Coronavirus pandemic:कब-कब विश्वव्यापी महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया ? जानिए
नई दिल्ली- आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को विश्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी महीने में ही इसकी आशंका जाहिर की थी कि कोरोना वायरस का प्रकोप जिस तरह से बढ़ता जा रहा है, उसके विश्वव्यापी महामारी की श्रेणी में रखे जाने की क्षमता है। जब किसी नई संक्रमणकारी बीमारी के प्रकोप से दुनिया भर के कई देश एक साथ चपेट में आते हैं तो उसे पैंडेमिक (Pandemic) की स्थिति कहते हैं और डब्ल्यूएचओ (WHO) ने आखिरकार बुधवार को कोरोना वायरस को इसी वजह से विश्वव्यापी महामारी का दर्जा दिया है। यह आम महामारी से इस मायने में अलग है कि इसका प्रकोप बहुत बड़े क्षेत्र में होता है, बहुत ज्यादा लोग इससे संक्रमित होते हैं और इसमें आम महामारी की तुलना में कहीं ज्यादा लोगों की मौत होती है या इसकी आशंका होता है। आइए जानते हैं कि अब तक कितनी महामारी को पैंडेमिक घोषित किया गया है।
कोरोना वायरस महामारी है
आगे बढ़ें उससे पहले ये जान लेना जरूरी है कि विश्व स्वास्थय संगठन ने कोरोनो वायरस को किन परिस्थितियों में विश्वव्यापी महामारी घोषित किया है। डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर एडनॉम घिब्रियेसस के मुतबाक, 'पैंडेमिक हल्के में या लापरवाही में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द नहीं है। ये ऐसा शब्द है, जिसका अगर गलत इस्तेमाल हुआ तो इससे बिना मतलब के बहुत ज्यादा डर पैदा हो सकता है या लोग अनुचित तरीके से हार मान ले सकते हैं, जिससे परेशानी बढ़ सकती है या ज्यादा मौत हो सकती है। ' उन्होंने ये भी कहा है कि पैंडेमिक घोषित करने के बावजूद कोरोना वायरस से जो खतरा पैदा हुआ है उससे निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकलन में कोई इंतर नहीं आया है। वह जो कर रहा था, वही करेगा और न ही उसमें कोई बदलाव आएगा जो विभिन्न देश इससे निपटने के लिए अबतक कर रहे हैं।
स्वाईन फ्लू
इतिहास में दुनिया कई विश्वव्यापी महामारी झेल चुकी है, जिसमें करोड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। इन वैश्विक महामारियों में स्मॉलपॉक्स, ट्यूबरोक्लोसिस और ब्लैक डेथ जैसी महामारियां शामिल हैं। आखिरी पैंडेमिक (स्वाईन फ्लू) 2009 में हुई थी, जिसमें जिसमें दुनियाभर में 14,286 लोग मारे गए थे।
एचआईबी और एड्स
इस बीमारी की पहचान सबसे पहले कांगो में 1976 में हुई। 1981 के बाद से इस बीमारी की चपेट में आकर दुनियाभर में 3.6 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि, जागरुकता बढ़ने और इलाज की तकनीक विकसित होने की वजह से यह बीमारी आज पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा नियंत्रण में है। 2005 से लेकर 2012 के बीच में इस बीमारी से होने वाली मौतों में भारी गिरावट आई और तब इसकी मृत्यु दर 22 लाख से घटकर 16 लाख रह गई थी।
फ्लू महामारी
इस बीमारी का पहला मामला 1968 में हॉन्ग कॉन्ग में सामने आया था, इसीलिए इसे हॉन्ग कॉन्ग फ्लू के नाम से भी जाना जाता है। दूसरी श्रेणी की इस फ्लू महामारी ने हॉन्ग कॉन्ग के बाद सिंगापुर, वियतनाम, फिलीपींस,ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया था। फ्लू महामारी की वजह से दुनिया भर में 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
एशियन फ्लू
इंफ्लुएंजा ए या एशियन फ्लू की शुरुआत भी 1956 में चीन से ही हुई थी। H2N2 या एशियन फ्लू ने 1958 में खत्म होने तक भारी कहर बरपाया था। रिपोर्ट के मुताबिक इस फ्लू की वजह से चीन, सिंगापुर, हॉन्ग कॉन्ग और अमेरिका में करीब 20 लाख की मौत हो गई थी।
हैजा महामारी
हैजा महामारी की शुरुआत पांच बार पहले भी भारत में ही हुई थी, लेकिन छठी बार इस बीमारी से 8 लाख लोग मारे गए थे। भारत के बाद ये बीमारी मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और रूस में भी फैल गई। अमेरिका में 1910 और 1911 के बीच जो अंतिम बार हैजा का प्रकोप हुआ वह भी भारत से शुरू हुए छठी हैजा महामारी से ही जुड़ा बताया गया। इस महामारी के चलते 2 करोड़ लोगों की असमय मौत हो गई।
ब्लैक डेथ
1346 से 1353 के बीच यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देश प्लैग जैसी भयावह महामारी की चपेट में रही। एक आंकड़े के मुताबिक इस दौरान प्लेग की चपेट में आकर 7.5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ लोगों की जानें चली गईं। इस बीमारी के बारे में बताया जाता है कि इसकी शुरुआत एशिया से हुई और बाकी देशों में चूहों पर पाए जाने वाले पिस्सुओं की वजह से फैल गई।
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