कोरोना वायरस: भारत के ये दो वैज्ञानिक क्या कमाल करने वाले हैं?
कोरोना के टेस्ट को लेकर रोज़ नई खबरें आ रही हैं. कभी देश में टेस्टिंग की संख्या को लेकर विवाद होता है, तो कभी टेस्टिंग किट के दाम को लेकर कर. लेकिन अगर सब कुछ सफल रहा तो, भारत सरकार का नया दावा दुनिया में तहलका मचा सकता है. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), ने एक नए तरह के टेस्ट को इजाद करने का दावा किया है.
बांग्ला कहानियों के आप शौकीन ना हों तो शायद आप 'फेलूदा' से परिचित ना भी हों.
इसलिए आज हम आपका परिचय पहले 'फेलूदा' से कराते हैं. बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे का नाम आपने ज़रूर सुना होगा.
ये फेलूदा उनकी फ़िल्मों का एक किरदार रहा है और कई कहानियों का हिस्सा भी. ये बंगाल में रहने वाला प्राइवेट जासूसी किरदार है, जो छानबीन कर हर समस्या का रहस्य खोज ही लेता है.
कुछ कुछ ब्योमकेश बक्शी जैसा.
जैसे ही इनके बारे में आप गूगल करेंगे तो आपको कई बड़ी फ़िल्मी हस्तियों के नाम मिल जाएंगें जो फेलूदा की भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन आज हम सत्यजीत रे की 'फेलूदा' की बात नहीं कर रहे.
हम आज आपको बताएंगे, कोरोना दौर में 'फेलूदा' दोबारा क्यों चर्चा में हैं.
कोरोना 'फेलूदा' टेस्ट किट
दरअसल, टेस्टिंग को लेकर भारत सरकार ने एक नया दावा किया है, जिसने तहलका मचा दिया है.
कोरोना के टेस्ट को लेकर रोज़ नई खबरें आ रही हैं. कभी देश में टेस्टिंग की संख्या को लेकर विवाद होता है, तो कभी टेस्टिंग किट के दाम को लेकर कर. लेकिन अगर सब कुछ सफल रहा तो, भारत सरकार का नया दावा दुनिया में तहलका मचा सकता है.
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), ने एक नए तरह के टेस्ट को इजाद करने का दावा किया है.
इसके तहत एक पतली सी स्ट्रीप होगी, जिस पर दो काली धारी दिखी नहीं की आपको पता लग जाएगा कि आप कोरोना पॉज़िटिव हैं.
सीएसआईआर के मुताबिक़ ये सुनने में आपको ये जितना आसान लग रहा है, करने में भी उतना ही आसान होगा.
#IndiaFightsCorona: @IGIBSocial and TATA Sons sign an MoU for licensing KNOWHOW related to development of a kit for rapid and accurate diagnosis of #COVID19.
Details: https://t.co/SxL3lKR739@CSIR_IND @TataCompanies @RNTata2000 @MoHFW_INDIA @drharshvardhan @ICMRDELHI
— #IndiaFightsCorona (@COVIDNewsByMIB) May 5, 2020
सीएसआईआर, विज्ञान एंव प्रद्यौगिकी मंत्रालय के अंदर काम करता है. इस तकनीक को दो वैज्ञानिकों ने विकसित किया है.
भारत सरकार से इस तकनीक को आगे बढ़ाने की मंज़ूरी मिल चुकी है और टाटा के साथ इसे बनाने का क़रार भी कर लिया गया है.
केन्द्र सरकार की ओर से जारी किए गए प्रेस नोट में साफ़ लिखा गया है ये पूरी तरह भारतीय टेस्ट है जिसे एक साथ समूह में कई टेस्ट करने में आसानी होगी.
कैसे काम करेगा ये टेस्ट
बीबीसी से बात करते हुए सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल डॉ. शेखर मांडे ने बताया, "ये पेपर बेस्ड डायग्नॉस्टिक टेस्ट हैं, जिसमें एक सोलियुशन लगा होता है. कोरोना वायरस के RNA को निकालने के बाद, इस पेपर पर रखते ही एक ख़ास तरह का बैंड देखने को मिलता है, जिससे पता चलता है कि मरीज़ कोरोना पॉज़िटिव है या नहीं."
इस पेपर स्ट्रिप टेस्ट किट को इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बॉयोलॉजी के दो साइंटिस्ट ने डिजाइन किया है.
देबज्योति चक्रवर्ती और सौविक मैती- ये दोनों बंगाल के रहने वाले हैं और एक साथ काम करते हैं.
बीबीसी से बात करते सौविक मैती ने बताया कि इस स्ट्रीप पर दो बैंड होंगे -
पहला बैंड है कंट्रोल बैंड, इस बैंड का रंग बदने का मतलब होगा की स्ट्रीप का इस्तेमाल सही ढंग से किया गया है.
दूसरा बैंड है टेस्ट बैंड, इस बैंड का रंग बदलने का मतलब होगा कि मरीज़ कोरोना पॉज़िटिव है. कोई बैंड नहीं दिखे तो मरीज को कोरोना नेगेटिव मान लिया जाएगा.
फेलूदा (FELUDA) नाम क्यों ?
ख़ास बात ये कि ये टेस्ट ना तो रैपिड टेस्ट टेस्ट है और ना ही RT-PCR टेस्ट. ये एक तीसरे तरह का RNA बेस्ड टेस्ट है.
सत्यजीत रे की फ़िल्मों के जासूसी कैरेक्टर की तरह ही इस टेस्ट को नाम दिया गया है - फेलूदा (FELUDA),
हालांकि ये नाम एक इत्तेफाक ही है क्योंकि इस टेस्ट में डिटेक्शन की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है वो है FNCAS9 EDITOR LINKED UNIFORM DETECTION ASSAY.
लेकिन सौविक सत्यजीत रे की फेलूदा से इसकी समानता भी बताते हैं. उनकी फ़िल्मों की ही तरह ये फेलूदा भी कोरोना के मरीज़ को जासूस की तरह ढूंढ लेगा.
भारत में सबसे पहले इस्तेमाल
डॉ. शेखर मांडे के मुताबिक़, "दुनिया के दूसरे देशों में भी इस तरह के पेपर टेस्ट पर काम हुआ है. लेकिन हमारा काम बाकी देशों के मुकाबले थोड़ा अलग है. वो इसलिए क्योंकि हम इस टेस्ट में दूसरा एंज़ाइम का इस्तेमाल कर रहे हैं."
इस टेस्ट में इस्तेमाल होने वाली तकनीक को CRISPR- CAS9 तकनीक कहते हैं. बाक़ी देश इस टेस्ट में CAS9 की जगह CAS12 और CAS13 का इस्तेमाल करते हैं.
अमरीका के बर्कले यूनिवर्सिटी में इस तरह के टेस्ट पर काम हुआ है, लेकिन अभी वो इसका इस्तेमाल कोरोना टेस्ट के लिए नहीं कर रहे हैं."
डॉ. मांडे के मुताबिक़ मई महीने के अंत तक भारत में ये टेस्ट शुरू हो सकते हैं.
इस टेस्ट की गुणवत्ता के बारे में जानकारी साझा करते हुए डॉ. मांडे कहते हैं कि भारत में इस्तेमाल होने वाले RT-PCR की ही तरह इस टेस्ट के नतीजे भी उतने ही सही आ रहे हैं.
कितने दिन में बना ये टेस्ट
भारत के वैज्ञानिक 28 जनवरी से ही टेस्ट को बनाने के काम में जुट गए थे.
इस टेस्ट को बनाने वाले वैज्ञानिक सौविक के मुताबिक चार अप्रैल के आस-पास हमने ये तैयार कर लिया था. लेकिन इस किट के मास-प्रोडक्शन के लिए हमें कंपनी के साथ की ज़रूरत थी. फिर इसके लिए टेंडर निकाले गए और बाक़ी ज़रूरी मंज़ूरी की प्रक्रिया को पूरा करने में महीने भर का और वक़्त लग गया.
रैपिड टेस्ट किट से कितने अच्छे
पिछले दिनों भारत ने चीन से रैपिड टेस्ट किट मंगवाए थे, जिसके नतीजे ठीक नहीं आए. तीन राज्य सरकार ने जब शिकायत की तो आईसीएमआर ने ख़ुद टेस्ट किट की जांच की. लेकिन उनकी जांच में भी वो किट फेल हो गए तो भारत ने चीन को वो किट वापस कर दिया. भारत सरकार टेस्टिंग की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए रैपिड टेस्ट किट भारत में लाना चाहती थी.
लेकिन क्या इस पेपर टेस्ट किट के बाद रैपिड टेस्ट किट की ज़रूरत नहीं पड़ेगी?
इस पर डॉ. मांडे कहते हैं, "ये टेस्ट किट किसी से बेहतर या ख़राब नहीं होता. दरअसल, RT-PCR टेस्ट करने में कुछ ज्यादा वक़्त लगता है और उसकी क़ीमत भी ज़्यादा है. पेपर बेस्ड टेस्ट में समय भी कम लगेगा और क़ीमत भी काफ़ी कम होगी."
पेपर बेस्ड टेस्ट में सैम्पल लेने से नतीजे आने तक में एक से दो घंटे का वक़्त लगेगा. क़ीमत के बारे में बताते हुए डॉ. मांडे ने कहा कि मास-प्रोडक्शन हुआ तो तकरीबन 300-500 रुपए एक टेस्ट किट की क़ीमत पड़ेगी.
आने वाले दिनों में भारत कितनी मात्रा में इस टेस्ट किट का उत्पादन करने जा रहा है, इस पर डॉ. मांडे ने सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन उनका मानना है कि आने वाले दिनों में कोरोना के केस बढ़ेंगे ही और हमें अपने टेस्टिंग को बढ़ाने की ज़रूरत भी पड़ेगी. दोनों ही सूरत में हम भारत के डिमांड को पूरा कर पाएंगे.
बीबीसी से बातचीत में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने भी कहा था कि अगले दो महीने में भारत पांच लाख टेस्ट प्रतिदिन करने की क्षमता रखता है. ज़रूरत पड़ी तो टेस्टिंग की रणनीति में बदलाव ला कर सभी के लिए टेस्ट करवाने पड़े तो उसके लिए भारत की तैयारी पूरी है.
भारत में फ़िलहाल RT-PCR टेस्ट ही हो रहे हैं, जिसके नतीजे वैसे तो 6 घंटे में आने का दावा किया जाता है, लेकिन फ़िलहाल लोगों को कोरोना टेस्ट के नतीजे मिलने में एक से दो दिन का इंतज़ार करना पड़ रहा है.
घर पर होंगे टेस्ट?
इस सवाल के जवाब में सौविक कहते हैं, "ऐसा नहीं हैं. पहले तो आप बीमारी को समझें. ये वायरस से फैलता है, इसलिए इस बीमारी के सैंपल लेने की प्रक्रिया में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है. फिर सैम्पल से RNA निकालने की प्रक्रिया भी जटिल है. ये टेस्ट लैब में ही हो सकता है और इसके लिए भी ख़ास तरह की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए मेडिकल प्रोफ़ेशन से जुड़े लोग ही इसे कर सकते हैं."
इस टेस्ट में भी नाक और मुंह से स्वाब लिया जाता है जिसे बफर ट्रांस्पोर्ट मेटीरियल में कलेक्ट करते हैं. इस मटीरियल की ख़ासियत यही है कि उसमें वायरस नए नहीं बनते हैं, फिर स्वाब को लैब में लाया जाता है. फिर RNA निकाला जाता है और तब जा कर टेस्ट किया जाता है. ये टेस्ट देश के किसी भी पैथोलॉजी लैब में किए जा सकते हैं.
पर भारत को मई के अंत तक का इंतज़ार करना होगा, जब ये टेस्ट किट लैब्स में उपलब्ध होंगे.