पश्चिम महाराष्ट्र में कांग्रेस-NCP का तिलिस्म तोड़ना BJP-शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती, इसबार क्या होगा ?
नई दिल्ली- महाराष्ट्र को भौगोलिक और राजनीतिक रूप से पांच क्षेत्रों में बांटा जाता है- कोंकण, मराठवाड़ा, विदर्भ, खानदेश और पश्चिम महाराष्ट्र। 2014 के बाद से लगभग हर चुनावों में सत्ताधारी दलों ने पूरे महाराष्ट्र में अपना दबदबा कायम किया है। लेकिन, पश्चिम महाराष्ट्र उसे अभी भी वह कामयाबी नहीं मिल पाई है। अगर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़े उठाकर भी देखें तो पता चलता है कि पश्चिम महाराष्ट्र ने सीटों के हिसाब से इस इलाके में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन दो-तिहाई अंक हासिल करने में नाकाम रहा है। जबकि, इन दोनों चुनावों में सत्ताधारी गठबंधन ने बाकी पूरे महाराष्ट्र में लगभग 80 फीसदी सीटें जीतने में सफलता प्राप्त की है। यहां 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का जिक्र इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि तब चारों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं और वह चुनाव बहुकोणीय हो गया था। इसबार चारों पार्टियां दो अलग-अलग गठबंधनों के रूप में चुनाव मैदान में हैं। इसलिए ये देखना होगा कि इसबार पश्चिम महाराष्ट्र में सत्ताधारी दल अपने जीत के आंकड़े को ठीक कर पाएंगे या एकबार फिर से विपक्षी गठबंधन ही अपना दबदबा बरकरार रखने में कामयाब रहेगा।
पिछले तीन चुनावों में विधानसभा सीटों के रुझान
2014 से महाराष्ट्र ने तीन चुनाव देखे हैं और इसबार चौथे की बारी है। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी और शिवसेना को महाराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में से 232 सीटों पर बढ़त मिली थी। जबकि, 2014 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़कर 185 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया था। वहीं, इस साल के लोकसभा चुनाव में दोनों ने फिर से साथ मिलकर चुनाव लड़ा और विधानसभा की 226 सीटों पर बढ़त हासिल की। जहां तक कांग्रेस-एनसीपी के प्रदर्शन की बात है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में दोनों दलों ने राज्य की 42 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी और उस साल के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने इस आंकड़े को सुधार कर 83 सीटों पर कब्जा कर लिया था। लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों एकबार फिर साथ आए, लेकिन फिर भी सिर्फ 45 विधानसभा सीटों पर ही बढ़त बना पाने में कामयाब हो पाए।
पश्चिम महाराष्ट्र के 58 सीट तय करेंगे अंतिम परिणाम
अगर सिर्फ पिछले तीन चुनावों के ही नहीं 1990 से हुए हर चुनावों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि महाराष्ट्र में नतीजे चाहे जो भी आए हों, लेकिन पश्चिम महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी से बीजेपी-शिवसेना को कड़ी टक्कर मिली है। पिछले तीन चुनावों में इस क्षेत्र में भी बीजेपी गठबंधन ने अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया है और उसके वोट प्रतिशत में निरंतर सुधार देखा गया है, लेकिन अभी भी वह विपक्षी दलों के तिलिस्म को तोड़ पाने में नाकाम रहा है। पश्चिम महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 58 सीटें हैं और इस चुनाव में अगर एकबार फिर से कांग्रेस-एनसीपी ने अपना जनाधार बचाए रखा तो महराष्ट्र के अंतिम परिणाम पर इसका दिलचस्प असर देखने को मिल सकता है।
पश्चिम महाराष्ट्र में अबतक का चुनावी रुझान
1999 में शरद पवार ने कांग्रेस से तोड़कर जब एनसीपी का गठन किया था, उससे पहले पश्चिम महाराष्ट्र में कांग्रेस का अकेला दबदबा होता था। 1990 के बाद के चुनावों के विश्लेषण से इस स्थिति को अच्छी तरह से देखा जा सकता है। पवार के आने के बाद एनसीपी ने कांग्रेस की उस ताकत में काफी हद तक अपनी हिस्सेदारी भी कायम कर ली। करीब 10 साल यानि 2009 तक यह इलाका पूरी तरह से कांग्रेस-एनसीपी का गढ़ बनकर रह गया। 2014 के आम चुनाव से पहले तक पश्चिम महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी का वोट शेयर बीजेपी-शिवसेना के साझा वोट शेयर से हमेशा ज्यादा रहा। 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने इस इलाके में भी कांग्रेस-एनसीपी पर बढ़त बनानी शुरू कर दी, लेकिन फिर भी उनकी बढ़त का मार्जिन राज्य के बाकी हिस्सों के मुकाबले कम ही रहा है।
पश्चिम महाराष्ट्र में जीत के अंतर में बदलाव
288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में पश्चिम महाराष्ट्र की 58 सीटों के अलावा कोंकण में 75, मराठवाड़ा में 46, विदर्भ में 62 और खानदेश में 47 सीटें हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेटर फॉर पॉलिटिकल डाटा (टीसीपीडी) ने जो पश्चिम महाराष्ट्र से जुड़े चुनाव नतीजों के आंकड़ों का जो विश्लेषण किया है, उसके मुताबिक, पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में इस क्षेत्र में भी भाजपा-शिवसेना ने तेजी से कांग्रेस-एनसीपी के दबदबे को खत्म करना शुरू कर दिया है। इसके ठीक उलट एनसीपी-कांग्रेस के जीत का अंतर इस इलाके में भी 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद से लगातार घटता जा रहा है। ऐसे में अगर मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी दोनों सत्ताधारी दलों ने अपना प्रदर्शन इसी तरह से सुधारना जारी रखा तो वे इस इलाके में भी विपक्ष का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब हो सकते हैं। (जीत के अंतर में हो रहे बदलाव को ग्राफिक्स में देखें।)
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