दिल्ली में हार की तबाही से ऐसे उबरना चाहती है कांग्रेस
नई दिल्ली- दिल्ली (Delhi) की सातों लोकसभा सीटों पर मोदी सुनामी की भेंट चढ़ी कांग्रेस (Congress) हार की तबाही से उबरने के लिए अभी से ऐक्शन मोड में आ चुकी है। इस ऐक्शन को आगे से खुद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित (Sheila Dikshit) लीड कर रही हैं, जो पिछला चुनाव बहुत बड़ी मार्जिन से हार चुकी हैं। आसार हैं कि आने वाले दिनों में दिल्ली कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव और पार्टी के रवैये में बहुत ज्यादा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
5 मेंबर वाला पैनल लेगा हार की वजहों का जायजा
दिल्ली की पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित (Sheila Dikshit) ने दिल्ली की सातों लोकसभा सीट पर पार्टी के उम्मीदवारों की शर्मनाक हार के कारणों का पता लगाने के लिए सोमवार को 5 मेंबर्स का एक पैनल बनाया है। इस पैनल में परवेज हाशमी (Parvez Hashmi), डॉक्टर ए के वालिया (Dr AK Walia), डॉक्टर योगानंद शास्त्री (Dr Yoganand Shastri) और राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा (Pawan Khera) और जयकिशन (Jaikishan ) शामिल हैं। ये पैनल हार की वजहों की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करेगा।
विधानसभा चुनाव में जीत के रास्ते तलाशेगा पैनल
शीला दीक्षित ने जो पैनल गठित किया है, उसे आने वाले वाले प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत पक्की करने के कदम सुझाने को भी कहा गया है। ये पैनल पार्टी का राज्य में जनाधार बढ़ाने के उपाय भी सुझाएगा। इस पैनल को अपनी रिपोर्ट 10 दिनों के अंदर शीला दीक्षित को सौंपने को कहा गया है।
खुद बुरी तरह हार चुकी हैं शीला
कांग्रेस के लिए दिल्ली की सभी सातों सीटों पर हार कितनी बड़ी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शीला दीक्षित (Sheila Dikshit) जैसी कद्दावर नेता को भी नॉर्थ ईस्ट दिल्ली (North EastDelhi) सीट पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) ने 3.5 लाख से भी ज्यादा वोटों से पराजित किया है। यह आलम दिल्ली की ज्यादातर सीटों पर रहा है।
कांग्रेस में क्यों बची है अब भी उम्मीद?
कांग्रेस के लिए राहत की बात इतनी भर है कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तुलना में उसका परफॉर्मेंस इसबार के लोकसभा में थोड़ा बेहतर रहा है। मसलन, दिल्ली की 7 में से 5 सीटों पर वह सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) को पीछे छोड़कर दूसरे नंबर पर जगह बनाने में सफल रही है। मसलन, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पार्टी को जहां इस चुनाव में सिर्फ 18 फीसदी वोट मिले हैं, वहीं कांग्रेस को उससे कहीं ज्यादा 22 फीसदी वोट मिले हैं।
इस चुनौती से निपटना नहीं है आसान
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी टेंशन की वजह ये है कि बीजेपी (BJP) ने इसबार भी 2014 की तरह ही राजधानी की सभी लोकसभा सीटों पर सिर्फ कब्जा ही नहीं किया है, बल्कि पिछलीबार से उसका वोट शेयर भी 10फीसदी बढ़ गया है। पार्टी को हालिया चुनाव में 56 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं।
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