मोदी और कश्मीरी नेताओं की बैठक को कैसे देख रहा है पाकिस्तानी मीडिया?
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने कहा कि है कि भारत को कश्मीर पर जो करना है वो कर रहा है लेकिन पाकिस्तान कुछ कर नहीं पा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जम्मू-कश्मीर की आठ पार्टियों के 14 नेताओं की बैठक की चर्चा पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ख़ूब हो रही है.
ये होना लाजिमी भी था क्योंकि बैठक कश्मीर को लेकर थी और दोनों देशों के बीच विवाद का अहम मुद्दा भी कश्मीर ही है.
पाकिस्तान के मीडिया में भी इस बैठक ने सुर्खियाँ बटोरी हैं. पाकिस्तान के अहम अंग्रेज़ी अख़बार 'द डॉनट ने पहले पन्ने की बॉटम ख़बर बैठक की ही बनाई है. डॉन ने इस रिपोर्ट का शीर्षक दिया है- मोदी कश्मीर पर बैठक से छवि सुधारना चाहते हैं.
डॉन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''मोदी के साथ 14 कश्मीरी नेताओं की बैठक को चौंकाने वाली मुलाक़ात के तौर पर प्रचार किया गया. इस बैठक के बाद हर कोई मुस्कुराते हुए निकला. इस बैठक में हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस का नाम तक नहीं लिया गया.''
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https://twitter.com/AmitShah/status/1408062700442165254
''पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने पत्रकारों से कहा कि उन्होंने राजनीति क़ैदियों को रिहा करने के लिए कहा है. ये वही महबूबा मुफ़्ती हैं जो सार्वजनिक रूप से अनुच्छेद 370 बहाल करने को कहती थीं.''
डॉन ने महबूबा मुफ़्ती के उस बयान को भी जगह दी है, जिसमें उन्होंने बैठक के बाद कहा था, ''हम अनुच्छेद 370 के लिए लड़ेंगे. चाहे इस लड़ाई में सालों लगे या महीनों. हमें ये विशेष दर्जा पाकिस्तान से नहीं मिला था बल्कि भारत से मिला था और नेहरू ने दिया था. इससे कोई समझौता नहीं हो सकता है.''
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डॉन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''भारत के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करने को लेकर कुछ मतभेद हैं. मोदी चाहते हैं कि चुनाव होने से पहले परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाए. मोदी ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल करने का वादा किया है लेकिन उसके लिए अभी इंतज़ार करना होगा.''
''ऐसी रिपोर्ट है कि चीन विरोधी गुट क्वॉड के नेता वॉशिंगटन में मिल सकते हैं. ऐसे में मोदी मानवाधिकार के मोर्चे पर ख़ुद को दुरुस्त करने में लगे हैं. मोदी गुरुवार की बैठक बाद ख़ुद को ख़ुश देख सकते हैं.''
इस बैठक पर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित की भी नज़र थी. उन्होंने इस बैठक को लेकर यूट्यूब पर एक वीडयो पोस्ट किया है. अब्दुल बासित ने इस बैठक को भारत का ड्रामा बताया है.
बासित ने कहा, ''इस बैठक से जो निकला है, वो ये है कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया अगले साल मार्च तक ख़त्म हो जाएगी. परिसीमन का लक्ष्य यही है कि जम्मू में कश्मीर की तुलना में सीटें ज़्यादा की जाएं. इसके बाद चुनाव कराया जाएगा. पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल हो ही जाएगा क्योंकि बीजेपी ने पहले ही कहा था कि पूर्ण राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा. लेकिन ये बिना लद्दाख के ही होगा. लेकिन इससे भी कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि सुरक्षा व्यवस्था तो दिल्ली से ही काबू में किया जाएगा.''
पाकिस्तान के लिए बढ़ी चुनौती
बासित ने कहा, ''भारत एक मंसूबे के तहत आगे चल रहा है. यह मीटिंग पूरी तरह से सुनियोजित थी. जिन 14 लोगों को बुलाया गया था, वे भारत के समर्थक हैं. फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने तो कह भी दिया कि वे अपने वतन का बात करेंगे न कि पाकिस्तान की.''
''नई दिल्ली इन नेताओं का इस्तेमाल कर रहा है. पहले इन्हें गिरफ़्तार किया गया ताकि लगे कि ये वे लोग हैं जो बग़ावत का हिस्सा हैं. इनकी प्रासंगिकता बढ़ाने के लिए ऐसा किया गया था. फिर इन्हें छोड़ भी दिया गया और बैठक में बुला लिया गया. एक ड्रामा रचाया जा रहा है. ये तमाम नेता नई दिल्ली के हाथों में खेल रहे हैं. हिन्दुस्तान की बाक़ी रियासतों की तरह ही जम्मू-कश्मीर बढ़ रहा है.''
https://twitter.com/abasitpak1/status/1408018114768367628
अब्दुल बासित ने कहा, ''भारत अपनी योजना के मुताबिक़ ही आगे बढ़ रहा है. अगर पूर्ण राज्य का दर्जा मिल भी जाता है तो पाकिस्तान का इसमें क्या है. संविधान के स्तर पर जो तब्दीली आई है, उसमें कोई भी बदलाव नहीं होने जा रहा है. मोदी ने बैठक में कह ही दिया कि उन्हें जो करना था कर दिया अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है. मामला ऐसे ही आगे चलेगा. हमें ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं है. पाकिस्तान के लिए चुनौती ये है कि जम्मू-कश्मीर में जो उसे लेकर भावना है, उसे ज़िंदा रखे और उसे मरने नहीं दे.''
अब्दुल बासित ने कहा, ''पाकिस्तान का कश्मीरियों के साथ खड़ा होना बहुत ज़रूरी है. हमें नई दिल्ली से जंग की शुरुआत नहीं करनी चाहिए लेकिन बैक चैनल डिप्लोमैसी की भी एक सीमा होनी चाहिए. मेरा ख़याल यह है कि भारत को दुनिया को दिखाना था कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को बहाल किया जा रहा है. भारत अपने हिसाब से सब कुछ कर रहा है. मैं शुरू से ही कह रहा था जिन्हें बुलाया गया है, वो ते भारत के समर्थक लोग हैं. कश्मीर में सब कुछ ठीक होता तो लाखों फ़ौजी ना होते. बुनियादी तौर पर भारत वैसे ही बढ़ रहा है. कश्मीरियों को फ़िक्र है कि पाकिस्तान कुछ कर पाएगा या नहीं.''
मोदी की मजबूरी?
पाकिस्तानी अख़बार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने भी बैठक की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार है.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''भारत के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया था. यह अभी दिल्ली से शासित हो रहा है. यह बीजेपी के एजेंडा का हिस्सा था कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करना है. ये मोदी के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे का हिस्सा है.''
पाकिस्तान की न्यूज़ वेबसाइट इंटरनेशनल द न्यूज़ ने लिखा है कि इस बैठक में कोई बड़ा फ़ैसला नहीं लिया गया और कई कश्मीरी नेताओं ने कहा कि उन्होंने अपनी माँगें दोहराई हैं.
द न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''केवल भारत समर्थक कठपुतली नेताओं को बुलाया गया था जबकि आज़ादी की मांग करने वालों नेताओं को नहीं बुलाया गया. भारत ने कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर भी कुछ नहीं कहा है. यह बैठक प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशों में अपनी आलोचना कम करने के लिए बुलाई थी.''
द न्यूज़ ने सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो सुशांत सिंह का एक कोट भी अपने बयान में लिया है. सुशांत सिंह ने कहा है, ''जियोपॉलिटिकल वजहों से मोदी कश्मीरी नेताओं के साथ बात करने पर मजबूर हुए हैं. यूएई जिस बैक चैनल के ज़रिए भारत और पाकिस्तान के बीच बात करवा रहा है, उसमें मोदी सरकार की भी कुछ प्रतिबद्धताएं तय की गई हैं और ये उसी का हिस्सा है.''
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