क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कोरोना: पश्चिम बंगाल समेत पाँच राज्यों में चुनाव आयोग क्या कर सकता था, जो उसने नहीं किया?

बिहार के बाद कोरोना के दौर में पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए. पश्चिम बंगाल में तो चुनाव अब भी जारी हैं. इस बार संक्रमण के ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में चुनाव आयोग की भूमिका सवालों के घेरे में है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम ने बुधवार को घोषणा की कि वो कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र कोई भी बड़ी रैली का आयोजन नहीं करेंगे.

उनका ये फ़ैसला पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बचे हुए चरणों के लिए है. उनका कहना है कि अब उनके नेता घर-घर जाकर प्रचार करेंगे और सोशल मीडिया का सहारा लेंगे.

इस पर अलग-अलग तरफ़ से कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं. लेकिन मेडिकल जगत के लोग इसकी सराहना ज़रूर कर रहे हैं. कई लोग इसे ज़िम्मेदारी भरा फ़ैसला बता रहे हैं.

देश में पाँच राज्यों में चुनाव की घोषणा फ़रवरी के अंत में हुई थी. पश्चिम बंगाल को छोड़ कर बाक़ी के चार राज्यों (असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी) में चुनाव ख़त्म हो चुके हैं. इस बीच अलग-अलग मीम्स और जोक्स से आपके फ़ोन भी पटे पड़े होंगे, जहाँ कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस चुनाव से डरता है और इस वजह से चुनाव वाले राज्यों में नहीं जाता.

लेकिन आँकड़े क्या कहते हैं, एक नज़र उन पर भी.

विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में कोरोना संक्रमण का हाल
BBC
विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में कोरोना संक्रमण का हाल

पश्चिम बंगाल में अभी चार चरणों के चुनाव बचे हैं. भारत में कोरोना के नए मामले रोज़ अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं. ऐसे में जनता सवाल पूछ रही है कि नाइट कर्फ़्यू और सारी पाबंदियाँ केवल जनता पर क्यों लागू की जा रही है. राजनीतिक रैलियों में इनका पालन क्यों नहीं हो रहा?

ऐसा में सवाल उठता है कि आख़िर कोविड प्रोटोकॉल का पालन इन चुनावों में हो, इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? आप में से कई लोग सोच रहे होंगे, नेताओं की. कई लोगों का जवाब हो सकता है लोगों की. कई का जवाब हो सकता है चुनाव आयोग का.

नैतिकता के आधार पर सबकी जवाबदेही ज़रूर है. लेकिन नियम अगर कुछ हैं, तो उसका पालन हो रहा है या नहीं, इसकी ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है.

भारत के सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव की ज़िम्मेदारी उन्हीं की है. कुछ राज्यों में पंचायत के चुनाव हो रहे हैं, उसमें उनकी भूमिका नहीं. चुनाव आयोग ने समय-समय पर राजनीतिक दलों को कोविड प्रोटोकॉल की याद ज़रूर दिलाई है. सबसे ताज़ा उदाहरण 9 अप्रैल 2021 की चिट्ठी है, जो उन्होंने तमाम राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों को भेजी थी.

चुनाव का कोविड प्रोटोकॉल

चुनाव आयोग ने सबसे पहला कोविड प्रोटोकॉल अगस्त 2020 में बनाया था. इसकी शुरुआत बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान हुई थी. बिहार, भारत का पहला राज्य था, जहाँ कोरोना महामारी के दौरान चुनाव कराया गया था. अलग-अलग उपचुनावों में भी इसी प्रोटोकॉल को लागू किया गया और इस साल हुए पाँच राज्यों के चुनाव में भी यही नियम लागू हैं.

आठ पन्ने का दस्तावेज़ चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद है, जिनमें से कुछ नियम ये हैं.....

1. नामांकन दाख़िल करते वक़्त उम्मीदवार के साथ केवल दो व्यक्ति मौजूद होंगे. उम्मीदवार अपना नामांकन ऑनलाइन कर सकते हैं और वो चुनाव लड़ने के लिए लगने वाली ज़मानत राशि भी ऑनलाइन जमा कर सकते हैं.

2. रोड शो के दौरान कोई भी उम्मीदवार अधिकतम पाँच वाहनों का इस्तेमाल कर पाएँगे.

3. मतदान के दिन अगर किसी मतदाता में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए, तो उन्हें एक टोकन दिया जाएगा और उस टोकन के माध्यम से वे मतदान के अंतिम घंटे में अपना वोट डाल पाएँगे.

4. ईवीएम मशीन में मतदान करने से पहले मतदाताओं को दस्ताने दिए जाएँगे.

5. एक मतदान केंद्र पर अधिकतम एक हज़ार मतदाता वोट दे सकेंगे. पहले मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1500 थी.

6. सभी मतदाताओं के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा, जिसे पहचान ज़ाहिर करने के लिए थोड़ी देर के लिए उन्हें हटाना होगा.

7. कोरोना संक्रमित और क्वारंटीन में रह रहे मरीज़ों को स्वास्थ्य अधिकारियों की मौजूदगी में मतदान के अंतिम घंटे में वोट डालने की इजाज़त होगी. इस दौरान संक्रमण की रोकथाम के लिए तमाम उपाय किए जाएँगे.

8. महामारी की वजह से मतदान का समय एक घंटे बढ़ा दिया गया है. अब अति संवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर ज़्यादातर मतदान केंद्रों पर मतदान सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक होगा. हालाँकि, दिशा निर्देशों में वर्चुअल रैली और डिजिटल कैंपेन को लेकर कुछ नहीं कहा गया है.

इनका कितना पालन हो रहा है, इसके लिए कुछ तस्वीरें भी अब आप देख लें.

ऐसे में सवाल पूछा जाएगा कि चुनाव आयोग क्या कर सकता था? जवाब जानने के लिए बीबीसी ने दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त से बात की.

ओपी रावत, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
Getty Images
ओपी रावत, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

ओपी रावत, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की राय

"मेरी समझ से कोई भी नेता कैम्पेन में चुनाव आयोग के कोविड19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते पाया जाए, तो नेताओं के प्रचार पर बैन कर देना चाहिए. इससे बाक़ी नेताओं और पब्लिक दोनों को एक संदेश जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. पश्चिम बंगाल से रैलियों की जो तस्वीर सामने आ रही है, उसमें हम साफ़ देख रहे हैं कि स्टार कैम्पेनर बिना मास्क लगाए स्टेज पर हैं. उससे मैसेज ये जा रहा है कि जब उन पर कोई रोक नहीं, तो दूसरों पर क्या होगी. आपने देखा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोरोना पॉज़िटिव हो गए. वो भी कैम्पेन में गए थे. हालाँकि ये अभी नहीं पता कि उनको संक्रमण कहाँ से मिला. एक नेता पर एक्शन होने से पूरी जनता में मैसेज जाएगा कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं. चुनाव आयोग को यहीं करना चाहिए था, जो नहीं हुआ.

मुझे नहीं याद कि कोविड के दौरान चुनाव होने पर किसी नेता पर कोविड प्रोटोकॉल तोड़ने पर कोई बैन की ख़बर मीडिया में आई हो. असम में एक नॉमिनेशन के दौरान तो एक किलोमीटर लंबी लाइन टीवी पर दिखाई दे रही थी. कोविड प्रोटोकॉल का वो साफ़ उल्लंघन था. ये ज़िम्मेदारी निर्वाचन अधिकारी की होनी चाहिए कि वो नेताओं से प्रोटोकॉल का पालन करवाएँ. शुरुआत में ही एक्शन लिया होता, तो सब बढ़िया रहता.

कोविड प्रोटोकॉल जो चुनाव आयोग ने बनाए थे, वो अच्छे थे. तमाम पार्टियों की राय ली गई थी. ऐसा नहीं कि आयोग के पास ताक़त नहीं. सुप्रीम कोर्ट की एक रूलिंग है- एमएस गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त 1977 का. सुप्रीम कोर्ट ने उस फ़ैसले में कहा है कि चुनाव के दौरान ऐसी कोई चुनौती मुख्य चुनाव आयुक्त के सामने आए, जिसके बारे में क़ानून में कोई प्रावधान ना हो, ऐसी में जो फ़ैसला मुख्य चुनाव आयुक्त लेंगे, वो ही क़ानून माना जाएगा. इससे बड़ी पावर क्या होगी. कोरोना के बारे में पहले से क़ानून में कुछ नहीं लिखा. ऐसे में सीईसी स्वतंत्र हैं.

लेकिन मैं नहीं मानता कि रैलियों पर पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए या फिर चुनाव ही रोक देना चाहिए. मैच का रेफ़री मैच को ही रोक दे, ये सही नहीं है. जनता तक अपनी बात पहुँचाने का वर्चुअल माध्यम सबसे बेहतर नहीं हो सकता. सब डिजिटली एक्टिव नहीं होते. सीपीएम ने किया है, वो ठीक है. महामारी के दौर में विश्व के कई देशों में चुनाव हुए."

नसीम ज़ैदी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की राय

"चुनाव के दौरान आयोग द्वारा बनाए गए कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराना आयोग, उनके तंत्र, और राज्य सरकार की संबंधित एजेंसियों के माध्यम से कराना उनकी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. चुनाव आयोग का कोविड प्रोटोकॉल डॉक्यूमेंट कोई स्थायी तो है नहीं. समय के साथ वो बदला भी जा सकता है. उसकी समीक्षा बदलती परिस्थितियों के हिसाब से होनी चाहिए.

चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए कोविड प्रोटोकॉल के अनुपालन में सहयोग करना हर राजनीतिक पार्टी की ज़िम्मेदारी है. कल तक वो नियम सही काम कर रहे थे, तो बहुत अच्छी बात है. लेकिन आज महामारी के बढ़ते हुए प्रकोप को देखते हुए अगर सही काम नहीं कर रहे हैं, तो सारे राजनीतिक दलों से बात कर इसे चुनाव के बीच में बदला भी जा सकता है या संशोधन भी किए जा सकते हैं.

अख़बारों में और दूसरे मीडिया में हम देख रहे हैं कि लोग कह रहे हैं इतनी संख्या में रोड शो क्यों हो रहे हैं? रोड शो की संख्या को सीमित किया जा सकता है या इस पर विचार किया जा सकता है कि उनकी ज़रूरत है भी या नहीं? दूसरा ये देखा गया है कि रैलियों में बिना मास्क के लोग आ रहे हैं. ऐसे में इस पर विचार किया जा सकता है कि भीड़ को सीमित किया जा सकता है या नहीं.

कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन सभी राजनीति पार्टियों की चुनावी बैठकों में हो रहा है, जैसा अख़बारों और टीवी चैनलों पर हम देख पा रहे हैं. सीपीएम ने इस संबंध में जो पहल की है, वो सराहनीय है. चुनाव आयोग और उसके तंत्र के सामने एक अच्छा अवसर है, जब इस मुद्दे पर सभी पार्टियों की बैठक बुला कर चर्चा की जाए और कोविड प्रोटोकॉल के बारे में बदलाव के लिए समय रहते आवश्यक क़दम उठाए जाएँ.

मैं ऐसे सुझाव नहीं दे सकता कि पूरी तरह सब बंद हो जाए या पूरी तरह सब खुला रहे. दोनों के बीच के एक संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है. उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं, एक वक़्त था जब चुनाव में नॉमिनेशन के दौरान उम्मीवारों की गाड़ियां और उनके साथ भीड़ और रोड शो, सड़कों को जाम कर देते थे. आयोग ने इस पर सख़्ती की और अब ऐसे नज़ारे देखने को नहीं मिलते. ऐसे में मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान या फिर संशोधित कोविड नियमों का पालन क्यों नहीं कराया जा सकता.?"

क्या किया चुनाव आयोग ने?

बीबीसी ने चुनाव आयोग ने कोविड प्रोटोकॉल के नियमों का पालन सही से हो रहा है या नहीं, इस बारे में चुनाव आयोग का पक्ष जाने की कोशिश की. पत्र सूचना कार्यालय की तरफ से चुनाव आयोग का काम काज देख रही अधिकारी ने कहा कि जितनी सूचना वेबसाइट पर उपलब्ध है, वो इससे आगे और कुछ नहीं बता सकती.

चुनाव आयोग की वेबसाइट पर केवल प्रोटोकॉल की जानकारी ही हमें मिल पाई. पश्चिम बंगाल चुनाव का कामकाज देख रहे चुनाव आयोग के अधिकारी ने फ़ोन पर कहा कि ऐसे कोविड नियमों की अनदेखी और उन पर की गई कार्रवाई की जानकारी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारी ही दे सकते हैं.

पश्चिम बंगाल और असम के मुख्य चुनाव अधिकारी से संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन उनका जवाब नहीं मिला. उनकी तरफ़ से कोई भी जवाब आते ही रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से कोविड प्रोटोकॉल के पालन ना होने पर जवाब तलब भी किया है. 19 अप्रैल को इस मामले पर दोबारा सुनावई होनी है. 16 अप्रैल को इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Coronavirus: What could the Election Commission do in five states, including West Bengal, which it did not do?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X