दिल्ली चुनाव : जिस सीट से जीते थे कीर्ति आजाद बाद में वह बन गयी मुख्यमंत्रियों की सीट
दिल्ली चुनाव: जिस सीट से जीते थे कीर्ति आजाद,वह बन गयी मुख्यमंत्रियों की सीट
नई दिल्ली। कीर्ति आजाद जिस हसरत से कांग्रेस में आये थे वो पूरी होती नहीं दिख रही। सांसद तो नहीं ही बन पाये, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में भी रन आउट हो गये। सांत्वना के लिए उन्हें दिल्ली चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। पूर्वांचली वोट की मजबूरी में ही कीर्ति को ये पद दिया गया है। कीर्ति के मुताबिक उन्होंने भाजपा के अन्याय से ऊब कर न्याय की आस में कांग्रेस का दामन थामा था। लेकिन कांग्रेस में उनकी पारी जम नहीं पा रही। दरभंगा से भाया धनबाद उनका दिल्ली तक का सफर कुछ खास नहीं रहा। 2020 के विधानसभा चुनाव में आजाद को कीर्ति मिलेगी या नहीं, ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन ये वहीं दिल्ली है जिसने उनके किस्मत के दरवाजे को खोला था। दिल्ली ने उन्हें क्रिकेटर बनाया था। दिल्ली ने ही उनको पहली बार विधायक भी बनाया। लेकिन तब और अब में फर्क है। जब विधायक बने थे तब भाजपा में थे। अब कांग्रेस में हैं।
दिल्ली ने ही बनाया क्रिकेटर और नेता
कीर्ति आजाद के पिता भागवत झा आजाद बिहार से सांसद थे। इंदिरा गांधी की सरकार में वे मंत्री रहे थे। पिता के साथ दिल्ली में रहे कीर्ति पूरी तरह दिल्लीवाले हो गये। दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में बीए किया। यूनिवर्सिटी क्रिकेट में नाम कमाया तो भारतीय टीम से खेलने का मौका मिला। 1983 के विश्वकप विजेता टीम के वे सदस्य थे। लेकिन उनका क्रिकेट करियर बहुत छोटा रहा। केवल 7 टेस्ट और 25 वनडे ही खेल पाये। पिता राजनीति में थे तो वे भी पॉलिटिशियन बन गये। भागवत झा आजाद कांग्रेस के बड़े लीडर थे लेकिन कीर्ति को विधायक बनाया भाजपा ने।
1993 में विधायक
क्रिकेट से रिटायर होने के करीब दस साल बाद कीर्ति आजाद की संसदीय पारी शुरू हुई। 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में कीर्ति भाजपा के टिकट पर गोल मार्केट विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे। उनके सामने थे कांग्रेस के ब्रिज मोहन भामा। कीर्ति आजाद को 18 हजार 935 वोट मिले जब कि ब्रिज मोहन 15 हजार 132 वोट ही ला सके। इस तरह कीर्ति 3 हजार 823 वोटों से जीत गये। एक क्रिकेटर विधायक बन गया। लेकिन एक विधायक के रूप में उनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। अगले चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया।
1998 के चुनाव में हार
1998 के चुनाव में भाजपा ने कीर्ति आजाद को गोल मार्केट से फिर मैदान में उतारा। इस बार परिस्थियां बदल गयी थीं। तब सोनिय गांधी कांग्रेस की नयी नयी अध्यक्ष बनी थीं। दिल्ली विधानसभा चुनाव उनके लिए अग्निपरीक्षा थी। उस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थीं। भाजपा की इस प्रखर नेता से मुकाबले के लिए कांग्रेस को एक मजबूत नेता की जरूरत थी। सोनिया गांधी ने तब शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश से बुला कर दिल्ली की कमान सौंप दी। शीला दीक्षित ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में लाजवाब काम किया। विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने लिए गोल मार्केट सीट पसंद की। इस सीट पर भाजपा के कीर्ति आजाद से उनका मुकाबला हुआ। कीर्ति ने पिछली बार की तुलना में अधिक वोट हासिल किये लेकिन वे हार गये। शीला दीक्षित को व्यापक जनसमर्थन मिला। उन्हें 24 हजार 881 मत हासिल कर कीर्ति को पांच हजार से अधिक वोटों से हरा दिया। इस हार के बाद कीर्ति आजाद का दिल्ली से तंबू उखड़ गया।
कीर्ति की सीट बन गयी सीएम की सीट
कीर्ति आजाद 1993 में गोल मार्केट सीट से जीते थे। 1998 में इस सीट से शीला दीक्षित जीतीं और वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 2003 में शीला दीक्षित ने फिर यहां जीत हासिल की और सीएम बनीं। इस बार उन्होंने कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद (भाजपा) को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। 2008 में गोल मार्केट सीट परिसीमन के बाद नयी दिल्ली विधानसभा सीट बन गयी। इस चुनाव में शीला दीक्षित ने भाजपा के विजय जौली को हराया था और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी थीं। 2013 के विधानसभा चुनाव में जब अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी बना कर मैदान में उतरे तो उन्होंने भी नयी दिल्ली विधानसभा सीट से ही ताल ठोकना पसंद किया। केजरीवाल ने तीन बार की सीएम शीला दीक्षित को 25 हजार से अधिक वोटों से हरा कर तहलका मचा दिया। बहुमत नहीं मिला फिर भी अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। 2015 के चुनाव में भी केजरीवाल ने यहीं से जीत हासिल कर सीएम की कुर्सी पायी। यानी जिस गोल मार्केट (बाद में नयी दिल्ली सीट) सीट पर कीर्ति आजाद ने जीत हासिल की बाद में वह मुख्यमंत्रियों का चुनाव क्षेत्र बन गया। आज कांग्रेस में किनारे खड़े कीर्ति गुजरे हुए जमाने के जरूर याद कर रहे होंगे।