू किया गया और कई लोग इस कैंपेन का हिस्सा बने. इसके अलावा सैफ़ी देश भर में हुई लिंचिंग की कई घटनाओं को लेकर अभियान चलाते रहे हैं.

सैफ़ी को सबसे पहले 26 फरवरी को एफ़आईआर-44 में गिरफ़्तार किया गया. एफ़आईआर 44 में कहा गया कि "ख़ालिद सैफ़ी, इशरत जहां और साबू अंसारी ने खुरेजी में चल रहे सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान ग़ैर-क़ानूनी तरीके से भीड़ जुटाई और पुलिस के आदेश के बावजूद भीड़ को रास्ता खाली करने से रोका और पुलिस बल पर पत्थरबाज़ी करवाई जिससे कुछ पुलिस वालों को चोटें भी आईं".

इस एफ़आईआर में आईपीसी की धारा 307 (हत्या के इरादे से हमला) और आर्म्स एक्ट की धाराएं लगाई गईं. 10 मार्च को एक वीडियो सामने आया जिसमें पुलिस कस्टडी में रहने के बाद पहली बार खालिद सैफ़ी कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में नज़र आए. इस दौरान उनके दोनों पैर टूटे हुए थे, दाएं हाथ की ऊंगलियां भी टूटी हुईं थीं. वे व्हीलचेयर पर थे. 26 फ़रवरी के वीडियो में ख़ालिद पुलिस के साथ अपने पैरों पर चलकर जा रहे थे यानी उनकी हड्डियाँ उसी दौरान टूटीं जब वे हिरासत में थे. एफ़आईआर 44 में कुल पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

21 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट से इस मामले में ख़ालिद सैफ़ी को छोड़कर बाकी सभी अभियुक्तों को ज़मानत मिल गई. कोर्ट ने सैफ़ी की जमानत याचिका ये कहते हुए रद्द कर दी कि "इस मामले में गिरफ़्तार एक नाबालिग लड़के ने अपने बयान में कहा है कि उसे देसी कट्टा खालिद सैफ़ी ने मुहैया कराया था और पुलिस पर हमला करने को उकसाया".

सैफ़ी की पैरवी कर रही वकील रेबेका जॉन ने कोर्ट में कहा कि पुलिस कस्टडी में ख़ालिद को बुरी तरह पीटा गया जिसकी वजह से उनकी हड्डियाँ टूट गईं. इन दलीलों के बावजूद जज मंजूषा वाधवा की कोर्ट ने सैफ़ी को ज़मानत देने से इनकार कर दिया. ठीक इसी दिन दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ख़ालिद सैफ़ी का नाम एफ़आईआर 59 में जोड़ दिया. अब तक ख़ालिद सैफ़ी का नाम दिल्ली दंगों से जुड़ी कुल तीन एफ़आईआर-44, 59, 101-में दर्ज किया जा चुका है.

इशरत जहां

इशरत जहां
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इशरत जहां

पेशे से वकील और पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां को भी ख़ालिद सैफ़ी के साथ 26 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया. इशरत को एफ़आईआर संख्या 44 में 21 मार्च 2020 को कड़कड़डूमा कोर्ट से ज़मानत मिल गई थी लेकिन ठीक उसी दिन रिहाई से ठीक पहले स्पेशल सेल ने उन्हें तिहाड़ जेल में ही दिल्ली दंगों की साज़िश से जुड़ी एफ़आईआर 59 में गिरफ़्तार कर लिया और इस तरह उन पर भी यूएपीए की ग़ैर-ज़मानती धाराएँ लग गईं.

दो बार इशरत जहां की ओर से मेट्रोपॉलिटेन मजिस्ट्रेट की अदालत में ज़मानत की अर्ज़ी डाली गई थी. चूंकि इस केस में यूएपीए लग चुका है, ऐसे में ज़मानत देने का अधिकार सेशन कोर्ट के पास होता है और मेट्रोपॉलिटेन मजिस्ट्रेट इसमें ज़मानत नहीं दे सकता. इसके बाद 30 मई 2020 को सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने उन्हें 10 दिन की अंतरिम ज़मानत दी.

10 जून 2020 को ज़मानत की अवधि शुरू हुई, ये जमानत उन्हें उनकी शादी के लिए दी गई और 19 जून को ये ज़मानत खत्म हो गई. हालांकि इशरत के वकील ललित वलेचा ने पटियाला हाउस कोर्ट से सात दिन के एक्सटेंशन की मांग की थी जिसे जज ने ख़ारिज कर दिया. इस वक़्त इशरत फिर तिहाड़ जेल में हैं.

सफ़ूरा ज़रगर

सफ़ूरा जरगर
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सफ़ूरा जरगर

27 साल की सफ़ूरा जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में एमफ़िल की छात्रा हैं. वे जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी (जेसीसी) की मीडिया कॉर्डिनेटर भी हैं. सफ़ूरा की गिरफ़्तारी की सबसे ज़्यादा चर्चा रही और इसकी सबसे बड़ी वजह थी उनका गर्भवती होना. 24 फ़रवरी 2020 को जाफ़राबाद थाने में दर्ज एफ़आईआर-48 के तहत 10 अप्रैल 2020 को सफ़ूरा को पूछताछ के लिए बुलाया गया, इसके बाद देर शाम उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

13 अप्रैल 2020 को इस मामले में उन्हें ज़मानत दी गई लेकिन रिहाई की जगह सफ़ूरा को एफ़आईआर 59 के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया.पाँच दिन बाद 18 अप्रैल को सफ़ूरा की ज़मानत याचिका पर सुनवाई हुई और इस दौरान मजिस्ट्रेट ने दिल्ली पुलिस को सफ़ूरा पर लगाए गए आरोपों की ज़्यादा जानकारी के साथ 21 अप्रैल को दोबारा आने को कहा. 21 अप्रैल की सुनवाई से ठीक पहले 19 अप्रैल 2020 को स्पेशल सेल ने इस केस में यूएपीए लगाया. इसके बाद सफ़ूरा की ज़मानत याचिका ख़ारिज हो गई.

तीन बार ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट से 23 जून को सफ़ूरा ज़रगर को 'मानवीय आधार' पर ज़मानत दी गई है. इससे पहले तीन बार सफ़ूरा ज़रगर की ओर से इसी 'मानवीय आधार' पर ज़मानत की मांग को ख़ारिज किया गया था. यहां तक कि जब 22 जून को हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हो रही थी तो दिल्ली पुलिस की तरफ़ से कहा गया था कि 'बीते 10 सालों में तिहाड़ जेल में 39 बच्चों का जन्म हुआ है' लेकिन ठीक एक दिन बाद ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि "केंद्र सरकार को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है अगर सफ़ूरा को मानवीय आधार पर ज़मानत दी जाए".

ये हैरान करने वाली बात है कि एक दिन पहले दिल्ली पुलिस आंकड़ों के ज़रिए जेल में डिलीवरी की संभावनाओं के पक्ष में अपनी राय रख रही थी, आखिर 24 घंटे में ऐसा क्या बदल गया कि अभियोजन पक्ष ने इस याचिका का विरोध नहीं किया. यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि सफ़ूरा ज़रगर की गिरफ़्तारी पर एमेनेस्टी इंटरनेशनल से लेकर मेधा पाटकर और अरुणा रॉय जैसी हस्तियों ने आपत्ति जताई थी, और मीडिया में भी एक गर्भवती युवती को ज़मानत न दिए जाने पर चर्चा हो रही थी.

मीरान हैदर

मीरान हैदर
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मीरान हैदर

मीरान हैदर जामिया में पीएच डी के छात्र हैं और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की दिल्ली यूनिट के छात्र नेता हैं. जामिया के गेट नंबर 7 पर हो रहे सीएए विरोधी प्रदर्शन का मीरान अहम हिस्सा रहे हैं. 35 साल के मीरान एक अप्रैल 2020 को गिरफ़्तार किए गए. इसके बाद तीन अप्रैल को उन्हें कस्टडी में भेजा गया. मीरान पर यूएपीए की ग़ैर-ज़मानती धाराएँ लगाई गई हैं और वे अब भी न्यायिक हिरासत में हैं.

गुलफ़िशा फ़ातिमा

गुलफ़िशा फ़ातिमा
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गुलफ़िशा फ़ातिमा

28 साल की गुलफ़िशा फ़ातिमा ने गाज़ियाबाद से एमबीए किया है. गुलफ़िशा दिल्ली में चल रहे एंटी-सीएए प्रदर्शन में नियमित रूप से भाग ले रही थीं. नौ अप्रैल 2020 को दिल्ली पुलिस ने उन्हें सफ़ूरा ज़रगर की तरह ही जाफ़राबाद थाने में दर्ज एफ़आईआर-48 के तहत गिरफ़्तार किया. 12 मई 2020 को सेशन कोर्ट से उन्हें इस मामले में ज़मानत मिल गई लेकिन उन्हें तिहाड़ जेल में रहते हुए ही एफ़आईआर-59 में गिरफ्तार कर लिया गया. वो अभी तिहाड़ में ही हैं और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए की ग़ैर-ज़मानती धाराएँ लगा दी गई हैं.

गुलफ़िशा के वकील महमूद पराचा के साथ मिलकर उनके भाई अकील हुसैन ने गुलफ़िशा की गिरफ्तारी को 'गैर-कानूनी हिरासत' बताते हुए हाईकोर्ट में हिबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका दायर की. इस याचिका के हाईकोर्ट में होने के बावजूद एडिशनल जज धर्मेंद्र राणा ने गुलफ़िशा को 25 जून 2020 तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

हालांकि सफ़ूरा को जिस दिन हाईकोर्ट की ओर से ज़मानत मिली उसके ठीक एक दिन पहले जज धमेंद्र राणा ने गुल़फ़िशा की बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका ख़ारिज कर दी थी. दरअसल, कोर्ट में ये याचिका इस आधार पर दायर की गई कि "यूएपीए के केस की सुनवाई का अधिकार सिर्फ़ एनआईए की स्पेशल कोर्ट को होता है लेकिन इस मामले में रिमांड ऑर्डर सेशन कोर्ट के जज ने सुनाया है जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है".जबकि कोर्ट ने कहा कि "ये दलील ग़लत है क्योंकि यूएपीए केस की सुनवाई एनआईए कोर्ट में हो ये तभी अनिवार्य है जब केंद्र सरकार ने ख़ास तौर पर केस को लेकर ऐसा आदेश दिया हो".

आसिफ़ इक़बाल तन्हा

आसिफ़ इक़बाल तन्हा
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आसिफ़ इक़बाल तन्हा

24 साल के आसिफ़ इकबाल तन्हा फ़ारसी भाषा के छात्र हैं. 17 मई 2020 को उन्हें जामिया नगर थाने में दर्ज 16 दिसंबर 2019 की एफ़आईआर 298 में गिरफ़्तार किया गया. लगभग 6 महीने बाद उनकी गिरफ़्तारी हुई. ये मामला 15 दिसंबर 2019 को जामिया यूनिवर्सिटी इलाके में पुलिस और सीएए के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच हुई झड़प से जुड़ा था. 20 मई को उनका नाम एफ़आईआर-59 में जोड़ दिया गया यानी तीन दिन पहले किसी अन्य मामले में गिरफ़्तारी और तीन दिन बाद यूएपीए वाले केस में नाम शामिल हो गया.

28 मई 2020 को एफ़आईआर-298 में आसिफ़ को सेशन जज गौरव राव ने ज़मानत दे दी लेकिन उनकी रिहाई नहीं हो सकी क्योंकि तब तक उनका नाम एफआईआर-59 में भी शामिल हो चुका था. एफ़आईआर-59 मामले में जब सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने आसिफ़ इक़बाल तन्हा की न्यायिक हिरासत 25 जून 2020 तक बढ़ाई थी तो उन्होंने कोर्ट में कहा था- "ऐसा लगता है कि जांच एक ही दिशा में की जा रही है. जांच अधिकारी ये ठीक-ठीक नहीं बता पाए हैं कि आखिर क्या जांच की गई है जिससे इनकी संलिप्तता को साबित किया जा सके". आसिफ़ अब भी न्यायिक हिरासत में हैं.

नताशा और देवांगना दोनों ही जेएनयू की छात्राएँ हैं, वे पिंजरा तोड़ की संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं. पिंजरा तोड़ दिल्ली के कॉलेजों की छात्राओं का एक समूह है जो लड़कियों के प्रति सामाजिक गैर-बराबरी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है. साल 2015 में इसकी शुरूआत कैंपस में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से हुई थी.

नताशा नरवाल

नताशा नरवाल
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नताशा नरवाल

23 मई को देवांगना और नताशा को एफ़आईआर48 के तहत गिरफ्तार किया गया. उन पर आरोप लगा कि इन्होंने जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन पर हिंसा से एक दिन पहले एंटी सीएए प्रदर्शन का आयोजन किया. 24 मई 2020 को ही मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अजीत नारायण ने इस मामले में उन्हें ज़मानत देते हुए कहा, "अभियुक्त केवल एनआरसी और सीएए के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रही थीं और ऐसा करना इस आरोप को साबित नहीं करता कि वे किसी हिंसा में शामिल थीं".

ठीक इसी दिन उन्हें एक अन्य एफ़आईआर-50 में गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि दोनों ही लड़कियां दिल्ली दंगों की साज़िश रचने में शामिल हैं. इस मामले में एक व्हाट्सएप मैसेज को आधार बनाया गया है. जिसका शीर्षक है- 'दंगे के हालात में घर की औरतें क्या करें.' इसके बाद 29 मई 2020 को नताशा नरवाल को एफ़आईआर59 में गिरफ़्तार कर लिया गया यानी उन पर यूएपीए की धाराएँ लग गईं.

देवांगना कलिता

देवांगना कलिता
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देवांगना कलिता

देवांगना को 30 मई 2020 को दरियागंज में सीएए विरोधी प्रदर्शन से जुड़े हिंसा के एक मामले में गिरफ़्तार किया गया. ये घटना 20 दिसंबर 2019 को हुई थी. इसमें दंगा करने, सरकारी अधिकारी को ड्यूटी करने से रोकने का आरोप उन पर लगाया गया.

दो जून 2020 को इस मामले में भी मजिस्ट्रेट अभिनव पांडे ने देवांगना को ज़मानत देते हुए कहा, "ऐसा कोई सीधा सबूत नहीं है जिसमें अभियुक्त किसी सरकारी कर्मचारी पर हमला करती नज़र आ रही हों. सीसीटीवी फुटेज भी ये नहीं दिखाता कि अभियुक्त हिंसा में शामिल है. फ़ोन-लैपटॉप से भी कुछ ऐसा भड़काऊ नहीं मिला है." लेकिन इसके तीन दिन बाद पाँच जून को स्पेशल सेल ने देवांगना को भी एफ़आईआर59 में गिरफ़्तार कर लिया और उन पर यूएपीए लगा दिया गया.

इस तरह इन सभी अभियुक्तों की शुरूआती गिरफ्तारी अलग-अलग मामलों में की गई लेकिन अब ये सभी एफ़आईआर59 का हिस्सा हैं और महीनों से जेलों में बंद हैं.

चार्जशीट में व्हाट्सएप चैट और फ़ेसबुक पोस्ट हैं 'सबूत'

आम तौर पर 90 दिन तक अगर जांच अधिकारी चार्टशीट दायर न कर सके तो अभियुक्त को खुद-ब-खुद ज़मानत मिल जाती है. चूंकि यूएपीए जांच एजेंसी को अतिरिक्त शक्तियां देता है, ऐसे में जांच अधिकारी 180 दिन तक का वक्त कोर्ट से मांग सकता है. इस केस में पहली चार्जशीट 17 सितंबर, 2020 को दाखिल की गई और दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट नवंबर, 2020 में दाख़िल की गई है.

पुलिस के मुताबिक़ इस षड्यंत्र की शुरूआत 4 दिसंबर, 2019 से होती है. इसी दिन 'मुस्लिम स्टूडेंट ऑफ़ जेएनयू'(एमएसजे) ग्रुप की शुरूआत हुई और शरजील इमाम को इस ग्रुप का सबसे सक्रिय सदस्य बताया गया है. पुलिस कहती है कि शरजील इमाम एमएसजे ग्रुप के ज़रिए स्टूडेंट ऑफ़ जामिया ग्रुप से जुड़े जो एक 'रेडिकल कम्यूनल ग्रुप' है. इन दोनों ग्रुपों ने सीएए को लेकर एक पर्चा बांटा.

यहां पुलिस जिस पर्चे को षड्यंत्र के सबूत के तौर पर पेश कर रही है वह पहले ही सार्वनिजक तौर पर उपलब्ध था. चार्जशीट में उमर ख़ालिद को शरजील इमाम का मेंटर बताया गया है. और पुलिस की क्रोनोलॉजी ये कहती है कि 7 दिसंबर 2019 को ख़ालिद ने शरजील इमाम को योगेंद्र यादव से मिलवाया. योगेंद्र यादव समाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया पार्टी के संयोजक हैं और इन दिनों किसान आंदोलन में सक्रिय हैं.

इसके बाद आठ दिसंबर को जंगपुरा में शरजील इमाम, योगेंद्र यादव, उमर ख़ालिद, नदीम ख़ान,परवेज़ आलम, ताहिरा दाउद, प्रशांत टंडन ने एक बैठक की और इसमें पहले से तैयार किए गए चक्का जाम के षड्यंत्र को लागू करने पर सहमति बनी. शरजील को छात्रों को बहकाने का काम दिया गया और यूनाइडेट अगेंस्ट हेट, स्वराज अभियान, लेफ्ट पार्टियों सहित सिविल सोसायटी के लोगों ने अपना समर्थन दिया.

पुलिस सीएए के ख़िलाफ़ हुए सबसे पहले बड़े विरोध प्रदर्शन को 'साजिश का पहला चरण' बताती है. चार्जशीट में एक 'प्रोटेक्टेड गवाह' के हवाले से पुलिस ने कहा है कि "13 दिसंबर को उमर ख़ालिद ने शरजील को आसिफ़ इक़बाल तन्हा से मिलवाया और चक्का जाम और धरना का फर्क बताया. इसके लिए दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके को चुना गया ताकि देश की सरकार को उखड़ा फ़ेका जाए क्योंकि ये हिंदू सरकार है. (जामिया के) गेट नंबर 7 से चक्का जाम शुरू हुआ."

इससे ये साफ़ है कि दिल्ली पुलिस मानती है कि देश में सीएए विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत ही दंगे की ओर पहला क़दम था. चार्जशीट में बार-बार व्हाट्सएप चैट्स और फ़ेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट दिए गए हैं और इनके ज़रिए दिल्ली पुलिस ने साज़िश की बात साबित करने की कोशिश की है. चार्जशीट में प्रमुखता से दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडैरिटी ग्रुप (डीपीएसजी) नाम के व्हाट्सएप ग्रुप का ज़िक्र है. चार्जशीट के एक हिस्से में पुलिस कहती है, "जेसीसी (जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी), एमएसजे (मुस्लिम स्टूडेंट ऑफ़ जेएनयू), एसजेएफ़ (स्टूडेंट ऑफ़ जामिया), यूनाइटेड अगेंस्ट हेट और दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडैरिटी ग्रुप ये सभी ग्रुप एक तानाबाना बुनकर एक साझा षड्यंत्र रच रहे थे".

चार्जशीट के मुताबिक, "जेसीसी और एमएसजे जैसे ग्रुप में छात्र और कार्यकर्ता थे जिन्हें मंझे हुए षड्यंत्रकारियों ने चुना था. वहीं दिसंबर, 2019 में पेशेवर लोगों का ग्रुप बना जिसका नाम था डीपीएसजी जिन्होंने लोगों को आतंकित करने का षड्यंत्र तैयार किया". डीपीएसजी ग्रुप 28 दिसंबर, 2019 को बना जिसे सबा दीवान और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाने वाले राहुल रॉय ने बनाया था.

दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट को लेकर जो आवेदन सेशन कोर्ट में पेश किया है उसकी सबसे पहली पंक्ति कहती है- "वर्तमान केस दिल्ली दंगों के पीछे की बड़ी साज़िश की पड़ताल करने के लिए है. 23 से 25 फरवरी के बीच हुए दिल्ली दंगों की साज़िश जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने रची. इसमें उनसे जुड़े कई समूह भी शामिल हैं". पुलिस का कहना है, "ये एक बड़ी तैयारी के साथ रचा गया षड्यंत्र था. उमर ख़ालिद ने भड़काऊ भाषण दिया और अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की 24-25 फरवरी की भारत यात्रा के दौरान सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर लोगों से जुटने को कहा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपैगैंडा फैलाना इसका मकसद था ताकि यह संदेश जाए कि अल्पसंख्यकों को भारत में सताया जा रहा है".

दिल्ली पुलिस के मुताबिक, "इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए फायर-आर्म्स, पेट्रोल बम और एसिड की बोतलों का इंतज़ाम किया गया". जून 2020 से ही दिल्ली पुलिस उमर ख़ालिद को 'साजिश का मुखिया" बताती रही है लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया एफ़आईआर दर्ज होने के छह महीने बाद 13 सितंबर, 2020 को. जांच में पुलिस ने ये भी दावा किया है कि एक साज़िश के तहत दिल्ली में 21 जगहों पर शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर सीएए विरोधी प्रदर्शन शुरू किए गए. स्पेशल सेल का कहना है कि जांच में कई व्हाट्सएप ग्रुपों का पता चला है जो दंगों की पल-पल की जानकारी दे रहे थे और ये सभी अभियुक्त इन ग्रुपों से जुड़े हुए थे.

ज़ाकिर नाईक की 'भूमिका'

ज़ाकिर नाइक
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ज़ाकिर नाइक

दिल्ली दंगों के तार इस्लामी प्रचारक ज़ाकिर नाईक से भी जोड़े गए हैं. ज़ाकिर नाईक पर अपने भाषणों से नफ़रत फैलाने और आंतकी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप है. वे इस वक़्त मलेशिया में हैं. भारत ने मलेशियाई सरकार से उनके प्रत्यर्पण के लिए अपील भी की थी जिसे वहां की सरकार ने ख़ारिज कर दिया.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कहना है कि "ख़ालिद सैफ़ी ने इन दंगों के लिए पीएफ़आई से फंड जुटाया. उनके पासपोर्ट की डिटेल के मुताबिक उन्होंने भारत से बाहर यात्रा की और ज़ाकिर नाईक से सपोर्ट/फ़ंड पाने के लिए मुलाकात की". इन गिरफ्तारियों और आरोपों से पहले ही 11 मार्च 2020 को लोकसभा में दिल्ली दंगों पर जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उमर ख़ालिद का नाम लिए बिना 17 फरवरी को दिए गए उनके एक भाषण का ज़िक्र किया था. गृह मंत्री ने कहा था कि ''17 फरवरी को ये भाषण दिया गया और कहा गया कि डॉनल्ड ट्रंप के भारत आने पर हम दुनिया को बताएंगे कि हिंदुस्तान की सरकार अपनी आवाम के साथ क्या कर रही है. मैं आप सबसे अपील करता हूं कि देश के हुक़्मरानों के ख़िलाफ़ बाहर निकलिए. इसके बाद 23-24 फ़रवरी को दिल्ली में दंगा हो गया".

उमर ख़ालिद के 17 फरवरी 2020 के महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गए एक भाषण का ज़िक्र दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भी बतौर सबूत किया है. दरअसल, उमर ख़ालिद ने अपने भाषण में कहा था, "जब अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप भारत में होंगे तो हमें सड़कों पर उतरना चाहिए. 24 तारीख को ट्रंप आएंगे तो बताएंगे कि हिंदुस्तान की सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है. महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियां उड़ रही हैं. ये बताएंगे कि हिंदुस्तान की आवाम हिंदुस्तान के हुक़्मरानों के ख़िलाफ़ लड़ रही है. उस दिन हम तमाम लोग सड़कों पर उतरकर आएंगे". संविधान और कानून के मुताबिक, लोगों से प्रदर्शन करने के लिए कहना अपराध नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन हिंसा के लिए भड़काना अपराध की श्रेणी में आता है.

दिल्ली पुलिस की पुरानी 'क्रोनोलॉजी'

दिल्ली में मस्जिद पर हमला
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दिल्ली में मस्जिद पर हमला

दिल्ली पुलिस ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) में काम करने वाले अंकित शर्मा की हत्या के मामले में एफ़आईआर-65 में चार्टशीट जून 2020 में पेश की . लेकिन अंकित शर्मा की हत्या के मामले में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल करने से पहले ही दिल्ली दंगों को लेकर एक 'क्रोनोलॉजी'(घटनाक्रम की जानकारी) पेश की. दावा है कि घटनाओं का ये क्रम दिल्ली में दंगे भड़कने की वजह रहा.

चार्जशीट के शुरुआती पांच पन्ने हत्या की जांच की जानकारी नहीं देते बल्कि 2019 के दिसंबर महीने से चल रहे सीएए विरोधी प्रदर्शन, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के भाषण और दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद के भाषणों को दिल्ली दंगों की नींव बताते हैं. दिल्ली पुलिस का कहना है कि "13 दिसंबर को जामिया यूनिवर्सिटी रोड पर सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ हुए प्रदर्शन से ही दिल्ली दंगों की नींव पड़ी. 2000 लोग बिना अनुमति जामिया मेट्रो स्टेशन के पास जुटे और संसद और राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ने लगे. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जामिया के एक नंबर गेट से पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों को पीछे की ओर खदेड़ा तो प्रदर्शनकारी पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया".

15 दिसंबर 2019 को दिल्ली पुलिस और जामिया के छात्रों के बीच हुई झड़प को भी पुलिस ने क्रोनोलॉजी का हिस्सा बताया है, घटना देर रात तक चलती रही थी कि शायद इसलिए पुलिस ने इसे 16 दिसंबर की तारीख़ के साथ दर्ज किया है. पुलिस के मुताबिक़, "शाम 5.30 बजे से 6 बजे के बीच जामिया के कुछ छात्र, कुछ पूर्व छात्र, स्थानीय लोगों ने जामिया और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के कई रास्तों पर प्रदर्शन के दौरान बसों को आग लगाई. जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ा तो वे एक योजना के तहत जामिया कैंपस में घुस गए और पुलिस पर कैंपस के अंदर से पत्थरबाज़ी की, ट्यूब लाइट्स से हमला किया, भड़काऊ नारे लगाए. हालात को काबू करने के लिए पुलिस को जामिया कैंपस में घुसना पड़ा और 52 लोगों को दिल्ली पुलिस एक्ट के तहत कुछ वक़्त के लिए हिरासत में लिया गया".

इसमें पुलिस ने उस बल प्रयोग का ज़िक्र नहीं किया है जो 15 दिसंबर को उन्होंने जामिया की ज़ाकिर हुसैन लाइब्रेरी में छात्रों पर किया था. कुछ महीनों बाद पुलिस की इस कार्रवाई का वीडियो भी सामने आया था जिसमें पुलिस लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों को पीटती हुई दिख रही है. पुलिस ने पूर्व आईएएस और जाने-माने समाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के एक बयान का जिक्र भी भड़काऊ भाषण के तौर पर किया है.

पुलिस अपनी रिपोर्ट में कहती है, "हर्ष मंदर 16 दिसंबर को जामिया के गेट नंबर 7 पर पहुंचे, यहां उन्होंने प्रदर्शनकारियों से सुप्रीम कोर्ट में यक़ीन न रखने की सलाह दी और कहा कि अपनी लड़ाई सड़कों पर उतरकर लड़ना होगा". पुलिस का कहना है कि हर्ष मंदर ने लोगों को भड़काने का काम किया है और बतौर सबूत पुलिस ने उनके 16 दिसंबर, 2019 के भाषण के एक छोटे-से हिस्से का ज़िक्र किया है लेकिन उनके पूरे भाषण में गांधी के सिद्धांतों, आपसी प्रेम और शांति की बातें कही गई थीं जिनका पुलिस ने ज़िक्र नहीं किया है.

दरअसल, पिछली रात के दिल्ली पुलिस के लाठीचार्ज के अगले दिन हर्ष मंदर 16 दिसंबर को जामिया के गेट नंबर 7 पर छात्रों से बात करने पहुंचे. यहां उन्होंने भाषण देते हुए कई और बातों के अलावा कहा था, "एक नारा उठाऊंगा कि लड़ाई किसके लिए है और किस लिए है? यह लड़ाई हमारे देश के लिए है, फिर हमारे संविधान के लिए है.'' उन्होंने अपने भाषण में सरकार की आलोचना की, सीएए को गलत बताया. इस भाषण में अदालतों के रवैए पर भी टिप्पणी की.

इस भाषण का अंत उन्होंने इस तरह किया, "संविधान ज़िंदाबाद, मोहब्बत जिंदाबाद". ये साढ़े सात मिनट का पूरा भाषण यूट्यूब पर मौजूद है जिसे आप यहां सुन सकते हैं. शाहीन बाग में महिलाओं के सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ 101 दिन चले प्रदर्शन को भी दिल्ली पुलिस दंगों की 'क्रोनोल़ॉजी' का हिस्सा मानती है.

कपिल मिश्रा प्रकरण

कपिल मिश्रा
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कपिल मिश्रा

इसके बाद पुलिस की 'क्रोनोलॉजी' 22 फरवरी को जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के पास हज़ारों की संख्या में जुटे प्रदर्शनकारियों पर आ जाती है. पुलिस का कहना है कि "66 फ़ुटा रोड पर चंद्रशेखर आज़ाद के भारत बंद आह्वान पर भीड़ जुटी और सरकार के खिलाफ़ नारेबाज़ी की गई. सड़कों पर भीड़ से लोगों की आवाजाही रोक दी गई". इसके बाद पुलिस की रिपोर्ट 23 फ़रवरी की शाम को जाफ़राबाद-मौजपुर सीमा पर हुई हिंसा पर चली जाती है.

जबकि उसी दिन बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के उस बयान का कहीं कोई ज़िक्र नहीं किया गया है जिसमें उन्होंने सीएए के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों को तीन दिन का अल्टीमेटम पुलिस की मौजूदगी में दिया था. मौजपुर में कपिल मिश्रा सीएए के समर्थन में हो रही रैली में पहुंचे. उन्होंने एक पुलिस के एक डिप्टी कमिश्नर की मौजूदगी में कहा था, "डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं, मैं आप सबके बिहाफ़ (की ओर से) पर कह रहा हूं, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे, अगर रास्ते खाली नहीं हुए तो. ट्रंप के जाने तक आप (पुलिस) जाफ़राबाद और चांदबाग खाली करवा लीजिए ऐसी आपसे विनती है, वरना उसके बाद हमें रोड पर आना पड़ेगा."

इसी शाम को सीएए के खिलाफ़ और समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच हिंसा शुरू हुई लेकिन पुलिस ने 13 दिसंबर से शुरू हुई "क्रोनोल़ॉजी" में 23 फ़रवरी के कपिल मिश्रा के बयान को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया. एक याचिका के जवाब में दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में कहा कि उन्हें "जांच के दौरान ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जो इस ओर इशारा करते हों कि इस भाषण से दिल्ली में दंगे हुए".

दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट कहती है, "23 फ़रवरी 3 बजे हमें जानकारी मिली कि मौजपुर में जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन वाले रास्ते को खाली कराने की मांग को लेकर हज़ारों की संख्या में लोग जुटे हैं और दोनों ही ओर से पत्थरबाज़ी की जा रही है". कपिल मिश्रा का भाषण पुलिस के रिकॉर्ड में कहीं दर्ज ही नहीं किया गया, लेकिन जब सितंबर में एफ़आईआर59 की चार्जशीट आई तो इसमें कपिल मिश्रा के नाम का ज़िक्र है. चार्जशीट के मुताबिक़ 28 जुलाई, 2020 को कपिल मिश्रा से पूछताछ की गई जिसमें मिश्रा ने कहा कि उन्होंने कोई स्पीच नहीं दी थी.

कपिल मिश्रा ने कहा है, ''मैं उन लोगों की समस्याओं को पुलिस तक पहुँचाने और पुलिस की मदद से ब्लॉक रोड को खुलवाने की पेशकश के लिए वहां गया था. मैंने कोई स्पीच नहीं दी, केवल पुलिस को तीन दिन में रोड खुलवाने के लिए कहा था ताकि इलाक़े के लोगों की समस्याओं का निपटारा हो सके. मेरे बयान का अर्थ था कि रोड ख़ाली न कराने की सूरत में हम भी धरने पर बैठेंगे.'' कपिल मिश्रा की पूछताछ के बाद इस मामले में क्या जांच की गई इसका कोई विश्लेषण चार्जशीट में नहीं है.

ट्रंप का भारत दौरा

ट्रंप के साथ मोदी
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ट्रंप के साथ मोदी

जून में पेश की गई 'क्रोनोलॉजी' में दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, "ये दंगे तब किए गए जब अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप दो दिन की भारत यात्रा पर थे. ये संयोग नहीं था बल्कि देश की छवि को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख़राब करने की सोची-समझी साज़िश थी. जांच में सामने आया है कि ताहिर हुसैन, ख़ालिद सैफ़ी के संपर्क में थे जो 'यूनाइटेड अगेंस्ट हेट' का हिस्सा हैं और उमर ख़ालिद इसके संस्थापक सदस्य हैं. खालिद सैफ़ी ने 8 जनवरी को ताहिर हुसैन और उमर ख़ालिद की मुलाक़ात शाहीन बाग में कराई. इस मुलाकात में सीएए-एनआरसी को लेकर 'बड़े धमाके' की तैयारी की गई ताकि केंद्र सरकार को झटका दिया जा सके और देश की छवि को वैश्विक स्तर पर नुकसान पहुंचाया जा सके".

चार्जशीट के अनुसार, "उमर ख़ालिद ने इस बात का आश्वासन ताहिर हुसैन को दिया कि फ़ंड की चिंता ना करें, पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया इस दंगे के लिए फंड और ज़रूरी चीज़ों का इंतज़ाम करेगा. दंगों का वक़्त डॉनल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से पहले या उसके दौरान तय किया गया".

लेकिन सितंबर में आई स्पेशल सेल की चार्जशीट के मुताबिक़, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की यात्रा से पहले 8 जनवरी, 2020 तारीख को दंगे की साजिश के लिए बैठक हुई थी.

एफ़आईआर 65/2020 में घटनाओं की क्रोनोलॉजी बताते हुए इस बैठक की जानकारी दी गई थी.

बीबीसी ने अपनी पड़ताल में पाया कि डॉनल्ड ट्रंप के संभावित दौरे को लेकर सबसे पहली रिपोर्ट 'द हिंदू' की पत्रकार सुहासिनी हैदर ने 14 जनवरी को दी थी.

ट्रंप और मोदी
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ट्रंप और मोदी

ट्रंप के दौरे को लेकर इससे पहले कोई ख़बर मीडिया में नहीं थी. दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, "उमर ख़ालिद-ताहिर हुसैन- ख़ालिद सैफ़ी ने 8 जनवरी को ही ये तय कर लिया था कि ट्रंप के भारत दौरे के समय दंगे भड़काए जाएँगे और बड़ा धमाका किया जाएगा".

जब ट्रंप के दौरे को लेकर पहली खबर ही 14 जनवरी यानी 6 दिन बाद आई तो ये कैसे संभव है कि उन्हें इस दौरे की जानकारी इन लोगों को पहले से थी. 11 फरवरी को सरकार और व्हाइट हाउस ने इस दौरे के बारे में पहला आधिकारिक बयान जारी किया था.

एडवोकेट बिंद्रा की 'साज़िश'

दिल्ली पुलिस ने हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की हत्या की एफ़आईआर-60 में 17 लोगों की गिरफ़्तारी की है. इस केस की चार्जशीट में पुलिस ने शाहीन बाग, चांद बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के लिए लंगर लगाने वाले वकील डीएस बिंद्रा को दंगों का मुख्य षड्यंत्रकारी बताया है.

पुलिस ने इसमें समाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव, दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र नेता कंवलप्रीत कौर, जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफ़ूरा ज़रगर, पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया के छात्र मीरान हैदर का नाम भी चार्जशीट में शामिल किया है.

अभी इन लोगों को अभियुक्त नहीं बनाया गया है, केवल इनका ज़िक्र किया गया है. इस केस में "और जांच के बाद" एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट पुलिस दायर करेगी.

दरअसल, 24 फ़रवरी को 42 साल के रतनलाल की तैनाती चांद बाग इलाके में थी जहां हिंसा भड़की. दंगाइयों ने उन पर हमला बोल दिया. घायल अवस्था में उन्हें अस्पताल लाया गया जहां उनकी मौत हो गई. इस हिंसा में डीसीपी अमित कुमार शर्मा, एसीपी अनुज कुमार भी गंभीर रूप से ज़ख़्मी हुए थे. कॉन्स्टेबल रतनलाल दिल्ली दंगों में जान गंवाने वाले शुरूआती लोगों में शामिल थे.

चार्जशीट 60- गवाहों के बयान

सीआरपीसी की धारा-164 के तहत तीन चश्मदीद गवाहों के बयानों को चार्जशीट में दर्ज किया गया है- नजम अल हसन, तौक़ीर और सलमान उर्फ गुड्डू. इन तीनों बयानों को पढ़ने पर पता चलता है कि इन सभी ने कुछ बातें एक जैसी कही हैं. मसलन-

नजम : "बिंद्रा ने बात शुरू की कि एनआरसी और सीएए के खिलाफ़ आपको प्रदर्शन करना है. मैं लंगर और मेडिकल कैम्प लगाऊंगा, पूरी सिख कौम आपके साथ है. अगर आप अभी नहीं उठेंगे तो वही हाल होगा जो 1984 में हमारा हुआ था. प्रदर्शन शुरु हो गया इसमें बाहर से लोग लाए जाते थे, जिनमें एडवोकेट भानु प्रताप, एडवोकेट बिंद्रा, योगेंद्र यादव तथा जेएनयू, जामिया और डीयू के छात्र आते थे जो सरकार और NRC के खिलाफ़ बोला करते थे".

तौकीरः जनवरी 2020 में चांद बाग के सर्विस रोड पर बिंद्रा के लंगर में सीएए और एनआरसी का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ. वहां जो भाषण होते उसमें डीएस बिंद्रा अक्सर 1984 के दंगे की याद दिलाते हुए कहा करते थे कि यह सरकार सीएए-एनआरसी लागू करके मुस्लिम, दलितों को सिखों की तरह प्रताड़ित करना चाहती है. वहां जो भाषण देते थे वे स्टूडेंट जामिया, जेएनयू और डीयू के होते थे जो प्रोटेस्ट करने के बारे में बताते थे.

सलमान उर्फ़ गुड्डूः बिंद्रा ने कहा था सीएए-एनआरसी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ है. जैसा 1984 में सिखों के साथ हुआ था वैसा ही हाल करेंगे. जामिया-जेएनयू से लड़के-लड़कियां आते थे और स्टेज पर आकर भाषण देते थे और यह प्रोटेस्ट ऐसे ही चलता रहा.

ये बातें तीन अलग-अलग लोगो के बयानों में लगभग एक ही तरह से कही गई है.

इन बयानों को 'एनालाइज़' करके दिल्ली पुलिस कहती है, "सलीम खान, सलीम मुन्ना, डीएस बिंद्रा, सलमान सिद्दिकी, डॉ. रिज़वान, अतहर, शादाब, रवीश, उपासना तबस्सुम इस प्रदर्शन के आयोजक थे और लोगों को दंगे के लिए भड़काने में शामिल थे". लेकिन दिल्ली पुलिस ने ऐसे 'भड़काऊ भाषणों' का कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सबूत पेश नहीं किया है.

आख़िर किसने कॉन्स्टेबल रतनलाल को मारा?

रतनलाल की हत्या के मामले में जिन 17 लोगों की गिरफ़्तारी पुलिस ने की है इन्हें सीसीटीवी वीडियो फ़ुटेज के आधार पर अभियुक्त बनाया गया है. पुलिस के मुताबिक इनके हाथ में, डंडे, रॉड और पत्थर थे.

हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनके शरीर पर 21 घाव थे. उनकी मौत अत्यधिक खून बहने से हुई और ये उनके फेफड़े में 'राइफल्ड फायरआर्म' के घाव के कारण हुआ था. लेकिन पुलिस की सीसीटीवी फुटेज के विवरण के मुताबिक इनमें से किसी के भी हाथ में राइफ़ल-रिवाल्वर जैसे फायरआर्म्स नहीं थे. साथ ही पुलिस पूरी चार्जशीट में कहीं भी ये नहीं बताती कि इन 17 लोगों में से किसने और कैसे कॉन्स्टेबल रतनलाल की हत्या की है.

अंकित शर्मा की हत्या

अंकित शर्मा
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अंकित शर्मा

ताहिर हुसैन पर दिल्ली दंगों से जुड़े कुल 11 केस चल रहे हैं. एफ़आईआर 65 -अंकित शर्मा मर्डर, एफ़आईआर 101- चांद बाग हिंसा में अहम भूमिका, एफ़आईआर 59- दिल्ली दंगों के पीछे गहरी साज़िश. ये तीन सबसे महत्वपूर्ण मामले हैं. एफ़आईआर 101 और 65 दोनों ही मामले काफ़ी मिलते-जुलते हैं.

अंकित शर्मा के पिता रविंदर कुमार की एफ़आईआर के मुताबिक़ 25 फ़रवरी को शाम 5 बजे अंकित घर का सामान लेने बाहर गए लेकिन जब वह काफ़ी देर तक नहीं लौटे तो उनके घर वालों ने उनकी तलाश शुरू की. पता चला कि वे पास ही रहने वाले कालू के साथ बाहर गए हैं. कालू से जब अंकित के परिवार ने पूछा तो पता चला कि चांद बाग की मस्जिद से किसी लड़के को मारकर नाले में फेंका गया है. जब रविंदर कुमार ने दयालपुर थाने को सूचित किया तो गोताखोरों की मदद से एक लाश निकाली गई और उसकी पहचान अंकित के रूप में हुई.

पैराग्राफ़ 38 में पुलिस कुछ चश्मदीदों से पूछताछ के आधार पर कहती है, "25 फ़रवरी को हिंदुओं की एक भीड़ ताहिर हुसैन के मकान E-7, ख़जूरी ख़ास से कुछ दूरी पर खड़ी थी. मकान के पास 20-25 की संख्या में दंगाई खड़े थे जिन्होंने हाथों में डंडे, चाकू और हथियार ले रखे थे. अंकित भीड़ से निकलकर दोनों ओर से लोगों को शांत कराने के इरादे से सामने आए, लेकिन ताहिर हुसैन के भड़कावे में आकर भीड़ ने अंकित को पकड़ लिया और चांद बाग पुलिया के सामने बेकर केक शॉप ई-17, नाला रोड, खजूरी ख़ास ले गए. उन पर वहां धारदार हथियार से हमला कर उनकी हत्या की गई और लाश को नाले में फेंक दिया गया".

ताहिर हुसैन, अंकित शर्मा
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ताहिर हुसैन, अंकित शर्मा

सात चश्मदीद गवाहों के बयानों के आधार पर पुलिस ने इस घटना का ये ब्यौरा पेश किया है. इनमें कालू नाम के उस शख़्स का बयान भी दर्ज है जो अंकित के घर के पास रहता है और अंकित के साथ घटना से ठीक पहले भी था.

हालांकि अंकित के पिता रविंदर कुमार ने पुलिस से की गई शिकायत में कहा था कि उन्हें भीड़ ने बताया कि चांद बाग की मस्जिद से किसी को मारकर फेंका गया. लेकिन पुलिस की तफ़्तीश में ये नहीं बताया गया है कि क्या उसने अंकित के पिता के, मस्जिद में अंकित को मारे जाने वाले दावे की पड़ताल की या नहीं.

अगर हां तो वहां पुलिस को क्या मिला? आम तौर पर पहले पुलिस शिकायतकर्ता के दावों की पड़ताल करती है.

पुलिस ने अपनी जांच में ये भी कहा है कि इस इलाके के सीसीटीवी कैमरे या तो काम नहीं कर रहे थे या हिंसा के वक्त उन्हें तोड़ दिया गया था.

12 मार्च 2020 के इस मामले में पुलिस ने 20 साल के हसीन नाम के शख़्स को गिरफ्तार किया. पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि उसने फ़ोन पर बातचीत के दौरान ये कबूल किया था कि उसने किसी को मारकर नाले में फेंका है. रिपोर्ट के पैराग्राफ़ 48 के मुताबिक़ उसने पूछताछ में ये कबूल किया है कि उसने हत्या अकेले की है.

लेकिन इस केस में एक अन्य चश्मदीद गवाह ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि इलाके के पार्षद ताहिर हुसैन अंकित शर्मा की हत्या के वक़्त मौजूद थे और लोगों को हत्या के लिए उकसाया जिसके बाद हसीन के साथ मिलकर अनस, जावेद,शोएब आलम, गुलफ़ाम और फिरोज़ ने अंकित शर्मा की हत्या की.

ताहिर हुसैन के दंगे और अंकित शर्मा की हत्या में शामिल होने को लेकर पुलिस दो बातें मुख्य तौर पर कह रही है-

1. ताहिर हुसैन के मकान ई-7, खजूरी ख़ास, मेन करावल नगर में फॉरेंसिंक टीम को पत्थर-ईंट के टुकड़े, टूटी हुई बोतलें, बोतलों में तेज़ाब और पेट्रोल बम मिले. ताहिर हुसैन के मकान की छत से दंगाइयों ने तेज़ाब भरी बोतल, पेट्रोल बम और पत्थर फेंके. इस मकान की पहली मंज़िल पर उनका दफ़्तर था. इस मकान की छत को लॉन्चिंग पैड की तरह इस्तेमाल किया गया और ताहिर हुसैन के घर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

2. ताहिर हुसैन ने 7 जनवरी को अपनी लाइसेंसी पिस्तौल खजूरी खास थाने में जमा की थी, 22 फरवरी यानी हिंसा शुरू होने के एक दिन पहले उन्हेंने खजूरी खास थाने से अपनी पिस्तौल निकलवाई थी. पिस्तौल उन्होंने क्यों निकलवाई इसका संतोषजनक जवाब ताहिर की तरफ़ से नहीं मिला. इस पिस्तौल की 100 कारतूसों में से 22 इस्तेमाल की गईं और 14 का पता नहीं है.

अंकित शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि उनके शरीर पर घाव के 51 निशान थे जो चाकू, डंडे या धारदार हथियारों से किए गए थे. अंकित के शरीर पर गोलियों का कोई निशान नहीं मिला.

अपनी इसी जांच के पैराग्राफ 54 में पुलिस ताहिर हुसैन के कॉल डेटा के आधार पर कहती है कि उन्होंने 24 फरवरी से 25 फरवरी के बीच कई बार दिल्ली पुलिस की पीसीआर वैन को कॉल किया था. 24 फरवरी को दोपहर 2.50 बजे से शाम 6 बजे के बीच 6 बार पीसीआर को फोन किया गया और 25 फरवरी को 3.50 से 4.35 के बीच भी 6 बार पीसीआर को ताहिर हुसैन के नंबर से कॉल किया गया.

24 फ़रवरी को की गई छह कॉल में से चार कॉल ही पीसीआर में लग सकीं. जिनमें से तीन कॉल को दयालपुर पुलिस स्टेशन से कनेक्ट किया गया.

इमरजेंसी ऑफिसर का कहना है कि घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा थी और पुलिस बल संख्या में कम थी इसलिए वे ताहिर हुसैन की इमरजेंसी कॉल पर नहीं पहुंच सके. जब काफ़ी देर रात पुलिस ताहिर हुसैन के मकान पर पहुंची तो देखा कि अगल-बगल की दुकानों में आग लगी है और ताहिर हुसैन का घर बचा हुआ है.

अपने मकान के सामने ताहिर हुसैन खड़े मिले. पुलिस आगे कहती है कि ''इसे देखकर लगता है कि ताहिर हुसैन दंगाइयों के साथ मौजूद थे और उन्होंने जान-बूझकर पीसीआर को फोन किया ताकि वो कानून से बच जाएं.''

अपनी गिरफ़्तारी से पहले ताहिर हुसैन एक वीडियो बयान जारी करके कहा था कि उस घर में नहीं रहते थे जिसकी छत पर से बोतलें और पत्थर बरामद हुए हैं, उन्होंने ये भी कहा कि उन्होंने दंगे रुकवाने के लिए कई बार पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन पुलिस नहीं आई. वे ख़ुद को बेकसूर बताते हैं और उनका कहना है कि एक साज़िश के तहत उन्हें मामले में फँसाया गया है.

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English summary
Delhi riot- Charge sheet after one year, charge sheet, chronology, intrigue, arrested student leader and activist
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